fatah kabul (islami tarikhi novel) part 21
इल्यास की हैरत........
जब सुबह हुई तो यह काफला दादर से दूर निकल गया था। लेकिन अब भी उन्हें तआक़ुब का अंदेशा था। कमला इस नवाह के रास्तो से बखूबी वाक़िफ़ थी। उसने राह छोड़ी और उन्हें लेकर एक गैर मारूफ रास्ता पर रवाना हुई। चुकी उन्होंने सीधा रास्ता छोड़ दिया इसलिए कई दिन में उस बस्ती में पहुंचे जो कमला का वतन था। रात को उन्होंने कमला की झोपडी में क़याम किया। चुकी कुछ रात गए वहा पहुंचे इसलिए किसी ने उन्हें देखा नहीं।
- सलेही ने तये कर लिया की पिछली रात वहा रवाना हो जाये। कमला का इरादा उनके साथ चलने का था लेकिन इल्यास समझा दिया की इस वक़्त उसका चलना मुनासिब नहीं। वह अनक़रीब यहाँ आएंगे और तब साथ ले चलेंगे। वह मान गयी उसने आधी रात को उठ कर उनके लिए नाश्ता तैयार करना शुरू किया। कुछ देर के बाद यह सब लोग भी उठ गए और सफर की तैयारी शुरू कर दी। जब उन्होंने घोड़ो पर जैन कस लिए तो कमला इल्यास को नाश्ता देने के बहाने से बुला कर ले गयी और झोपड़ी के एक तरफ लेजाकर कहा "तुम जा रहे हो मेरी ख्वाहिश थी तुम्हारे साथ चलू लेकिन तुम न मालूम किस मस्लेहत से नहीं ले जा रहे। मै भी सोचती हु की मेरे पिता बूढ़े है। मेरे चले जाने का उन्हें सदमा होगा मैं ही दुनिया में आसरा हु। मेरा यहाँ ठहरना ही मुनासिब है। लेकिन तुमसे एक वादा लेना चाहती हु।
- इल्यास : कमला तुमने हम पर बड़ा अहसान किया है। तुम्हारी बदौलत मैंने सुगमित्रा को देखा। मेरे हमराहियों को अमन मिला। तुमने रहबरी करके हमें यहाँ तक पंहुचा दिया हम सब तुम्हारे शुक्र गुज़र है।
- कमला : मैं यह न समझती थी की तुम्हे दादर की मशहूर धार में लेजाकर मैं अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मार रही हु। सुगमित्रा जो राजकुमारी है और जिस पर कई राजकुमार फरिफ्ता है जो अपने हुस्न पर इस क़द्र मगरूर है की किसी की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देखती तुम्हे चाहने लगी। इस बात का मुझे एतराफ़ है की मै सुगमित्रा जैसी हसीन नहीं हु की तुम मुझे अपनी बहन समझना।
- इल्यास : मैं वादा करता हु की तुम्हे अपनी बहन समझूंगा और तुम से मिलने ज़रूर आऊंगा।
- कमला : मैं अपने भैया को याद करती रहूंगी।
- इल्यास ने वह थैली खोली जो सुगमित्रा ने उसके लिए भेजी थी। उसमें सोने के सिक्के थे। उन्होंने मुठी भर कर कमला को दे कर कहा ."भाई का तोहफा क़बूल करो। "
- कमला ने ले लिए उसका दिल भर कर आया और इल्यास के शाना से लग कर रोने लगी। इल्यास ने तसल्ली दी और कहा "हमारे मुल्क अरब में कोई बहन भाई से मिल कर नहीं रोया करती। "
- कमला : मैं भी न रोती अगर मुझे यह उम्मीद होती की तुम जल्द वापस आ जाओगे।
- इल्यास : अगर खुदा ने चाहा तो जल्द आऊंगा।
- कमला उन्हें लेकर झोपड़ी में आयी और नाश्ता दे कर दोनों सलेही वगेरा के पास आये। यह सब घोड़ो पर सवार हुए। कमला की लम्बी आँखों में आंसू झलक आये लेकिन उसने ज़ब्त किया। जब यह चल पड़े तो उसके ज़ब्त बंद टूट गया। वह रोने लगी और रोती हुई अँधेरे में उनके पीछे चल पड़ी। कुछ दूर चल कर वह एक चट्टान पर बैठ गयी। उसने साड़ी के अंचल से आंसू खुश्क किये और बुलंद आवाज़ से गगाना शुरू कर दिया वह गा रही थी।
- "ए मुसाफिर तू जा रहा है मुझे तड़पता छोड़ कर मेरा ख्याल रखना। मेरा दिल तेरी जुदाई से चूर हो गया है। मैं एक एक दिनदिन का एक एक लम्हा तेरी याद में रो रो कर गुज़रूंगी। मुझे हूल न जाना। "
- फिर उसका दिल भर आया और चट्टान से लग कर ज़ारो क़तार रोने लगी। इल्यास और उनके साथियो ने दर्द भरी आवाज़ सुनी। इल्यास बड़े मुतासिर हुए उनका दिल चाहा की वह वापस जाकर उसे तसल्ली दे लेकिन ज़ब्त कर गए। जब वह दूर निकल गए तब आवाज़ आनी बंद हो गयी।
- यह काफला कोच व क़याम करके अजरंज के क़रीब पंहुचा। उन लोगो ने शहर में मुनासिब नहीं समझा .बाहर ही क़याम किया। अभी चार घडी दिन बाक़ी था की उन्होंने शब् बाशी का इंतेज़ाम कर लिया।
- इल्यास पानी लेने चले। उन्हें मालूम था चश्मा वहा से क़रीब है। जब वह चश्मा के किनारे पर पहने तो उन्होंने एक औरत को वहा बैठे किसी गहरी फ़िक्र में ग़र्क़ देखा। औरत अधेड़ उम्र की थी लेकिन अब भी हसीन थी। इल्यास ने उन्हें पहचान लिया वह वही औरत थी जिसे अजरंज के सीपा सालार जो मुस्लमान हो गए थे और जिन का नाम अब्दुल्लाह रखा गया था। कही से उठवा कर लाये थे और बताया था की वही राबिया को अगवा करके लायी थी।
- उसे देख कर वह बहुत खुश हुए। उन्हीने उससे मुखातिब हो कर कहा " मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हु ."
- उसने उनकी तरफ देखा कुछ देर टिकटिकी लगा कर देखती रही। फिर हंसी और उठ कर खड़ी हो गयी। इल्यास ने कहा "तुम बसरा से राबिया को लायी थी ?"
- औरत फिर हंसी और वहा से चली गयी। इल्यास ने उसे रोकना मुनासिब नहीं समझा। वह पानी भर कर चले आये और अपने साथियो से उसका ज़िक्र किया। सलेही ने कहा "शायद उस औरत के दिमाग में खलल आगया है। "
- इल्यास : मैं भी इंसान ही समझता हु। अगर तुम इजाज़त दो तो मैं शहर जाकर अब्दुल्लाह से मिल आऊं।
- सलेही : तुम न जाओ बल्कि शहर का कोई आदमी मिल जाये तो उसे इनाम का लालच देकर अब्दुल्लाह के पास भेजो .
- थोड़ी देर के बाद वहा एक आदमी आगया। सलेही ने उसे बुला कर इनाम का लालच देकर अब्दुल्लाह के पास भेजा .जब यह लोग मगरिब की नमाज़ से फारिग हुए तो अब्दुल्लाह आगये। वह उन्हें देख बहुत खुश हुए उनसे हालात पूछने लगे। इल्यास ने तमाम वाक़ेयात ब्यान किये। अब्दुल्लाह ने मुस्कुरा कर कहा "तुम बड़े खुशकिस्मत हो। सुगमित्रा तो ऐसी मगरूर है की राजकुमारो से बात नहीं करती।
- इल्यास :कैसे वह औरत होश में आयी ?
- अब्दुल्लाह : उसका दिमाग ख़राब हो गया है। कभी तो होश में आजाती है कभी ला अकल हो जाती है।
- इल्यास : उसने राबिया के मुताल्लिक़ कुछ बताया ?
- अब्दुल्लाह : वहा बताया। मगर अजीब बात कही मुझे यक़ीन नहीं आया।
- इल्यास : क्या कहती है ?
- अब्दुल्लाह : उसने कहा की राबिया को उससे महाराजा छीन लिया था और उन्होंने उसे परवरिश किया है।
- इल्यास : शायद वह कनीज़ बना ली गयी है।
- अब्दुल्लाह : नही..
- इल्यास : तब राजकुमारी की सहेली बनाई गयी होगी।
- अब्दुल्लाह : नहीं 'वह कहती है खुद राजकुमारी सुगमित्रा ही राबिया है।
- फर्त हैरत से इल्यास का मुँह खुला का खुला रह गया। उन्होंने कहा :
- "सुगमित्रा राबिया है !"
- अब्दुल्लाह : हां वह तो यही बताती है।
- इल्यास : मैंने सुगमित्रा को पास से और गौर से देखा है। मैंने जिस क़दर पहाड़ी लड़किया देखि है उनसे वह नहीं मिलती .मैं यह नहीं कह सकता लड़किया कैसी होती है।
- अब्दुल्लाह : काबुल की लड़कियों के खदो व खाल अच्छे होते है। मौजूदा महाराजा की महारानी जवानी में इस क़दर खूबसूरत और माह पीकर थी की जो देख लेता था फरिफ्ता हो जाता था।
- इल्यास : एक हसीन औरत की लड़की भी हसीन हो सकती है।
- अब्दुल्लाह : मशहूर तो यही है की सुगमित्रा अपनी माँ पर गयी है। अलबत्ता बाज़ कहते है की माँ से भी बढ़ गयी है।
- इल्यास : तुमने उससे एक मर्तबा यह बात पूछी है या कई मर्तबा।
- अब्दुल्लाह : पहली मर्तबा जब उसने मुझसे बात कही तो यक़ीन नहीं आया। मैंने चंद रोज़ के बाद फिर उससे पूछा। उस वक़्त वह अपने हवास में थी। उसने कहा "राबिआ से लायी थी। बड़ी अच्छी लड़की थी। मेरा इरादा था की उसे महाराजा काबुल को देकर इतनी दौलत लेलु जिससे वह मालदार हो जाऊं। महाराजा ने लड़की पसंद किया और मुँह मांगी रक़म भी दी। लेकिन यह वादा लेलिया की वह न किसी से उस लड़की का ज़िक्र करे और न उस लड़की से कभी मिले। मैंने वादा कर लिया। वह दौलत लेकर कश्मीर चली गयी। इतना बयान करने के बाद फिर पागलो की तरह बाते करने लगी .एक रोज़ फिर मेरे दरयाफ्त करने पर उसने बताया की दूर बरस के बाद वह कश्मीर से काबुल में आयी थी। उसने देखा था की राबिया महाराजा ने अपनी बेटी बना लिया है। उसे राजकुमारी के लिबास में देखा था। वह वसूक़ और यक़ीन से यह बात कहती थी की राबिया ही का नाम सुगमित्रा है।
- इल्यास : वह पागल कैसे हो गयी।
- अब्दुल्लाह : किसी दौलत छीन ली और उसे ऐसी दवाई खिलाई जिससे वह पागल बन गगयी।
- इल्यास :वह औरत मुझे आज चश्मा किनारे मिली थी। मैंने उससे बाटे करनी चाही मगर वह हस्ती हुई चली गयी।
- अब्दुल्लाह : आजकल वह बिल्कुल पागल बनी हुई है।
- इल्यास : क्या महाराजा काबुल तुर्क है ?
- अब्दुल्लाह : काबुल में सल्तनत एक तुर्क ने ही क़ायम की थी जो मुद्दत तक उसके खानदान में रही। मौजूदा महाराजा उस खानदान से नहीं है। मैं तुम्हे कल काबुल के राज के मुताल्लिक़ मुफ़स्सल हालत सुनाऊंगा। मैंने तुम्हारे लिए खाने इंतेज़ाम कर दिया है। वह लेकर आऊं।
- वह उठ कर वहा से चले गए। इल्यास ने गौर करने लगे की क्या वाक़ई राबिया ही सुगमित्रा है। क्या वह इस बात को जानती है। खुद ही उन्होंने तये कर लिया की अगर वह राबिया ही है। जो अपना नाम भूल चुकी है.
अगला भाग (काबुल का राजा )
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Hindi