AQAAB PART 1
"अक़ाबी रूह जब जागती है जवानों में
नज़र आती है उन्हें अपनी मंज़िल आसमानों में"
सफेद शर्ट, काला ट्राउज़र और पैरों में जॉगर्स पहने वह सुबह सवेरे नज़दीकी पार्क में जॉगिंग कर रहा था। उसकी रफ्तार बहुत तेज़ थी। अभी चौथा चक्कर ही पूरा हुआ था कि उसके संवेदनशील कानों में प्लेन की आवाज़ गूंजने लगी। वह तेजी से सीधा खड़ा होकर आकाश की विस्तृतता में शान से उड़ते पाक फ़िज़ाईया के विमान को श्रद्धा से देख रहा था। कुछ देर बाद वह और जोश और जुनून से दौड़ रहा था।
रुखसाना जल्दी-जल्दी मेज़ पर नाश्ते के बर्तन लगा रही थीं, साथ ही किचन में उबलती चाय पर भी उनकी पूरी नज़र थी।
"गुड मॉर्निंग मम्मी!!" उसामा निखर कर तैयार होकर अंदर आया।
"गुड मॉर्निंग बेटा जी!!" उन्होंने बड़े ध्यान से उसकी तैयारियों को देखा।
"कॉलेज जा रहे हो? इतना सज-धज के..." वह उसकी ब्रांडेड जींस, खुले गले की शर्ट और हाथों में बांधे बैंड्स को देख रही थीं।
"यस मम्मी!! आज क्लास के बाद सब लड़के शाहज़ेब के घर इकट्ठा होंगे, वहां से सब मिलकर नाइट कंसर्ट में जाएंगे।" वह लापरवाही से जूस का गिलास उठाते हुए बोला।
"उसामा, अपने डैड से परमिशन ली?"
"डैड को आप बता देना, मैं चलता हूं, अभी देर हो रही है..." वह गिलास मेज़ पर रख कर तेजी से बाहर निकला। पोर्च में उसकी स्पोर्ट्स बाइक खड़ी थी। आंखों पर सनग्लासेस लगा कर बैग कंधे पर लटकाए बाइक को रेस दी। साइलेंसर पहले ही निकाल चुका था, घम्म घम्म तेज़ आवाज़ गूंज रही थी और वह पूरी स्पीड में बाइक दौड़ाते हुए कॉलेज की ओर निकल पड़ा।
यह बॉयज़ कॉलेज इस शहर कराची के सबसे बेहतरीन शैक्षिक संस्थानों में से एक था, जहां दाखिला लेना मेरिट पर पूरा उतरना बहुत मुश्किल था। कॉलेज के अंदर मुख्य कार्यालय के सामने घास के मैदान पर चार लड़के पैर फैलाए आराम से बैठे हुए थे। तभी एक ने मुख्य गेट से अंदर आते हुए उसामा को देख कर हाथ हिलाया।
वह आराम से अपनी स्पोर्ट्स बाइक स्टैंड पर खड़ी कर अपने दोस्तों की ओर बढ़ा।
"हाय गाइज़!!"
"उसामा यार, आज भी हेलमेट नहीं पहना?" अहमद ने टोका।
"क्यों, आज ऐसी क्या खास बात है यार!!" उसामा बैग घास पर रखते हुए बोला।
"यार, शाम में जमखाम फंक्शन है, और अगर तुझे पुलिस ने बिना हेलमेट के रोक लिया तो?" अहमद ने आशंका व्यक्त की।
"वॉट अ जोक!!! किस सालें में इतनी हिम्मत है कि मुझे रोके, वर्दी उतार दूंगा एक मिनट में..." वह बड़े घमंड से बोला।
"अच्छा चल यार, कूल डाउन!!! क्लास में चलते हैं।" वह पांचों का ग्रुप कपड़े झाड़ते हुए उठ कर क्लास की ओर बढ़ गया।
अली, अहमद, अरहम, ख़ालिद और उसामा ये पांचों बचपन के दोस्त थे। स्कूल में भी साथ थे और अब कॉलेज में भी साथ थे। अमीर घराने से ताल्लुक रखने के बावजूद पढ़ाई में बहुत तेज थे, खासकर उसामा का आईक्यू लेवल तो गजब का था।
वह मैट्रिक का इम्तिहान देकर फ्री थी, रिज़ल्ट का इंतजार कर रही थी, साथ ही साथ बैटमैन अंकल से खाना बनाना भी सीख रही थी। अभी वह किचन में ब्राउनीज़ बेक कर रही थी, जब मेजर अहसन अंदर आए। किचन से खटर पट्टर की आवाज़ें सुनकर वही दिशा में बढ़े। सामने ही उनकी सोलह साल की बेटी फातिमा अपने लंबे बालों की पोनी बनाए एप्रन पहने काम कर रही थी।
"आज किस डिश की शमात आई है!" वह करीब जाकर बोले।
"हाय अल्लाह! बाबा आप भी डरवा दिया मुझे!!" वह किचन से कूद पड़ी।
"एक मेजर की बेटी होकर डरती हो! लड़की तुमारा क्या बनेगा..." उन्होंने प्यार से उसके सिर पर हाथ रखा।
"अच्छा मेरे प्यारे मेजर बाबा!! आप फ्रेश हो जाएं, मैं गरम गरम चाय और ब्राउनीज़ लेकर आती हूं।"
"अजमल कहां है? तुम अकेली किचन में कैसे!" उन्होंने बैटमैन के बारे में पूछा।
"अजमल अंकल को मैंने सामने शॉप तक भेजा है, बस आते ही होंगे..." फातिमा ब्राउनीज़ की ट्रे बाहर निकालते हुए बोली।
"ओके स्वीट हार्ट, तुम चाय तैयार करो, मैं आता हूं..." वह अंदर फ्रेश होने चले गए।
फातिमा ने जल्दी-जल्दी ब्राउनीज़ को प्लेट में निकाला, साथ ही कुछ पकौड़े तले और चाय तैयार कर ली। इतनी देर में अजमल अंकल भी सामान लेकर आ गए थे। अजमल अंकल को चाय मेज़ पर रखने के लिए कह कर, वह जल्दी-जल्दी अजमल अंकल द्वारा लाया हुआ सामान चेक करने लगी, जिसमें चिली, खट्टी इमली, छालिया के पैकेट थे।
"फातिमा बेटी, मेजर साहब मेज़ पर बुला रहे हैं..." अजमल अंदर आकर बोला।
वह सिर हिलाते हुए सारा सामान काउंटर पर रखकर बाहर चली गई, जहां मेजर अहसन चाय पर उसका इंतजार कर रहे थे।
"फातिमा बेटी, सारी तैयारी हो गई है न? बस एक घंटे में निकलना है, ताकि शाम तक कराची पहुंच जाएं..."
"बाबा कराची जाना जरूरी है क्या?" वह चाय पीते हुए चिढ़कर बोली।
"देखो, मैंने तुम्हें पहले भी समझाया था, मुझे वज़ीरिस्तान भेजा जा रहा है, हालात अच्छे नहीं हैं और मैं तुम्हें अकेला तो यहां नहीं छोड़ सकता, न? इसलिए बेहतर है तुम अपने ताया अबू के घर रहो। वैसे भी दो महीने की तो बात है, फिर मैं वापस आ जाऊंगा और फिर हम दोनों बाप-बेटी एक साथ मजे करेंगे..."
"पर बाबा, कितने साल हो गए मैंने ताया अबू ताई अम्मी को नहीं देखा, पता नहीं वो लोग कैसे होंगे, और मैं आपके बिना कैसे रहूंगी, और फिर अभी कॉलेज की एडमिशन भी तो होने वाले हैं, उसका क्या?"
"मेरा प्यारा बच्चा, तुम्हारे ताया अबू तुमसे बहुत प्यार करेंगे, जब भी फोन करते हैं, तुम्हारा जरूर पूछते हैं। और अभी तो मैट्रिक का रिज़ल्ट आने में भी दो महीने हैं, इसलिए फिकर मत करो..." वह चाय का कप मेज़ पर रखते हुए खड़े हो गए।
"ठीक है, दो घंटे में अपना बैग लेकर नीचे आ जाना, फ्लाइट का टाइम हो रहा है," वह कहते हुए अपने कमरे में चले गए।
मेजर अहसन का ताल्लुक पाक फ़ौज से था। उनकी पत्नी का निधन दस साल पहले हुआ था, जब फातिमा छह साल की थी। फातिमा को उन्होंने बहुत प्यार से पाला था, नमाज़, रोज़े के साथ, दीन और दुनिया की तालीम भी खुद दी थी, और आज उन्हें मुझफ़्फराबाद से वज़ीरिस्तान भेजा जा रहा था, जिसकी वजह से वह अपनी लाड़ली को कराची अपने बड़े भाई, कमिश्नर पुलिस मोहमद नकवी के पास छोड़ने जा रहे थे।
थोड़ी देर में फातिमा अपना सूटकेस लिए उनके पास आ गई थी, जींस के ऊपर लंबी घुटनों को छूती काली ढीली कमीज़ पहने, सिर पर स्कार्फ लपेटे, उनकी मासूम सी फातिमा उनके पास खड़ी थी।
"ये बेटियां भी कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हैं..." वह उसके फूल जैसे गालों और सुनहरे चेहरे को देखते हुए सोच रहे थे।
अजमल ने दोनों को एयरपोर्ट पर उतारा और अब चार घंटे बाद वे कराची एयरपोर्ट पर खड़े थे।
"बाबा, आपने ताया अबू को हमारे आने की खबर दी थी?" फातिमा चारों ओर देखती हुई बोली।
"बेटा, उन्हें सब खबर है, मैंने उन्हें एयरपोर्ट आने से मना कर दिया था, सिक्योरिटी कारणों से..."
"सिक्योरिटी कारण, सब ठीक तो है बाबा?"
"सब ठीक है, बस मैं नहीं चाहता कि मेरे या उनके दुश्मनों की नज़र तुम पर पड़े। अरे, वो देखो, गाड़ी में मैंने बुक करवाई थी, चलो इस तरफ..."
वह उसे साथ लेकर सामने खड़ी गाड़ी की ओर बढ़े। बवर्दी ड्राइवर से चाबी ली और उसे जाने का इशारा करके खुद भी ड्राइविंग सीट पर बैठ गए और फातिमा को भी बैठने का इशारा किया।
अभी वे थोड़ा ही आगे बढ़े थे कि उनका विशेष फोन बजा।
वह फातिमा को चुप रहने का इशारा करते हुए कोडवर्ड्स में बात करने लगे। फोन बंद करके अब गाड़ी तेजी से सड़क पर दौड़ रही थी। शाम का अंधेरा अपने पंख फैला चुका था। उन्होंने गाड़ी एक पॉश इलाके में एक बड़े क्लब की पार्किंग में रोकी।
"फातिमा, तुम दरवाज़ा बंद करके अंदर ही बैठना, मुझे यहाँ पर एक आदमी से काम है, बस एक घंटे में वापस आऊँगा, खबरदार बाहर मत निकलना।"
"ओके बाबा, परेशान क्यों हो रहे हो, पहले कभी बाहर निकली हो? वैसे भी आप एक घंटा कहकर हमेशा दो घंटे में वापस आते हो..."
वह प्यार से उसके सिर पर चपत लगाते हुए गाड़ी लॉक करवा कर अंदर की ओर बढ़ गए। फातिमा चारों ओर देख रही थी। रंग और खुशबू का सैलाब उमड़ रहा था, चारों ओर लड़के, लड़कियाँ, गाड़ियाँ ही गाड़ियाँ, ऐसा लग रहा था जैसे कोई फैशन शो आयोजित हो रहा हो। वह अफसोस से उन बे-पर्दा लड़कों और लड़कियों को देखती हुई आँखें बंद कर के बैठ गई। अभी शायद मुश्किल से आधा घंटा ही हुआ होगा कि एक जोरदार धमाका हुआ। किसी ने उसकी खड़ी गाड़ी को ठोक दिया था।
कॉलेज के बाद वह पांचों अली के घर इकट्ठा हो गए थे। शोर-शराबा जारी था, साथ ही साथ पीने का शगल भी चल रहा था। उसामा बीयर के दो केन चढ़ा चुका था।
"ओए अरहम, उसामा अब बस करो!! चलो निकलते हैं, कंसर्ट शुरू होने वाला है। आतिफ असलम के साथ-साथ कुछ भारतीय सिंगर्स और डांसर भी हैं, लेट्स गो..." अली ने इन दोनों को टोका।
वे सारे अली की जीप में बैठ गए।
"उसामा, आ जा यार, देर हो रही है।" अली ने पुकारा।
उसामा बड़े आराम से अपनी स्पोर्ट्स बाइक पर बैठ गया।
"उसामा के बच्चे, तूने पी रखी है, बाइक छोड़ दे!" अली चिल्लाया।
उसामा ने मुस्कुराते हुए उन्हें देखा और बाइक को रेस देने लगा।
"चल यार, ये नहीं मानेगा, हम चलते हैं..." अरहम ने अली के कंधे पर हाथ रखा।
अली की जीप बाहर निकली ही थी कि झन से उसामा बाइक दौड़ाता हुआ उसे पीछे छोड़ते हुए आगे निकल गया।
वह तेज़ रफ्तारी के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए जमखाना पहुंच चुका था और बाइक को तेजी से पार्किंग में घुमा रहा था, तभी एक गाड़ी से उसकी बाइक जोर से टकरा गई। वह गाड़ी उसकी विशेष पार्किंग पर खड़ी थी।
वह बाइक को छोड़ कर गाड़ी की ओर बढ़ा और शीशे पर हाथ किया और करता ही चला गया।
फातिमा धमाके से हिल सी गई। अभी उसने खुद को संभाला ही था कि कोई गाड़ी का शीशा बजाने लगा। ऐसा लग रहा था कि वह शीशा तोड़ कर ही दम लेगा। तंग आकर फातिमा ने शीशा नीचे किया।
"ए लड़की!! तुम्हारी इतनी मजाल कि मेरी जगह पर गाड़ी पार्क कर दी?"
फातिमा ने गंभीरता से सामने खड़े लड़के को देखा। हाथों में बैंड्स, लंबे बाल, वह बर्गर फैमिली की बिगड़ी हुई औलाद लग रहा था। वह उसे अनदेखा करते हुए शीशा चढ़ाने लगी।
उसामा ने जब देखा कि गाड़ी में बैठी लड़की उसकी बात नहीं सुन रही, तो उसने तेजी से हाथ शीशे में डालकर दरवाज़ा खोला और एक झटके से उस लड़की को बाहर निकाल लिया।
"यह क्या बदतमीज़ी है!!" फातिमा अपना बाजू छुड़वाते हुए बोली।
"चुप!!" उसने फातिमा के होंठों पर उंगली रखी।
फातिमा ने गुस्से की شدت से कांपते हुए एक जोरदार थप्पड़ उसामा के मुँह पर मार दिया।
"कमीनें, तेरी इतनी मजाल, तूने मुझ पर हाथ उठाया!!"
उसामा ने उसे गर्दन से पकड़ लिया।
"छोड़ो मुझे!! वरना तुम्हारा हश्र कर दूँगी..." फातिमा ने उसे जोर से टांग मार कर पीछे किया।
उसामा गुस्से से खून उगलता हुआ उसकी ओर बढ़ा ही था कि उसके दोस्तों ने आकर उसे पकड़ लिया।
"छोड़ यार, लड़की है!" अली ने समझाया।
इतने में फातिमा तेजी से गाड़ी में बैठकर दरवाजा लॉक कर चुकी थी और शीशे चढ़ा चुकी थी।
उसामा किसी भी तरह काबू में नहीं आ रहा था, वह चारों उसे बामुश्किल घसीटते हुए वहां से ले गए।
काफी देर के इंतजार के बाद मेजर अहसन हाथ में फाइल लिए बाहर आए।
"सॉरी बेटा, थोड़ी देर हो गई!"
"बाबा, इधर इतना रश क्यों है?" फातिमा उनके हाथ से फाइल लेते हुए बोली।
"म्यूजिक कंसर्ट हो रहा है..." वह गाड़ी स्टार्ट करते हुए बोले।
"वो देखिए बाबा, बोर्ड पर लिखा है, इंडियन सिंगर्स!!!"
"कितना अफसोस की बात है, मेरे बाबा और ना जाने कितने लाखों सिपाही हमारी सुरक्षा के लिए दिन-रात अपने घरों, बच्चों को छोड़कर व्यस्त हैं और उधर ये लोग इन दुश्मनों का कंसर्ट अटेंड कर रहे हैं..." फातिमा का लहजा तीव्र था।
"कोई बात नहीं बेटा, तुम इतना गुस्सा मत हो, चलो रेडी हो जाओ, तुम्हारे ताया अबू का घर आ गया है..."
वह जॉगिंग करके मेस में वापस आ चुका था और शावर लेकर फ्रेश हो ही रहा था कि इमरजेंसी ऐलान हुआ। सब कप्तान कैडेट्स और विंग कमांडर को रिपोर्ट करने का आदेश मिल चुका था। जो फौजी छुट्टियों पर थे, उनकी छुट्टियाँ तुरंत रद्द कर दी गई थीं। हालात की तनावपूर्ण स्थिति का अंदाज़ा पहले से ही था। पाक फौज और पाक फ़िज़ाईया ने अपनी सभी सीमाओं पर कड़ी नज़र रखी हुई थी। उन्हें अच्छे से पता था कि ये दुश्मन हमेशा पीठ पीछे वार करने वाले होते हैं और आईएसआई और इंटेलिजेंस अपना काम बखूबी कर रहे थे। दुश्मन एक बार फिर रात की अंधेरी में, कायरों की तरह, कसूर की सीमा पार करके घुस आया था, लेकिन अफसोस उसे नाकाम होकर ही लौटना पड़ा। कुछ पेड़ गिराकर वह खुद को मीडिया के सामने सुपर पावर शो कर रहा था...
वह वर्दी में लिपटा लंबे कदमों से चलता हुआ, सबको सिर के इशारे से जवाब देता हुआ मीटिंग में आकर बैठ चुका था।
"आप सब को तुरंत रेड हाई अलर्ट किया जाता है, दुश्मन की निगाह फिर से हमारे वतन पर है," एयर कमांडर स्लाइड शो के जरिए सारा मिशन और सारी जानकारी सभी को समझा रहे थे।
मीटिंग समाप्त हो चुकी थी, सब लोग अपने-अपने विंग को रिपोर्ट कर रहे थे, उसामा भी अपनी टीम के साथ रनवे पर आ चुका था।
"ग्रुप कैप्टन उसामा नकवी," एयर कमांडर उसके पास आए।
"यस सर," वह अलर्ट हो गया।
"आप अपने ग्रुप को लेकर भिम्बर जम्मू कश्मीर जा रहे हैं, याद रखें, डिफेंस मोड में रहना है," वह उसामा के गंभीर चेहरे को ध्यान से देखते हुए बोले। वे जानते थे कि उसे अपने दुश्मनों पर ईगल की तरह टूट पड़ने की आदत है।
आर्मी मेडिकल कॉलेज के फाइनल ईयर के सभी स्टूडेंट्स ऑपरेशन थिएटर में मौजूद थे, सीनियर सर्जन उन्हें जटिल हार्ट सर्जरी के बारे में बता रहे थे।
"सना यार, मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा, इतनी बारिक-बारिक नसें, बहुत जटिल है!! तुम समझ रही हो क्या?" मलिहा ने फुसफुसाया।
"श्श... चुप करो, सर देख रहे हैं..." सना ने टोका।
प्रैक्टिकल लैब के बाद वह दोनों अपने दोस्तों के साथ बाहर निकलीं।
"हाय गर्ल्स!! सना मलिहा, चलो कैंटीन चलते हैं यार, सारा ग्रुप यहाँ है..." वर्दा ने पास से गुजरते हुए मैसेज पास किया।
वह दोनों भी तेज़-तेज़ कदम उठाती हुई कैंटीन में पहुंची, जहां फाइनल ईयर का पूरा ग्रुप 20 स्टूडेंट्स पर مشتمل मौजूद था।
"फ्रेंड्स, हालात सही नहीं हैं, मेजर डॉक्टर शबीर और मेजर डॉक्टर अहमद की निगरानी में हम लोग आज़ाद कश्मीर के पास मेडिकल कैंप लगा रहे हैं। आप में से जो भी शामिल होना चाहे, अपना नाम लिखवा दे। कल सुबह फज्र के बाद टीम रवाना हो जाएगी।"
सना और मलिहा दोनों अपना-अपना नाम लिखवाकर हॉस्टल आ चुकी थीं और अब बातें करते हुए पैकिंग जारी थी। तभी मग़रिब की अज़ान की आवाज़ गूंजने लगी और सना वज़ू करने चली गई।
मलिहा आराम से कुर्सी पर बैठी सना के आने का इंतजार कर रही थी। कुछ ही देर में भीगे चेहरे के साथ सना वॉशरूम से बाहर आई।
मलिहा बड़े ध्यान से सना के गुलाबी भीगे चेहरे को देख रही थी, आकर्षक खूबसूरत गुलाबी चेहरा, लेकिन माथे पर एक कट का बड़ा सा निशान था, जो मांग से निकलकर माथे पर आ रहा था, जिसे वह आम तौर पर हिजाब से ढककर रखती थी, जो माथे को ढक लेता था।
मलिहा कुर्सी से उठकर सना के पास आई।
"सना, तुम्हारे इतने प्यारे चेहरे पर ये निशान अजीब सा लगता है जैसे!! जैसे चाँद पर दाग हो..."
"मलिहा!! तुम फिर शुरू हो गई, कई बार कह चुकी हूँ कि मैं इस चोट के बारे में कोई बात नहीं करना चाहती," वह अपना दुपट्टा सिर पर लपेटते हुए बोली।
मलिहा ने हंसते हुए उसके गाल पर प्यार किया और खुद भी वज़ू करने चली गई।
सुबह चार बजे का अलार्म बज रहा था, वह दोनों तेजी से बिस्तर छोड़कर खड़ी हो गईं। फज्र की नमाज़ पढ़ते ही उन्हें कॉलेज पहुंचना था, जहां से डॉक्टरों का ग्रुप सीमा के पास कैंप लगाने के लिए रवाना हो रहा था।
मेजर डॉक्टर शबीर सभी स्टूडेंट्स की हाजिरी ले रहे थे और मेजर डॉक्टर अहमद उन्हें बस में बैठने की हिदायत दे रहे थे। थोड़ी देर में 20 लोगों का काफिला बस में बैठ चुका था। बस स्टार्ट होने ही वाली थी, जब मेजर डॉक्टर शबीर ने पूरी टीम को संबोधित किया।
"डॉक्टर्स!! कृपया अपने-अपने सेल फोन बंद कर दें और अपनी फेसबुक या किसी भी सोशल मीडिया पर अपना स्टेटस, लोकेशन या पाक फौज की किसी भी कारवाई या अपनी वीडियो अपलोड मत करें। हमारी जनता बहुत भावुक है, जो संदेश, जो हमारी नक़ल और क्रियाएँ हैं, वह दुश्मन तक सोशल मीडिया, फेसबुक पोस्ट, व्हाट्सएप के जरिए पहुंच सकती हैं। बेहतर है कि आप सब इन चीज़ों का बहुत ध्यान रखें। आप ने अपने फेसबुक अकाउंट्स बंद कर दिए हैं, फोन भी केवल जरूरत पड़ने पर ही इस्तेमाल किया जाए और कोशिश की जाए कि कोई भी आप लोगों और फौजियों की वीडियो न बना सके, आपकी नक़ल और क्रियाओं को नोटिस न कर सके। यह मीडिया का दौर है और दुश्मन निश्चित रूप से इसका फायदा उठा सकता है... समझे?" उन्होंने सबको गंभीरता से देखा।
"यस सर!!" सब अपने-अपने सेल फोन बंद कर के बैग में अंदर की जेबों में डाल रहे थे।
मेजर अहसन ने गाड़ी एक बहुत ही पॉश इलाके में बड़े से घर के पास रोकी। दो गार्ड्स उठकर बाहर आए, उन्हें देख कर सलाम किया और दरवाजा खोल दिया।
यह एक बहुत ही खूबसूरत और बड़ा सा महल जैसा घर था। चारों तरफ खूबसूरत बड़े-बड़े गुलाब के और रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे। फातिमा हैरान होकर देख रही थी। गाड़ी आगे जाकर रुकी और सामने ही उसके बाबा के भाई, उसके ताया कमिश्नर मोहन نقवी और ताई अम्मी, उनका स्वागत करने के लिए खड़े थे।
मेजर अहसन और फातिमा गाड़ी से उतरे, अब बड़े उत्साहित अंदाज में सब से मिले।
"माशा अल्लाह, फातिमा तो बहुत बड़ी हो गई है, कितने वक्त बाद मुलाकात हो रही है।" मोहन साहब ने प्यार से फातिमा के सिर पर हाथ फेरा।
"मोहन, आप भी!! अहसन इतने लंबे सफर से आए हैं, बजाय अंदर ले जाने के, बाहर ही बातें कर रहे हैं... चलिए, सभी अंदर चलें।" मिसेज़ नकवी ने सबको टोका और अंदर चली गईं।
सब ने मिलकर एक शानदार डिनर किया, फिर मिसेज़ नकवी ने फातिमा को उसका कमरा दिखाने ले गईं ताकि वह आराम कर सके।
"थैंक्स ताई अम्मी!!" वह उनके हाथ थाम कर बोली।
"मेनशन नॉट बेटा!! यह तुम्हारा अपना घर है, अब तुम आराम करो, सुबह मिलते हैं।" वह प्यार से उसके फूल जैसे गाल थपथपा कर बाहर निकल गईं।
"भाई साहब और भाभी जी!! मैं अपने जिगर के टुकड़े को आपके पास छोड़कर जा रहा हूं, बस अल्लाह के बाद आप ही इसके सरपरस्त होंगे..." मेजर अहसन गंभीरता से काफी का मग मेज़ पर रखते हुए बोले।
"अहसन, ऐसा मत कहो, ख़ुदा तुम्हें ख़ैर-ख़ैरियत से वापस लाए, और फातिमा की तुम बिल्कुल चिंता मत करो, वह हमारी बेटी है, उसका पूरा ध्यान रखा जाएगा, क्यों नुशाबा?" मोहन नकवी ने अपनी बीवी से पूछा।
"जी बिल्कुल!!! अहसन, फातिमा तो बिल्कुल मासूम सी लड़की है, इतने वक्त बाद मिली है, मैं तो वैसे भी उसे कहीं नहीं जाने दूंगी। आप फातिमा की तरफ से बेफिक्र हो कर जाएं और ख़ैर-ख़ैरियत से वापस आएं..." नुशाबा ने उन्हें तसल्ली दी।
चारों तरफ संगीत का शोर था, जवान शरीर धड़क रहे थे, इंडिया से आई डांसर छोटे कपड़ों में स्टेज पर अपनी अदाएं दिखा रही थीं, बीयर के कैन खुले आम पी रहे थे, लेकिन इन सब से बेखबर उसामा, लाल चेहरे के साथ, मुट्ठियां भींचे एक कोने में खड़ा था। उसके चारों दोस्त उसे शांत करने की कोशिश कर रहे थे।
"यार अब गुस्सा छोड़ दे, देख कितनी हॉट सिंगर गाना गा रही है..." अली ने उसका हाथ थाम लिया।
"इस कुत्ते की इतनी हिम्मत, उसने मुझ पर हाथ उठाया..." वह दहाड़ा और सबको एक तरफ करते हुए बाहर पार्किंग में आकर बाइक पर बैठ गया।
वह चारों दौड़ते हुए उसके पीछे आए।
"उसामा!!" अहमद ने तेजी से बाइक की चाबी अपने कब्जे में ले ली।
"कहाँ जा रहे हो?" अली ने गुस्से से उसे देखा।
"जहन्नम में!! मेरी चाबी वापस दो..." वह गुर्राया।
"ठीक है, चलो दोस्त, सब जहन्नम में चलते हैं..." अहमद बाइक पर उसके पीछे बैठ गया।
उसामा काफी देर तक क्लिफ्टन की सड़कों पर तेज़ी से बाइक दौड़ाता रहा और उसके दोस्त पीछे गाड़ी में उसका साथ देते रहे, फिर थक-हारकर सभी के सभी अली के घर जमा हो गए।
अली घरवालों को डिस्टर्ब न हो, इसलिए सबको नीचे जिम जैसे कमरे में ले आया।
उसामा सामने लटके बॉक्सिंग पंचिंग बैग पर, सौ मन के बोरे पर मुक्के मारना शुरू हो गया। वह सभी ध्यान से चुपचाप उसे देख रहे थे। वह अपना सारा गुस्सा उस बैग पर निकाल रहा था। उसकी मुक्कों की ताकत से वह सौ मन का बैग किसी गुब्बारे की तरह हिल रहा था। उसामा के हाथों से खून निकलने लगा था, लेकिन वह लगातार बॉक्सिंग करता जा रहा था।
खालिद अपनी जगह से उठकर, उसामा का हाथ पकड़कर खड़ा हो गया।
"यार, अब बस कर! इस लड़की की वजह से खुद को नुकसान मत पहुंचा, बस कर दे..." खालिद गंभीरता से उसकी आँखों में देखता हुआ बोला।
उसामा ने उसका हाथ झटकते हुए, क़ोने पर पड़ी मेज़ पर चढ़कर बैठ गया।
"मुझे हर हालत में वह लड़की चाहिए!! उसने उसामा पर हाथ उठाया, जुबान चलाई, बदतमीज़ी की!! मुझे इस लड़की को सबक सिखाना है..." वह ठहरे हुए लहजे में बोला।
"पर यार, इतने बड़े शहर में उसे कैसे ढूंढेंगे?" अहमद ने सवाल किया।
"मैं सुबह होते ही जमखाना पार्किंग की सीसीटीवी फुटेज निकलवाता हूं, उस गाड़ी को ट्रेस करके उस लड़की को ढूंढ लूंगा..." वह ठंडे लहजे में बोला।