AQAAB PART 7
पूरा हफ़्ता पंख लगाकर उड़ गया था। असामे के जाने की सारी तैयारियाँ मुकम्मल हो चुकी थीं। दोपहर के बाद उसे रवाना होना था। वह महसिन नकवी साहब से फातिमा से मिलने की इजाज़त लेकर उस दुश्मन जान के कमरे तक आया और दरवाज़ा हल्के से खटखटाकर अंदर दाखिल हो गया।
"आप!!" फातिमा उसे देखते ही उठ खड़ी हुई।
"बस थोड़ी देर में निकल रहा हूँ, फिर ना जाने कब मुलाकात हो, इसलिए तुम्हें देखने चला आया..." वह नरमी से कहता हुआ उसके पास आकर खड़ा हो गया।
उन दोनों के बीच खामोशी छाई हुई थी। फातिमा उसकी निगाहों का गहरा असर महसूस करके सिर झुका चुकी थी।
"फातिमा..." उसकी गहरी आवाज़ उभरी।
उसने सिर झुकाए खड़ी फातिमा को गौर से देखते हुए उसका दायाँ हाथ थाम लिया।
"फातिमा!! जो मैं तुम्हारे लिए महसूस करता हूँ, वैसा पहले कभी किसी के लिए महसूस नहीं किया!! दरअसल, मैं तो आज तक किसी लड़की के चक्कर में नहीं पड़ा!! मगर तुम... तुम सबसे अलग हो। पहले तुम मेरी पसंद थीं, अब मोहब्बत हो... लेकिन तुम बहुत ज़ालिम हो!! जानती हो, मैं जा रहा हूँ, इसलिए तुम्हें देखना चाहता हूँ, तुमसे मिलना चाहता हूँ और तुम मुझसे छुपती फिरती हो..." वह अपना हाल बयां कर रहा था।
"हाथ छोड़िए मेरा।" वह रूखे लहजे में बोली।
"यह हाथ छोड़ने के लिए तो नहीं पकड़ा है।" उसने अपनी जींस की जेब से एक नाज़ुक सी खूबसूरत अंगूठी निकाली और जबरदस्ती उसके हाथ में पहना दी।
"ये... ये आप प्लीज़ ऐसा मत करें..." वह हिचकिचाते हुए बोली।
"श्श्श... यह अंगूठी मेरे जाने के बाद तुम्हें याद दिलाती रहेगी कि तुम मेरी अमानत हो! मेरी हो! और अगर गलती से भी यह अंगूठी अपनी ऊँगली से उतारी, तो सोच लेना, मुझे फौरन पता चल जाना है और फिर मैं तुम्हें सख्त सज़ा दूँगा..." उसने धीमे से उसके हाथ को चूमा।
"आप... आप बहुत बड़े हैं!! हाथ छोड़िए मेरा..." वह गुस्सा दबाते हुए बोली।
"वाल्लाह! इस तरह गुस्सा करती हुई बिल्कुल बीवी लग रही हो..." वह शरारत से उसके माथे से माथा टकराते हुए बोला।
"मैं आपकी बीवी नहीं हूँ..." वह तिलमिला उठी।
"कोई बात नहीं!! नहीं हो तो क्या हुआ? हो जाओगी बहुत जल्द!! देखना, दो साल पंख लगाकर गुज़र जाएँगे, बस तुम मेरा इंतजार करना!!! बोलो, करोगी ना?" वह उसकी आँखों में झाँक रहा था।
"अगर!! अगर मैं आपसे कोई रिश्ता ना रखना चाहूँ तो?" वह डरते-डरते बोली।
"तो!!" उसने गौर से फातिमा को देखा, फिर एक झटके से उसे बाजू से पकड़कर उसकी आँखों में गहराई से झाँकते हुए गंभीर लहजे में बोला।
"मुझे तुम्हारी हाँ या ना से कोई फर्क नहीं पड़ता!! चाचू तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में दे चुके थे, वह मुझसे वादा ले चुके थे कि मैं तुम्हारा ख्याल रखूँगा!! लिहाज़ा, तुम मानो या ना मानो, शादी तो तुम्हारी मुझसे ही होगी और याद रखना, मैं ज़िद्दी भी बहुत हूँ और तुम्हारे मामले में तो शिद्दत पसंद भी हूँ!!! तुम मेरे दिल को अच्छी लगती हो, तुम्हें पाने के लिए मैं किसी की परवाह नहीं करूँगा, इसलिए स्वीटहार्ट, अपना माइंड मेकअप करना शुरू कर दो!!"
फातिमा की आँखों में आँसू उमड़ आए थे, चेहरा लाल पड़ गया था। उसने बेचारगी से सिर उठाकर असामे को देखा, जिसकी गहरी नज़र सिर्फ उसी पर टिकी थी।
"क्या हुआ? मुझसे डर रही हो?"
"प्लीज़, बाजू छोड़िए..."
"ना छोड़ूँ तो?" उसने पकड़ और मजबूत करते हुए उसकी नम पलकें हल्के से छुईं।
"प्लीज़!!! मुझे दर्द हो रहा है..." वह खुद को असामे की मजबूत पकड़ से छुड़ाने की कोशिश में नाकाम होकर रोहांसी हो गई।
"पहले वादा करो!! मेरा इंतजार करोगी..." वह ज़िद्दी लहजे में बोला।
"आप मेरी बात समझने की कोशिश क्यों नहीं करते?? मैं... मैं आपसे कोई रिश्ता नहीं बनाना चाहती, आप प्लीज़ मुझे माफ़ कर दें..." वह अटक-अटक कर बोली।
असामे की पेशानी पर नसें उभरने लगीं, चेहरे पर सख्ती उभर आई थी।
"तुम्हारी इन सो-कॉल्ड बातों का मतलब यह है कि तुम मुझसे!! असामे से!! जो तुमसे मोहब्बत का इज़हार कर रहा है, तुम्हें एक अच्छी ज़िन्दगी देना चाहता है, उसे ठुकरा रही हो?? तुम मुझसे शादी नहीं करना चाहती??" असामे ने गुस्से में आकर अपनी मुट्ठियाँ भींच ली थीं, उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं।
फातिमा को उससे डर महसूस हो रहा था। वह तेजी से हाथ छुड़ाकर दरवाजे की तरफ बढ़ी, लेकिन असामे ने आगे बढ़कर उसका रास्ता रोक लिया।
"तुम हद से ज्यादा खुदपसंद लड़की हो!! मैं तुम्हें पहले ही कह चुका था कि तुम्हारी हाँ या ना से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता और अब तुमने मुझे मजबूर कर दिया है कि मैं जाने से पहले तुमसे निकाह करके जाऊँ! चलो मेरे साथ!! हम अभी मस्जिद चलेंगे..." असामे उसका हाथ पकड़कर कमरे के दरवाजे की ओर बढ़ा।
फातिमा का डर और खौफ से बुरा हाल था। इस जुनूनी को वह गलती से छेड़ बैठी थी...
"ऐसा मत करें! ठीक है, आप जैसा कहेंगे मैं करूँगी!! सच में, मैं आपका इंतजार करूँगी!! बस, आप अभी ऐसा मत करें, प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़..." वह हिचकियों से रोने लगी।
"ठीक है, मैं आखिरी बार तुम पर भरोसा कर रहा हूँ, आइंदा मुझे शिकायत का मौका मत देना..." वह उसे एक झटके से छोड़ता हुआ बाहर निकल गया।
"क्या बदतमीज़ी है! हाथ छोड़िए, मुझे सना के साथ अंदर जाना है..." वह गुस्से में बोली।
"बस अब एक और शब्द नहीं!! तुम खुद को समझती क्या हो? बदतमीज़ी की भी हद होती है!! किसी बात को सुनने के लिए भी तैयार नहीं हो..." अली ने उसे टोका।
"आप होते कौन हैं मुझे रोकने वाले? मुझे आपकी कोई बात नहीं सुननी, आप हटें मेरे सामने से..."
"मलीहा बीबी!!" वह दाँत पीसकर बोला।
"मैं कौन हूँ, ये तुम्हें बहुत जल्द पता चल जाएगा। अभी के लिए अपने इस खाली दिमाग में अच्छी तरह बैठा लो, अगर आज के बाद मुझे तुम कैंप के बाहर दिखी, तो उसी वक्त उठा कर अपने घर ले जाऊँगा, और इसे धमकी मत समझना!!
I am Damn Serious..."
मलीहा के चेहरे की रंगत उड़ गई, वह सहम गई थी।
लाल-सफेद चेहरे पर सुनहरी आँखों में फैला हुआ खौफ किसी का भी दिल डगमगा सकता था। अली ने उसकी सहमी हुई खूबसूरती को अपनी आँखों में समेट लिया।
अली ने मलीहा के हाथ पर अपनी पकड़ मजबूत की और तेजी से गाड़ी का दरवाजा खोलकर उसमें बिठा दिया।
मलीहा उसके गुस्से भरे रूप को देखकर डर गई थी। वह जिस तरह से उसे घूर रहा था, वह घबराकर अपने सिर पर जमे दुपट्टे को और ठीक करने लगी।
"रिलैक्स हो जाओ यार! तुम तो इतना डर रही हो कि मुझे खुद पर आतंकवादी होने का शक हो रहा है..." वह मुस्कुराते हुए बोला।
"वैसे जिस तरह तुम अकड़ रही थी, मुझे लगा था कि तुम बहुत बोल्ड लड़की हो और शायद मुझे एक ज़ोरदार थप्पड़ मार दोगी..." वह उसे नॉर्मल करने की कोशिश कर रहा था।
"तू न डर आँधियों से, उड़ान अपनी जारी रख,
हवा का काम ही है, ऊँचा तुझको ले जाना।"
असामे की जिंदगी का एक नया सफर शुरू हो चुका था। अकादमी की ट्रेनिंग बेहद सख्त थी—अनुशासन, आत्म-नियंत्रण और खुद पर काबू पाना... ये सब सीखना था। उसकी सोच, उसका रवैया, और उसका जुनून अब एक सही दिशा में ढल रहा था। उसे पूरे दो साल यहाँ बिताने थे और इस दौरान उसे अपनी कमियों को जानने और सुधारने का अवसर मिला। उसका गुस्सा अब काबू में था, उसकी जुनूनी फितरत को अब एक मकसद मिल गया था।
वह अक्सर घर फोन करता था, मम्मी और डैड से बात होती थी, लेकिन फातिमा कभी भी फोन पर नहीं आई। उसे देखे हुए काफी समय हो चुका था, मगर असामे भी अब उससे सिर्फ अपनी यूनिफॉर्म में ही मिलना चाहता था। उसकी पूरी तवज्जो अपनी ट्रेनिंग पर थी, और वह अपने इरादों में अटल था।
दो साल बाद...
लगभग दो साल का अरसा गुज़र चुका था। फातिमा का सेकंड ईयर का रिजल्ट आ चुका था और उसके मार्क्स बहुत अच्छे थे। वह अपने आगे के करियर की योजना बना रही थी। उसका इरादा था कि वह आर्मी मेडिकल कॉलेज, रावलपिंडी में दाखिला ले और अपनी माँ की तरह एक डॉक्टर बने। वह इन दिनों उसी के टेस्ट की तैयारियों में जुटी थी।
"फातिमा बेटी, क्या सोच रही हो?"
नौशाबा ने कमरे का दरवाज़ा खोलकर सोचों में गुम बैठी फातिमा को पुकारा।
"अरे, आंटी आप!! आप कब आईं? प्लीज़ अंदर आइए..." वह उनकी आवाज़ सुनकर चौंककर खड़ी हो गई।
"फातिमा, तुम्हें महसिन स्टडी रूम में बुला रहे हैं..." उन्होंने उसे पैग़ाम दिया।
"जी आंटी, मैं जाती हूँ..." वह सिर हिलाते हुए दुपट्टा ठीक कर स्टडी रूम की ओर बढ़ गई।
"अंकल, आपने बुलाया?"
वह दरवाज़ा खटखटाकर अंदर झाँकते हुए बोली।
महसिन नकवी साहब ने चश्मा उतारकर हाथ में थामी किताब मेज़ पर रखी और उसे अंदर आने का इशारा किया।
वह उन्हें सलाम करती हुई सामने एक सोफ़े पर बैठ गई।
"फातिमा बेटी! मुझे तुमसे एक अहम बात करनी है और मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरी बेटी मेरी बात को ध्यान से सुनेगी और उस पर अमल भी करेगी..." उन्होंने उसे गौर से देखते हुए कहा।
"जी अंकल, कहिए..." वह अदब से बोली।
"बेटा, अहसन मेरा छोटा भाई था, जिगर का टुकड़ा था। आज उसकी मौत को दो साल हो चुके हैं, और उसकी वसीयत के मुताबिक जब असामे अपनी ट्रेनिंग पूरी कर लेगा, तो तुम्हें उसकी पत्नी बना दिया जाएगा..."
"लेकिन अंकल!!" वह तड़पकर उनकी बात काटते हुए बोली।
"बेटी, इन दो सालों में असामे बहुत बदल चुका है। जब भी मैं उससे मिलने गया, मुझे उसमें एक नया जज़्बा और जुनून दिखा। वह एक सच्चा देशभक्त बन चुका है—बिल्कुल तुम्हारे बाबा की तरह..."
"और अब तीन महीने में उसकी ट्रेनिंग खत्म हो जाएगी। इसीलिए, मैं चाहता हूँ कि तुम शादी के लिए अपना मन बनाना शुरू कर दो..." उन्होंने नरमी से समझाया।
"अंकल! मैं आगे पढ़ाई करना चाहती हूँ, प्लीज़ अभी यह सब मत करें..." उसने विनती की।
"देखो बेटा, यह सब तो असामे के ट्रेनिंग पर जाने से पहले ही तय हो चुका था। वैसे भी, तुम शादी के बाद भी पढ़ सकती हो। सिर्फ बी.ए ही तो करना है, कहीं से भी कर लो, प्राइवेट पढ़ लो, जो तुम्हें आसान लगे..." उन्होंने शांति से कहा।
फातिमा सिर हिलाते हुए उठकर अपने कमरे में वापस चली गई।
उसे बहुत अफसोस हो रहा था। असली माता-पिता की कमी कोई पूरा नहीं कर सकता। मान लिया कि महसिन अंकल और नौशाबा आंटी ने उसे बहुत प्यार से रखा था, लेकिन उन्हें यह तक नहीं पता था कि वह आर्ट्स नहीं, बल्कि साइंस पढ़ रही है।
वह बी.ए नहीं करना चाहती थी, बल्कि M.B.B.S करना चाहती थी, और सबसे बढ़कर, आर्मी में डॉक्टर बनना उसके बाबा की ख्वाहिश थी। उन्होंने कभी भी उससे असामे या इस शादी के बारे में कोई बात नहीं की थी, तो वह कैसे मान ले कि यह उसके बाबा की वसीयत थी?
उसके दिल में शक पैदा हो गया था। उसे लग रहा था कि महसिन अंकल और नौशाबा आंटी सिर्फ अपने बेटे के बारे में सोच रहे हैं।
तीन महीने!! बस तीन महीने उसके पास थे। इसके बाद असामे वापस आ जाने वाला था। उसे अब खुद के लिए रास्ता निकालना था, और यह ख्याल उसके दिमाग में गहराई से बैठ चुका था।
इन दो सालों में वह एक मज़बूत इरादों वाली लड़की बन चुकी थी। मेजर अहसन का बैंक अकाउंट उसके नाम ट्रांसफर हो चुका था, जिससे वह अपने एजुकेशन के खर्च आसानी से उठा सकती थी।
आर्मी मेडिकल कॉलेज, रावलपिंडी में दाखिले शुरू हो चुके थे। उसने बहुत सोच-समझकर कैप्टन अस्फंद से मदद लेने का फैसला किया।
"गुड़िया, यह तुम क्या कह रही हो?"
अस्फंद ने उसे समझाते हुए कहा।
"मेरी नज़र में इस तरह घर छोड़ देना किसी भी समस्या का हल नहीं है..."
"तो आप ही बताइए, मैं क्या करूँ? अंकल और आंटी सिर्फ अपने बेटे के बारे में सोच रहे हैं! अगर मेरे माता-पिता नहीं हैं, तो क्या मुझे कोई हक नहीं है कि मैं अपनी जायज़ ख्वाहिशें पूरी कर सकूँ? अपनी पढ़ाई पूरी करूँ? बताइए!! और आप!!! आपने तो मुझसे वादा किया था कि आप मेरा साथ देंगे..." फातिमा ने उसे उसका वादा याद दिलाया।
"मैं अपने वादे पर कायम हूँ, लेकिन इस तरह घर छोड़ने के सख्त खिलाफ हूँ। मुझे एक बार महसिन अंकल से बात करने दो, मुझे उम्मीद है कि वह मेरी बात सुनेंगे..." अस्फंद ने शांत लहजे में कहा।
"ठीक है! अंकल आज घर पर हैं, आप फोन कर लीजिए..."
फातिमा ने उसे महसिन नकवी साहब का नंबर लिखवाया और फिर खुदा हाफिज कहकर फोन रख दिया।
अस्फंद ने फोन पर बात करने के बजाय खुद जाकर बात करना बेहतर समझा।
वैसे भी, वह एक महत्वपूर्ण कोर्स के लिए चार दिन में अमेरिका जाने वाला था। उसके पास समय कम था, इसलिए उसने कमिश्नर महसिन साहब से समय लेकर उनके ऑफिस में मुलाकात की।
"आओ जवान! कैसे आना हुआ? वैसे कितना अच्छा होता अगर तुम घर आते..." महसिन साहब ने गर्मजोशी से उसका स्वागत किया।
"बस अंकल, समय की कमी है। मुझे एक अहम कोर्स के लिए अमेरिका जाना पड़ रहा है कुछ समय के लिए, तो सोचा आपसे मिलता चलूं! आप बताइए, फातिमा कैसी है? अब तो वह, माशाअल्लाह, आगे दाखिला लेने के लिए तैयार हो चुकी होगी..." अस्फंद ने शांत लहजे में बात शुरू की।
"अस्फंद बेटे! इस साल तो मैं फातिमा का एडमिशन नहीं करवाऊंगा। इंशाअल्लाह, अगले साल उसकी पढ़ाई फिर से शुरू करवाऊंगा। और वैसे भी, बस तीन महीने बाद मैं फातिमा की जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊंगा..." उन्होंने दो-टूक शब्दों में कहा।
"मगर अंकल!!!" अस्फंद ने उन्हें समझाने की कोशिश की, मगर महसिन साहब कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं थे।
"फातिमा, देखो...!"
"जिंदगी में इंसान को सिर्फ जज़्बात से नहीं, बल्कि कुछ मजबूरियों और हालात का भी ख्याल रखना पड़ता है!" अस्फंद फोन पर फातिमा से कह रहा था।
"अम्मी की तबीयत ठीक नहीं रहती, और अगर तुम वहां जाओगी, तो ये लोग तुम्हें ढूंढ निकालेंगे..."
"तो क्या आप मेरी हिफ़ाज़त नहीं करेंगे?"
"आपके होते हुए कोई मुझे मजबूर कैसे कर सकता है?"
"या शायद बाबा के बाद आपको भी मेरी ज़िम्मेदारी उठाना बेकार लगने लगा है?"
फातिमा ने तंज़ कसते हुए पूछा।
"बदगुमानी की भी हद होती है, फातिमा!!"
अस्फंद ने उसकी बात काटी।
"मैं एक लंबे समय के लिए डीप्युटेशन पर बाहर जा रहा हूँ। क्या तुम्हें लगता है कि वहां रहकर भी मुझे तुम्हारी फिक्र नहीं होगी?"
"मैं तुम्हें अकेला कैसे छोड़ सकता हूँ?"
"कम से कम अभी तो मुझे इत्मीनान है कि तुम घर में हो, महफूज़ हो।"
"और एक बात बताऊं?"
"तुम्हें असामे इतना भी बुरा नहीं है!"
"मैंने उसे अकादमी में चेक किया है, उसकी प्रोग्रेस पर नजर रखी है।"
"ऐसे ही लोग इस दुनिया की खूबसूरती होते हैं—सच्चे दिलवाले, निडर और ईमानदार!"
"इस दुनिया को असामे जैसे सरफिरे लोगों की जरूरत है, जो अपनी जमीन से और अपनी पहचान से प्यार करते हैं..."
अस्फंद ने उसे समझाया।
"तो ठीक है ना!!"
"आप जाइए कोर्स पर!"
"मैं तो वैसे भी हॉस्टल में रहूंगी, बिल्कुल भी बाहर नहीं निकलूंगी।"
"सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ध्यान दूंगी और बाबा का सपना पूरा करूंगी।"
"इस बीच आप भी वापस आ जाएंगे!"
फातिमा अपनी जिद पर अड़ी रही।
"गुड़िया, यह सच है कि अहसन अंकल असामे से तुम्हारी शादी करवाने का सोच रहे थे..."
"मैंने उन्हें उस दिन अस्पताल में तुम्हारी सारी बातें बता दी थीं।"
"इसके बावजूद वे इस रिश्ते को लेकर सीरियस थे।"
"तुम एक बार इस बारे में ठंडे दिमाग से सोचकर तो देखो..."
"मैं चाहूं भी तो कुछ नहीं सोच सकती।"
"मैं नहीं चाहती कि जज़्बात में आकर कोई गलत फैसला ले लूं।"
"मुझे अभी वक्त चाहिए!!"
"इतना बड़ा फैसला अचानक नहीं किया जा सकता।"
"सच्ची बात यह है कि मुझे खुद नहीं पता कि असामे अच्छा लड़का है या नहीं।"
"मैंने कभी उसके बारे में सोचा ही नहीं।"
"लेकिन शायद आपकी 'ब्रेनवॉशिंग' का असर है कि मैं उसके बारे में सोचने का सोच सकती हूँ..."
फातिमा ने धीमे लहजे में कहा।
"कोई बात नहीं, कुछ वक्त और बीतने दो।"
"शायद तुम्हारे दिल में छिपे जज़्बात तुम्हें खुद समझ आ जाएं..."
अस्फंद ने उसे प्यार से समझाया।
"ठीक है, वादा करती हूँ कि मैं सोचूंगी!"
"लेकिन डॉक्टर बनने के बाद।"
**"अभी यह बताइए—आप मेरी मदद कर रहे हैं या मुझे खुद कोई रास्ता निकालना पड़ेगा?"
"ठीक है, मैं देखता हूँ!"
"लेकिन तुम कोई बेवकूफी मत करना!!"
उसने उसे चेतावनी दी।
फातिमा का नया सफर...
अस्फंद ने आखिरकार उसे रावलपिंडी लाने का फैसला कर लिया।
कुछ दिन वह वीमेन हॉस्टल में रही।
फातिमा ने टेस्ट शानदार नंबरों से पास कर लिया और एडमिशन फॉर्म भरते वक्त उसकी आँखों में खुशी और गम दोनों थे।
इतनी बड़ी सफलता!
लेकिन... कोई भी अपना नहीं था जो उसकी इस जीत को सेलिब्रेट करे।
उसने अपने नाम की ओर देखा:
"फातिमा सना नकवी"
और उदास सी मुस्कुरा दी...
असामे की वापसी...
"आसमान की ऊँचाइयों में उड़ना..."
"सबसे मुश्किल टास्क को पूरा करना..."
"इसी में उसकी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी थी!"
"फाइटर प्लेन्स से उसे इश्क़ था!"
वह सफलतापूर्वक अपनी ट्रेनिंग पूरी कर चुका था।
अब बस घर लौटने का इंतजार था।
वहाँ...
वह दुश्मन जान मौजूद थी
जिसे पाने की चाहत ने उसे एक बिगड़े इंसान से एक सुलझा हुआ पायलट बना दिया था।
अचानक का सामना...
फातिमा जल्दी से लैब में सैंपल सबमिट कर बाहर की तरफ दौड़ी।
उसे मलीहा की नाराजगी का अंदाजा था।
ऊपर से अली भाई भी गुस्से में थे।
इसलिए वह उन दोनों को छोड़कर खुद ही अंदर चली गई।
जैसे ही वह अस्पताल के मुख्य गेट की ओर बढ़ी,
उसकी नजर एक लंबे-चौड़े आदमी पर पड़ी।
वह व्यक्ति रिसेप्शन पर खड़ा बात कर रहा था...
फातिमा सख्त हिल गई।
ज़मीन और आसमान उसे घूमते हुए महसूस हुए।
उसने ज्यादा सोचा नहीं,
और तेजी से दरवाज़े की ओर भागने लगी।
वहीं दूसरी ओर...
वह जो रिसेप्शन पर अस्फंद की माँ के बारे में जानकारी ले रहा था,
आईसीयू की ओर मोड़ लेने ही वाला था,
कि अचानक...
उसकी नज़र सामने खड़ी एक लड़की पर पड़ी।
काले स्कार्फ में, मासूम और पाकीज़ा चेहरा।
चार साल बाद...
पहले,
वह एक 16 साल की मासूम लड़की थी...
आज,
एक जवान हसीन लड़की उसके सामने खड़ी थी।
"कहीं यह...!!!"
वह अभी सोच ही रहा था कि वह लड़की तेज़ी से भाग गई..