FATAH KABUL (ISLAMI TARIKHI NOVEL) PART 2 MANGNI
मंगनी। .......
- इल्यास खुश होते हुए अपने घर पहुंचे। उनकी अम्मी ने उनको देखा। उनका चेहरा भी ख़ुशी से खिल उठा। उन्होंने कहा :बीटा हस्ते हुए आरहे हो। अल्लाह तुम्हे हस्ता हुए रखे क्या अमीर ने तुम्हारी दरख्वास्त मंज़ूर कर ली ?
- इल्यास :जी हां मगर बहुत कुछ कहने सुनने के बाद।
- अम्मी :मई जानती थी तुम अभी नो उम्र हो इसीलिए उन्हें तुम्हे इजाज़त देने में ताम्मुल हुआ होगा।
- इल्यास : जी हां।
- अम्मी : लेकिन तुमने यह नहीं कहा के अमीरुल मोमेनीन हज़रत उस्मान गनी रज़ि अल्लाह ने तुम्हे थोड़ी उम्र में अमीर कैसे मुक़र्रर कर दिया।
- इल्यास : यह बात कहने की नहीं थी अम्मी जान वह खफा होते। अमीर बड़े पुर जोश और मुदब्बिर है। कहने लगे लश्कर के साथ जाना।
- अम्मी : लश्कर के साथ जाने में वह बात न होती जो तनहा जाने में होती।
- इल्यास : अब बताओ मुझे वहा तनहा क्यू भेज रही हो।
- अम्मी ने ठन्डे साँस लिया और कहा : बीटा अब तक मैंने तुमसे छुपाया मगर आज तुम्हे वह सब हालात सुनती हु जिन्होंने मेरी ज़िन्दगी को तल्ख कर रहा है।
- इल्यास : सुनाइए तुम्हारी बातो ने तो मुझे हैरान कर दिया है।
- अम्मी : वाक़ेयात ही हैरान करने वाले है।
- इल्यास : क्या कोई राज़ है अम्मी जान ?
- अम्मी : है राज़ ही है।
- इल्यास : तो खुदा के लिए उस राज़ का पर्दा उठाइये।
- अम्मी : उठाती हु।
- अम्मी ने फिर ठंडा साँस भरा और कहना शुरू किया
- "जब तुम पैदा हुए थे तो तमाम खंडन को बड़ी ख़ुशी हुई थी उसकी वजह यह थी की तुम्हारे दादा बहुत बूढ़े हो गए थे। तुम्हारे बाप औलाद से नाउम्मीद हो गए थे और और तुम्हारे चाचा ने शादी करने से इंकार कर दिया था।
- इल्यास : क्या मेरे कोई चाचा भी थे अम्मी जान।
- अम्मी :हां तुम्हारे चाचा भी थे निहयात शानदार जवान थे। वह तुम्हरे बाप मतलब अपने भाई को बाप समझते थे। उनकी बड़ी इज़्ज़त करते थे। मुझे अपनी माँ समझते थे मई भी उन्हें बेटे की तरह प्यार करती थी उन्हें भी तुम्हरे पैदा होने से बड़ी ख़ुशी हुई थी। जब उन्होंने तुम्हे अपनी गोद में लेकर तुम्हारा मुँह चूमा तो मई उन्हें देख रही थी। ख़ुशी से उनकी आंखे चमक रही थी। उस वक़्त बे इख़्तियार मेरी ज़बान से निकला "राफे क्या अच्छा होता के तुम अपना बियाह कर लेते। तुम्हारी लड़की होती और वह लड़की इल्यास से बियाही जाती। राफे ने मेरी तरफ देखा उन्होंने कहा :मेरा शादी करने का इरादा नहीं था मगर अपने इल्यास के लिए शादी करूंगा। शायद खुदा तुम्हारी आरज़ू पूरी करदे।
- मुझे सुनकर बड़ी ख़ुशी हुई। मेने कहा राफे जिस तरह तुमने आज मेरे दिल को खुश किया है अल्लाह इसी तरह तुम्हारे दिल को ख़ुश रखे
- चंद ही रोज़ बाद मैंने एक निहयात ही हसीं और तरहदार लड़की केसाथ उनका बियाह करा दिया। खुदा की शान है के बियाह के एक साल बाद लड़की पैदा हु। लड़की क्या थी चाँद का टुकड़ा थी। चंदे आफताब और चंदे महताब। राबिया उसका नाम रखा वह और तुम परवरिश पाने लगे। जब तुम पांच बरस के और वह चार बरस की हुई तो घर की रौनक और दोबाला हो गयी। तुम दोनों के मासूम हंसी से माकन का गोशा गोशा हँसता हुआ मालूम होता था। सरे घर वाले खुश रहते थे। घर जन्नत का नमूना बना हुआ था। क्युकि बहिश्त वह है जिसमे कोई तकलीफ न हो हमे भी कोई तकलीफ कोई गम कोई फ़िक्र न था। आराम था राहत थी और ख़ुशी थी।
- एक बात अजीब थी इल्यास तुम और राबिया कभी न लड़ते थे। हलाके तुम्हारी उम्र के बच्चो लड़के और लड़कियों को हम रोज़ाना लड़ते देखते थे छोटे बच्चो में किसी न किसी बात पर लड़ाई हो ही जाती है.मगर तुम दोनों में न होती थी। हमने यह भी देखा के अगर कभी राबिया तुम से रूठ जाती तो तुमने उसे मना लिया। तुम दोनों की सारा खंडन तारीफे करता रहता था। मोहल्ले वाले प्यार करते थे।
- अचानक हमारी ख़ुशी को गहन लग्न शुरू हो गया। राबिया की माँ बीमार पड़ गयी। तबीबों ने उसे दब्दील अब व हवा का मशवरा दिया। राफे उन्हें मुल्क शाम ले चलने की तैयारी करने लगे। तुम्हारे अब्बू और मई भी तैयार हो गए। आखिर एक रोज़ हमारा मुख़्तसर काफला मुल्क शाम की तरफ रवाना हुआ। खुदा जाने हम किस किस शहर में से होकर दमश्क़ में पहुंचे। निहायत अच्छा और बड़ा शहर था। वहा पहुंच कर एक हफ्ता में सफर की कसल दूर हुआ। उसके बाद राबिया की माँ की तबियत सभलने लगी मगर खुद राबिया पसमुर्दा रहने लगी। चंद ही रोज़ के बाद वह अच्छी खासी बीमार हो गए। अब उसका इलाज शुरू हुआ। दमिश्क़ बड़ा शहर है। बड़े बड़े अहल फन वहा मौजूद है। कई बाकमाल तबीब थे सबने राबिआ का इलाज किया लेकिन कोई अच्छा अफका न हुआ। उसकी सेहत जवाब देने लगी। अब उसको फ़िक्र हुआ। कई तबीबों ने यह गए दी के उसे यहाँ की अब व हवा रास न आयी। उसे उसके वतन इराक में ले जाओ।
- राबिया की माँ सेहत कुछ बहाल हो गयी थी। अगर साल छह महीने वह वहा और रहती तो बिलकुल तनददरुस्त हो जाती। लेकिन राबिया की बीमारी ने उसे हौले दिया। और वह वापस वतन आने को तैयार हो गयी। मैंने और तुम्हरे अब्बा जान ने राफे और उसकी बीवी को मशवरा दिया के जब तक बीवी की तबियत बिलकुल ठीक न हो जाये दोनों वही रहे और हम रबिए को लेकर इराक चले जाये। लेकिन राबिया की माँ ने इस तजवीज़ को न मन वह भी साथ चलने पर बज़िद हुई आखिर हम सब वापस लौटे।
- बेटा !इल्यास जब राबिया बीमार हो गयी तो तुम भी शोखी ,शरारत हंसना और बोलना भूल गए थे। तुम भी चुपचाप और कुछ खोये खोये से रहगम का नासूर भरा ते। मई तुम्हारे बाप और राफे तुम्हारी हर चंद दिलदहि करते लेकिन तुम्हारी पसमुर्दगी दूर न होती थी। तुम ज़्यदा तर राबिया के पास बैठे रहते थे।
- हम फिर लम्बा सफर ऊँटो पर तये करके इराक में आगये। राबिया की तबियत यहाँ आते ही बहुत कुछ बहाल हो गयी। और वह खेलने कूदने लगी। तुम्हारी पसमुर्दगी भी जाती रही।
- एक रोज़ अचानक तुम्हारे अब्बू बीमार हो गए और तीन ही रोज़ के अरसा में दाग माफ़रीक़ात दे कर अदम को सुधारे। बेटा !मेरी दुनिया अंधेर हो गए। दिल की बस्ती उजड़ गयी। ख़ुशी गम में बदल गयी। राफे और उसकी बीवी को भी बड़ा सदमा हुआ ।तुम और राबिया भी कई रोज़ तक रोते रहे। मई कुछ ऐसी पामाल गम हुई के बिस्तर पर पड़ गयी राबिया की माँ और राफे ने मेरी बड़ी दिलदहि की और यह मशवरा दिया के मई तुम्हारे लिए ज़िंदा रहु।
- मैंने भी अपने दिल को बहलाना और समझाना शुरू कर दिया। आखिर रफ्ता रफ्ता मेरी तबियत सभलने लगी। छह महीने में जाकर गम का नासूर भरा। मेरा दिल ठिकाने हुआ और मई तुम्हे देख कर जीने लगी।
- अब तुम राबिया बड़े समझदार होने लगे थे। तुम्हारी तिफलना शोख़िया जा रही थी। लेकिन अब लड़कपन का ज़माना शुरू हो गया था। तुम्हरी हरकते अब भी प्यारी मालूम होती थी दोनों दिन भर रहते थे। तुम्हे देख कर हम तीनो यानि राफे राफे उसकी बीवी जीते थे।
- राफे को शायद यह ख्याल हुआ के कही मई यह न समझने लग जाऊ के वह राबिया को इल्यास की शरीक हयात बनाना पसंद न करे इसलिए उसने खुद ही एक रोज़ मुझ से कहा :भाभी जान तुम्हे याद है इल्यास पैदा हुआ था तुमने क्या कहा था
- यह सुन कर मेरा दिल भर आया। मैंने ज़ब्त करके कहा "याद है "
- राफे :भला क्या कहा था तुमने ?
- अम्मी :जब तुमने इल्यास को गोद में लेकर उसका मुँह चूमा था तो मेरे दिल में एक बात पैदा हुआ था जो मैंने तुम पर ज़ाहिर कर दिया था।
- राफे :मई वो ख्याल ही सुन्ना चाहता हु।
- अम्मी :मैंने कहा था राफे क्या अच्छा होता के तुम अपना बियाह कर लेते। तुम्हारे लड़की होती और वह लड़की इल्यास से बियाही जाती जाती।
- राफे :मैंने तुम्हारे कहने और इल्यास की खातिर से बियाह किया था। खुदा ने तुम्हारी आरज़ू पूरी कर दी। लड़की हुई और खुदा की शान है के राबिया और इल्यास दोनों एक दूसरे को प्यार करते है।
- अम्मी :खुदा वंद दोनों को परवान चढाये।
- राफे :भाभी जान दुनिया में लड़की वाला कुछ नहीं कहा करता। लेकिन मई तुम्हारी इज़्ज़त और इल्यास से मुहब्बत करता हु। इसलिए मई चाहता हु के राबिया और इल्यास की मगनी हो जाये।
- मेरे दिल में राफे की बातो का बड़ा असर हुआ। मैंने उसे दुआ दी और कहा "तुमने उस वक़्त जिस क़दर मेरे दिल को खुश किया है।. उसे मई जानती हु या मेरे अल्लाह। इल्यास तुम्हरा है। तुम उसका हाथ पकड़ लो। राबिया मेरी है उसे मेरी गोद में देदो।
- उसी हफ्ता जुमा के रोज़ राफे ने बिरादरी और मोहल्ला के लोगो को जमा करके मगनी की रस्म अदा करदी। तुम दोनों को मालूम भी न हुआ के तुम्हे किस रिश्ता में जकड़ दिया गया है। मुझे उससे बड़ी ख़ुशी हुई। और मेर दिल में राफे और उसकी बीवी की और इज़्ज़त व मुहब्बत क़ायम हो गयी।
अगला पार्ट (गम के बादल )
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