fatah kabul (islami tarikhi novel)part 3 gam ke badal
गम के बादल। .......
मेरी माँ मुझे ऐसी दास्ताँ सुनाती जा रही थी जो मई बिलकुल भूल चूका था। लेकिन अब उनकी याद दिलाने से इस तरह कुछ कुछ याद आरहा था जिस तरह भूला हुआ ख्वाब याद आने लगता है। मुझे याद आगया था के एक गोरी चिट्टी लड़की जिसके रुखसार ताज़ा गुलाब की पत्तियों की तरह सुर्ख सफ़ेद थे जिसका चेहरा गोल और आंखे बड़ी बड़ी थी। जिसकी सूरत निहायत ही पाकीज़ा और दिलफरेब थी। मेरे साथ खेला करती थी। उसकी प्यारी सूरत अब तक मेरे दिल पर नक़्श थी। मई अक्सर सोचा करता था के यह किसकी सूरत मेरे दिल पर नक़्श हो गयी है। खुद ही ख्याल करने लगता के शायद मैंने कोई ख्वाब देखा था।
- लेकिन अब माँ ने जो दास्ताँ मुझे सुननी शुरू की उसने मेरी ज़िन्दगी के गुज़िश्ता औराक़ उलटने शुरू किये। और मेरी याद ताज़ा होने लगी। भुला हुआ अफसाना याद आने लगा। मैंने कहा। "अम्मी जान मुझे भी कुछ कुछ बाते याद आने लगे है। क्या राबिया के दाहने गाल पर तिल भी था ?"
- अम्मी :हां था उस तिल ने उसकी खूबसूरती को और बढ़ा दिया था। उसकी आंखे ऐसी बड़ी बड़ी और खूबसूरत थी की हिरणी की आँखों को मात करती थी। जो देखता था तारीफे करता था। उसकी भवें बहुत ही घनी और प्यारी थी। पलके नेजो की बाड़ थी। पेशानी चाँद से ज़्यदा रोशन थी। चेहरा गोल और निहायत ही दिलकश था। मुँह छोटा था। लब बारीक और कमान की तरह ख़मीदा थी। दांत हमवार और मोतियों की लड़ी थे। खर्ज़ वह निहायत ही हसीन लड़की थी।
- मैंने जब अपने हाफ़िज़े पर ज़ोर डाला तो उस लड़की की जो मेरे दिल में बसी हुई थी ऐसी ही तस्वीर थी। मैंने कहा :मुझे वह लड़की याद है पर ख्वाब की तरह।
- मेरी माँ ने ठंडा साँस भर कर कहा "अब तो साडी बाटे ही ख्वाब की तरह लगती है। बीटा जैसे जैसे मई बयान करती जाऊ तुम्हे वाक़ेयात याद आते जाये। अल्लाह वह भी क्या दिन थे। हर इंसान की ज़िन्दगी में एक दौर ख़ुशी और राहत का भी आता है लेकिन यह दौर बहुत ही मुख़्तसर होता है। उसके बाद दर्द व तकलीफ और रंज व गम का ज़माना आता है। जो काटे नहीं कटता।
- हमारे भी ऐश व रहत के अय्याम पालक झपकते गुज़र गए। लेकिन यह मुसीबत और रंज का दौर कटे नहीं कटता बीटा खुदा तेरे भी ऐश व रहत के दौर लाये।
- इल्यास ने अमीन कहा और पूछा "अम्मी जान फिर क्या हुआ। "
- अम्मी :जब तुम दोनों की मगनी हो गयी तो तो शायद राबिया की माँ ने राबिया को कुछ उसके मुताल्लिक़ बता कर हिदायत कर दिया की तुम्हारे सामने बेहिजाबाना न आया करे। वह एतियात करने लगी। तुम्हे शायद यह बात नागवार गुज़री। तुम समझे वह तुम से रूठ गयी है। तुम हमेशा जब वह रूठ जाती थी तो मना लिया करते थे मगर इस मौके पर तुम भी रूठ गए और दोनों अलग अलग रहने लगे। मई और राबिया की माँ दोनों को रूठा देख कर हस्ते थे। एक रोज़ ऐसा इत्तेफ़ाक़ हुआ के तुमने राबिया को फूलो की कंज में जा पकड़ा। वह घबरा कर इधर उधर देखने लगी। शायद अपनी माँ को देख रही थी जिसने उस पर पाबन्दी आयेद कर दी थी वह तो वहा न थी अलबत्त्ता शहतूत के दरख्तों की क़तार में क़रीब ही में कड़ी हुई तुम दोनों को देख रही थी और मई तुम दोनों के इतनी पास थी की तुम्हारी बाते भी सुन रही थी तुमने कहा :राबिया तुम खफा क्यू हो ?
- राबिया की आंखे झुक गयी। उसने सर झुका कर कहा "मई खफा नहीं हु "तुमने कहा "खफा नहीं हो तो मेरे पास आती क्यू नहीं। बोलती क्यू नहीं खेलती क्यू नहीं।
- राबिया :हमारी अम्मी जान ने मना कर दिया है।
- तुम :वह तो बड़ी अच्छी चची जान है। उन्होंने क्यू मना कर दिया।
- राबिआ : कहती है अब हम बड़े हो गए है हमे खेलना नहीं चाहिए।
- तुम :क्या बड़े खेला नहीं करते ?
- राबिया : खबर नहीं अम्मी जान से पूछना।
- तुम :राबिया तुम्हे किस क़द्र बाटे बनाना आगयी है।
- राबिया :खुदा की क़सम मई बाटे नहीं बनाती।
- तुम :अच्छा चलो चची जान के पास तुम्हारे सामने पूछूंगा।
- राबिया ने तुम्हे घबरा कर देखा और जल्दी से कहा नहीं नहीं तुम मेरे साथ न चलो।
- तुम ;क्यू।
- राबिया :वह खफा होंगी।
- तुम :क्या वह मुझ से नाराज़ है ?
- राबिया :नहीं।
- तुम : मेरी अम्मी जान से खफा है।
- राबिया :नहीं।
- तुम : फिर तुम्हे मेरे साथ देख क्यू खफा होंगी।
- रबिए फिर चुप हो गयी "जवाब दो न "वह बेचारी क्या जवाब देती जब तुमने ज़्यदा तक़ाज़ा किया तो उसने शर्मीले लहजे में कहा "भई हम से न पूछो हमे शर्म आरही है। "
- तुमने कह :"उसमे शर्म की क्या बात है "?
- राबिया :शर्म ही की तो बात है।
- गरज़ तुम पूछ रहे थे और वह बता न सकती थी। मई तुम्हारी बाते सुन रही थी। और हंस रही थी। जब उसने बतया तो तुम बिगड़ कर चल दिए। उसने तुम्हे रो कर कहा "ठहरो"
- तुम रुक गए उसने कहना शुरू किया :"भई उस दिन आदमी जमा हुए थे न "?
- बस उन आदमियो ने मन किया है।
- तुमने कहा शरीर कभी कहती है अम्मी जान ने मना किया है कभी कहती है लोगो ने मना किया है "
- रबिए :तुम समझते तो हो नहीं।
- तुम: समझती कंही।
- राबिया शर्मा गयी मई तुम्हारे पास चली आयी रबिए चली गयी मैंने तुम्हे बताया राबिया तुम्हारी मंगेतर हो गयी है। खुदा ने खैर रखी तो चंद दिनों में वह तुम्हरी दुल्हन बन जाएगी। इसी लिए उसकी माँ ने उसे तुम से बाते करने को मना कर दिया है। यही वह बात है जो शर्म की वजह से तुम से कह नहीं सकती।
- तुम समझ कर चुप हो गए थे इसी वाक़िया के ही चंद रोज़ बाद राबिया की माँ फिर से बीमार हो गयी। और ऐसी बीमार हुई के दो महीने में पैगाम मौत ा पंहुचा उसके इंतेक़ाल ने हम सबको गम में मुब्तिला कर दिया। फिर हमारे घर में रंज व अलम के बदल छ गए। हमें जो थोड़ी बहुत ख़ुशी मेस्सर थी वह जाती रही। राफे बहुत सख्त ग़मज़दा रहने लगे। मई उन्हें भी तसल्ली देती और अपने आपको भी। राबिया को बड़ा रंज हुआ था। वह अक्सर अपनी माँ की क़ब्र पर जाती और घंटो रोया करती मै उसे समझती और वहा से उठा लाती।
- उसकी माँ और तुम्हारे अब्बू की क़ब्रे क़रीब के बाग़ में थी। .एक रोज़ राफे ने आकर मुझसे कहा की दो मर्द और एक औरत किसी गैर मुल्क से आये है। बड़े क़द अवर और सुर्ख सफ़ेद रंग के है। तीनो जवान है किसी मज़हब की तब्लीग़ करते है।
- यह बात में खूब जानती थी के बहुत से झूठे नबी अरब में पैदा हो चुके है। मुझे ख्याल हुआ के यह तीनो मर्द और औरत उन्ही झूठे नबियो में से किसी नबी पीरू होंगे मैंने उनसे पूछा "क्या वह किसी झूठे नबी के पीरू है ?
- उन्होंने जवाब दिया :"नहीं वह अरब या मुल्क शाम के बाशिंदे भी नहीं। काबुल के रहने वाले बताते है जी हिन्द में से एक शहर है।
- मैं :मैंने काबुल का नाम पहले नहीं सुना। न हिन्द का नाम सुना है।
- राफे :हिन्द एक बड़ा ज़बरदस्त मुल्क है। जुग़राफ़िया दा कहते है के हिन्द और इराक व ईरान के बीच में पहाड़ो का ज़बर्दस्त फैला हुआ है।
- मैं :क्या हिन्द भी अरब जैसा मुल्क है।
- राफे :जो मर्द आये है उनमे से एक से मैंने बाटे की थी वह कहता है के हिन्द निहायत सरसब्ज़ व शादाब मुल्क है। उसके चप्पा चप्पा पर दरिया और चश्मे जारी है तरह तरह के मेवे है। उम्दा उम्दा बाग़ात है। ज़मीन सब्ज़े से लदी हुई है। उसने जो उस खित्ता की तारीफे इस क़द्र की है के उसके देखने का बड़ा इश्तियाक़ पैदा हो गया।
- मैं : मगर उस मुल्क का ज़िक्र मैं तो कभी नहीं सुना।
- राफे :मैंने भी नहीं सुना था। अमीर ने उन में से एक आदमी को बुला कर वहा के हालात दरयाफ्त किये थे मालूम हुआ है के उस मुल्क में सैंकड़ो बादशाह है। उनका मज़हब बूत परस्ती है। बड़े खुशहाल और मालदार लोग है। सोने और चांदी की बड़ी इफरात है। वहा की औरते ज़्यदा तर सोना पहनती है। और ताज्जुब यह के मर्द भी सोने के जेवरात पहनते है। वहा के बादशाहो को राजा कहते है। राजा आम तौर पर नंगे रहते है। जेवरात से अपने बदन को ढंके रहते है।
- मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ मैंने कहा :उस औरत को जो मर्दो के साथ आयी है किसी रोज़ बुला कर लाओ तो मैं उससे कुछ हालात मालूम करू। "
- उन्होंने कह :मैं कल ही बुला कर लाऊंगा। उस औरत के आने का इंतज़ार करने लगी।
अगला भाग (मुल्क हिन्द )
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Tags:
Hindi
pls next part ..
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