fatah kabul (islami tarikhi novel )part 20



रिहाई....... 

           

                                   


          दीना और इल्यास दोनों निहायत ख़ामोशी  और एहतियात से कोठरी से निकले और दबे क़दमों चले। अभी तक दीना के नरम हाथ इल्यास का हाथ था। उसने उनके कान में  कहा  बिलकुल खामोश रहना  न कुछ कहना  पूछना। 
  • दीना हसीन वा नौजवान थी। इल्यास चाहते थे वह उनसे अलग रहे उन्होंने उसके हाथ में से अपना हाथ छुड़ाना चाहा  उसने और दबा लिया  और उनके मुँह के पास अपना मुँह लेजाकर कहा। "तुम्हारे हाथ में लाल नहीं है ?मै  छीन लेंगे यूही चले चलो। 
  •             अगर कोई और होता तो उस नाज़नीन का मुँह चूम लेता लेकिन इल्यास मुस्लमान थे और मुस्लमान जानते है के यह बाते गुनाह है इसलिए उनके दिल में इस क़िस्म का ख्याल भी पैदा नहीं हुआ। 
  •               रात अँधेरी थी। न मालूम किन रास्तो से चल कर दीना   उन्हें शहर से  बाहर लायी। उसने उन्हें  एक थैली दी और कहा "यह थैली राजकुमारी ने दी है उसमे कुछ नकदी  है। रस्ते में काम आएगी। 
  •            इल्यास ने ली और कहा। "सुगमित्रा से शुक्रिया अदा करने के बाद कह देना की इंशाल्लाह मैं जल्द वापस आऊंगा। 
  • दीना : राजकुमारी ने यह भी कहा था की तुम उन्हें भूल न जाना। 
  • इल्यास : कह देना की मैं उनका इस क़दर मश्कूर और ज़ेरे बार अहसान हु की कभी न  भूलू। 
  • दीना : अच्छा भगवान् तुम्हारी सहायता करे। 
  •                  वह उनका  हाथ छोड़ कर चली गयी। इल्यास आगे बढे। न हमवार पहाड़ी रास्ता था। आंखे  फाड़ फाड़ कर देखते और संभल संभल कर क़दम रखते चलने लगे। थोड़ी ही दूर चले ही थे की किसी ने पीछे से उनके कंधे पर हाथ रख दिया। वह हस्ते थे एक दम चौंक पड़े। मगर फ़ौरन ही उन्हें महसूस  हाथ मरदाना नहीं ज़नाना  है। उन्होंने घूम कर देखा। कमला  खड़ी है बेसाख्ता ु उनकी ज़बान  से निकला। "तुम  कहा ?"
  • कमला : जहा तुम। 
  • इल्यास : आखिर तुम कैसे यहाँ आगयी। 
  • कमला : मेरे सामने पेशवा ने तुम्हे क़ैद किया था। मैंने उसी वक़्त तुम्हारी रिहाई की तदबीरें  सोचनी करदी  थी। रात को मैंने राजकुमारी और दीना को तुम्हारे पास जाते देखा। मुझे मलाल भी हु भी हुआ और रश्क भी।  क्युकि तुम्हे मैं रिहा  कराना चाहती थी मैंने तदबीर  भी कर ली थी। जब वह दोनों चली गयी तब मैं अपनी तदबीर पर कारबन्द   देखा की दीना तुम्हे अपने  साथ लिए जा रही है मैं भी पीछे लग ली। जब वह तुम्हे  यहाँ पहुंचा कर वापस लौट गए मैं तुम्हारे पास आयी। 
  • इल्यास : मैं तुम्हरा  गुज़ार हु की तुमने मेरी रिहाई के लिए कोशिश शुरू कर दी थी। 
  • कमला : अब कहा चलने का इरादा है। 
  • इल्यास : ज़रनज में शायद वहा मेरे साथी मौजूद  हो। 
  • कमला : तुम्हारे साथी यही आगये है। 
  •                 इल्यास ने हैरत से उसकी तरफ देख कर कहा "कहा है वह ?"
  • कमला : इत्तेफ़ाक़ से मुझे उनके आने की इत्तेला हो गयी। मै जानती थी की तुम्हारी गिरफ़्तारी की खबर कुछ लोगो को हो गयी है की तुम्हारे साथी शहर के क़रीब आये तो कही वह भी गिरफ़्तार   न कर लिए जाये इसलिए मैं उनके पास गयी और एक खड में छिपा  दिया। 
  • इल्यास : यह तुमने उनके साथ बड़ा अहसान किया। उन्होंने मुझे तो नहीं पूछा था ?
  • कमला : क्यू न पूछते। सबसे पहले उन्होंने तुम्हे ही पूछा। जब मैंने उन्हें बताया की तुम गिरफ्तार हो गए हो तो उन्हें बड़ा गुस्सा आया  वह उसी वक़्त हमला करने को तैयार हो गए। मेरे समझाने से बाज़ रहे। यह देख कर मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ की तुम लोगो में आपस में किस क़दर मुहब्बत है। 
  • इल्यास : मुसलमानो में अखहुअत और मुहब्बत बहुत ज़्यदा है। हर मुस्लमान दूसरे मुस्लमान का भाई है। 
  • कमला :यही बात है। उसका मेरे दिल पर बड़ा असर हुआ है। 
  • कमला :आओ। 
  •               वह उन्हें लेकर एक गड में पहुंची। आधी रात से ज़्यदा चुकी थी। पहाड़ ख़ामोश थे। चट्टानें खामोश थी। आसमान से पहाड़ तक सिकवत  छाया हुआ था। इल्यास ने क़द्रे फासला पर  पत्थरो के ढेर लगे देखे। जब  वह बढ़ कर  उनके पास गए तो घोड़े हिनहिनाये। उन घोड़ो के पास सलेही वगैरा थे। वह जाग गए  और जल्दी से उठ बैठे। इल्यास ने दूर से कहा "मैं हूँ इल्यास " सलेही ने कहा  "खुश आमदीद  आ जाओ "
  •             इल्यास और कमला उनके पास पहुंच गए। सलेही ,अब्बास और मसूद तीनो उठे देख कर बहुत खुश हुए। उनकी रिहाई पर उन्हें मुबारक बाद दी। उनके साथ कमला को देखा कर वह यह समझे की वही उन्हें  रिहा  कर लायी है। सलेही ने कहा "उस लड़की ने हम पर बड़ा अहसान किया है। उसने हमारे पास आकर हमें तुम्हारी गिरफ़्तारी का हाल सुनाया और हमें यहाँ लेकर छिपा दिया। यही शायद तुम्हे भी  रिहा करा कर लायी। "
  • इल्यास : नहीं मुझे खुद राजकुमारी सुगमित्रा ने रिहा कराया है। अलबत्ता उसने मुझे तुम्हारा पता दिया और यहाँ  तक रहबरी की। 
  •               कमला ने कहा "मैंने  उनकी रिहाई की तदबीर कर्ली थी  लेकिन मुझसे पहले ही राजकुमारी  ने उन्हें रिहा करा  दिया। "
  • सलेही :राजकुमारी के दिल में क्या आयी ?
  • कमला : यह उन्हें ही मालूम होगा। 
  • इल्यास  : शुरू रात में वह मेरे पास आयी थी। मुझे अपने मज़हब में दाखिल करने की तरग़ीब देने लगी। जब  मैंने इंकार किया तो वह चली गयी और उसने  अपनी एक सहेली को भेज कर मुझे रिहा करा दिया। 
  • सलेही : यह सब खुदा का फज़ल व करम है। 
  •               इल्यास ने कमला से कहा "मैंने तुम्हे यह नहीं  बताया था की मैं मुस्लमान हु  तुमने कैसे समझ लिया और कैसे जान लिया  की यह लोग मेरे साथी है। "
  • कमला : जब धार में पेहसवा ने तुम्हे रोका तो मैं गयी की तुमसे मशकूक हो गए है। मैं जानती थी वह ऐसे लोगो से दूसरे  कमरों में जाकर तनहा बाटे किया करते है। मैं  जल्दी से उस कमरे में जाकर ऐसी जगह छिप  गयी जहा से तुम्हारी  बाते सुन सकूँ। थोड़ी देर में पेशवा तुम्हे वहा लेकर आगये और उन्होंने गुफ्तुगू शुरू करदी  .जब तुमने  बताया की तुम अरब हो और मुस्लमान हो तो फ़ौरन मेरे दिल में यह ख्याल गुज़रा की तुम  जासूस हो। जब  तुमने पेशवा को बताया की तुम अपने चाचा और अपनी मंगेतर को तलाश करने आये हो तो मैं तज़बज़ब  में पड़ गयी। फिर पेशवा ने तुम्हे बुद्धमत में दाखिल होने की  तरग़ीब दी। तुमने इंकार  कर दिया। उससे मुझे  ख़ुशी हुई। जब तुम क़ैद खाने में भेज दिए गए और पेशवा वहा से चले गए तब मैं  पनाह गाह  से निकली। मेरे क़दम खुद बखुद शहर से  बाहर की तरफ उठ गए मई बाहर निकल गयी  और दूर तक  चली गयी। मैंने उनलोगो को आते हुए देखा। पहले तो मैं झिझकी की कही यह लोग मुझे गिरफ्तार न कर ले। लेकिन फिर उनके पास  पहुंच गयी और उनसे  पूछा। "क्या तुम्हारे साथ एक नौजवान  भी है ?"उनमे से किसी ने जवाब दिया "हां थे उनका क्या हुआ  "मैंने कहा "वह गिरफ्तार कर लिए गए है "उन्हें बड़ा अफ़सोस हुआ। मैंने उनसे कहा  "अगर तुम लोग शहर से क़रीब जाओगे तो तुम भी गिरफ्तार कर लिए जाओगे। "उनमे से एक ने कहा "हमें उसकी परवाह नहीं है। हम अपने साथी की रिहाई की कोशिश करंगे मैंने कहा "तुम हरगिज़ उन्हें रिहा न करा पाओगे। मुझ पर इत्मीनान रखो। मैं कोशिश  करुँगी। बेहतर   यह है  की तुम कही छिप जाओ "उनके समझ में आगयी। मैंने उन्हें यहाँ लेकर छिपा दिया। 
  • सलेही ; बेशक उस लड़की ने हम पर बड़ा अहसान किया है। अगर यह हमें छिप जाने की तरग़ीब न देती और तुम्हे रिहा करा  लाने का वादा न करती तो हम जोश में शहर के क़रीब पहुंच जाते और खुदा जाने फिर क्या होता। "
  • इल्यास :मैं इस नाज़नीन का बहुत शुक्र  गुज़ार हु। 
  • कमला : अब यहाँ ठहरना मुनासिब नहीं है। इसी वक़्त यहाँ से रवाना हो जाना चाहिए उनके (इल्यास की तरफ इशारा करके )फरार हो जाने का हाल जब पेशवा को मालूम होगा तो वह उन्हें गिरफ्तार  कराने के लिए चारो तरफ दौड़ाएंगे अभी काफी रात बाक़ी है  .हम सुबह होते बहुत दूर नकल जायँगे। 
  • सलेही : निहायत नेक  मशवरा है। तैयारी करो चलो। 
  •                   यह सब लोग उठे और जल्दी जल्दी घोड़ो पर असबाब  लाड कर खुद भी उनपर सवार हो गए। एक घोड़े  पर कमला को बिठाया और सब शहर ज़रंज की तरफ रवाना हो गए। 

                                                      अगला भाग  (इल्यास की हैरत)



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