fatah kabul ( islami tareekhi novel ) part 49

 तलाश ..... 

                                                  



महारजा काबुल के पास अगरचे जाबुल के हाकिम का खत मदद के लिए आगया था। मगर वह समझता था कि जाबुल के हाकिम के पास काफी फ़ौज है। मुसलमान उसे ज़ेर न कर सकेंगे इसलिए उसने मदद नहीं भेजी थी। वह इस फ़िक्र में  था की जब जाबुल से दुबारा मदद की दरख्वास्त आएगी तब वह मदद देगा उसे ख्वाब में भी यह ख्याल था कि मुस्लमान आसानी से जाबुल की फतह कर लेंगे। 

मगर जब उसने मेला में अचानक सुना कि मुसलमानो ने जाबुल को फतह कर लिया है और  काबुल की तरफ बढे चले आरहे है। इसलिए वह भी क़िला में भाग कर घुस गए। रानी और उसकी साथी औरते भी गिरती पड़ती पहुंच गयी। मेला उजड़ गया और सारे मेला वाले दुकानदार ,खरीदार ,तमाशयी ,यात्री और तमाशा वाले गरज़ सब जिस तरह भी हुआ अपना अपना सामान ले कर क़िला में जा पहुंचे। क़िला वाले भी सब आ घुसे। जब सब आगये तो क़िला फाटक बंद कर दिया गया। दरवाज़ा पर पहरा लग गया और फ़सील पर फौजे चढ़ गयी। 

जब राजा और रानी को थोड़ा आराम मिला तो उन्होंने सुगमित्रा को तलाश किया। उसके छोटे महल में देखा ,रनवास में देखा ,गरज़ हर जगह देख लिया लेकिन उसका कही पता  न चला। फ़ौरन क़िला और शहर में उसकी तलाश शुरू हुई। लेकिन सुराग न मिला। 

सुगमित्रा की सहेलिओ और कनीज़ों को बुला कर उनसे पूछा गया। जिन सहेलियों और कनीज़ों को सुगमित्रा  ने सामान खरीद कर दिया था उन्होंने कह दिया की वह सामान ले कर आयी थी। उन्हें पता नहीं। जो सहेलिया और कनीज़ राजकुमारी के साथ रह गयी थी उन्होंने ब्यान किया की वह राजकुमारी के साथ पाक गार में गए थी। कमला भी  वही मिल गयी थी।  वह दोनों भीड़ में घुस कर अलग हो गयी। उसी वक़्त मुस्लमान का आने  का वक़्त हो गया। उन्होंने  राजकुमारी को तलाश किया। हर चंद ढूंढा मगर कुछ पता न चला। वह समझी की वह दोनों क़िला  में चली गयी। इसी ख्याल से चली आयी। 

अब राजा और रानी का फ़िक्र बढ़ने लगा। फ़िक्र और परेशानी ने उनपर ग़लबा कर लिया। महाराजा ने वज़ीर और सिपाह  सालार को बुला कर राजकुमारी की गुमशुदगी का हाल सुनाया सिपाह सालार ने कहा " मुमकिन है वह क़िला से बाहर  गयी हो। मैं खुद फौजी दस्ता लेकर जाता हु यक़ीन है वह मिल जाएँगी। "

वज़ीर ने महाराजा को तसल्ली दी और सिपाह सालार से कहा " मुक़द्दस गार के चारो तरफ चट्टानों की सरहद तक देख  लेना और पाक गार के अंदर भी सिपाहियों को उतार देना। राजकुमारी वही कही छिपी होंगी। यह बड़ी गलती हुई  की  भागते वक़्त राजकुमारी को नहीं देखा। 

वज़ीर ने गोया दर पर वह महाराजा पर यह इलज़ाम लगाया था। महारजा को शर्मिंदा हुई लेकिन उन्होंने  फ़ौरन ही  कहा  "यह गलती मुहाफिजों और फौजियों की है। उन्हें वहा रह कर यह देख लेना चाहिए था की कोई बाहर तो नहीं रह  गया। सबके बाद उन्हें आना चाहिए था। 

वज़ीर : इन दाता का फरमाना दुरुस्त है। इन बदबख़्तो ने बड़ी गलती की है। लेकिन घबराने की बात नहीं है। सेना पति  राजकुमारी को ढूंढ लाएंगे सिपाह सालार वहा से चला गया और एक हज़ार सिपाहियों को साथ लेकर क़िला से निकला। उसने मेला का कोना कोना छान मारा। गार के चारो तरफ देखा। अपने सिपाहियों को चट्टानों पर चढ़ा दिया  .पहाड़ पर बिखेर दिया लेकिन न राजकुमारी मिली न कमला। न कोई और लड़की औरत या मर्द मिला। इस नवाह में चिड़िया  भी नहीं थी। यह सब लोग अच्छी तरह देख भाल कर दिन छिपने क़रीब वापस आये। 

महाराजा और रानी की निगाहे दरवाज़ा की तरफ लगी हुई थी। वह दोनों सिपाह सालार का इंतज़ार कर रहे थे। उनकी भूक  प्यास उड़ गयी थी। सख्त ग़मगीन और संजीदा थे। जब सिपाह सालार तनहा आया तो उनके दिलो  पर चोट लगी। महाराजा ने जल्दी से कहा "कहो मिली ?"
"नहीं अन्न दाता " सिपाह सालार ने कहा और फिर अपनी कार गुज़ारी जताने के लिए कहा " मैंने मेला का गार का पहाड़  और चट्टानों का चप्पा चप्पा देख डाला मुझे वहा चिड़िया भी नहीं मिली। "

अचानक रानी ने चीख मारी और सुगमित्रा कह कर बेहोश हो गयी। राजा ने झपट कर उसे संम्भाला कई कनीज़ों के मदद  से उसे बिस्तर पर लिटा दिया। राजा की आँखों से आंसुओ का सैलाब बह निकला उसने कहा " राजकुमारी कहा गयी  .कौन उसे ले गया। क्या ऐसा तो नहीं की कोई उसकी तलाश में था और मौक़ा पा कर ले उड़ा। अगर सुगमित्रा  चली गई तो समझो इस खानदान की। इस क़िला की। इस क़ौम की इस मुल्क की खुश हाली और खुश इक़्बाली  चली गयी। जबसे वह आयी थी ख़ुशी दौलत सर्वात ,हशमत और बे फ़िक्री ने डेरा जमाया हुआ था ऐसी खुश हाली  लड़की शायद ही दूसरी हो। 

वज़ीर और सिपाह सालार दोनों ने राजा को  तसल्ली देनी शुरू की। कई कनीज़ तबीब (  डॉक्टर ) को बुलाने चली गयी  .राजा ने वज़ीर से कहा "झूटी तसल्ली से दिल को तस्कीन नहीं हुआ करती मेरे दिल में होक सी उठती है। सीना फट गया है ,कलेजे के टुकड़े हो गए है। अगर वह आने वाली होती तो यह हालत न होती। 

वज़ीर: कभी कभी झूटी तसल्लियो से दिल को तस्कीन देना पड़ता है। महाराज सोचे की एक तरफ राजकुमारी का ग़म है  और दूसरी तरफ मुसलमानो की हमले की परेशानी है। अगर राजकुमारी के ग़म में सोग मनाते और हाथ पर हाथ  रख कर बैठे रहे तो मुसलमानो का मुक़ाबला पूरी तरह न कर सकेंगे और जब पूरी तरह मुक़ाबला न हो सकेगा  तो कामयाबी और फतह की क्या उम्मीद है इसलिए मेरी दरख्वास्त है की रजुमारी की तलाशी के साथ साथ  मुक़ाबला की तैयारी होती रहे। अगर फौजो की हिम्मत अफ़ज़ाई न की गयी तो उनकी हिम्मते कमज़ोर हो जाएँगी। 

राजा : तुम्हरी बातो से पता चलता है की तुम भी राजकुमारी की वापसी से न उम्मीद हो गए हो। 

वज़ीर : नहीं ,मैं न उम्मीद नहीं हु। बल्कि मेरा दिल कहता है की आज या कल या ज़्यादा से ज़्यादा परसो वह ज़रूर  आ जाएँगी। इतने में वह आयी। महाराजा मुक़ाबला की तैयारी में ममस्रूफ़ हो उससे तबियत भी बहली रहेगी और ग़म  भी मिट जायेगा। 

राजा : मैं भी जो मुझसे हो सकेगा करूँगा लेकिन तुम होशियारी से सब काम अंजाम देते रहना। 

            इस वक़्त तबीब आया उसने रानी की नस देखि  अपने साथ दवा की संदूक लाया था ,उसमे से दवा निकाल कर पिलाई  .एक और दवा निकाल कर सुंघाई। थोड़ी देर में रानी को होश आ गया। उसने इधर उधर देखा। कुछ देर  खामोश पड़ी रही। फिर अचानक चिल्लाई सुगमित्रा कहा है "

राजा ने तसल्ली देते हुए कहा " आ रही है ज़रा तसल्ली रखो। "

रानी के आंसू जारी हो गए। उसने कहा " आ चुकी मेरी सुगमित्रा अब  न आएगी क़ुसूर मेरा है। क्यू मैंने उसे अलग जाने दिया। "

राजा और वज़ीर उसे तसल्ली देते रहे।  तक वक़्त तक रोती रही जब तक आंसुओ का आखरी क़तरा भी आँखों से  ख़ारिज न  हो गया। जब आंख में आंसू न रहे तो रोती ही क्या। अब वह आहे और सिसकिया भरने लगी। बहुत कुछ कहने  सुनने पर वह खामोश हो गयी और कुछ  देर के बाद सो गयी। 

दूसरी रोज़ सुबह को राजा कुछ फ़ौज लेकर खुद  सुगमित्रा को तलाश करने गया। उसने दूर दूर तक तलाश किया मगर  कुछ पता न चला। दुपहर के बाद वह वापस आगया। अब राजा का यह रोज़ का हो गया की सुबह को फ़ौज का एक दस्ता  लेकर निकल जाता और दिन ढले वापस आता। 

एक रोज़ उसे एक पहाड़ी चरवाहे ने बताया की राजकुमारी और एक लड़की दो सवारों के साथ जाबुल की तरफ जा रही थी  .राजा ने उससे तरह तरह के सवाल करने शुरू किये ,जैसे राजकुमारी किसी चीज़ से बंधी हुई थी। गिरिफ्त करके  तो नहीं ले जाई जा रभी थी। रो तो नहीं रही थी सवार उस पर सख्ती तो नहीं कर रहे थे। 

चरवाहे ने कहा " मैंने अच्छी तरह राजकुमारी को देखा तो आज़ाद थी घोड़े पर सवार थी। रोना तो दरकिनार ग़म वह भी नहीं थी। हंसी ख़ुशी जा रही थी। 

राजा : क्या किया सुगमित्रा तूने  तो खुद मौत के मुंह में चली गयी। जाबुल में तो वहशी मुस्लमान है। वह ज़रूर तुझे गिरफ्तार  कर लेंगे। 

अब राजा बिल्कुल न उम्मीद  हो गया। वह लौट आया और उसने रानी से तमाम हाल ब्यान कर दिया। रानी को बड़ा सदमा  हुआ। 



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