INS WA JAAN PART 2
प्यारे प्यारे बच्चो,
कहानी सुनोगे?
जी मास्टर जी!
सभी बच्चे उत्सुकता से उनके सामने धूप में पालथी मारकर बैठे थे।
दिसंबर का महीना था और चारों ओर हल्की सुनहरी धूप फैली हुई थी। आज बादल नदारद थे।
"पिछली बार मैंने तुम्हें बाबा आदम और अम्मा हव्वा की कहानी सुनाई थी, याद है ना?"
"जी याद है!"
"तो बताओ, क्या याद है?" मास्टर जी ने मुस्कुराते हुए उनके मासूम चेहरों की तरफ देखा।
"आपने बताया था कि अल्लाह तआला ने आदम अलैहिस्सलाम और अम्मा हव्वा को बनाया और वे जन्नत में रहते थे। फिर शैतान ने उन्हें बहका दिया, उन्होंने नाफरमानी की और उन्हें धरती पर भेज दिया गया।"
एक छह-सात साल के बच्चे ने पूरे जोश से बताया।
"शैतान ने भी तो नाफरमानी की थी, उसने सजदा करने से इनकार कर दिया था और घमंड व जलन की थी,"
एक और बच्चे ने आगे बढ़कर बात पूरी की।
"बिल्कुल सही, शाबाश!"
"शैतान ने तकब्बुर (घमंड) किया था, लेकिन घमंड और गुरूर करना सिर्फ अल्लाह को ही शोभा देता है। अगर कोई इंसान या दूसरी मख़लूक़ (प्राणी) यह काम करे, तो अल्लाह नाराज़ हो जाते हैं।
अल्लाह बहुत बड़ा है और हम सब उसके सामने बहुत छोटे हैं।"
"लेकिन मास्टर जी, हम सब तो छोटे हैं, आप तो बहुत बड़े हैं!"
एक बच्ची खड़े होकर बोली और बाकी सब बच्चे हंसने लगे।
"नहीं बेटा, मैं तो बस कद और उम्र में बड़ा हो गया हूँ, अंदर से तो मैं तुम सबसे भी छोटा हूँ!"
"हैं? वो कैसे मास्टर जी?"
एक बच्चा हैरान होकर बोला।
"देखो न, मैं सब कुछ जानता हूँ - अच्छा-बुरा, गुनाह-नेक़ी। फिर भी कभी-कभी जानबूझकर गुनाह कर बैठता हूँ।
कभी खुद को दूसरों से बेहतर समझ लेता हूँ, यह सोचता हूँ कि मैं सबसे ज्यादा अक़्लमंद और इल्म वाला हूँ।
तो बताओ, मैं अंदर से छोटा हुआ कि नहीं?"
"जो अपने आपको दूसरों से बड़ा समझता है, असल में वही सबसे छोटा होता है।
दूसरों को छोटा और खुद को बड़ा समझना बहुत बुरी बात है।"
"तो फिर बड़ा कौन होता है?"
एक बच्चे ने उत्सुकता से पूछा।
"जो दूसरों की अच्छाइयाँ और अपनी बुराइयाँ देखता है, वही बड़ा होता है।"
"मास्टर जी, बड़े कैसे बनते हैं?"
एक और बच्चे ने सवाल किया।
"मेरे बच्चे, बड़ा बनने के लिए खुद को बहुत छोटा बनाना पड़ता है!"
"वो कैसे?"
उनका कौतूहल (जिज्ञासा) बढ़ता जा रहा था।
"ऐसे कि बिना किसी स्वार्थ के हर किसी के काम आओ।
अगर किसी को तुम्हारी ज़रूरत हो, तो उसकी मदद करो।
घमंड में आकर किसी की मदद से इनकार मत करो।
सबसे अच्छे अंदाज़ में पेश आओ, हंसकर मिलो।
किसी के लिए बुरा मत सोचो और न ही अपने दिल में किसी के लिए नफरत रखो।
अगर कोई तुम्हारे साथ बुरा करे, तो उसे अल्लाह पर छोड़ दो, क्योंकि वही सबसे बेहतर फैसला करने वाला है।"
"मास्टर जी, बड़े बनने के लिए इतने सारे काम करने पड़ते हैं?"
एक बच्चे ने सिर खुजलाते हुए कहा।
"हाँ बेटा, लेकिन ये सारे काम बहुत आसान हैं। बस अपने अंदर विनम्रता (अज़मत) ले आओ, तो ये सब अपने आप होता जाएगा।"
"बच्चे, ये सब बड़ा बनने के लिए करना पड़ता है, बड़ा होने के लिए नहीं!"
"तो मास्टर जी, बड़ा होने के लिए कुछ नहीं करना पड़ता?"
"नहीं बेटा, बड़ा होना तो कुदरत का नियम है। हर ज़िंदा चीज़ अपनी उम्र और समय के साथ बढ़ती रहती है।
बड़ा होने के लिए कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती, बस खाओ, पियो और जियो!"
"बस! यह तो बहुत आसान है, मैं तो यही करूंगा!"
एक आलसी बच्चा बोला।
मास्टर जी हंस पड़े।
"मास्टर जी, शैतान के बच्चे कैसे होते हैं?"
एक बच्चे को एक नया सवाल सूझा।
"वे भी शैतान की तरह होते हैं!
जो सबको तंग करते हैं, बहकाते हैं, बच्चों से शरारत करवाते हैं।
ये जिन, भूत और चुड़ैलें, ये सब शैतान के बच्चे हैं।
हर इंसान के साथ एक शैतान भी पैदा होता है, जो उसके मरने तक उसके साथ रहता है और उसे गुमराह करता रहता है।"
"मैं उस शैतान के बच्चे को बहुत मारूंगा! मास्टर जी, वो कहाँ है? मुझे बताइए!"
एक मोटा सा बच्चा अपनी बाहें चढ़ाते हुए बोला।
"अरे! ऐसे नहीं मरेगा वो!"
"तो फिर कैसे मरेगा?"
उसका जोश ठंडा पड़ गया और वह मायूस होकर बोला।
"जो दुआएं तुमने सीखी हैं -
बाथरूम जाने की दुआ, खाना खाने की, घर से बाहर जाने की, आयतुल-कुर्सी,
कुरआन पढ़ना और नमाज़ पढ़ना -
अगर तुम यह सब करते रहोगे, तो वो तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा!"
"और बाथरूम जाने की दुआ तो जरूर पढ़ा करो, क्योंकि वहाँ बहुत गंदे जिन रहते हैं।
वो तुम्हें देखते हैं और फिर तुम्हारे साथ ही चिपक जाते हैं।
वे तुम्हें बीमारियों, बुरे कामों और परेशानियों में डाल देते हैं।
जिसकी वजह से इंसान की ज़िंदगी जहन्नुम बन जाती है।
बहुत कम लोगों को इस बात का पता है और ज़िंदगी की बहुत सी मुश्किलों की यही असली वजह होती है।
अब तुम सबको यह बात बतानी है और यह दुआ सिखानी है!"
"मास्टर जी, क्या सच में बाथरूम में जिन होते हैं?"
एक बच्चा घबराकर बोला।
"हाँ बेटा, तभी तो बाथरूम की दुआ सिखाई गई है।
अगर यह झूठ होता, तो हदीस में इसका ज़िक्र न मिलता।"
"तुम्हें पता है इस दुआ का मतलब क्या है?"
सभी बच्चों ने सिर ना में हिला दिया।
"اللھم انی اعوذبک من الخبث والخبائث"
"ऐ अल्लाह! मुझे नर और मादा जिन्नातों से बचा।"
"तो इससे साबित होता है कि जिन्न वाकई होते हैं!"
इतने में छुट्टी की घंटी बज गई।
"अरे! मैं तो कहानी सुना रहा था, और बात कहाँ से कहाँ पहुँच गई!"
"अब तो छुट्टी का वक्त हो गया, चलो सब अपनी चीज़ें समेट लो।"
"मास्टर जी, आप बहुत अच्छे हैं!"
एक बच्चा बोला।
मास्टर जी ने प्यार से उसका गाल खींचा,
"और तुम बहुत प्यारे हो!"
बच्चे अपने बैग उठाए अपने-अपने घर जा रहे थे,
और मास्टर जी संतोष के साथ उन्हें देख रहे थे।
वो एक सरकारी स्कूल के रिटायर्ड मास्टर थे।
वह रोज़ उसी रास्ते से कॉलेज जाता था।
एक दिन उसने वहाँ से गुज़रते हुए देखा कि उस छोटी-सी घाटी में रंग-बिरंगे परिंदों का झुंड उतरा हुआ था। वह बाइक रोककर बेख़याली में उस दिशा में बढ़ गया।
नीले रंग की दो पहाड़ियों के बीच यह एक बेहद ख़ूबसूरत घाटी थी।
यह सड़क से थोड़ी हटकर थी। वहाँ खुबानी, बादाम और अखरोट के कुछ पेड़ थे। एक ओर छोटी-सी नदी थी, जो ऊपर से गिरते झरने से प्राकृतिक रूप से बनी थी।
उसके किनारे बेहद ख़ूबसूरत जंगली फूल उगे हुए थे। नदी का पानी इतना साफ़ था कि इसकी तह तक साफ़ नज़र आ रही थी। परिंदे उस पानी से अपनी प्यास बुझा रहे थे।
नदी के किनारे कुछ छोटे-बड़े पत्थर इतने सलीके से रखे थे कि ऐसा लगता था जैसे कोई वहाँ बैठता है।
इस जगह में एक अजीब सा जादू था।
अगस्त का महीना था, और मौसम में हल्की ठंडक घुलने लगी थी।
अब्दुल्लाह कुछ देर वहाँ बैठा रहा। उसे वहाँ एक अजीब सा सुकून महसूस हुआ।
अचानक, उसके लबों पर खुद-ब-खुद नात आ गई।
वह बहुत ख़ूबसूरत आवाज़ का मालिक था। उसकी आवाज़ सुनने वाले को मंत्रमुग्ध कर देती थी।
कुछ देर बाद उसकी नज़र पहाड़ी की चोटी पर खड़ी एक लड़की पर पड़ी।
वह उसी को देख रही थी।
लाल कपड़ों में लिपटी वह सच में किसी परी जैसी लग रही थी।
अब्दुल्लाह उसकी ख़ूबसूरती देखता रह गया।
उस पूरे इलाके में और उसके अपने परिवार में भी सब लोग गोरे-चिट्टे थे, पर उस लड़की की रंगत तो जैसे चाँदी को भी मात दे रही थी।
और उसकी गहरी नीली आँखें…
इतनी गहरी कि समझ ही नहीं आता था कि पहाड़ों ने उसकी आँखों का रंग चुराया है या उसने पहाड़ों से यह रंग उधार लिया है!
उसके चेहरे पर नक़ाब था, सिर्फ़ उसकी आँखें और उसके सफ़ेद, काँच जैसे हाथ नज़र आ रहे थे।
कुछ देर तक वे दोनों एक-दूसरे को देखते रहे।
जब अब्दुल्लाह की नात खत्म हुई, तो वह लड़की भी वापस मुड़ गई।
अब्दुल्लाह वहीं बैठा रहा। उसे खुद नहीं पता था कि वह इस तरह क्यों ठहर गया था।
पर जब वहाँ से उठा, तो किसी अजीब-से ख़ुमार में डूबा हुआ था।
अगले दिन, उसके क़दम खुद-ब-खुद फिर उसी ओर चल पड़े।
वह वहाँ पहुँचा और फिर से नात पढ़ी।
और वह लड़की फिर से उसी जगह खड़ी थी।
बस उसे देख रही थी।
ऐसा अगले कई दिनों तक चलता रहा।
अब अब्दुल्लाह को उसकी खामोशी बेचैन करने लगी थी।
वह उससे बात करना चाहता था, किसी भी क़ीमत पर।
लेकिन वह कभी कोई जवाब नहीं देती थी, बस सुनने आ जाती थी।
यकीनन, उसका घर पहाड़ी के दूसरी तरफ़ होगा, अब्दुल्लाह ने सोचा।
उस दिन उसने ठान लिया कि आज वह उस पहाड़ी पर चढ़ेगा और उस लड़की से मिलेगा।
वह पहाड़ी पर चढ़ने लगा।
ठीक वहीं पहुँच गया, जहाँ वह रोज़ खड़ी होती थी।
उसने रुक कर साँस दुरुस्त किया, फिर आगे बढ़ने लगा।
"रुक जाओ!"
अचानक, एक मीठी और दिलकश आवाज़ हवा में बिखर गई।
अब्दुल्लाह ठिठक गया। उसने इधर-उधर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था।
उसने इसे अपना वहम समझकर फिर से चढ़ाई शुरू की।
"रुक जाओ वहीं! आगे मत बढ़ना… अच्छा नहीं होगा।"