AQAAB PART 6
लीजिए जनाब, हाजिर हैं दो क़िस्तें एक साथ...
असफंद अपने सामने असामे को खड़ा देखकर हैरान रह गया।
"तुम इधर क्या कर रहे हो?" असफंद ने सवाल किया।
"बात मत पलटो! तीन साल से मिस्टर असफंद तुम्हें ट्रैक कर रहा था, तुम पोस्टिंग पर थे, बताओ फातिमा कहां है?" असामे ने गरजते हुए कहा।
"कैप्टन असामे!! तुम आज भी वैसे ही हो, ट्रेनिंग भी तुम्हें बदल नहीं सकी, खैर, हालात की खराबी के कारण सब पोस्टेड अफ़सर को रिपोर्ट करने का आदेश दिया गया है, मैं आज ही भंभेर पहुंचा हूँ। तुम मेरे साथ घर चलो, आराम से बात करते हैं..." असफंद ने उसके हाथ अपने गिरेबान से हटाए।
"घर?" असामे हैरान हुआ।
"मैं आज़ाद कश्मीर से हूँ और मेरा आबाई घर इधर भंभेर ज़िले में है, बड़े मैदान के पास..." वह गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए बोला।
"मेरे पास इस सब का टाइम नहीं है, मुझे एक घंटे में बेस रिपोर्ट करनी है, इस लिए मेरे सवाल का जवाब दो..."
"घर चलो!! तुम्हें सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे..." असफंद ने उसे बैठने का इशारा किया।
असामे धड़कते हुए दिल के साथ गाड़ी में बैठ गया, वह असफंद के घर में फातिमा की हैसियत देखने से डर रहा था।
"क्या बदतमीज़ी है!! मेरा हाथ छोड़ो..." मिलीहा का गुस्से से बुरा हाल था।
"आप जैसी सरफिरी को ऐसे ही डील करना चाहिए..." हम्जा अली ने सख्ती से कहा।
वह इन दोनों को लेकर गाड़ी के पास पहुँच गया था।
"अंदर बैठो!! मैं आपको दोनों को अस्पताल तक ले चलता हूँ, आप सैंपल ड्रॉप कर लें, फिर मैं वापस कैंप तक छोड़ दूंगा..." हम्जा अली ने दरवाजा खोलकर मिलीहा को अंदर धकेल दिया और थना को बैठने का इशारा किया।
"अब यह किधर चला गया?" वह असामे को चारों ओर देखते हुए बड़बड़ाया और जेब से फोन निकालकर असामे का नंबर मिलाया।
"हैलो असामे!! कहां हो यार?" और दूसरी तरफ की बात सुनने लगा।
"ठीक है फिर, कल या परसों जब भी टाइम मिले, जरूर मिलना..." अली ने फोन रखा और खिड़की से बाहर देखने लगा।
"अब आप गाड़ी चलाने की ज़हमत करेंगे या बाहर ही घूरते रहेंगे..." मिलीहा तमतमा कर बोली।
हम्जा अली ने गुस्से में मिलीहा को घूरते हुए गाड़ी स्टार्ट की।
"मिलीहा बीबी!! हर वक्त कोयले चबाना छोड़ दो, लड़कियों में इतना एटीट्यूड नहीं होना चाहिए, ये नुकसान पहुँचाता है..." वह धीमे से समझाते हुए बोला।
"आप मेरे अबा नहीं हैं जो मेरे नफा-नुकसान की फिक्र करें, ड्राइवर हैं, रोड पर ध्यान दें और हमें जल्द अस्पताल पहुँचाएं, पहले ही इतनी देर हो गई है..." वह बड़े आराम से उसे ड्राइवर का दर्जा देते हुए बोली।
"अस्तगफरुल्लाह!!! मैं क्यों तुम्हारा अबा बनने लगा? हां, तुम्हारे बच्चों के अबा बनने के बारे में सोचा जा सकता है..." हम्जा अली ने कानों को हाथ लगाकर कहा।
पीछे चुपचाप इन दोनों की तकरार सुनती थना की हंसी छूट गई और मिलीहा के कानों से धुआं निकलने लगा।
"तुम!!! तुम इस काबिल ही नहीं हो कि तुम्हारे मुंह लग जाए..." वह गुस्से और शर्म से लाल पड़े चेहरे के साथ बोली।
हम्जा अली ने मुस्कुराते हुए उसका यह रूप अपनी नजरों में बसाया और गाड़ी की रफ्तार तेज कर दी।
"लीजिए गर्ल्स, आपकी मंज़िल आ गई, जल्दी से सैंपल जमा करवा कर आ जाइए, फिर आपको कैंप छोड़ दूंगा..." वह अस्पताल की मुख्य एंट्रेंस पर गाड़ी रोकते हुए बोला।
"हम्जा भाई!! आप वाकई परेशान मत होइए, हमें शायद थोड़ा टाइम लग जाए, हम वापस खुद चले जाएंगे..." थना ने गंभीरता से कहा।
"थना बहन!! मैं परेशान नहीं होता, आप आराम से अपना काम खत्म कर लें, मैं इधर ही हूँ, इन हालात में, मैं आप दोनों को अकेला नहीं छोड़ सकता..." उसने शांति से जवाब दिया।
"लेकिन भाई, हमें आगे एक जगह और भी जाना है..." थना झिजकते हुए बोली।
"आगे?? आगे कहां जाना है? वो भी इन जंग वाले हालात में?? ये यकीनन तुम्हारी दोस्त की ही करतूत हो गई जो तुम दोनों इन हालात में घूमने निकली हो..." वह मिलीहा को घूरते हुए बोला।
"चलो थना!! तुम भी किस ढीट इंसान के मुंह लग रही हो, और मिस्टर!!!" वह हम्जा अली की ओर मुड़ी।
"हम आर्मी मेडिकल कॉलेज से हैं, अपने काम से इधर आए हैं और आगे भी अपने काम से ही जाएंगे, आपको फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है, आप अपना रास्ता नापिए..." वह गाड़ी से उतरते हुए बोली।
हम्जा की सहनशक्ति की सीमा हो चुकी थी, यह लड़की मिलीहा उसके सहनशीलता का इम्तिहान लेने पर तुली हुई थी, वह चाहते हुए भी उसे अकेला नहीं छोड़ सकता था, वह एक झटके से दरवाजा खोलकर उतरा और आगे जाती मिलीहा का हाथ पकड़कर खींच लिया।
"महिलाएं!!! आप इस समय मेरी जिम्मेदारी हैं और अभी कैंप जाकर मैं आपके टीचर्स से भी बात करूंगा कि दो जवान लड़कियों को ऐसे हालात में, जब आम नागरिक भी बाहर नहीं निकल रहे, फायरिंग और गोलाबारी का सिलसिला जारी है, उन्होंने कैसे बाहर भेजा जब कि हमारे लोकल सोशल वर्कर्स की पूरी टीम उनकी मदद के लिए तैयार थी..." वह शब्द चबाकर बोला।
"भाई!! प्लीज़ सिर तक मत पहुंचें... अच्छा, आप और मिलीहा इधर ही रुकें, मैं बस पाँच मिनट में ये सैंपल ड्रॉप कर के आई..." थना तेज़ी से अंदर की ओर बढ़ी।
असफंद, असामे को लेकर अपने घर की ओर रवाना ही हुआ था कि उसका फोन बजने लगा। उसने एक नजर फोन पर देखा, घर से कॉल थी।
"हैलो..."
"असफंद!! तुम किधर हो? अस्पताल से फोन आया है, अम्मा की तबीयत बहुत खराब हो गई है..." दूसरी तरफ से रोई हुई महिला की आवाज़ गूंजी।
"तुम फिक्र मत करो, मैं अभी इधर जाकर तुम्हें इत्तिला करता हूँ..." असफंद ने फोन बंद किया।
"असामे!! एक इमरजेंसी हो गई है, मुझे तुरंत अस्पताल पहुँचना है, मैं तुम्हें बेस छोड़ देता हूँ, तुम मेरा नंबर नोट करो, टाइम निकाल कर मिलते हैं..." असफंद ने अपना नंबर उसे बताते हुए कहा।
"कोई बात नहीं!! बेस अस्पताल से ज्यादा दूर नहीं है, आप इधर ही चलें, मैं वहां से खुद ही चला जाऊँगा..." वह गंभीरता से बोला।
कुछ देर गाड़ी में सन्नाटा छा गया, गाड़ी तेज़ रफ्तार से दौड़ रही थी, अस्पताल की पार्किंग में पहुँचकर असफंद ने गुमसुम बैठे असामे को संबोधित किया।
"तुम इधर क्या कर रही हो? ड्राइवर किधर है?" वह बाइक से उतर कर फातिमा के सामने आकर खड़ा हो गया।
"उसका बच्चा बीमार था, इसलिये उसे मना कर दिया था, वैसे भी वैगन आ ही जाएगी..." वह सड़क की ओर देख रही थी।
"आओ, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूँ..." वह उसे साथ आने का इशारा करते हुए बाइक की ओर बढ़ा।
"नहीं, प्लीज आप जाइए, मैं खुद चली जाऊँगी..." फातिमा ने तुरंत इनकार किया।
"फातिमा!!! मुझे इनकार सुनना पसंद नहीं है, तुम आ रही हो या मैं आऊँ?" वह पलट कर सर्द लहजे में बोला।
फातिमा कोई नया तमाशा नहीं चाहती थी, इसलिये सांस भरते हुए उसकी बाइक के पास जाकर खड़ी हो गई।
"अब क्या, तुम्हें बाइक पर बैठने के लिए क्या बाकायदा इंविटेशन देना होगा?" वह गिलासेज पहनते हुए तड़प कर बोला।
"मैं आज तक बाइक पर नहीं बैठी, मुझे डर लगता है और बैठना भी नहीं आता!!!" वह अटक अटक कर बोली।
"ओ गॉड..." वह नीचे उतरा।
उसने फातिमा को खुद पीछे बैठकर दिखाया और समझाया कि कैसे बैठना है।
फातिमा बहुत ही झिझकते हुए पीछे बैठी, फातिमा के बैठते ही उसने बाइक को एक जोर से किक मारी।
असामे ने बाइक को पूरी कोशिश कर के अपने स्वभाव के खिलाफ कम स्पीड पर चलाया, मगर फिर भी फातिमा की हालत खराब थी, वह पीछे बैठी डर से काँप रही थी, उसे लग रहा था कि वह अब गिरेगी! घर पर पहुँच कर बाइक के रुकते ही वह अपना दुपट्टा संभालते हुए उतरी।
असामे ने बड़ी हैरानी से फातिमा के फीके चेहरे को देखा।
"क्या हुआ!! सब ठीक तो है, तुम्हारा मुंह क्यों बना हुआ है? एक तो तुम्हें इतनी धूप में बसों के धक्कों से बचा कर घर लाया हूँ और तुम, बजाय शुक्रिया कहने के, मुंह बनाए खड़ी हो!!!" वह जाती हुई फातिमा की कलाई पकड़ कर उसे रोकते हुए बोला।
"मैं... मैं ठीक हूँ!" वह मंमानी, आज लगभग चार महीने बाद उसका सामना असामे से हुआ था।
"अच्छा यह बताओ, कॉलेज कैसा चल रहा है? स्टडीज़ में कोई हेल्प चाहिए क्या?" असामे ने नरमी से पूछा।
"सब ठीक है, प्लीज मेरा हाथ छोड़ें..." वह हाथ छुड़ाकर उसकी बोलती हुई नज़रों से हटना चाहती थी।
"मैं अपने ISSB टेस्ट की तैयारियों में इतना व्यस्त था कि तुमसे भी मुलाकात नहीं कर पाया, लेकिन यू नो, यह सब मैं हमारे लिए ही कर रहा हूँ..." उसने फातिमा के झुके हुए सिर को गौर से देखा।
"अच्छा, अपने सब्जेक्ट तो बताओ, मैं तुम्हें अपने नोट्स निकाल दूंगा..." उसने ऑफर की।
"नहीं, इसकी जरूरत नहीं है..." वह किसी भी तरह वहां से गायब हो जाना चाहती थी।
"क्या तुम्हें फिजिक्स, केमिस्ट्री, या किसी भी सब्जेक्ट में हेल्प या रेफरेंस बुक की जरूरत नहीं है?" उसने सवाल किया।
"मेरे पास आर्ट्स के सब्जेक्ट हैं, सब बहुत आसान हैं, कोई हेल्प की जरूरत नहीं..." वह बड़े आराम से बोली।
"आर्ट्स? तुमने साइंस नहीं ली..." वह हैरान हुआ।
"नहीं..." वह सिर झकते हुए बोली।
"चलो, कोई बात नहीं, मैं हूँ ना!! वैसे भी आदमी को स्ट्रॉंग होना चाहिए!! तुम्हें जो अच्छा लगे, वही पढ़ो..." वह हँसते हुए अपनी पकड़ ढीली करते हुए बोला।
फातिमा, पकड़ ढीली पड़ते ही अपना हाथ छुड़ाती हुई तेजी से अंदर भाग गई।
असामे का सिलेक्शन हो गया था, उसकी खुशी अपने उरूज पर थी, अब जल्द ही उसे अकादमी जॉइन करनी थी, वह इन दिनों उसी की तैयारियों में व्यस्त था, समय कम था, काम ज्यादा था, दोस्तों से मिलना-जुलना चल रहा था, अली भी लंदन जा रहा था, हायर स्टडीज़ के लिए...
शाम का वक्त था, महसिन नकवी साहब और नौशाबा फातिमा के साथ लान में बैठे चाय से लुत्फ उठा रहे थे, जब असामे की गाड़ी पोर्टिको में आकर रुकी...
कार का दरवाजा बंद करके वह जैसे ही सीधा हुआ, उसकी नजर मम्मी-डेड के साथ बैठी फातिमा पर पड़ी, हरे कपड़े में उसकी शहाबी रंगत खुली पड़ी थी, दुपट्टा सिर पर था, मगर दुपट्टे से झांकते काले बाल हवा से शरारत कर रहे थे... वह कितनी देर साक़त सा खड़ा उसे देखता रहा, फिर डेड की आवाज़ पर चौंकता हुआ उन सभी की ओर बढ़ा।
"वालेकुम अस्सलाम!!" उसने सब को सलाम किया और कुर्सी घसीट कर फातिमा के पास बैठ गया।
"असामे बेटा, कहां व्यस्त हो? कभी घर में भी टिक जाया करो..." नौशाबा ने शिकायत की।
"डेड, मुझे आपसे एक बहुत इम्पोर्टेंट बात करनी है..." वह सीधा होकर बैठ गया।
"क्या बात है?" उन्होंने चश्मा उतारते हुए गंभीरता से पूछा।
"आप जानते हैं, एक हफ्ते बाद मुझे अकादमी जॉइन करनी है, इस लिए मैं चाहता हूँ, मेरे जाने से पहले आप मेरा और फातिमा का निकाह करवा दें..." वह मजबूत लहजे में बोला।
फातिमा तेजी से, नियंत्रण करते हुए उठी और बिना रुके सीधे अपने कमरे में चली गई।
महसिन नकवी साहब ने गौर से फातिमा को जाते हुए देखा।
"असामे, निकाह के लिए लड़की की रज़ामंदी भी जरूरी होती है, वैसे तुमने इतनी जल्दी क्यों की है?" उन्होंने सवाल किया।
"डेड, मुझे कुछ नहीं पता, आपने कहा था कमिशन लेकर दिखाओ, चाचू ने कहा था जिस दिन तुम्हारा सिलेक्शन हो जाएगा, रिश्ता तय कर देंगे, तो फिर अब आप इनकार कैसे कर सकते हैं..." वह अकड़ते हुए बोला।
"नौशाबा, आप कल फातिमा की रज़ामंदी ले लें, फिर देखते हैं क्या करना है..." उन्होंने हिदायत दी, फिर असामे की ओर पलटे।
"और बेटा, आप अब आराम करें, कल फातिमा से बात करके आपसे बात करूंगा..."
वह काफी देर से बिस्तर पर करवटें बदल रही थी, पर नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। असामे बहुत बदल चुका था और असामे की आँखों से झांकते मनोभाव, वो सब उससे छुपे नहीं थे, मगर उसका दिल अभी असामे पर भरोसा करने को तैयार नहीं था...
"मैं बस उनकी ज़िद हूँ जिसे हासिल करके वह नीचा दिखाना चाहते हैं..."
वह उलझी हुई सोचों से घबराकर उठ बैठी, सिर दर्द से फटा जा रहा था, घड़ी देखी, रात के दस बज रहे थे। नौशाबा और महसिन साहब एक इफ़्तार पार्टी में शामिल होने के लिए गए हुए थे, वह उठ कर दुपट्टा कंधों पर सही करती हुई किचन की ओर बढ़ी, चाय बनाने का इरादा था।
असामे घर वापस आया तो किचन में लाइट जलती देख कर किचन के दरवाजे तक आया, अंदर वही दुश्मन जान, चूल्हे के पास खड़ी बड़े ध्यान से चाय बना रही थी...
"क्या हो रहा है?" वह बोलते हुए अंदर दाखिल हुआ।
असामे की आवाज़ सुनते ही वह काँप सी गई, चाय का कप उसके हाथों में डर के मारे थम गया।
"अरे यार, मैं कोई भूत थोड़ी हूँ जो तुम मुझे देखती ही डर जाती हो! खैर, छोड़ो, सब अच्छा हुआ, तुम मुझे इधर ही मिल गई, मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है..." वह उसके थरथराते हाथों से कप लेकर मेज़ पर रखते हुए बोला।
फातिमा आज शाम उसकी निकाह की ख्वाहिश सुन चुकी थी, वह उससे बच रही थी, इस वक्त भी उसका दिल पूरी रफ्तार से धड़क रहा था, उसने बिना सोचे समझे तेजी से पीछे मड़ी और भागती हुई ऊपर अपने कमरे की ओर बढ़ी, इरादा खुद को कमरे में बंद करने का था।
असामे ने हैरान होकर उसके व्यवहार को देखा, फिर एक झटके में लंबे कदम उठाता उसे सीढ़ियों पर जा लिया।
"यह क्या हरकत थी?" वह इतने गुस्से से बोला कि फातिमा काँप कर रह गई।
अगले ही पल असामे ने उसका बाजू पकड़ लिया और उसे घसीटते हुए अपने कमरे में लाकर दीवार से लगा कर उसका रास्ता रोक कर खड़ा हो गया।
"देखो फातिमा, हर बात की, हर व्यवहार की एक सीमा होती है, ऐसा व्यवहार अपनाकर तुम दिन-ब-दिन मेरी ज़िद, मेरा जुनून बनती जा रही हो..." वह गरजते हुए बोला।
फातिमा का चेहरा गहरी तकलीफ से लाल पड़ गया था, असामे का डर, उसकी इस पल इतनी नज़दीकी, उसका गुस्सा, फातिमा को डरा रहा था, वह काँप रही थी। असामे ने बहुत अफसोस से उसकी यह हालत देखी।
"माना कि मैं बहुत गुस्से वाला हूँ, जुनूनी हूँ, मगर तुम्हारे मामले में मेरा दिल, मेरा दिमाग बदल चुका है, तुम्हें मुझसे, असामे नकवी से डरने की जरूरत नहीं है..." वह नर्म लहजे में उसके चेहरे पर अंगुली फेरते हुए बोला।
फातिमा एक झटका लेकर पीछे हुई।
मैं तुम्हारा बहुत ख्याल रखूँगा , मैं समझदार हूँ,बहुत जल्द ही अपना करियर भी बना लूंगा ,बस तुम मुझ पर भरोसा करके तो." वह उसका रास्ता रोके खड़ा था।
"आप प्लीज रास्ता छोड़े "वह गुस्सा दबाते हुए बोली
एक दिन तुम देखना एक दिन मैं भी तुम्हारे सो-कॉल्ड हीरो की तरह एयर फोर्स ऑफिसर बनूँगा और दुनिया मुझे सबसे बड़ा जुनूनी पायलट मानेगी!!" वह जोश से कह रहा था।
फातिमा चुपचाप सिर झुकाए अपने जूतों को देख रही थी, वह किसी भी तरह इस घर और उसके मकानों से, असामे से दूर भाग जाना चाहती थी...
"मैं तुम्हारी हर ख्वाहिश पूरी करूंगा, दुनिया की हर نعمت तुम्हारे कदमों में डाल दूंगा, तुम्हारे लिए खूबसूरत सा घर बनाऊंगा जहाँ हम दोनों मिलकर रहेंगे... बस तुम शादी के लिए हां कह दो, कल जब मम्मी तुमसे जवाब मांगें तो तुम्हारे होंठों से सिर्फ और सिर्फ स्वीकृति का इज़हार होना चाहिए!!! समझी?" वह दो टूक लहजे में बोला।
"म... मैं..." फातिमा ने हिम्मत जुटाकर सिर उठाया।
"मुझे अभी पढ़ाई करनी है, मैं शादी नहीं करना चाहती..."
"मुझे पता है तुम अभी बहुत छोटी हो, मैं तुम्हारे अठारह साल के होने का इंतजार करूंगा, इस तरह मुझे भी दो साल मिल जाएंगे, जब मैं अकादमी से वापस आऊँगा तो फिर हम रुखसती करवा लेंगे, अभी हम सिर्फ निकाह करेंगे..." उसने गंभीरता से समझाया।
उसने फातिमा के लाल होते चेहरे को देखा।
"तुम फिक्र मत करो, अभी मेरी ट्रेनिंग में दो साल लगने हैं, इसलिये बेफिक्र होकर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो..." उसने फातिमा को दिलासा दिया।
"आप!!! तो आप ऐसे क्यों कह रहे हैं, आप भी अपनी ट्रेनिंग करें और प्लीज़ मुझे भी पढ़ने दें, अभी ये सब जरूरी तो नहीं?" वह सिर उठाकर बोली।
असामे ने ध्यान से उसके चेहरे का जायजा लिया...
"जरूरी है!!! मैं तुम्हें अकेला इस तरह छोड़ नहीं सकता, एक बार बस एक बार मेरे नाम हो जाओ, फिर मैं आराम से अपनी ट्रेनिंग पर ध्यान लगाऊँगा और तुम आराम से पढ़ती रहोगी..."
"आप प्लीज़ रास्ता छोड़ें..." वह ज़च हो कर रह गई थी।
"जाओ!!! आराम करो, वैसे भी तुम्हें अभी अपने अच्छे-बुरे का कोई ज्ञान नहीं है, यह अहम फैसला मुझे ही करना होगा..." वह एक कोने में हो कर उसे रास्ता देते हुए बोला।
वह उसके सामने से हटते ही तेजी से कनी-कतराते हुए कमरे से बाहर निकल गई।
सुबह फजर का वक्त था, पूरा घर सोया हुआ था, वह नमाज़ पढ़कर बैठी हुई थी...
आज काफी अरसे बाद उसके अंदर फिर से संवेदनाओं की लहर उठ रही थी, चुपचाप बाहर लान में आकर चहलकदमी करने लगी, हल्की हल्की ठंडी सी हवा ने माहौल में शोक को और बढ़ा दिया था, वह चुपचाप जाकर झूले पर बैठ गई।
असामे का आक्रामक तरीका और उसकी बातें सुनकर उसका दिल बेचैन हो गया था...
"अल्लाह मियां, आपने ऐसा क्यों किया??? मेरे बाबा मुझसे ले लिए और ये जुनूनी इंसान मेरे पीछे लगा दिया!!! या अल्लाह मेरी मोहब्बत उसके दिल से निकाल दे, या अल्लाह मुझे इस मुश्किल से निकाल..." वह फजर के वक्त झूले पर बैठकर अल्लाह से ग़लियाँ कर रही थी।
दिन चढ़ आया था, सुबह के नौ बज रहे थे, घर में खटर-पटर शुरू हो चुकी थी, वह उदास अंदाज में उठी और अंदर कमरे की तरफ बढ़ी ही रही थी कि लिविंग रूम से नौशाबा ने उसे आवाज़ दी।
"फातिमा बेटी, ज़रा इधर तो आओ!!"
"वालेकुम अस्सलाम आंटी..." वह सलाम करती हुई उनके पास जाकर बैठ गई।
उन्होंने मलाज़मा को उसके लिए जूस लाने का कहा और फिर उसकी तरफ ध्यान दिया।
"बेटा, बहुत पहले मैंने तुमसे कहा था कि मुझे मम्मी बुलाया करो, तुमने मान भी लिया था, मगर फिर... खैर, तुम मانو या ना मانو, मेरे लिए तो तुम हमेशा ही मेरी बेटी रहोगी..." उन्होंने उसके शर्मिंदा चेहरे को देख कर बात पूरी की।
"अच्छा छोड़ो सब, बस एक बात बताओ, असामे! तुम्हें कैसा लगता है?" उन्होंने सवाल किया।
"जी..." उनके इस सवाल पर वह एकदम घबराई।
"देखो बेटी, असामे तुमसे शादी करना चाहता है और मैं तुम्हारी इस बारे में राय जानना चाहती हूँ, तुम दोनों ही अभी बहुत छोटे हो, इसलिये हम सोच रहे हैं, अगर तुम राज़ी हो तो अभी सिर्फ निकाह कर देते हैं!!! तुम बताओ तुम्हारा क्या ख्याल है?" उन्होंने गंभीरता से पूछा।
"आंटी!!!" फातिमा की आँखों में नमी उतर आई।
"क्या वाकई आप मेरी बात सुनेंगी? मानेंगी?" वह भर्राए हुए लहजे में, आँखों में बड़ी आस लिए उन्हें देख रही थी।
"फातिमा, तुम्हें बेटी सिर्फ ज़बान से नहीं कहा है, बल्कि दिल से माना है, तुम बेझिजक होकर बोलो..." उन्होंने उसकी हिम्मत बढ़ाई।
"वो मुझे!!! मुझे अभी पढ़ना है, मैं अभी, अभी आप प्लीज़ अंकल को मना कर दें, अभी कुछ नहीं करें, मुझे ये सब अच्छा नहीं लग रहा..." वह उलझे उलझे अंदाज़ में अपनी बात उन तक पहुँचाने की कोशिश कर रही थी।
"ठीक है बेटा, कोई ज़बरदस्ती नहीं है, मैं तुम्हारे अंकल को तुम्हारा इनकार पहुंचा दूंगी..." नौशाबा ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, उनके चेहरे पर उस वक्त गहरी चिंता छाई हुई थी।
असामे को आज अली को सी-ऑफ करने जाना था, वह जल्दी-जल्दी तैयार हो रहा था, जब दरवाजे पर हल्की सी दस्तक हो और महसिन नकवी साहब अंदर दाखिल हुए।
"गुड मॉर्निंग डेड..."
"यंग मैन, कहाँ की तैयारी है?"
"डेड, अली लंदन लॉ स्कूल जॉइन कर रहा है, उसे एयरपोर्ट ड्रॉप करने जा रहा हूँ..."
"दस मिनट हैं तुम्हारे पास?"
"कम ऑन डेड!! आप बताएं, क्या बात है?"
"एक बात पूछनी है, यह बताओ, तुम फातिमा को पसंद करते हो या वह बस एक ज़िद है तुम्हारे लिए?"
"डेड, मैं आपको क्या बताऊं!! मैं फातिमा को पसंद नहीं करता, बल्कि बात पसंदगी से भी आगे की है, मैं उससे मोहब्बत करने लगा हूँ और आपको पता है, पहली मुलाकात से लेकर कुछ वक्त तक मैं उससे सख्त चिढ़ता था, वह बस एक चैलेंज थी मेरे लिए, फिर अचानक से वह मुझे अच्छी लगने लगी, मैं नहीं चाहता कि उसे मेरे सिवा कोई और देखे, बस आप जल्दी से उसे मेरे नाम कर दें..." वह गंभीरता से बोला।
"असामे, तुम्हें मुझ पर भरोसा है?" उन्होंने पूछा।
"कैसी बात कर रहे हैं डेड आप? यह भी कोई पूछने की बात है?"
"असामे, अभी तुम दो साल की ट्रेनिंग पर जा रहे हो, फौज में, इस दौरान तुम्हारा स्टेटस सिंगल होना चाहिए, यह एक रिक्वायरमेंट है, इस लिए अभी हम यह निकाह नहीं कर सकते..." उन्होंने शांति से समझाते हुए कहा।
"लेकिन डेड?" वह उलझा।
"वह इस घर में तुम्हारी अमानत है, तुम अपनी ट्रेनिंग पूरी करो, फिर वादा, तुम्हारे आते ही निकाह पक्का..."
असामे सोच में पड़ गया...
"ठीक है डेड!! लेकिन दो साल बाद निकाह नहीं, पूरी शादी हो जाएगी, बोलिए, मंजूर है?"