AQAAB PART 2

 

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कैप्टन उसामा हवा की ऊँचाईयों पर तेजी से उड़ान भर रहा था। उसके सभी साथी उसकी हिदायतों पर विभिन्न दिशा में उड़ रहे थे। उनका लक्ष्य दुश्मन की किसी भी प्रकार की गतिविधि पर नज़र रखना और ग्राउंड बेस आर्मी के जवानों को बैकअप देना था। लाइन ऑफ कंट्रोल पर फायरिंग और गोलाबारी जारी थी।
उसामा के रडार पर तीन दुश्मन विमानों की लोकेशन ट्रेस हो रही थी। कंट्रोल टावर को सूचना देने के बाद उसने अपने जंगी विमान को सीधा ऊपर की दिशा में उठाया। उसकी आँखें चमक रही थीं, और फिर उसने एयर मिसाइल से उन दुश्मन विमानों को टार्गेट करना शुरू किया। वे भी जवाबी कार्रवाई कर रहे थे, लेकिन उसामा ने आराम से एक विमान को गिरा दिया। बाकी दो में से एक के फ्यूल पर हिट हो चुका था, वह भी गिर चुका था, और तीसरा दुश्मन विमान कायरों की तरह मुकाबला छोड़कर सीमा पार वापस चला गया था।
कंट्रोल रूम से खुशी की आवाज़ें आ रही थीं।
"कैप्टन उसामा... रिपोर्ट टू बेस..."
"यस सर!!" उसने दिशा बदली और वापस लौट गया।


काफी लंबे सफर के बाद बस भिम्बर शहर पहुँच चुकी थी। इस शहर की खूबसूरती अलग ही थी, ट्रैफिक बेहिसाब था।
"अटेंशन डॉक्टरों, हम अपने कैंप पर पहुँचने वाले हैं, आप सब एक्टिव हो जाएं..." मेजर डॉक्टर शबीर ने सभी को संबोधित किया।
"सर! ये भिम्बर शहर है?" खिड़की से बाहर झांकते हुए डॉक्टर वर्दा ने उत्सुकता से सवाल किया।
"जी, यह आज़ाद कश्मीर का एक खूबसूरत शहर है। बर्नाला यहाँ का बहुत बड़ा व्यवसायिक केंद्र और विकसित तहसील के रूप में जाना जाता है, जहां से हम इस समय गुजर रहे हैं। यहाँ लड़कों और लड़कियों के डिग्री कॉलेज और बहुत सारे प्राइवेट शैक्षिक संस्थान बेहतर शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए हमेशा सहायक रहे हैं। इस शहर में एक बहुत प्रसिद्ध बुज़ुर्ग बाबा-ए-शाहिद का मजार भी है, जहाँ लोग अपनी मुराद पूरी होने पर बकरा निःस्वार्थ चढ़ाते हैं।" मेजर डॉक्टर शबीर ने टीम की जानकारी में इज़ाफा किया।
सना, मलिहा और बाकी सभी बड़े उत्सुकता से बाहर झांक रहे थे।
"सर, हम तो शायद शहर से बाहर जा रहे हैं..." बस को मोड़ते हुए नवेद ने मेजर डॉक्टर शबीर से पूछा।
"जी, हम शहर के पास एक नदी के पास कैंप लगाएंगे, जनता से दूर। भिम्बर नदी के पास, यह एक कश्मीर के पहाड़ों से निकलने वाली नदी है जो ज्यादातर सूखी रहती है।" उन्होंने विस्तार से बताया।
बस अपने विशेष स्थान पर पहुँच चुकी थी। अब 20 लोगों की टीम जिसमें सीनियर डॉक्टर और फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स शामिल थे, अपने-अपने बैग कंधों पर डाले और दृढ़ संकल्पित चेहरों के साथ नीचे उतरने लगे।


सुबह का सूरज निकलते ही, उसामा बिना कुछ कहे, अली के घर से रवाना हो चुका था। उसके चारों दोस्त गहरी नींद में सो रहे थे। उसने चुपचाप अपनी बाइक निकाली और अब उसका रुख जमखाना के ऑफिस की तरफ था। ऑफिस पहुँचकर, उसने अपने सभी अधिकारों का उपयोग किया और सिक्योरिटी रूम में बैठकर कैमरे की फुटेज देखी।
एक गाड़ी आकर रुकी। उसमें से एक अत्यंत प्रभावशाली व्यक्ति बाहर निकला और अंदर गया। लगभग आधे घंटे बाद उसामा की स्पोर्ट्स बाइक भी वहाँ आकर रुकी!! फिर वह लड़की, उसका उतरना और जोर से उसामा के मुँह पर थप्पड़ मारना, लात मारना, यह वीडियो देखते हुए उसामा की मुट्ठियाँ भींच गईं। उसकी नसें तनी हुई थीं। उसने अपने आप पर काबू पाते हुए उस गाड़ी का मॉडल नंबर नोट किया और बाहर निकल गया।
अली को गाड़ी का नंबर आदि टेक्स्ट कर के वह घर की ओर रवाना हो गया।
उसामा बचपन से ही अत्यधिक ध्यान का केंद्र रहा था, उसकी पर्सनैलिटी, उसका अंदाज़ जहां भी जाता, वह लोकप्रिय हो जाता। आज तक उसके माता-पिता ने उसे उंगली भी नहीं लगाई थी, डाँट तो दूर की बात। और अब, पार्किंग में इतनी भीड़-भाड़ के बीच उसके दोस्तों के सामने उस छोटे से लड़की ने उसके मुँह पर थप्पड़ मारा और उसे ज़लील कर दिया था। अब वह कॉलेज या कोई और काम नहीं कर सकता था, जब तक अपनी बेइज़्ज़ती का बदला नहीं ले लेता।
वह जलते हुए दिमाग के साथ घर में दाखिल हुआ, एक ठोकर मारकर लिविंग रूम का स्लाइडिंग दरवाजा खोला।
"उसामा!" नुशाबा ने आवाज़ दी।
"प्लीज़ मम्मी, नो लेक्चर!!" उसने हाथ उठाकर बिना रुके ऊपर की सीढ़ियाँ चढ़ गया।


फज्र की नमाज़ पढ़कर अपनी प्यारी बेटी फातिमा को ढेर सारा प्यार दे कर, ढेर सारी तसल्ली देकर मेजर अहसन अपने अगले सफर पर रवाना हो चुके थे।
अपने बाबा के जाने के बाद, वह बहुत देर तक उस खूबसूरत रंग-बिरंगे फूलों से सजे लॉन में टहलती रही, जहाँ एक कोने में छोटा सा चिड़ियाघर बना हुआ था। तरह-तरह के रंग-बिरंगे पक्षी और जानवर वहाँ मौजूद थे। वह हैरानी से उन्हें देखती, फिर आगे बढ़ी तो एक बड़ा सा स्विमिंग पूल और उसके सामने एक्सरसाइज के डंबल और वेट रखे हुए थे।
काफी देर तक वह इस बड़े से घर की खूबसूरती को महसूस करती रही, फिर अंदर आ गई। पूरा घर सन्नाटा था, घर के मालिकों से लेकर कर्मचारियों तक, सभी सो रहे थे।



वह चुपचाप लिविंग रूम में अखबार उठाकर एक कोने में पड़े सोफे पर बैठ गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।
नौ बजे के करीब, निखर कर तैयार, नफीस सी साड़ी बांधे हुए, नुशाबा बेडरूम से नीचे उतरी। घर में कर्मचारियों की हलचल शुरू हो गई थी।
कमिश्नर मोहन नकवी मीटिंग के लिए तैयार हो रहे थे, जब नुशाबा ने लिविंग रूम में फातिमा को देखा, वह सिर पर नमाज़ के अंदाज में दुपट्टा लपेटे हुए थी।
एक पल के लिए उनके चेहरे पर नापसंदगी आई, फिर वह सिर झटकते हुए फातिमा की ओर बढ़ीं।
"सलाम अलेकुम ताई अम्मी!" फातिमा ने उन्हें देख कर सलाम किया।
"वालेकुम सलाम! बेटी, कब से यहाँ बैठी हो?"
"वह ताई अम्मी, फज्र की नमाज़ पढ़कर बाबू के जाने के बाद नींद नहीं आई और मैंने कमरा भी भूल गई थी, तो बस ऐसे ही यहाँ।" वह शर्मिंदगी से बोली।
"अच्छा, कोई बात नहीं, यह घर तुम्हारा भी है, लेकिन एक बात कहूँ, फातिमा, अगर तुम बुरा न मानो?"
"ताई अम्मी, आप एक नहीं सौ बातें कहेंगी!" वह प्यार से उनके हाथ थाम कर बोली।
"फातिमा, सबसे पहले तुम मुझे ताई अम्मी कहना बंद करो, तुम्हारी मां की जगह हूं मैं, आज से तुम मुझे मम्मी कहोगी..." उन्होंने प्यार से कहा।
"ठीक है मम्मी!! और कोई हुक्म?" वह शरारत से बोली।
"चलो, अब नाश्ता करते हैं, फिर बैठकर बहुत सारी बातें करेंगे और शाम में शॉपिंग सेंटर चलेंगे..." वह उसे साथ लेती हुई डाइनिंग रूम में घुसी।
कुछ देर में ही, फुल यूनिफॉर्म में मलबूस कमिश्नर मोहन नकवी भी आगे आए। फातिमा ने उठकर उन्हें सलाम किया।
"वालेकुम सलाम बेटी!!" उन्होंने खुशदिली से जवाब दिया और कुर्सी खींच कर बैठ गए।
"बीगम, आपका लाड़ला नजर नहीं आ रहा? कोई खबर भी साहबजादे की आपको?" वह चाय का सिप लेते हुए बोले।
"रात कंसर्ट अटेंड किया है और फिर अली के घर रुकने का प्रोग्राम था, बस अब आता ही होगा..." नुशाबा आराम से बोलीं।
नाश्ते से फारिग होकर, मोहन नकवी साहब चले गए और नुशाबा फातिमा को लेकर लिविंग रूम में आकर बैठ गई। वे दोनों बाद में बातें कर रही थीं, कर्मचारियों को खाने पकाने की हिदायत दे दी गई थी। तभी किसी ने जोरदार ठोकर से दरवाजा खोला। फातिमा ने चौंककर देखा, तो वही रात वाला लड़का था, जो इधर-उधर देखे बिना सीधा सीढ़ियों से ऊपर जा रहा था। शायद उससे बात कर रही थी, वह फीकी चेहरे के साथ उसे ऊपर जाते देख रही थी।
"यह यह कौन हैं?" फातिमा ने नुशाबा से पूछा।
"अरे तुमने नहीं पहचाना? मगर तुम कैसे पहचानोगी, तुम तो आज तक कभी मिली ही नहीं, यह मेरा बेटा, तुम्हारा कजिन, असामा नकवी है..."
"असामा भाई..." वह सरसराते हुए बोली।
"मेरा बेटा बड़ा ही हंसमुख है, अभी थोड़ा थक गया है, वरना तुम्हें भी उससे मिलवाती। तुम्हें भी उससे मिलकर अच्छा लगता। खैर, कोई बात नहीं, जब सोकर उठेगा, तब शाम की चाय या रात के खाने पर परिचय करवा देंगे..." वह आराम से कह रही थी और फातिमा के चेहरे पर एक रंग आ रहा था, एक जा रहा था।
"मैम, बाहर ड्राइवर आपका इंतजार कर रहा है..." एक महिला कर्मचारी ने आकर सूचना दी।
"उसे कहो, मैं आ रही हूँ।" नुशाबा उठ खड़ी हुई।
"फातिमा, मुझे एक प्रदर्शनी की उद्घाटन समारोह में जाना है, तीन-चार घंटे में वापस आ जाऊँगी, फिर हम मॉल चलेंगे, तब तक तुम आराम करो और कुछ भी खाने-पीने को दिल करे तो शेफ से कह देना, तकलीफ मत करना..." वह उसे प्यार से कहती हुई बाहर चली गई।
यह घर, इस घर के लोग, सब फातिमा के लिए नए थे, और अब इस पार्किंग वाले बदतमीज़ लड़के को देखकर वह और भी घबराई हुई थी।
"जो भी है, मुझे इस बदमाश लड़के से बचकर रहना होगा, बेहतर है मैं इसका सामना ही नहीं करूँ..." उसने निर्णय लिया और ऊपर अपने कमरे की ओर बढ़ गई।


असामा ने अपने कमरे में आकर जॉगर्स उतार कर फेंके और बिस्तर पर गिर गया। दो हफ्ते बाद मिड-टर्म एग्जाम शुरू होने वाले थे, वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान देना चाहता था, लेकिन यह हादसा हो गया। उसने सिर पकड़ते हुए उठकर बैठ लिया।
इस बदतमीज़ लड़की का चेहरा बार-बार उसकी आँखों में लहरा रहा था। उसने अपने कॉलेज बैग से बियर का कैन निकाला और गटागट पी लिया। आज नशा भी नहीं हो रहा था, तनाव बढ़ता जा रहा था। उसे जागते हुए चौबीस घंटे से अधिक हो गए थे। थक हार कर वह उठ कर मम्मी के कमरे की ओर बढ़ा ताकि उनके मेडिकल बॉक्स से ट्रंकुलाइज़र ले सके।
मम्मी की ड्रेसिंग टेबल से उसने नींद की गोलियाँ निकालीं और बिना सोचे-समझे चार गोलियाँ गटक लीं, फिर वापस अपने कमरे की ओर बढ़ा।
उसका दिमाग माफ हो रहा था, कदम डगमगा रहे थे, वह दरवाजा खोलकर अपने कमरे में दाखिल हुआ तो चौंक गया।
फातिमा ऊपर की मंजिल पर पहुँचकर कंफ्यूज थी, सारे कमरे एक जैसे ही लग रहे थे। उसने एक कमरे का दरवाजा खोला और अंदर दाखिल हुई, अभी वह कमरे के बीच में ही पहुँची थी कि उसकी नजर ज़मीन पर पड़ी, पुरुष की शर्ट और जॉगर्स पर।
"ओ नो, यह तो गलत कमरा है..." वह पलटी।
दरवाजे में असामा खड़ा उसे आँखें मिचमिचाते हुए देख रहा था।
वह उसके दरवाजे से हटने का इंतजार कर रही थी कि वह लाल आँखों से उसे घूरता हुआ कदम उठाता उसकी ओर बढ़ रहा था।


हالات बत्तर होते जा रहे थे, दुश्मन लगातार गोलाबारी और शेलिंग कर रहा था। रातों को ब्लैकआउट किया जा रहा था ताकि अगर दुश्मन के विमान घुस आएं तो उन्हें रिहायशी इलाकों का पता न चले। कई मकान तबाह हो चुके थे, बच्चे घायल हुए थे, पाक फौज के जवान मुकाबले में डटे हुए थे, और पाक फ़िज़ाईया दुश्मन के हर हवाई कार्रवाई को नाकाम बना रही थी।
भिम्बर में एक ही अस्पताल था जो घायल जनता को संभाल रहा था, और नदी किनारे पहाड़ी श्रृंखला के पीछे स्थित आर्मी मेडिकल कॉलेज का कैंप अपने सैनिकों की चिकित्सा, इलाज, रक्त की आपूर्ति सभी काम मुस्कान के साथ कर रहा था।
"सना!!! फ्री हो..." मलिहा ने अंदर आकर पूछा।
"बस दस मिनट में ब्रेक ले रही हूं, क्यों? क्या हुआ?" सना इंजेक्शन की ट्रे सेट करते हुए बोली।
"सना, मेरा दिल घबराया जा रहा है, आज इतने खून देखे हैं अपने फौजी भाइयों का, अब बस नहीं चल रहा, कोई मुझे भी गन दे कर बॉर्डर पर छोड़ आए..." मलिहा उदासी से बोली।
"मलिहा, घबराने से क्या होगा? हम अपना काम कर रहे हैं, ना..." सना ने समझाने की कोशिश की।
"अच्छा, मैं नदी तक जा रही हूं, तुम काम खत्म कर के यहाँ आ जाना..." वह उसकी बात काटते हुए शॉल कंधों पर डालते हुए बाहर निकल गई।
वह लंदन से बार एट लॉ डिग्री लेकर पाकिस्तान अपनी मातृभूमि पर कुछ दिन पहले ही वापस आया था। एक प्रभावशाली घराने से होने के बावजूद, उसके अंदाज में सादगी थी। और जब से हालात खराब हुए थे, वह लगातार काम कर रहा था, फौजी बैरकों तक दवाइयाँ और अन्य सामान पहुँचाने में लगा था। अभी भी वह आर्मी मेडिकल कैंप के इंचार्ज से मिलकर निकला था कि उसे एक लड़की नदी के किनारे पत्थरों पर बैठी दिखी।
वह गाड़ी रोक कर नीचे उतरा।
ब्लैक जींस, सफेद शर्ट, सिर पर स्कार्फ और कंधों पर शॉल डाले वह लाल और सफेद सी लड़की किसी गहरी सोच में गुम थी।
"एक्सक्यूज़मी मिस!!"
"जी, आप कौन?" मलिहा अपने सामने खड़े अजनबी को देखकर घबराई।
"आप इस वक्त यहाँ क्या कर रही हैं?" उसने सवाल किया।
मलिहा ने सामने खड़े आदमी को घूरा। उम्र लगभग अठाईस साल, लंबा कद, हल्की सी दाढ़ी, बेशक वह एक आकर्षक आदमी था।
"मैं जो भी करूँ, आपको उससे क्या?" उसने अपने अजीब और सख्त अंदाज में कहा।

"महात्मा यह वार ज़ोन है, आपके अब्बा का घर नहीं है, इसलिए अगर अल्लाह ने अक्ल दी है तो उसका इस्तेमाल करें, उठिए यहाँ से, मैं आपको आपके घर तक छोड़ देता हूँ।" उसने बिना किसी डर के कहा।
"मैं खुद चली जाऊँगी, आप तकलीफ न करें।" वह गुस्से में खड़ी हो गई।
उसने दिलचस्पी से उसका तपा हुआ चेहरा देखा।
"मुझे हम्ज़ा अली कहते हैं! आपकी पहचान?" वह पूछ रहा था।



स्टैबलिशमेंट और एजेंसियों की अहम बैठक हो चुकी थी, प्रधानमंत्री पाकिस्तान ने साफ शब्दों में अपना रुख स्पष्ट कर दिया था...
"अब आप सभी हर तरह के घटनाओं के लिए तैयार रहें। अब हमारी बारी है, अब भारत को हमारे तरफ से जवाब मिलना चाहिए। पाकिस्तान क्षेत्र में युद्ध नहीं चाहता, हम आखिरी सीमा तक शांति की कोशिशें जारी रखेंगे, लेकिन अगर हम पर हमला किया गया, तो हम जवाब देने में देर नहीं करेंगे।"
एयर येस पर ब्रिफिंग जारी थी। असामा अपने साथियों के साथ इस मीटिंग का हिस्सा था, उन्हें स्ट्राइक बैक का आदेश मिल चुका था...
"सुनो ध्यान से!! आप कब्जे वाले कश्मीर में दुश्मन के छह टारगेट को एंगेज करेंगे। भिम्बर गली, केजी-2 और नारियां के इलाके में अपने टारगेट को लॉक करें और थोड़ा सा दूर से स्ट्राइक करें। ध्यान रखें कोई भी मानव नुकसान या कोलैटरल डैमेज न हो। हमारा उद्देश्य अपनी सीमाओं में रहते हुए उनके महत्वपूर्ण टारगेट को लॉक करके स्ट्राइक करना है, ताकि उन्हें यह बता दें कि हम अगर चाहें तो क्या नहीं कर सकते। समझे?"
सबके चेहरे पर जोश था, असामा और उसके साथी पायलट इस अहम मिशन के लिए तैयार थे और एयर बेस से सिग्नल मिलते ही मिशन पर रवाना हो गए।


फातिमा उसे अपने करीब आता देख कर सहम गई थी। वह फातिमा के बिल्कुल सामने आकर रुक गया...
"तुम इस हद तक मेरे हौसलों पर सवार हो कि अब कल्पना में भी नज़र आ रही हो..." असामा ने हाथ बढ़ाकर उसकी गर्दन को जकड़ लिया।
"काश तुम असल में मेरे सामने होती, तो तुम्हें बताता कि असामा नकवी से उलझना तुम्हें कितना महंगा पड़ने वाला है..." वह फातिमा की गर्दन पर दबाव बढ़ाते हुए कह रहा था।
फातिमा चुपचाप खड़ी थी, उसे पूरी तरह से समझ में आ चुका था कि असामा अपने होश-ओ-हवास में नहीं था, लेकिन उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी, और अब उसका सांस घुटने लगा था। तंग आकर फातिमा ने उसे जोर से धक्का दिया।
असामा ने चौंककर उसे देखा...
उससे पहले कि वह भाग जाती, असामा ने तेजी से उसे काबू किया। उसका दुपट्टा इस अफरातफरी में गिर चुका था, उसके लंबे बाल बिखर गए थे। असामा ने उसे जोर से थप्पड़ मारा और उसे धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया।
"तुम क्या समझी थी? मुझे धक्का देकर और मुझे ज़लील करके बच जाओगी?" उसने फातिमा को जबड़े से पकड़ रखा था।
"मैं तुम्हारा ऐसा हाल करूँगा कि तुम्हें जिंदगी भर याद रहेगा कि असामा किस चीज़ का नाम है..." वह दोनों घुटनों के बल बैठकर उस पर झुका।
उसके मुँह से उठती शराब की गंध, फातिमा के चेहरे से टकराई। वह बिन पानी की मछली की तरह उसकी पकड़ में तड़प रही थी, मचल रही थी, और फिर असामा के हौसले जवाब दे गए, वह बेहोश होकर उसके ऊपर गिर पड़ा।
फातिमा ने मुश्किल से असामा का भारी शरीर अपने ऊपर से हटाया और तीज़ी से अपना दुपट्टा उठाकर कमरे से बाहर भाग गई। अब वह जल्दी-जल्दी ऊपर की मंजिल पर कमरे चेक कर रही थी। अपना कमरा मिलते ही उसने खुद को अंदर बंद कर लिया और दरवाजे पर ही टेक लगाकर बैठ गई। उसकी गर्दन से हल्का हल्का खून रिस रहा था, जलन सी हो रही थी। उसे अपने शरीर पर असामा का स्पर्श महसूस हो रहा था, और उसे अपने ऊपर घृणा महसूस हो रही थी।
काफी देर तक उसकी मानसिक और भावनात्मक स्थिति की गंभीरता के बाद, उसने हिम्मत जुटाकर उठते हुए बिस्तर पर रखे फोन की तरफ बढ़ी। उसका इरादा अपने पापा के इमरजेंसी नंबर पर कॉल करने का था, लेकिन जैसे ही उसने फोन की तरफ हाथ बढ़ाया, वह थकान से बेहोश होकर बिस्तर पर गिर पड़ी।


नुशाबा दोपहर के समय वापस आईं, तो कर्मचारियों ने उनके सवाल पर बताया कि फातिमा बेबी तो कमरे से बाहर नहीं निकली और न ही कुछ खाया पिया है...
नुशाबा सिर हिलाते हुए ऊपर की मंजिल की ओर बढ़ी। पहले असामा को चेक किया, वह कालीन पर सो रहा था...
"एक तो ये लड़का भी..." उन्होंने उसे सीधा किया, तो असामा से शराब की गंध उठते महसूस हुई।
उन्होंने उसके मुँह को सूँघा और सदमे से पीछे हट गईं, वे आँखों में आंसू लिए अफसोस से उसे देख रही थीं। तभी उनकी नज़र असामा की शर्ट के कॉलर में उलझी एक पतली सोने की चेन पर पड़ी...
"यह यह चेन तो फातिमा की है!" वह उलझी।
तभी उनकी नज़र असामा की बंद मुट्ठी पर पड़ी।
असामा की मुट्ठी में फातिमा की शर्ट का एक टुकड़ा फंसा हुआ था। कांपते हुए हाथों से उन्होंने उस कपड़े को अपने हाथ में लिया। वह इस कपड़े को पहचान चुकी थीं...
"यह यह तो फातिमा का... ओ मेरे खुदा!! असामा, यह क्या कर दिया तुमने?" वह तेजी से उठ कर फातिमा के कमरे की ओर बढ़ीं।
"फातिमा बेटी!!" उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी।
"फातिमा दरवाजा खोलो!!"

यहां उस ने कोई जवाब न पा कर तेजी से स्टोर रूम की तरफ बढ़ी और कमरे की चाबी लेकर वापस आई। उसका दिल किसी अनहोनी का सोच कर तेजी से धड़क रहा था। उसने दरवाजा खोला और अंदर दाखिल हुई। सामने ही बिस्तर पर फातिमा होश और हवास से बेगाना बेहोश पड़ी थी। वह उसके पास आई...

"फातिमा..." उसे हाथ लगाया तो वह बुखार में तड़प रही थी, उसके चेहरे पर अंगुलियों के निशान साफ थे और गर्दन से खून रिस रहा था। उसकी कमीज का गला हल्का सा फटा हुआ था।

"फातिमा!! बेटी, हिम्मत करो, उठो बच्चे..." वह उसके हाथ-पैर सहला रही थी।

सामने ही फातिमा का सूटकेस रखा हुआ था, जिसे शायद अभी तक अनपैक नहीं किया गया था। उसने उसमें से फातिमा के लिए एक कपड़ा निकाला और बड़ी हिम्मत से कांपते हाथों से उसका कपड़ा बदलवाकर सबसे पहले डॉक्टर को फोन किया, फिर मोहन नकवी साहब को फोन करके तुरंत घर आने की हिदायत दी।

समय के साथ तनाव बढ़ता जा रहा था, सियालकोट भी अब सुरक्षित नहीं था। वे सभी पूरा दिन लोकल अस्पताल और कैम्प में बिता रहे थे।

"सना, एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी?" मिलीहा ने पेशंट की पट्टी करते हुए सना को संबोधित किया।

"हां, मिलीहा, बोलो, क्या काम है..." वह व्यस्त स्वर में बोली।

"तुम पैदा ही इतनी सख्त-मिजाज हो या ये आर्मी मेडिकल कॉलेज का असर है..." मिलीहा उसकी लापरवाही पर ठीक-ठाक चिढ़ गई।

"मिलीहा, अब हम बिजी हैं, शाम को बात करते हैं..." वह आराम से अपने पेशंट को टाँके लगाते हुए बोली।

शाम होने में थोड़ी देर थी और वे दोनों फ्री हो चुकी थीं। इरादा था कि किसी पास की दुकान तक जाएं। सर से इजाज़त लेकर वे बाहर निकल आईं। नदी के पास ही थोड़ा सा फासला था मुजाहिद फोर्स सेंटर। वे बातें करती हुई पास से गुज़रीं तो सामने ही एक बड़ा सा पार्क था। वे दोनों उस पार्क को दिलचस्पी से देखती हुई अंदर दाखिल हो गईं। यह पार्क अपनी तरह का था, चारों ओर टायर ही टायर थे, जिन्हें बहुत खूबसूरती से डिज़ाइन किया गया था।

वे दोनों वहीं बैठ कर बातें करने लगीं।

"आप इस वक्त यहाँ क्या कर रही हैं?" एक मर्दाना आवाज़ गूंज उठी।

दोनों ने चौंक कर सिर उठाया तो मिलीहा ने देखा और तुरंत पहचान लिया, यह वही अजनबी था जो उस दिन नदी पर मिला था।

"आपसे क्या?" मिलीहा ने चिड़कर कहा।

"महोतर्मा, मुझे आपकी मानसिक स्थिति सही नहीं लगती। हालात ठीक नहीं हैं और आज ब्लैकआउट का ऑर्डर है, और आप यहाँ पार्क में मजे कर रही हैं..." हमजा गंभीरता से बोला।

"मिलीहा, क्या तुम इन्हें जानती हो?" सना ने उसकी बेबाकी देखकर मिलीहा के कान में पूछा।

"यह वही अजनबी है जो उस दिन नदी पर मुझे भाषण दे रहा था, शायद खुद को भगवान का फ़ौजी समझते हैं ये साहब..." मिलीहा ने सना के ताने को नजरअंदाज करते हुए ऊँची आवाज़ में जवाब दिया।

"आप शायद डॉक्टर हैं, मैंने आपको कैम्प में देखा था..." वह सना से मुखातिब हुआ।

"जी, हम यहाँ कैम्प से ही हैं..." सना धीमे स्वर में बोली।

"चलिए, सिस्टर, मैं आपको और आपकी दोस्त को कैम्प तक छोड़ दूँ, अंधेरा फैल रहा है, अकेले जाना ठीक नहीं है..."

सना सिर हिलाते हुए खड़ी हो गई, मिलीहा भी मुंह बनाते हुए साथ चलने लगी।

"आपने अपना परिचय नहीं दिया..." उसने पूछा।

"जी, मैं डॉक्टर सना और यह डॉक्टर मिलीहा हैं..."

"बहुत खुशी हुई आपसे मिलकर, मेरा नाम हमजा अली है, मैं बैरिस्टर हूँ..."

"ओह, तो आप वकील हैं! इसलिए आपकी ज़ुबान इतनी तेज़ चलती है..." अब मिलीहा ने उसे शर्मिंदा करने की कोशिश की।

"जनाब, अभी आपने सिर्फ देखा ही क्या है, बस इसी तरह मिलते रहिए, मेरी सारी खासियतें आपको याद हो जाएंगी..." वह पार्क के बाहर खड़ी जीप का दरवाज़ा खोलते हुए मिलीहा की तरफ झुकते हुए फुसफुसा कर बोला।

वे दोनों पिछली सीट पर बैठ गईं, मिलीहा फोन पर व्यस्त थी, हमजा उसे मिरर से देख रहा था।

"मिलीहा, क्या कर रही हो?" सना ने उसे कोहनी मारी।

"मैं फेसबुक चेक कर रही हूँ, देखो कितने लोगों ने आज के ब्लैकआउट की सारी डिटेल पोस्ट की है, और ये देखो, फौजियों की पिक्स भी हैं..." वह जोश में बोल रही थी।

"दखलंदाजी की माफ़ी चाहता हूँ, लेकिन ऐसा पोस्ट मत करें, ना ही पिक्स डालें। अपनी दोस्तों को भी मना करें, ऐसा करने से आप अनजाने में दुश्मन की मदद कर रही हैं, उन्हें बता रही हैं कि ब्लैकआउट कब और कहाँ है, हमारे जवान कहाँ से गुजर रहे हैं..." हमजा मिरर से उन्हें ध्यान से देखते हुए बोला।