fatah kabul ( isalami tareekhi novel) part 50

जंग का आगाज़ ......  



                                                      

जिस रोज़  राजा को चरवाहे से राजकुमारी का हाल मालूम हुआ  उसके दूसरे रोज़ इस्लामी लश्कर  काबुल के सामने आ धमका। मुसलमानो ने पहाड़ी पर जो ऊँचा नीचा था खेमे लगाए।  राजा ने क़रीब के ब्रिज में बैठ कर उनकी तादाद  का अंदाज़ा किया मुसलमान आठ हज़ार  से भी कम रह गए  थे। कुछ तो शहीद हो गए  थे। कुछ उन क़िला में छोड़ दिए गए थे  जिन्हे फतह किया था। इस वक़्त अब्दुर्रहमान के अलम के निचे मुश्किल से सात हज़ार मुजाहिदीन थे। 

राजा ने आठ दस हज़ार का अन्दाज़ा किया। उसके पास जंग  के लोग ज़्यादा थे। यह ख्याल हुआ की वह मुसलमानो को  शिकस्त दे सकेगा। लेकिन उसने वज़ीर  और सिपाह सालार को बुला कर हुक्म दिया की अगले रोज़  सुबह होते ही आधा लश्कर क़िला से बाहर मैदान में निकले वह  खुद भी निकलेगा और मुसलमानो पर  हमला  करेगा। 
वज़ीर ने समझाया "मुसलमान बड़े बहादुर और जफ़ा कश है। उनसे मैदान में निकल कर  सामना करके कामयाबी  हासिल होना मुश्किल है। काबुल का क़िला बहुत मज़बूत है क़िला बंद हो कर मुक़ाबला कीजिये। मुसलमान  खुद ही टककरें मार कर चले जाये। जब वह वापस जाने लगे तब उन पर हमला कर दीजिये। 
राजा को उसकी यह राय पसंद आयी।  उसने कहा "  मैं यह बुज़दिली की बाते  सुन्ना नहीं चाहता मैंने  जो हुक्म दे  दिया  उसकी बात मानी जाये। "
अब कुछ कहने से फायदा नहीं था। इसलिए वज़ीर और सिपाह सालार दोनों खामोश हो गए।  दूसरे  रोज़ सुबह ही काबुल  के क़िला का दरवज़ा खुला और सवारों का सैलाब मैदान की तरफ बहना शुरू हुआ। 
मुसलमान नमाज़ से फारिग हो चुके थे। काबुल को मैदान  में निकलते देख कर वह बहुत खुश हुए। वह भी जल्दी जल्दी  हथियार लेकर मैदान में निकल आये एक तरफ काबुलियों ने सफ बंदी शुरू की। दूसरी तरफ मुसलमान सफ  बस्ता हुए जब सब लोग लाइन में खड़े हो गए  अब्दुर्रहमान ने सफो के आगे निकल कर घोड़ो को कदा दिया शिमाल से जुनूब  तक और जुनूब से शिमाल तक दो चक्क्र लगाए। इसके बाद वह दरमियानी सफ में खड़े हुए और  बुलंद आवाज़ से कहा। 
"अये सब मुजाहिदीन यह वो क़िला है जिसका राजा अपनी फ़ौज अपनी दौलत ,सल्तनत और अपनी ताक़त  पर   घमंड   हो कर मुसलमानो पर इसलिए हमला करना चाहता था की  उन्हें ख़तम कर दे। इस्लाम को मिटा दे वह यह नहीं  जानता कि हक़ आगया है। बातिल मिट गया। बातिल मिटने ही  वाला था। 
इस्लाम हक़ है ,कुफ्र बातिल है  बातिल मिट  रहा है और इस्लाम बढ़ रहा है। खुदा की क़सम इस्लाम क़यामत तक न मिटेगा। चाहे दुनिया भर की शैतानी ताकते  मिल  कर भी क्यू  न   कोशिश करे। कुफ्फार यह नहीं समझते की इस्लाम  वह चिराग नहीं है जो फूंको से बुझा दी जाये। 

 शिराने इस्लाम ! काबुल के राजा  ने यह देख कर कि मुस्लमान कम है और उसके सिपाह ज़्यादा। क़िला से निकल कर मुक़ाबला की हिम्मत  की है। परवरदिगार की क़सम वह यह नहीं समझा की मुजाहिदीन इस्लाम को अर्ब की शीरीनो  ने दूध पिला कर परवरिश किया है। अरब के लोग शेर  के बच्चे है। यह खुदा के सिवा  और किसी ताक़त से  नहीं डरते। 
मुजाहिदीन इस्लाम ! सफ बंदी   हो चुकी है जिहाद शुरू होने वाला है तुम जिहाद ही के लिए तो इतनी तकलीफे  बर्दाश्त  करके वतन से आये हो। शहादत तुम्हारी आँखों का तमन्ना है। तुम्हारे लिए जन्नते सजा दी गयी है। जन्नत के दरवाज़े  खुल गए है हूरे सिंघार करके तुम्हारी मुन्तज़िर बैठी है। खुदा तुम्हे देख रहा है। जिहाद करके खुदा की ख़ुशनूदी  हासिल करो और जन्नत के हिस्सेदार  बन जाओ। 
इधर अब्दुर्रहमान की तक़रीर ख़त्म हुई उधर काबुल की फ़ौज  में  जंग के अलार्म बजे साथ ही अजीब अजीब तर्ज़ के सुरीले बाजे बजने लगे  और काबुली फौजो ने आहिस्ता आहिस्ता पेश  कदमी शुरू की। 
अब्दुर्रहमान क़ल्ब लश्कर में चले गए। उन्होंने भी लश्कर इस्लाम को बढ़ने का इशारा किया। मुजाहिदीन बड़ी शान से  बढे। जो की दोनों लश्कर एक दूसरे की तरफ बढ़ रहे थे इसलिए बीच का फासला बहुत जल्द पार हो गया और  दोनों फौजे आमने सामने आगयी। 
काबुल की फ़ौज में अब भी बाजे बज रहे थे। काबुली नेज़े तान कर बढे मुसलमानो ने अपने लीडर की तरफ देखा। वो  हमला के इशारे के इंतज़ार में थे। लीडर ने पहला नारा लगाया मुस्लमान होशियार हो गए। दूसरा नारा लगाया उन्होंने  भी नेज़े संम्भल लिए और जब उन्होंने तीसरा नारा लगाया तो मुसलमानो ने मिल कर अल्लाहु अकबर का नारा इस  शोर से लगाया की ज़मीन हिल गयी। पहाड़ लरज़ गया  और दुश्मन की फ़ौज उछल पड़ी। 
नारा लगाते ही मुसलमानो ने झपट कर नेजो से हमला किया। काबुली भी नेज़े हाथो में  लिए तैयार थे। उन्होंने भी नेजो  से वॉर किया। दोनों तरफ के नेज़े तेज़ से चले। कुछ मुस्लमान ज़ख़्मी हुए लेकिन काबुल वालो की भारी तादाद  नेजो के फल खा कर लम्बी लम्बी लेट गयी। मुसलमानो ने अपने नेज़े खींचे कुछ नेजो के फल क़बूलियो क़बूलियो  के जिस्मो में  धंस गए बांस  टूट कर हाथो  में आगये। कुछ फल नाकारा  हो कर दुबारा वॉर करने के क़ाबिल  न रहे। मुसलमानो ने यह देख कर नेज़े फ़ेंक दिए और तलवारे मियानो से निकाल कर सख्ती से हमला कर दिया  .तलवारे और फिर अरब की तलवारे जो सबसे बढ़ कर काट करती थी और शाह ज़ोर अरबो के हाथो में आकर  तो वह क़तल करने की मशीन ही बन जाती थी। बिना रुके काफिरो को क़तल करने लगी। 
काबुल  वाले भी बड़े ताक़तवर थे उन्होंने भी सख्ती से हमले शुरू किये। लेकिन अपने हमलो में मुसलमानो की सी शान  पैदा न कर सके। उनकी तलवारे भी काट कर रही थी। लेकिन मामूली तरीक़ा पर कोई इक्का दुक्का मुस्लमान  शहीद हो जाता था। लेकिन मुसलमानो की तलवारे भी  बिजली की तेज़ी से चल  रही थी  और सरो पर सर  और धड़ो के धड़ काट काट कर गिरा रही थी। लाशे तड़प रही थी। खून के नाले बाह रहे थे और मुस्लमान झपट  झपट कर हमले कर कर के दुश्मन को ठिकाने  लगा रहे थे। जब कोई मुस्लमान किसी काफिर को मार डालता  था तो जल्दी से दूसरे पर टूट पड़ता था और उसे क़त्ल करके तीसरे पर जा झुकता था। 
गोया हर मुस्लमान यह चाहता था की वह ज़्यादा से ज़्यादा दुश्मनो को क़तल करके खुदा की हुज़ूर में हाज़िर हो जाये। 
इल्यास मैसरा  में थे उनके हाथ में झंडा था। वह बाये हाथ से झंडा संम्भाले थे और दाहने हाथ से हमले कर रहे थे।  खुदा  ने उनके बाज़ू में इतनी ताक़त दी थी कि जिस शख्स पर वॉर करते थे  उसके दो टुकड़े किये बगैर न रहते थे जिस  पर उनकी तलवार पड़ती थी नरम घांस की तरह उसे काट डालती थी। उन्होंने कई दुश्मनो को खाक व खून  में  मिला दिया था। दुश्मनो के खून के छींटे   उनके लिबास और जिस्म पर पड़ पड़ कर जम गए थे। वह सर से पैर तक खून में रंगे जा चुके थे। जैसे जैसे वह क़तल करते जाते थे उनका दिल और बढ़ता जाता था और वह  भी तेज़ी और फुर्ती   से हमले करते जाते थे। 
वह क़त्ल व खून रेज़ी में ऐसे बिजी थे की अपनी हिफाज़त का ख्याल न रहा था। एक मुजाहिद  ने उन्हें टोका और कहा  "सय्यद या सरदार )अपनी हिफाज़त का ख्याल रखो। कही। कही खुदा न ख्वास्ता किसी काफिर की तलवार कारगर न हो जाये। 
इल्यास ने कहा "मैं ऐसा ख़ुशक़िस्मत कहा हु मेरे दोस्त मुझे जिहाद करने दो खुदा की क़सम जितनी ख़ुशी मुझे  इस  वक़्त दुश्मनो को क़तल करके हो रही है ,कभी न हुई थी। "
यह  कहते ही उन्होंने अल्लाहु अकबर  का नारा लगा कर हमला किया और एक दुश्मन को खीरे  की तरह काट डाला  .उनके नारा की आवाज़ सुन कर तमाम मुसलमानो ने संम्भल कर नारा लगाया और निहायत शिद्दत से हमला  किया। इस हमला में बेशुमार काफिर मारे गए। वह पीछे हटने लगे। मुसलमानो ने बढ़ कर और सख्ती से हमला  करके उनकी भारी तादाद क़तल कर डाली। 
इस वक़्त  काफिरो के हौसले न रहे। वह तेज़ी से पीछे हटने लगे। मुस्लमान बढ़ कर हमले करने लगे। इल्यास एक एक वार  में दो दो को उड़ाने लगे अचानक से एक  काफिर की तलवार इल्यास के शोल्डर पर पड़ी वह लड़खड़ा कर गिरे  कुछ मुस्लमान दौड़ कर उन्हें संम्भाला। अब दुश्मन पीसपा हो गया लेकिन मुसलमानो ने उसका पीछा नहीं किया  .वह इल्यास की फ़िक्र में लग गए। 
              




                                                    अगला पार्ट ( सहर हुस्न )