QARA QARAM KA TAJ MAHAL (PART 4)

                                 


पांचवीं चोटी
बुधवार, 27 जुलाई 2005

वह कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर बरामदे में आ गई। बरामदा काफ़ी लंबा था और हर कमरे के दरवाजे के दोनों तरफ़ खूबसूरत फूलों के गमले रखे थे। बरामदे के आगे सफ़ेद खंभे बने हुए थे। वह एक खंभे से टिककर सामने का दृश्य देखने लगी।

प्राकृतिक हरी घास से ढके आयताकार लॉन के किनारे लगी झाड़ियों की बाड़ के पास एक छोटा बंदर चक्कर काट रहा था। उसके हाथ में एक अधखाया, छोटा सा हरा सेब था। यह फ़ज्र का वक़्त था। हर तरफ़ हल्की नीली रोशनी भरा अंधेरा फैला हुआ था। दूर जंगल से जानवरों की आवाज़ें माहौल की शांति को चीर रही थीं।


 


रातभर ज़ोरदार बारिश हुई थी, बरामदे की शंक्वाकार छत से पानी टपक रहा था।

तभी उसकी नज़र गीली घास पर पड़ी, जहाँ एक तरफ़ क्यारी में जानामाज़ बिछाए अफ़क़ अर्सलान नमाज़ पढ़ रहा था। उसने नीली जींस के पायंचे ऊपर मोड़ रखे थे। शरीर पर जैकेट और मफलर नहीं था, लेकिन उसने पी-कैप उल्टी करके सिर ढक रखा था।

सीने पर हाथ बाँधे, सिर झुकाए खड़ा वह बहुत अच्छा लग रहा था। वह घास पर आ गई, जॉगर्स के बजाय नरम चप्पल पहने होने की वजह से गीली घास उसके पैरों को भिगोने लगी थी। वह सीढ़ियाँ उतरने लगी।

सीढ़ियों के दाईं तरफ़ पिंजरे में बंद मोर जाग रहे थे। नीले और हरे रंग का मोर अपने बदसूरत पैरों के साथ नाच रहा था। सफ़ेद मोरनी कोने में बैठकर उसका नाच देख रही थी।

वह प्रशंसा से रुककर उन्हें देखने लगी। उसकी मौजूदगी का अहसास करके मोर रुक गया था। उसी पल उसे मोर और खुद में कोई फ़र्क़ महसूस नहीं हुआ। वह इतना सुंदर मोर अपनी ख़ूबसूरती की वजह से ज़िंदगीभर के लिए इस पिंजरे में क़ैद कर दिया गया था, बिल्कुल वैसे ही जैसे उसकी ख़ूबसूरती और दौलत ने उसके क़दमों में सैफ के नाम की ज़ंजीर डाल दी थी। काश, उस समय उसने थोड़ी हिम्मत करके पापा को मना कर दिया होता।

सैफ के बारे में सोचकर ही वह उदास हो गई थी। उस पल उसे यह नीला अंधेरा बहुत उदास लगा था और जब वह नीचे झरने के पुल तक पहुँची, तो उसे सामने वाले पेड़ पर बैठी वह चिड़िया भी बहुत उदास गीत गाती महसूस हुई।



वह उस समय पहाड़ पर बने बलखाते कच्चे रास्ते पर चढ़कर ऊपर नाशपाती और सेबों के पेड़ों तक पहुँच गई थी, जब उसने अपने पीछे किसी की पुकार सुनी।

उसने गर्दन घुमा कर पीछे देखा। अफ़क़ पुल पर चलता हुआ उसकी ओर आ रहा था। उसके पैरों में जॉगर्स और गर्दन में मफलर था, उलटी पी-कैप अब सीधी हो चुकी थी।

वह रुककर उसका इंतज़ार करने लगी।

"तुम यहाँ क्या कर रही हो?" वह कुछ कदम नीचे था।

"तुम्हारा इंतज़ार। मुझे पता था तुम मेरे पीछे झरने तक ज़रूर आओगे," वह सोचकर बोली। "मेरा नाशपाती खाने का मन कर रहा था।"

अब वह उसके क़रीब आ चुका था। वे दोनों साथ-साथ ऊपर चढ़ने लगे। नीला अंधेरा अब कुछ हल्का हो गया था।

"तुम मेरी वजह से कल नहीं खा सकी थीं, ना?" अफ़क़ ने बिना किसी शर्मिंदगी के कहा और उसे एक नज़र देखा। वह लाल और गुलाबी रंग के मेल वाले शलवार-क़मीज़ में थी, दुपट्टा गर्दन के चारों ओर लिपटा था और बाल ऊँची पोनीटेल में बंधे थे। उस पर ऊँची पोनीटेल बहुत अच्छी लगती थी।

"हाँ!"

वे चढ़ते-चढ़ते अब पहाड़ के ऊपर पहुँच चुके थे। अब "वाइट प्लस" बहुत छोटा और बहुत दूर दिख रहा था। यह जगह ऊबड़-खाबड़ थी, बहुत से पेड़ ढलान पर उगे हुए थे। वह एक पेड़ के पास चली गई।

"खाओगे?" एक नाशपाती तोड़कर उसने दुपट्टे से अच्छे से रगड़कर साफ़ किया। यह उसका फल साफ़ करने का अपना तरीका था, और फिर अफ़क़ की ओर बढ़ाई।

उसने हल्की मुस्कान के साथ न में सिर हिला दिया।

"मैं फल नहीं खाता।"

"क्यों?" प्री ने हैरानी से हाथ नीचे गिरा दिया।

"बस यूँ ही, अच्छे नहीं लगते।" वह एक पेड़ के तने से टिककर बैठ गया।

"खाया करो, इनमें फ़ाइबर होता है, पेट के लिए अच्छे होते हैं," वह डॉक्टरों की तरह कहती उसके पास बैठ गई। "और सुनो, तुम्हारी तबियत कैसी है?"

"खुद देख लो।" अफ़क़ ने अपनी कलाई उसकी ओर बढ़ा दी। संजीदा लहजे के पीछे हल्की शरारत थी। उसने बस एक सेकंड के लिए नब्ज़ पकड़ी, फिर छोड़ दी।

"अभी भी बुखार है, मगर कल से थोड़ा हल्का है।" अफ़क़ ने हाथ पीछे कर लिया।

दूर नीले आसमान पर नारंगी सूरज उगने को बेकरार था, मगर घने काले बादल उसे रास्ता नहीं दे रहे थे।




"तुमने आज मोर को नाचते देखा था, प्री?" उसकी निगाहें आसमान पर छाए बादलों पर टिकी थीं।

वह चुप रही।

"जब भी मैं यहाँ आता हूँ, ये मोर मुझे पहचान कर अपना नाच ज़रूर दिखाते हैं। जिन्हें सैलानी सिर्फ़ मनोरंजन का साधन समझते हैं, वे हमारे जाने के बाद हमें याद करते हैं, हमें पुकारते हैं। तुम्हें नहीं लगता, प्री, कि 'वाइट प्लस' की सीढ़ियों के पास बने पिंजरे में क़ैद मोर हमारे जाने के बाद हमें याद करेगा? उस झरने का तेज़ बहता पानी, पानी में रखे पत्थर और उसके पास लगे पेड़ पर बैठी उदास गीत गाती चिड़िया हमें याद करेगी?"

"कल शाम तुम्हें क्या हो गया था, अफ़क़?" वह चुप हुआ तो उसने पूछा। सवाल इतना अप्रत्याशित था कि अफ़क़ ने चौंककर उसे देखा।

"कल शाम?"

"हाँ... कल... शाम!" प्री ने धीरे से अपनी आवाज़ दोहराई।

"तुमने अपनी नाशपाती नहीं खाई।"

"बात मत बदलो।"

वह उठ खड़ा हुआ। "बारिश होने वाली है, चलो वापस चलते हैं।" खड़े होकर उसने हाथों से पैंट झाड़ी, एक लाल रंग का कीड़ा उसके घुटने से नीचे पत्थरीली ज़मीन पर गिरा।

"तुम जाओ, मैं बाद में आऊँगी।" प्री ने नाराज़गी से मुँह फेर लिया।

झरने के बहते पानी ने देखा कि वे दोनों उस पल फिर से अजनबी हो गए थे।

वह बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया। वह फिर वैसा ही हो गया था, जैसा कल शाम था, जैसा 'जलील' के रेस्टोरेंट में था। अजनबी, अपरिचित सा।

फिर न जाने कितनी देर तक वह बिना खाई नाशपाती हाथ में लिए वहाँ बैठी बीते पलों की गिनती करती रही, जब तक कि काले बादल बरसने न लगे। तब वह उठी और पहाड़ की ढलान से उतरने लगी।


वह प्री को सीढ़ियों के पास, मोरों के पिंजरे के करीब खड़ा, तेज़ बारिश में भीगता देख रहा था। वह बहुत उदासी से तुर्की भाषा में उन मोरों को कोई गीत सुना रहा था। हरे और नीले पंख फैलाए मोर नाच रहा था। अफ़क़ के सिर पर कोई टोपी नहीं थी। बारिश ने उसके पूरे शरीर को भिगो डाला था।

उसे इस तरह बारिश में भीगता देख, प्री को बहुत गुस्सा आया।

"क्यों खड़े हो यहाँ? जाओ अपने कमरे में! कितनी बार कह चुकी हूँ तुमसे? समझ में नहीं आता तुम्हें? अभी तुम्हारा बुखार भी नहीं उतरा! जाओ और आराम करो!"

वह गुस्से में ज़ोर से चिल्लाई। सिर पर ट्रे रखकर, बारिश के पानी से बचते हुए, जो वेटर तेज़ी से सीढ़ियाँ कूदता उतर रहा था, उसने आश्चर्य से एक पल के लिए उसे देखा, जो खुद बारिश में भीगती अफ़क़ को डाँट रही थी।

"तुम्हें कोई हक़ नहीं मुझ पर हुक्म चलाने का!" अफ़क़ ने भी जवाब में चिल्लाया।

एक पल के लिए वह चुप रह गई। सच में, उसे क्या हक़ था एक अजनबी पर?

"ठीक है, फिर मरो इस बारिश में!"

वह तेज़ी से सीढ़ियाँ चढ़ती ऊपर चली गई। लॉन में तीन बंदर उछल-कूद कर रहे थे। लॉन पार करते हुए, उसने ज़मीन पर पड़ी मिनरल वाटर की खाली बोतल उठाकर टेबल पर बैठे बंदर की तरफ़ ज़ोर से फेंकी। बंदर डरकर झाड़ियों के पीछे गायब हो गया।

वह बारिश में भीगती अपने कमरे तक पहुँची। एक बारिश स्वात के पहाड़ों पर हो रही थी, दूसरी उसकी आँखों से बरस रही थी। वह खुद पर कंबल ओढ़कर पूरी दुनिया से छिपकर रोने लगी। अरसा और निशा चैन से सो रही थीं।

बाहर मूसलाधार बारिश में, चौड़ी सीढ़ियों के बीच, मोरों के पिंजरे के पास खड़ा अफ़क़ अर्सलान अभी भी भीग रहा था।


वह पूरा दिन अपने कमरे में रही। फिर जब दिन ढलने लगा और अंधेरा छाने लगा, तो वह टीवी के सामने से हट गई, जिस पर सिर्फ़ पीटीवी और जियो चैनल आते थे। उसने रात का खाना भी नहीं खाया। फिर निशा जबरदस्ती उसे उठाकर वाइट प्लस के बाहर बनी दुकानों तक ले आई।

उसे स्वाती शॉलों और क़ीमती पत्थरों की खरीदारी में कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन सिर्फ़ निशा का साथ देने के लिए वह वहाँ काफ़ी देर तक घूमती रही।

जब दोनों वापस आईं, तो वाइट प्लस की सफ़ेद इमारत के सामने फैले बड़े से लॉन के बीच में गोलाई में बैठे हुए लोग दिखे—अहमर साहब, शेहला, इफ्तिख़ार, अरसा और अफ़क़।

अफ़क़ के पीछे संगमरमर की सफ़ेद बेंच थी, जिससे टिक कर वह ऐसे बैठा था कि उसकी दाहिनी टांग घास पर फैली हुई थी और बायाँ घुटना सीधा खड़ा था। वह चुपचाप सिर झुकाए घास के तिनके तोड़ रहा था। उसकी पी-कैप उसके सिर पर थी।

अहमर साहब और बाकी लोग किसी बहस में व्यस्त थे। निशा भी उनमें शामिल हो गई। सिर्फ़ वह और अफ़क़ खामोश थे। वहाँ वाइट प्लस के बरामदे से आने वाली रोशनी और चांदनी के अलावा और कोई रोशनी नहीं थी, जिसकी वजह से उसका चेहरा साफ़ नज़र नहीं आ रहा था। मगर वह उसे सुबह के मुकाबले थोड़ा बेहतर लग रहा था।

"अता-तुर्क के बारे में तुम्हारा क्या ख़याल है, अफ़क़?"

अहमर अंकल ने बहस को मुशर्रफ़ से अता-तुर्क की ओर मोड़ दिया था। उनके बुलाने पर अफ़क़ की घास तोड़ती उंगलियाँ रुक गईं। उसने सिर उठाया, तो चमकती चांदनी ने उसके चेहरे की हल्की झलक दिखाई। कमजोरी और बीमारी साफ़ झलक रही थी।

"अता-तुर्क?" उसने दोहराया, फिर कंधे उचकाए।


"वह तुर्कों का। बाप था।" "बाप कभी बच्चे की गलत मार्गदर्शन करता?" अहमद साहब से पहले ही परीशे ने तेजी से बोला। वह हल्का सा मुस्कराया। "तुम ठीक कह रही हो, मैं एर्दोगान का समर्थक हूं।" उसने अपनी पी कैप की ओर इशारा किया जैसे वह समझ न सकी। "वैसे मैंने सुना है कि तुम्हारा डिक्टेटर अतातुर्क को आदर्श मानता है और तरकी भाषा में धाराप्रवाह बोलता है?" थोड़ा रुककर उसने सवाल किया। "वह इसलिए क्योंकि हमारे डिक्टेटर को इसके अलावा और कोई काम नहीं है।" निशा डिक्टेटर के ज़िक्र से चिढ़ गई। "निशा, यह डिक्टेटर बादशाह (padshah) होते हैं। बादशाहों से भी ज़्यादा ताकतवर होते हैं उनके पास। वैसे मैंने सुना है कि तुम्हारा बादशाह... यूरोप और अमेरिका से आने वालों की बहुत कदर करता है। मुझे तो उसने अब तक नहीं पूछा। शायद इसलिए क्योंकि मैं मुसलमान हूं?" "फिक्र मत करो। तुम रकापोशी सर कर लो, तुम्हें कोई पुरस्कार दिलवा ही देंगे!" निशा ने कहा। "कौन सा पुरस्कार? निशान-ए-हैदर?" वह रुचि से बोला। "नहीं नहीं, वह तो शहीद होने के बाद मिलता है और मिलिटरी सम्मान है। खैर, तुम पहले कोई पाकिस्तानी पहाड़ सर करो, फिर राष्ट्रीय सम्मान के बारे में सोचेंगे।" वह नाखुश सा होकर पीछे हुआ। "मैं गैशर ब्रूम टू, ब्रॉड पीक और नांगा पर्वत सर कर चुका हूं। तुम्हारे राष्ट्रपति ने मुझे कभी नहीं बुलाया। अब तो मैंने उम्मीद लगाना भी छोड़ दी है।" वह बहुत कृत्रिम अफसोस से कह रहा था। "तुमने नांगा पर्वत सर किया है? दी क्लियर माउंटेन?" परीशे चौंकी थी। "हां," वह कैप ठीक करते हुए उठ खड़ा हुआ। "मैं चलता हूं, आप लोग बातें करें।" परी की नज़रें लान को पार करके सिरीयन चढ़ते हुए अफ़क का दूर तक पीछा कर रही थीं, आज वह मोरों के पिंजरे के पास नहीं रुका था। महफिल जारी थी जब वह वहां से उठकर ऊपर आ गई। वह अफ़क को ढूंढ रही थी। वह लान में नहीं था, न ही अपने कमरे के सामने बने बरामदे में, वह अपने कमरे में भी नहीं था। लान में उस रात बंदर भी नहीं थे। वह तीसरी मंजिल पर आ गई। एक नज़र में उसने आस-पास का जायजा लिया। चौकोर आंगन के दाईं ओर कोने में जाकर एक बाल्कनी बनी थी। उसे वहां अफ़क की झलक दिखाई दी। वह वहीं आ गई। वह बाल्कनी पुराने समय के महलों की तरह बनी थी। उसकी रेलिंग ऊंची थी जिस पर कोहनियां टिकाकर वह झुककर नीचे झांक रहा था। वह उसके पीछे आकर खड़ी हो गई। उसकी कैप का पिछला हिस्सा उसके सामने था, उस पर सफेद मर्क से किसी ने हाथ से लिखा था, "Hail to Tayyip Erdogan", उसने यह वाक्य पहली बार नोट किया था। अफ़क अपने चारों ओर से बेखबर धीमी आवाज़ में कुछ गुनगुना रहा था। "सोन अखशाम इस्तोरीन... अन्जे बाना सोज़वीर..." एकदम किसी की मौजूदगी का एहसास कर उसने पलटकर पीछे देखा। "तुम्हारी कैप पर तैय्यप के बिना गलती के लिखे हैं, तैय्यप के आखिर में 'B' आता है, तुमने 'P' लिखा रखा है।" उसके खुद को सोलीहा नज़रों से घूरने पर जो उसके मुंह में आया वह बोल पड़ी। "मैंने नहीं लिखा," चेहरा वापस झरने की तरफ मोड़कर वह बेपरवाही से बोला, "यह जेनीक की कैप है, उसने लिखा है। तुर्की भाषा में 'B' की जगह 'P' इस्तेमाल होता है, यह उसने अंग्रेजी में इसलिए लिखा क्योंकि वहां तुर्की में लोग अंग्रेजी से अनजान हैं। और वहां की मिलिट्री, एर्दोगान को पसंद नहीं करती।" "मगर तुम्हारी अंग्रेजी तो बहुत अच्छी है," वह उसकी तरह रेलिंग पर कोहनियां टिकाए खड़ी हो गई। फर्क यह था कि वह सामने देख रहा था और वह उसे। "मैं बचपन में काफी समय अमेरिका में रहा हूं, शायद इसका असर हो।" 

"अच्छा तुमने जेनीक की कैप क्यों ले रखी है?" "मैं मिस्र जा रहा था तो अंकारा के एयरपोर्ट पर यूं ही मजाक में, मैंने उसकी कैप छिनी और उसने मेरी। बस फिर बाद में वापस नहीं कर सका।" वह रुका और थोड़ा रुककर बोला, "हम दोनों इंजीनियर हैं और साइट पर जाते हुए कैप लेते हैं क्योंकि धूप होती है, तो बस आदत पड़ गई है।" "और यह मफलर?" उसने गर्दन में मौजूद मफलर की तरफ इशारा किया। अफ़क ने गर्दन झुका कर उसे देखा। "यह मफलर नहीं है। यह तुर्की का ध्वज है।" "ओह!" वह हैरान हुई, "मैं तो इसे मफलर समझी थी।" "मैं इसे रकापोशी पर लहराने को लाया हूं।" वह फिर से अंधेरे में देखने लगा था। वह उसकी तरफ देखने से जानबूझकर बचते हुए तिरछी नज़र से उसे देख रही थी। "तुम अभी क्या गा रहे थे?" "कुछ नहीं... हमारा एक लेखक है अहमद उमर, उसने लिखी थी। एक कविता है..." फिर वह मुंह फेरकर रेलिंग से टिका होकर खड़ा हो गया और दोनों हाथ सीने पर बांध लिए। "क्या मतलब है इसका?" अफ़क इसका मतलब समझाने लगा। "मुझे सुनाओ न। वैसे ही जैसे तुम अभी गा रहे थे।"

 वह ज़िद कर रही थी। कुछ पल चुप रहा। फिर वह बहुत मंद आवाज़ में गुनगुनाने लगा। "सोन अखशाम इस्तोदी... अन्जे बाना सोज़वीर..." "ज़िंदगी के सफर में बिखरने से, मिलन की आखिरी शाम के ढलने से, और एक-दूसरे की सांस, धड़कनों की आखिरी आवाज़ सुनने से, कि जिसके बाद तुम मेरी दुनिया से दूर चले जाओगे, तुम्हें मुझसे एक वादा करना होगा, कि जब भी सूरज उगेगा और आना टोलिया की गलियों में रोशनी के बूँदों की तरह गिरेगी और अरात के जामनी पहाड़ों पर जमा बर्फ पिघलेगी। तब तुम्हें मुझसे एक वादा निभाना होगा कि उस रात के बाद अपनी ज़िंदगी में आने वाली हर सुबह की ठंडी हवा और हर बारिश के बाद गीली मिट्टी और जामनी पहाड़ों पर दूध जैसी जमा बर्फ को देखकर तुम मुझे याद करना कि यह मेरा तुम पर और तुम्हारा मुझ पर कर्ज है।" वह इसी मंद स्वर में रेलिंग से टिका खड़ा गा रहा था और वह उसकी आवाज़ में खोई हुई थी। अचानक बादल गड़गड़ाए तो अफ़क चौंककर रुक गया और गर्दन उठाकर काले अंधेरे आकाश को देखने लगा। "चलो चलते हैं, बारिश होने लगी है," वह चल पड़ा। परी उसके पीछे, उसके जूतों के निशानों पर जो घास में गुम हो रहे थे, पांव रखते हुए चलने लगी। नीचे, अपने कमरे की चौखट पर पहुंचकर, दरवाज़ा बंद करने से पहले अफ़क ने एक पल के लिए रुककर उसकी आँखों में देखा। "आई एम सॉरी... आई एम सॉरी फॉर एवरीथिंग।" सुबह वाले वाकये के बारे में धीमे से कहकर उसने दरवाज़ा बंद कर दिया। वह बेइच्छा मुस्करा दी।

जुमेरात, 28 जुलाई 2005

सوات के पहाड़ों पर ठंडी, पर नम और बादलों से ढकी सुबह उतरी हुई थी। सूरज अभी पूरी तरह उग नहीं पाया था, कल की तरह आज भी बादलों ने आसमान को अपनी राजधानी बना रखा था। मगर आज उनका रंग हल्का था।
"ख़ुदा करे आज बारिश न हो," अपने कमरे से बाहर बरामदे में आते हुए उसने दिल ही दिल में बेजोड़ दुआ की थी। आज उन्हें सوات से कलाम जाना था। कलाम सوات के एक तहसील थी, मगर फिर भी लोग मिंगोरा और सिद्दो शरीफ को ही सوات कहते थे।
बरामदे से बाहर बागीचे के बीच जो जगह कल वह नमाज़ पढ़ रहा था, आज भी वहीं बैठा था लेकिन आज वह नमाज़ नहीं पढ़ रहा था। उसने टोपी उल्टी कर के पहनी थी, पैरों में मोजे थे और जींस के पैंट्स के ऊपर तह किए हुए थे। और आँखें बंद किए वह बिल्कुल बोधी के अंदाज में हाथ घुटनों पर रखे योगा कर रहा था।
वह धीरे-धीरे चलती हुई उसके पीछे आई और जूते एक तरफ उतार कर उसी बोधी के अंदाज में उलटी पल्लियों में बैठ गई।
अफक ने आँखें खोलीं और हाथों की स्थिति बदलने ही वाला था कि किसी एहसास के तहत सिर पीछे कर के देखा। प्रीशे को अपने पीछे योगा के अंदाज में बैठा देख उसकी आँखों में खुशगवार हैरानी उभर आई।
"सुप्रभात... योगा?" उसने एक शब्द में सवाल किया।
"सुप्रभात... हां, योगा!"
वह घास पर लेट गया, दोनों हाथ सिर के पीछे रखे और पैरों को क्यारी की ईंटों तक लंबा करते हुए फ्लोर पोज करते हुए पूरी ताकत से ईंटों को धकेलने लगा।
"कब से कर रही हो योगा?"
"दो मिनट पहले से," वह अपने जवाब पर खुद ही हंस पड़ी।
"वाकई?" घुटने को लेटे हुए और सीने तक लाते हुए अफक ने हैरानी से उसे देखा।
"नहीं... मैं 16 साल की उम्र से योगा कर रही हूं।"
"तभी तुम अपनी उम्र से कम दिखाई देती हो," वह अब बाएं घुटने को धीरे-धीरे ऊपर नीचे कर रहा था।
"धन्यवाद... मैं कितनी साल की दिखती हूं?"
"16 साल की!"
"मेरा ख्याल है अब तुम झूठ बोल रहे हो।"
"झूठ नहीं, बढ़ा चढ़ा कर बोलना," वह धीरे से हंसते हुए कहा। "तुम 21-22 साल की उम्र की लगती हो। इससे ज्यादा नहीं।" वह योगा छोड़कर बागीचे में रखी सफेद कुर्सी पर बैठ गई।
"क्या नाराज हो गईं?" वह माउंटेन पोज़ करने के लिए खड़ा हो गया।
"नहीं," उसने इंकार में सिर हिलाया,
"मैं हफ्ते में तीन दिन योगा करती हूं, आज वह दिन नहीं है।"
वह सिर हिला कर चुपचाप योगा करता रहा। कुछ देर चुप्प रही। दूर जंगल से जानवरों की आवाजें धीरे-धीरे सुनाई दे रही थीं।
"कितने बजे जाना है कलाम?" वह उससे कोई बात करना चाहती थी, इसलिए यही पूछा।
"जफर ने आठ बजे कहा था," अपनी व्यायाम पूरी कर के उसने घास पर रखी टोपी, जो उसने लेटने से पहले उतार दी थी, उठाई और घड़ी अपनी बाईं कलाइ में पहनने लगा।
"तुम कितनी बार इन इलाकों में आ चुके हो?"
"दो बार पहले आ चुका था, एक बार जब गेशर ब्रूम 2 को सर करने आया था और दूसरी बार दो साल पहले," वह घास पर बैठकर जॉगर्स पहन रहा था।
"दो साल पहले क्यों आए थे?"
"यूंही," वह सिर झुकाए जॉगर्स के फीते बांधता रहा। प्रीशे उसकी आँखों में जवाब का इंतजार करती रही, बाएं कलाइ में पहनी घड़ी को आज पहली बार ध्यान से देखा था। उसकी काली चमकदार डायल के बीच में हीरों का छोटा सा पिरामिड बना था।
"अच्छी है ना मेरी घड़ी? सिकंदरिया से ली थी। मिस्र वाले अपना ट्रेडमार्क हर चीज़ में अच्छे से डालते हैं," वह हंसते हुए कहा और पैंट झाड़ते हुए उठ खड़ा हुआ।
"यह हमारे व्हाइट प्लस में आखिरी दो घंटे हैं, आओ यहां घूमते फिरते हैं," वह उसके साथ सीड़ियों की ओर बढ़ा।
"तुमने वह कमरा देखा है पहली मंजिल, जिसे रॉयल सुइट कहते हैं?" वह सीढ़ियों से उतरते हुए उसे 300 साल पुरानी व्हाइट प्लस की कहानी सुनाने लगा। उसने बेजोड़ जमाही ली।
"यह होटल पहले सوات के महल था, फिर..." वह सीढ़ियाँ उतरते हुए उसे बहुत कुछ बता रहा था। वह बोर होने लगी थी। उसे व्हाइट प्लस की कहानी से कोई दिलचस्पी नहीं थी, मगर बस उसका दिल रखने के लिए सुनती रही।
मोरों का पिंजरा पीछे छोड़कर वे नीचे सड़क पर आए तो वह बड़ा सालन खामोशी में डूबा हुआ था। बागीचे के अंत में नाशपती का पेड़ था, जिसके पास कुर्सी डालकर बूढ़ा सिक्योरिटी गार्ड बैठा था।
"क्या तुम हर साल यूं ही सैर सपाटे के लिए निकल जाते हो?" वे दोनों चलते-चलते बागीचे की एक ओर बने नीली टाइल्स वाले फव्वारे की मेढ़ पर बैठ गए।
"हर साल? मैं तो साल के दस महीने नगर नगर घूमता हूं। मैं जन्म से घुमंतू हूं। मुझे हर जगह एक्सप्लोर करने का शौक है। इस कला घूमने का शौक है। सैर जिंदगी को बदल डालती है। तुम एक बार पहाड़ों पर निकल जाओ तो वापस आने के बाद तुम वैसे नहीं रहते।
तुम बदल जाते हो, पहाड़ों का सफर इंसान को बदल डालता है। इसके बाद 'लाइफ इज़ नेवर द सेम अगेन'।
"अगर दुनिया के लीडर्स कुछ दिन पहाड़ों पर साथ चढ़ते, तो दुनिया के सारे मामले और समस्याएँ हल हो सकती हैं। और अगर दो अच्छे पर्वतारोही भी कुछ दिन रकापोशी पर साथ बिताते, तो यकीन करो उनके सारे मसले हल हो सकते हैं।" अफक ने बहुत गंभीरता और मासूमियत से कहा था। वह मुस्करा दी।
"हो सकता है समस्याएँ बढ़ जाएं,"
"कमे ऑन। तुम एक क्लाइंबर हो, तुम्हें दुनिया का सबसे खूबसूरत पहाड़ देखना चाहिए।"
"मैंने तस्वीरों में देख रखा है।"
"तुम्हें उसे सर करना चाहिए!"
"वह मैं ख्यालों और सपनों में कई बार कर चुकी हूं।"
"मगर तुम्हें 'मेरे' साथ सर करना चाहिए," उसने "मेरे" पर जोर दिया।
"नहीं हो सकता क्योंकि पापा मुझे क़राक़ोरम की चोटी पर फिर से नहीं जाने देंगे, मैं उन्हें अच्छे से जानती हूं। यह गार्ड कहां जा रहा है?" उसके इन्कार से बचने के लिए उसने उसकी ध्यान बूढ़े गार्ड की तरफ दिलाया, जो किसी काम से होटल की इमारत की ओर जा रहा था। अफक ने गर्दन घुमा कर उसे देखा।
"उसे शायद किसी ने बुलाया है।"
"तुमने कभी चोरी की है?" अफक ने गर्दन वापस घुमा कर आँखें सिकोड़कर शक्की नज़रों से उसे देखा।
"नहीं!"
"मैंने भी नहीं की, मगर अब दिल कर रहा है।"
"चोरी करने का?"
"नहीं, तुमसे करवाने का," उसने मासूमियत से कहा।
"मतलब क्या है तुम्हारा?" अफक ने उसे घूरा।
"तुम जानते हो, तुम बहुत अच्छे दिखते हो,"
"मैं खुशामद से प्रभावित नहीं होता। सॉरी!"
"और तुम एक बहुत अच्छे इंसान भी हो।"
"मैं सच सुनकर भी गलत काम नहीं करता,"
"और मैं दुआ करूंगी कि तुम रकापोशी सर कर लो। अगर तुम मुझे उस पेड़ से एक नाशपाती ले लाओ तो!"
वह कुछ पल चुपचाप उसे घूरता रहा फिर बोला,
"बहुत अच्छा। लाता हूं," वह कुछ कदम दूरी पर गए और हाथ बढ़ाकर एक शाख को इतनी जोर से पकड़ा कि उस पर बैठी चिड़ीया डरकर उड़ गई।
"ओह, तुमने उसे डरा दिया," प्री ने अफसोस से आसमान में उड़ती चिड़ीया को देखा।
शाख हाथ में पकड़े अफक ने रुककर उसे गौर से देखा। फिर मुस्कराया।
"तुम मेरी जिंदगी में आने वाली पहली लड़की हो, जो चिड़ीया की परवाह करती है और मोरों से सॉरी बोलती है।"
(जिंदगी में? क्या वह उसकी जिंदगी में आ चुकी थी?)
"क्या तुर्की में नाशपातियां होती हैं?" उसने अजीब सा सवाल किया।
"तुर्की में सब कुछ होता है," उसने हाथ बढ़ाकर एक मोटी ताजगी से भरी नाशपाती तोड़ी।
"क्या इसे मैं बढ़ा चढ़ा कर कहूं?"
"नहीं, तुम इसे एक प्यारे तुर्क का गर्व कहो," वह मुस्कराता हुआ नाशपाती लेकर उसके पास लाया।
"यूर हायनेस, एक तुर्क घुमंतू की तरफ से यह छोटा सा तोहफा स्वीकार करें," उसने नाशपाती हाथ पर रखकर उसकी तरफ बढ़ाई।
"धन्यवाद, वैसे क्या सारे तुर्क चुराए हुए तोहफे देते हैं?" उसने उसे छेड़ते हुए नाशपाती उठा ली।
"कोई प्री मांगे तो दे भी देते हैं," वह उसके साथ बैठ गया। वे दोनों फव्वारे के किनारे बैठे थे और टांगें नीचे लटकाए हुए थीं।
"यह एक यादगार नाशपाती होगी, मैं शुरू करूंगी और तुम खत्म। ठीक?" प्री ने नाशपाती का एक टुकड़ा लिया, उसका स्वाद मुँह में महसूस किया और अगले ही पल उसकी हंसी छूट गई।
"हंस क्यों रही हो?"
"यह नाशपाती नहीं है अफक! हमारे साथ तो धोखा हो गया। यह तो बबू गोशा है!" वह लगातार हंसी जा रही थी।
"और करो चोरियाँ। देख लिया, यही होता है चोरी का अंजाम। तुम नाशपाती से मिलते-जुलते फल को नाशपाती समझकर धोखा खा गई। बहुत अच्छा हुआ," वह कृत्रिम अंदाज में डाँटते हुए कह रहा था और वह हंसी जा रही थी।
"अच्छा सुनो, मुझे भी चखाओ और इसे खत्म मत करना। इसे हम फव्वारे के पीछे रख देंगे। यह एक यादगार है। कभी हम फिर से यहाँ आए तो इसे जरूर ढूंढेंगे," उसने एक टुकड़ा लेकर आधी खाई और बबू गोशा को फव्वारे के पीछे रखकर एक जगह छिपा दिया और वह जो हंसी जा रही थी, एकदम रुक गई।
"कभी हम फिर से यहाँ आए... हम...?" उसने "हम" बोला था, मगर क्यों?
उसने एक नज़र अपनी अंगूठी पर डाली, जो उसकी उँगली में थी, और फिर सिर झुका लिया। भविष्य किसी आठ हजार मीटर ऊँचे पहाड़ की चोटी की तरह धुंध में लिपटा हुआ था।
(जुलाई 29, 2005)
"अर्सा, तुम अपने नॉवेल में यह भी लिखना कि जब हम लोग... सॉरी, मेरा मतलब है जब तुम्हारे किरदार क़लाम की माल रोड पर पहुंचे, तो वहां मरी माल रोड की तरह भीड़ थी, पूरे पाकिस्तान के लुंफर लड़के वहां जमा थे और यह भी लिखना कि क़लाम से रोज़ सुबह नौ बजे किराए की लैंड क्रूज़र, जीपें पजारो दो अलग "रूट्स" पर जाती हैं और सुनो, तुम यह भी लिखना कि तुम्हारे किरदार आंसू झील वाले रूट के बजाय महेहुँद झील वाले रूट पर जा रहे थे, हमारी तरह... और..."

वे चारों मॉल रोड के किनारे चलते हुए दाईं तरफ बहती नदी पर बने पुल की ओर जा रहे थे, जिसके दूसरी तरफ सड़क पर लैंड क्रूजर और प्राडो गाड़ियों की लंबी कतार खड़ी थी। ये किराए की गाड़ियों के माहिर ड्राइवर अपने-अपने यात्रियों का इंतजार कर रहे थे।

"आगे मैं बताऊँगा, अरसा! आगे तुम लिखना – उनके पैरों के नीचे सड़क थी, और सिर पर आसमान था, और नदी का पानी बहुत शोर मचा रहा था..." वह अरसा को जिस अंदाज़ में सलाह दे रही थी, उसी तरह की नकल करते हुए वह बोला, तो परीशे ने बुरा सा मुँह बनाया।


"तुम्हें ज़्यादा बोलने की जरूरत नहीं है। मैं सिर्फ उसे सलाह दे रही थी।"
"हाँ तो मैं भी सलाह ही दे रहा हूँ।" वह उसे चिढ़ा रहा था। परीशे नाराज़ होकर सबसे तेज़ चलकर आगे निकल गई।

"सुनो, अरसा! एक खबर सुनाओ?" पीछे आते अफ़क ने जानबूझकर ऊँची आवाज़ में कहा, ताकि उसे चिढ़ा सके। परी ने चलते हुए दोनों हाथ कानों पर रख लिए।
"अरसा, तोमाज़ होमर पाकिस्तान में है!"

कानों पर हाथ रखने के बावजूद भी उसे सुनाई तो दे गया था। खबर ही ऐसी थी कि वह झटके से पूरी आँखें खोलकर उसे देखने लगी। "सच में? कहाँ? क्या वह कालाम में है?"
"मैं तो अरसा को बता रहा था।" अफ़क ने तानेभरी मुस्कान के साथ कहा।
"हाँ तो उसे ही बताओ, मैं कौन सा सुन रही हूँ!" परी ने कंधे उचका दिए और आगे निकल गई।

"वैसे अरसा, वह नंगा पर्वत जा रहा है!"
"मैं नहीं सुन रही!" परी ने कानों पर हाथ रखकर इतनी ऊँची आवाज़ में कहा कि पास से गुजरते दो लड़के रुककर उसे देखने लगे।

"तुम लोग क्या सड़क के बीच में खड़े होकर टीनएजर्स जैसी हरकतें कर रहे हो?" तीनों के घूरने का उसे एहसास हुआ और फिर पुल पार करने तक वह पूरा रास्ता खामोश रही।

वे ग्रे-सिल्वर प्राडो में महोदहंड के रूट पर जा रहे थे। ज़्यादातर गाड़ियाँ महोदहंड ही जा रही थीं, आँसू झील की तरफ बहुत कम पर्यटक जाते थे। किराए की इन गाड़ियों के ड्राइवर खतरनाक रास्तों पर गाड़ी चलाने में माहिर होते थे। लाहौर और कराची में गाड़ी चलाने वाला कोई आम ड्राइवर कालाम से आगे के इन रास्तों पर गाड़ी नहीं चला सकता था।

वह प्राडो के पास खड़ी हो गई। ड्राइवर ने उसे पहचान लिया था। कल शाम कालाम पहुँचते समय परीशे ही थी, जिसने ज़फर के साथ इस ड्राइवर से आज की सवारी की बात तय की थी। ज़फर उसे 1200 देना चाहता था, जबकि ड्राइवर 1500 माँग रहा था। परीशे को तीन सौ रुपये के लिए बहस करना सही नहीं लगा, इसलिए उसने मामला खुद ही तय कर दिया था।

वह प्राडो के पास खड़ी पुल की तरफ देखने लगी, जहाँ वे तीनों आगे-पीछे खड़े थे।


अफ़क सबसे आगे था – काली जीन्स, मैरून शर्ट, सफेद टूरिस्ट जैकेट, गर्दन में लाल मफलर, सिर पर पी-कैप, पैरों में जॉगर्स और कंधे पर बैकपैक लिए च्युइंग गम चबाते हुए उसकी तरफ आ रहा था। उसके रंगों के इस मेल पर परीशे को हैरानी हुई थी, क्योंकि उसने खुद भी काले ट्राउज़र के साथ मैरून, कश्मीरी कढ़ाई वाला कुर्ता और बड़ा सा दुपट्टा ले रखा था। बालों को उसने क्लचर में बाँध रखा था, और पैरों में गुलाबी और सफेद जॉगर्स थे।

अफ़क प्राडो के आगे की तरफ बैठ गया और वे तीनों पिछली सीट पर। परी ड्राइविंग सीट के ठीक पीछे बैठी थी ताकि उसे अफ़क का चेहरा साफ दिखाई दे। उसे खुद पर भी हैरानी हुई कि जब वे मरी में थे तो वह उससे बात तक नहीं कर रही थी, और अब वे कितने अच्छे दोस्त बन चुके थे। इस सफर में उसे पाँच दिन भी नहीं हुए थे, और ऐसा लगता था जैसे सदियाँ बीत गई हों।

प्राडो खतरनाक रास्तों पर दौड़ने लगी, तो वह खिड़की से बाईं तरफ बहती नीली नदी को देखने के बजाय अफ़क से पूछने लगी, "तुम्हें कैसे पता चला कि तोमाज़ पाकिस्तान आया हुआ है?"

"मैं उसका मीडिया एडवाइज़र तो हूँ नहीं, ज़ाहिर है कि अखबार में ही पढ़ा है।"
"तुम उससे कभी मिले हो?" उसे जानने का बहुत उत्साह था।

"परीशे जहांज़ैब, यह क्लाइंबिंग की दुनिया बहुत छोटी और गोल होती है। यहाँ दर्जनों बार आप एक-दूसरे से टकराते हैं। मैं तोमाज़ से पिछली बार नंगा पर्वत पर टकराया था – वह आ रहा था और मैं जा रहा था।"
"वह देखने में कैसा है? क्या उतना ही हैंडसम है, जितना तस्वीरों में दिखता है?"

"अब मैं उससे जलने लगा हूँ, इसलिए प्लीज़ इस टॉपिक को बंद करो।" वह मासूम सा मुँह बनाकर हाथ जोड़ते हुए बोला, तो परी बड़बड़ाती हुई खिड़की से बाहर देखने लगी।

"वैसे परी," उसने महज़ उसे चिढ़ाने के लिए पुकारा, "तुम्हारी सरकार इन इलाकों में गैस क्यों नहीं लाती? ये लोग दीदार की कीमती लकड़ी को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करते हैं!"

"सरकार वर्दी उतार दे, यही बहुत है। गैस भी आ ही जाएगी।" निशा सरकार का ज़िक्र आते ही खिन्न हो गई थी। अफ़क हँस पड़ा। परीशे खामोश रही, क्योंकि विदेशी लोगों के सामने वह अपने देश की किसी भी तरह की बेइज़्ज़ती बर्दाश्त नहीं कर सकती थी।