fatah kabul (islami tarikhi novel)part 22
काबुल का राजा.......
दूसरे रोज़ सुबह की नमाज़ के बाद अब्दुल्लाह आये उन्होंने बैठते ही दरयाफ्त किया। "दादर के धार में गए थे ?"
- इल्यास ने जवाब दिया "मैं गया था "
- उसके बाद उन्होंने तमाम हालात उनसे ब्यान किये। उन्होंने कहा। "तुमने सुगमित्रा को क़रीब से देखा है ?"
- इल्यास :इतने क़रीब से देखा है जैसे मैं और तुम बैठे है।
- अब्दुल्लाह :बड़े खुश नसीब हो। मैं ऐसे कई राजकुमारों को जानता हु जो उसके नक़्श क़दम चूमने के लिए बेक़रार है।
- इल्यास :पहले तुम काबुल के राजाओ के तो हालात बयान करो।
- अब्दुल्लाह :इस वक़्त मैं इसीलिए आया हु। मुख़्तसरन ब्यान करता हु। यह बता दूँ की काबुल और हिंदुस्तान के राजाओ की कोई तारीख नहीं है। कुछ हालात सीना सीना चले आरहे है वही ब्यान करता हु। बहुत अरसा हुआ जब काबुल में कोई राजा नहीं था। तुर्क मुल्क तिब्बत से काबुल में आये। उन तुर्को ही में से एक शख्स काबुल का राजा हुआ। उसका नाम "बर्राह मगीन बर्ग "था ;उसके राजा होने का भी अजीब क़िस्सा है। वह काबुल में आकर बगैर किसी की इत्तेला के एक गार में चला गया। वह गार निहायत अजीब था और ऐसा दुश्वार गुज़ार की मुश्किल से उसमे आदमी दाखिल होता था। उस गार में एक चश्मा था। उस चश्मा को बड़ा मुक़द्दस और उसके बानी को बड़ा पाक समझते थे। गार के धाना के पास सालाना मेला होता था। काबुल और दूर दूर के लोग उसकी ज़ियारत के लिए आते थे और उसमे से पानी तैर कर ले जाते थे।
- उस गार के मुत्तसिल खेत थे उनमे काश्त होती थी बर्रे मगीन बर्ग के साथ कुछ तुर्क और भी आये थे वह बड़े क़द आवर और लहीम शमीम थे। काबुल के लोग उन्हें देख कर डर जाते थे। उनलोगो ने किसानो के लिए दिन के अवक़ात काम के लिए मुक़र्रर कर दिए थे। चांदनी रातो में काम दिन और रात में लिया जाता था।
- बररे मगीन और उसके साथी मर्दम खोर थे। इंसानो का गोश्त खाते थे वह रात को किसी किसान को पकड़ कर मार डालते और उसका गोश्त भून कर कुछ खुद खाते और कुछ बर्रे मगीन बर्ग के गार में पंहुचा देते।
- इन साजिश करने वाले तुर्को ने किसानो में यह मशहूर कर दिया की हमें तिब्बत के लामा ने यह बताया की काबुल में एक तुर्क इस गार में से नमूदार होगा वह काबुल में राज करेगा। किसान उसके नमूदार होने का इंतज़ार करने लगे।
- एक दिन साजिश तुर्को ने किसानो को बताया की तुम्हारा राजा कुल किसी वक़्त ज़रूर नमूदार होगा। उन्होंने दिन भर और रात भर खूब शराब पी। गाये और नाचे। दूसरे रोज़ कुछ दिन चढ़े बार्रे मगीन बर्ग उस शान से नमूदार हुआ की तुर्की लिबास जेब तन किये हुए थे। एक लम्बा करता जो जो घुटनो से निचा था पहने था। टोपी सर पर थी। बूट पाव में था। कमर में चौड़ी चमड़ा की पट्टी थी। पहलु में लम्बी तलवार थी। सीना के पास खंजर अड़सा हुआ था। उसके चेहरा से शाही जलाल ज़ाहिर था।
- गार के क़रीब हज़ार मर्द व जन का मजमा था। उसे इस शान में देख कर सब मरऊब हो कर उसके सामने झुक गए .उसने कहा "बुध भगवान् ने मुझे यहाँ हुकूमत करने के लिए भेजा है। "
- कबिलियो ने कहा "यह हमारी खुश क़िस्मती है हम तुम्हे अपना राजा तस्लीम करते है। "
- चुनांचा बार्रे मागीन राजा मुक़र्रर हो गया। वह काबुल का पहला राजा था। उसके खानदान में साठ पुश्त तक सल्तनत बराबर चली। आयी उन राजाओ का मज़हब बुध था। चुनांचातमाम काबुल में बुधमत राइज हो गया।
- इन तुर्क राजाओ में से एक कनक था। उसने पेशवर (पिशावर)में धार बनाया था। वह धारा उसके नाम से कनक धार अब तक मशहूर है। कहते है की उस राजा के पास कनूज के राजा के तोहफा भेजे। उनमे से एक निहायत नफीस कपड़ा भी था उस कपडे पर आदमी के पाओं का छापा था। राजा कनक ने अपने लिए उसकी पोशाक बनवानी चाही। दर्ज़ी ने हर चंद पेवंत लगा कर यह चाहा की शानो पर छापा न आये .लेकिन यह मुमकिन न हुआ। चुनाचा दर्ज़ी ने उसी बिना पर उसकी पोशाक बनाने से इंकार कर दिया और राजा से कहा की "राजा कनूज ने महाराज की तहक़ीर की लिए ऐसा तोहफा भेजा है "
- कनक बिगड़ गया। उसने उसे अपनी तौहीन समझा। चुनांचा वह लश्कर लेकर कनोज को तस्खीर और राजा की गोशिमली के लिए रवाना हुआ। जब कनोज के राजा को यह खबर पहुंची तो वह बड़ा परेशान हुआ। वह कनक के मुक़ाबला की क़ूवत नहीं रखता था। उसने अपने वज़ीर को मशवरा के लिए बुलाया। वज़ीर ने कहा "मैंने पहले ही अर्ज़ किया था की इस कपडे को न भेजे। अपने न माना और अपनी बेजा हरकत से एक ऐसे ज़बरदस्त शेर को चौका दिया जो अब तक सो रहा था। अब ऐसा कीजिये की आप मेरी नाक और होंठ कटवा दीजिये फिर मैं समझ लूंगा। "
- राजा को तज़बज़ब हुआ। वज़ीर ने कहा सिवाए इसके और तदबीर नहीं है चुनांचा राजा ने मजबूर हो आकर वज़ीर के होंठ और नाक कटवा दिए .निकट्टा वज़ीर कनक के पास पंहुचा कनक ने उससे कहा "यह तुम्हारा हाल किसने और क्यू किया "
- वज़ीर ने कहा "महाराज !मैंने राजा कनोज मशवरा दिया था की वह आप से माफ़ी मांग ले। लड़ाई न करे। उन्होंने समझा मैं आपके साथ साजिश रखता हु। चुनाचा बिगड़ कर उन्होंने मेरी नाक उड़वा दी और होंठ कटवा दिए। मैं राज कनोज से इन्तेक़ाम लेना चाहता हु। जिस रस्ते से आप चल रहे है। यह बड़े दूर दराज़ का है। एक रास्ता नज़दीक का भी है। आप उसे इख़्तियार करे। उस रास्ता में एक दिराना हाएल है उसमे पानी नहीं मिलता पानी साथ ले जाईये। "
- राजा ने कहा यह काया मुश्किल है उसने पानी लिए और वज़ीर बताये हुए रास्ते पर चल पड़ा। जब वीराना में पंहुचा तो उसके वीराना की इन्तहा नज़र न आयी .पानी ख़तम हो गया लश्कर प्यासा मरने लगा। राजा कनक ने वज़ीर से कहा :"यह वीराना नहीं आ रहा है। "
- वज़ीर ने कहा "मैं अपने आक़ा की सलामती का ख़्वाहा हु। आपको गलत रास्ता पर डाल दिया। इस वीराना से आईन्दा न निकलना न मुमकिन है। आपका तमाम लश्कर प्यासा हलाक हो जायेगा। मैं आपके सामने हाज़िर हु जो चाहे सजा दीजिये। "
- राजा को बड़ा गुस्सा आया वह घोड़े पर सवार होक नशेब की तरफ गया और वहा ज़मीन में अपना नेज़ा गाड़ दिया। जिस जगह नेज़ा गाड़ा वहा से पानी उबलना शुरू हो गया। तमाम लश्कर सैराब हो गया और बदस्तूर उबलता रहा। वज़ीर यह देख कर हैरान हो गया। उसने हाथ जोड़ कर कहा :"मैं कमज़ोर इंसानो को धोका दे सकता हु लेकिन कवि देवताओ को दम नहीं दे सकता .आप मेहरबानी करके मेरे आक़ा का क़सूर माफ़ करदे। "
- राजा कनक ने कहा "तो अपने मुल्क को वापस जा तेरे आक़ा को काफी सजा मिल गयी। "
- वज़ीर अपने मुल्क आया। उसने मालूम किया कनोज के राजा के हाथ और पाव उसी रोज़ से बेकार हो चुके है जिस रोज़ राजा कनक ने ज़मीन पर नेज़ा गाड़ा था।
- ुंटूरक राजाओ में आखरी राजा कटोर मान था। उसका वज़ीर एक बरहमन था। वज़ीर को एक बड़ा खज़ाना मिल गया था .बदक़िस्मती से राजा अय्याश और ओबाष था। जब उसकी बदकारी की शिकायते वज़ीर के पास पहुंची तो उसने राजा को क़ैद कर दिया और उसकी जगह ब्राह्मण को जिसका नाम समंद था राजा मुक़र्रर किया।
- लेकिन वज़ीर के मरते ही ब्राह्मण की हुकूमत ख़त्म हो गयी और फिर बार्रे मगीन बर्ग के खानदान में सल्तनत मुन्तक़िल हो गयी। माजूदा राजा इसी के खानदान से है वह भी बुध मज़हब के पेरू है।
- इल्यास : अजीब दास्तान सुनाई है अपने।
- अब्दुल्लाह :यह वह दास्तान है जो सीना बा सीना चली आती है। लेकिन अगर यह तुम या पूछो की कौन महाराजा किस सन में पैदा हुआ। किस सन में फौत हुआ तो नहीं बता सकता।
- इल्यास : यह तारीख की तरफ से अदम तवज्जहि का बास है।
- अब्दुल्लाह : यह सही है आपने और क्या देखा और मालूम किया।
- इल्यास : हमने मालूम किया की महाराजा लड़ाई की तैयारी कर चुके है।
- अब्दुल्लाह : फिर तुम्हारा क्या इरादा है ?
इल्यास : यह बात बुज़ुर्ग सलेही बतायंगे। - सलेही : हम जिस काम के लिए आये थे वह पूरा हो गया है लेकिन इल्यास जिस काम के लिए आये थे वह अभी पूरा नहीं हुआ।
- अब्दुल्लाह : उनका काम भी आधा पूरा हो गया है। उनके चाचा का पता नहीं चला। अलबत्ता उनकी मंगेतर का पता चल गया।
- सलेही : अभी उसमे शक है की सुगमित्रा ही राबिआ है।
- अब्दुल्लाह :मुझे उसमे शक नहीं है। उस पागल औरत ने बड़े यक़ीन के साथ यहाँ कहा है की राबिआ का नाम ही सुगमित्रा रखा गया है। मेरी ख्वाहिश तो यह है की आप फ़ौरन अपने मुल्क में वापस जाए और जो हालात आपको मालूम हुए है अपने बादशाह को सुना दे। यक़ीन है की तुम्हारे बादशाह लश्कर कशी करंगे। उससे एक तरफ तो महाराजा काबुल का मिजाज़ दरुस्त हो जायेगा। दूसरी तरफ सुगमित्रा भी हाथ आजायेगी मुझे मालूम हुआ है की महाराजा अनक़रीब उसकी शादी कर देने वाले है।
- इल्यास को बड़ा फ़िक्र हुआ। सलेही ने कहा। "तब हम कल रवाना हो जायँगे। तुम उस औरत से और मुफ़स्सल हालात मालूम करना। "
- अब्दुल्लाह : मैं मालूम करने की कोशिश करूँगा।
- कुछ देर और बैठ कर चले गए। इल्यास उस औरत की तलाश में चश्मा के किनारे पर पहुंचे लेकिन वह नहीं मिली। शाम के वक़्त वह मायूस होकर लौट आये दूसरे दिन उन्होंने तैयारी की बसरा की तरफ वापस लौट पड़े।
अगला भाग ( राज़ की कुंजी )
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Hindi