QARA QARAM KA TAJ MAHAL ( PART 5)

                  


पांचवीं चोटी (भाग 2)

वह कमी के बारे में बात नहीं करना चाहती थी। उसने दिल ही दिल में दुआ की कि अफ़क़ इस विषय को छोड़ दे। उसने चोरी-छिपे अरसा की ओर भी देखा, मगर अरसा ने बात सुनी ही नहीं थी। वह बेचैनी से खिड़की के बाहर देख रही थी, जैसे कुछ ढूँढ़ रही हो।

"क्या हुआ, अरसा?"

"वो... अभी आता है तो दिखाती हूँ... पिछले साल तो यहीं था। पता नहीं कहाँ चला गया?" वह दूर तक फैली पहाड़ियों को तलाश भरी निगाहों से देख रही थी।

"मगर था क्या?"

"पहाड़ था, पता नहीं कहाँ गायब हो गया है?" वह चिंतित लग रही थी।

"लो सुनो इनकी! कभी पहाड़ भी खोते हैं, अरसा मैडम?" अफ़क़ ज़ोर से हँसा, लेकिन अरसा ने उसे सुना ही नहीं।

"मुझे लगता है कि इस ड्राइवर की गाड़ी के मालिक से कोई दुश्मनी है, तभी इतनी तेज़ चला रहा है। अभी पहिया इधर हुआ और हम नीचे गए।" निशा ने अंग्रेज़ी में परीशे से कहा, और परीशे ने तुरंत वही बात ड्राइवर से कह दी।

"बाजी! ये हमारा रोज़ का रूट है, आप नहीं गिरेंगी, अल्लाह ख़ैर करेगा।" वह झेंपकर बोला।

"तुम ऐसे कह रहे हो जैसे हम अकेले गिरेंगे, तुम भी तो साथ गिरोगे ना!" निशा ने बुदबुदाते हुए कहा। उसे इस खतरनाक रास्ते से बहुत डर लग रहा था।

अफ़क़ तस्वीरें खींच रहा था, अरसा अब भी चिंतित होकर कुछ ढूँढ़ रही थी। परीशे ने रास्ता देखते हुए पूछा:

"कितना रास्ता बचा है?"

"एक घंटे में अशू वैली पहुँच जाएँगे।" जवाब अफ़क़ ने दिया था। वह आज बहुत बात कर रहा था और अच्छे मूड में लग रहा था।

"पहले अशू वैली रुकेंगे, फिर ग्लेशियर, फिर झरना, और आखिर में वह जगह जहाँ हम आज रात घास पर बिताएँगे। परी! तुम इस देश में रहती हो और तुमने अब तक ये जगहें—"

"वो आ गया! देखो, बिलकुल सामने!" अरसा खुशी से उछल पड़ी।

"शाहगोरी? यहाँ? कालाम में?" परी ने उसकी नजरों के साथ देखा, जहाँ सामने जामुनी पहाड़ों के बीच एक अलग-सा बर्फ से ढका सफेद पहाड़ खड़ा था।

"यह शाहगोरी है? मगर शाहगोरी तो स्कर्दू साइड में है... काराकोरम की पहाड़ियों में... है ना, अफ़क़?" उसने उलझन में अफ़क़ की ओर देखा, मगर वह अपनी गोद में रखे कैमरे को देख रहा था। उसने कोई जवाब नहीं दिया।

"यह शाहगोरी नहीं है, मगर स्थानीय लोग इसे शाहगोरी का छोटा भाई कहते हैं। इसकी आकृति भी बिलकुल वैसी ही पिरामिड जैसी है। वैसा ही दिखता है ना?" अरसा खुशी से बोली।

"सच में... बिलकुल वैसा ही है।" परीशे के लहजे में गर्व झलक आया था। आखिर शाहगोरी, दुनिया की दूसरी सबसे ऊँची चोटी, उसके देश में थी। वह गर्व क्यों न करे?

"वैसे, अफ़क़! शाहगोरी का नाम 'K2' किसने रखा था?"

अफ़क़ अपने कैमरे में व्यस्त था। उसने जवाब नहीं दिया।

"अफ़क़!" परी ने फिर पुकारा।

"पता नहीं, मुझे ये सेट करने दो ना।" वह कैमरे पर झुका बेमन से बोला।

परीशे ने चौंककर उसे देखा।

"मैं बताती हूँ, परी आपी!" अरसा खुश होकर बोली। "जब कैप्टन टी. जी. ने काराकोरम की पहाड़ियों का सर्वे किया था, तो उसने जिस क्रम में पहाड़ देखे, उसी क्रम में उनके नाम रख दिए—के1, के2, के3, के4 वगैरह।"

"K का क्या मतलब है?" निशा ने पूछा।

"K is for Karakoram!" अरसा मजे से बोली। "है ना, परी आपी?" उसने पुष्टि चाही।

"हूँ।" परीशे ने उसकी बात ध्यान से सुनी भी नहीं थी। वह तो अफ़क़ को देख रही थी, जो सिर झुकाए कैमरे के बटन दबा रहा था।

अशू वैली पहुँचने तक, पूरा रास्ता वह और अफ़क़ खामोश रहे। वह अपने कैमरे में उलझा रहा, और परीशे खिड़की से बाहर बहती नीली नदी को देखती रही। कभी-कभी उसका मन करता कि अफ़क़ उससे कुछ कहे, उनके बीच के इस अनजान रिश्ते को कोई नाम दे, उसे बताए कि वह उसके बारे में क्या सोचता है। वह जानना चाहती थी कि अगर उनके बीच कुछ है, तो वह क्या है। मगर यह सब वह उससे पूछने की हिम्मत नहीं कर पाती थी।

अशू, ऊँचे पहाड़ों के बीच बसी एक छोटी-सी घाटी थी, जिसके बीच नीली नदी बहती थी। घाटी में पर्यटकों की अच्छी खासी भीड़ थी।

"चलो, इस केबिन में चलते हैं।" यह पहली बात थी जो वहाँ आकर अफ़क़ ने कही थी।

वह जिस तरफ़ से केबिन में दाखिल हुए, वह खुला था, बाकी तीनों ओर दीवारें थीं। और वह केबिन किसी बालकनी जैसा लग रहा था।

"सुनो!" उसने अफ़क़ को पुकारा, मगर विशाल पत्थरों से टकराते पानी के शोर में वह सुन नहीं सका। वह उठकर उसके पास आ गई।

"सुनो, तुम्हारा मूड क्यों खराब हुआ था?"

वह चौंककर सीधा हुआ, "मेरा मूड? नहीं तो!"

"कभी-कभी तुम इतने अजनबी लगते हो कि..." वह रुक गई और गर्दन घुमाकर पीछे बहती नदी को देखने लगी।

"कि?" वह ध्यान से उसे देख रहा था।

"कि मुझे डर लगने लगता है।" वह नीचे बहते पानी पर नजरें जमाए धीमे से बोली।

"अच्छा?" वह हल्के से मुस्कुराया।

परीशे ने गंभीरता से उसे देखा।

"उस दिन जलील के रेस्टोरेंट में भी तुम ऐसे ही हो गए थे। मुझे दिखाने के लिए बिल्ली को प्यार कर रहे थे। है ना?"

"तुम्हें वह बात अब तक याद है?"

वह बिना जवाब दिए गर्दन फेरकर पानी को देखने लगी।

"I am sorry for that, परी! मैं... बस... पता नहीं, कभी-कभी मुझे कुछ हो जाता है।"

कुछ पलों की खामोशी छा गई।

"जानती हो, परी! जब मैंने तुम्हें मारगला की पहाड़ियों पर पहली बार देखा था, तो मुझे क्या लगा?"

"क्या लगा?"

"मुझे लगा कि मैं सच में किसी परी को देख रहा हूँ। तुमने सफेद और गुलाबी रंग के कपड़े पहने थे, तुम्हें याद है? मैं आमतौर पर अजनबियों से इतना खुलकर बात नहीं करता। मेरी फितरत ही कुछ और है... मूडी कह लो, अक्खड़ कह लो... मगर तुमसे बात करने का मन हुआ था।"

پانچویں چوٹی (حصہ 3) کیبن 

की दाईं तरफ़ धूप अंदर आने लगी थी। सूरज की किरणें सीधे परीशे के चेहरे पर पड़ रही थीं। वह उसके दाईं ओर आकर खड़ा हो गया, जिससे धूप का रास्ता रुक गया।

"तुम्हें देखकर मुझे ऐसा लगा था जैसे मैं तुम्हें जानता हूँ, हज़ारों बरस से जानता हूँ। तुम मेरी ज़िंदगी का वो गुमशुदा हिस्सा हो, जो टूटकर अलग हो गया था। हम दोनों सदियों पहले किसी और दुनिया में बिछड़ गए थे, और उस दिन मारगल्ला की पहाड़ियों पर फिर से मिल गए थे... तुम्हें भी ऐसा लगता है, परी?"

परीशे ने सिर झुका लिया। उसके जूते के नीचे लकड़ी के तख़्तों की दरारों से उसे झाग उड़ाता नीला पानी दिख रहा था।

अफ़क़ उसके जवाब का इंतज़ार करता रहा, मगर वह कुछ नहीं बोली। तभी उसे अरसा की आवाज़ सुनाई दी, वह अफ़क़ को बुला रही थी। अफ़क़ ने सिर उठाकर देखा। अरसा कुछ दूरी पर खड़ी थी और तेज़ आवाज़ में उसे किसी ट्रैक के बारे में बता रही थी। अफ़क़ ने हामी भरी और परीशे के दाईं ओर से हट गया। सूरज की तेज़ किरणें अब परीशे के चेहरे से टकराईं, और उसे लगा जैसे अफ़क़ के हटते ही वह अचानक बिल्कुल अकेली हो गई हो। तेज़ धूप में, पूरी तरह अकेली।

अरसा की तरफ़ जाते हुए अफ़क़ की पीठ को देखते हुए उसकी आँखें भीग गईं। उनके साथ का समय अब कम बचा था—बस दो दिन और। परसों उन्हें वापस लौटना था, फिर उनके रास्ते और मंज़िलें अलग हो जानी थीं। वह अपनी शादी की तैयारियों में व्यस्त हो जाएगी, और अफ़क़—वह तुर्क पर्वतारोही—दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत चोटी को फ़तह करके वापस चला जाएगा। उसे शायद यह भी याद न रहेगा कि जब मारगल्ला की पहाड़ियों पर बादल उतर आए थे, तब उसे सड़क के बीचों-बीच एक लड़की मिली थी। वह भूल जाएगा कि उस लड़की के साथ उसने स्वात की हरी-भरी वादियों में नौ दिन बिताए थे।

वो नौ दिन... जो सदियों पर भारी थे।

वह सब जानते हुए भी, कि अफ़क़ एक मुसाफ़िर था और सिर्फ़ जाने के लिए आया था... और यह भी जानते हुए कि उसकी सईफ़ से तीन महीने बाद शादी होने वाली थी, परीशे उससे मोहब्बत करने लगी थी। उसने मजबूती से अपनी आँखें रगड़ी और नीचे बहते हुए शोर मचाते दरिया को देखने लगी।

ग्लेशियर से आगे

ग्लेशियर पर गाड़ी नहीं रोकी गई। उनके ख़्याल में यह समय की बर्बादी थी। झरने तक के रास्ते में गाड़ी में ख़ामोशी छाई रही। निशा सो रही थी। अरसा स्टीफ़न किंग का नॉवेल पढ़ रही थी। और अफ़क़ खुली खिड़की पर कोहनी टिकाए लगातार बाहर देख रहा था। दरिया उसकी तरफ़ था, जबकि परीशे की नज़रें सामने ऊँचे पहाड़ों पर टिकी थीं। वह किसी बीते लम्हे के जादू में खोई हुई थी।

उसके ज़हन में अफ़क़ के शब्द गूंज रहे थे।

"वह क्या कहना चाहता था?"
"वह क्या नहीं कह रहा था?"
"कोई इज़हार, कोई इक़रार?"

या फिर वह सिर्फ़ लफ़्ज़ों से खेल रहा था और परीशे एकतरफ़ा मोहब्बत का शिकार थी? जिस क़तरे जितनी मोहब्बत को उसने सीप में बंद कर दिया था, वह क़ैद रहकर मोती बन गया था। उसे यह एहसास काफ़ी देर से हुआ था।

झरने के पास

झरना बहुत ऊँचाई से गिर रहा था। उसका स्रोत पहाड़ की चोटी के क़रीब था, वहाँ से शुरू होकर वह सैकड़ों फ़ुट नीचे सड़क तक आता था और फिर सड़क के नीचे से होकर अशू दरिया में गिरता था।

सड़क के किनारे कोल्ड ड्रिंक्स के स्टॉल बने थे और वहाँ अच्छी-ख़ासी चहल-पहल थी। उनके आने से पहले भी वहाँ काफ़ी लोग घूम रहे थे—बच्चे, बुज़ुर्ग, युवा जोड़े, परिवार। कुछ लड़के झरने के ऊपरी स्रोत तक जाने के लिए चट्टानों पर चढ़ रहे थे। उनमें सबसे आगे एक हरा कैप पहने लड़का था।

"मुझे यक़ीन नहीं हो रहा कि इतनी बड़ी झरना पाकिस्तान में है!" निशा ने पत्थरों पर चढ़ते हुए कहा।

"मैंने हमेशा नारा-न काग़ान के बारे में ही सुना था।"

"निशा, बुरा मत मानना, मगर नारा-न काग़ान उतने ख़ूबसूरत नहीं हैं जितना उन्हें कहा जाता है। वहाँ पहाड़ काफ़ी सूखे हैं और बस एक ही ख़ूबसूरती है—झील सैफ़-उल-मुलूक, जहाँ परियों के उतरने की कहानियाँ मशहूर हैं। लेकिन अगर कोई यह सोचता है कि नारा-न काग़ान पाकिस्तान का सबसे हसीन इलाक़ा है, तो यक़ीनन उसने कालाम और स्वात नहीं देखा।" अफ़क़ ने सफ़र के अपने तजुर्बे को बताते हुए कहा।

वे आगे बढ़ते रहे। निशा और अरसा खाने-पीने के स्टॉल पर रुक गईं, जबकि अफ़क़ को एक ख़ाली चारपाई दिखी। उसने किसी मेहनती मज़दूर की तरह वह चारपाई उठाई और ऊँचे पत्थरों की तरफ़ ले जाने लगा।

"बस, यही रख दो!" परीशे ने कहा, और अफ़क़ ने पानी और पत्थरों के बीच चारपाई रख दी।

"गंदे बच्चों की तरह जूते उतारकर पानी में पैर मारना मुझे हमेशा से बहुत अच्छा लगता है!" परीशे हँसते हुए बोली और अपने जूते-मोज़े उतारकर चारपाई पर रख दिए। उसने अपने ट्राउज़र को घुटनों तक मोड़ा और पैर ठंडे पानी में डाल दिए। अफ़क़ भी पास बैठ गया, मगर उसने अपने जूते नहीं उतारे।

"तुम भी जूते उतार दो ना! बहुत मज़ा आ रहा है!" परीशे ने कहा।

अफ़क़ ने मुस्कुराते हुए सिर हिला दिया।

"कम ऑन, अफ़क़! पानी इतना ठंडा है, लगता ही नहीं कि जुलाई का महीना है!"

अफ़क़ ने फिर भी जूते नहीं उतारे, बल्कि झुककर हाथ पानी में डाल दिए।

"तुम जूते उतार ही दो ना!" परीशे ने फिर ज़िद की।

"नहीं, मैं ठीक हूँ।"

परीशे ने भौहें चढ़ाईं, उसे हैरत हो रही थी। वह तो उसकी हर बात फ़ौरन मान जाता था, तो अब क्यों नहीं?

"यहाँ एक होटल बनाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए पहले इस इलाक़े की मिट्टी का टेस्ट करना पड़ेगा, और—"

"मैं भूल गई कि तुम इंजीनियर हो! याद दिलाने का शुक्रिया!" परीशे ने हँसते हुए कहा।

अफ़क़ भी मुस्कुरा दिया।

"बहुत जल्दी भूल जाती हो। मुझे भी इतनी जल्दी भूल जाओगी?"

परीशे ने जवाब नहीं दिया, बस पानी में हाथ घुमाने लगी।

"वैसे, तुमने किस फ़ील्ड में इंजीनियरिंग की है?"

"मैं जियोलॉजिकल इंजीनियर हूँ।"

"ओह! तो फिर तुम हम पाकिस्तानियों के किसी काम के नहीं हो!" परीशे ने शरारती अंदाज़ में कहा।

"क्यों?"

"क्योंकि पाकिस्तान में ज़लज़ले नहीं आते!"



"ہاں۔۔۔آخری भूकंप 80 साल पहले क्वेटा में आया था, इससे शायद 35 हज़ार लोग मारे गए थे। फिर उसके बाद ऐसा भूकंप नहीं आया। इसलिए तुम हमारे तो किसी काम के नहीं हो।"
"डॉक्टर साहिबा, मेरी जानकारी के अनुसार सिर्फ बलूचिस्तान में ही 1935 के भूकंप के बाद तीन और भूकंप आए थे।"
"मैं बड़े भूकंपों की बात कर रही हूँ।" वह सिर उठाकर गिरते पानी को देखने लगी।
"मैं कुछ साल पहले जब पहली बार एवरेस्ट घूमने गया था तो तुर्की में भूकंप आया था। मैं उस अभियान का लीडर था और हम 'बालकनी' पर थे, जब मुझे भूकंप की सूचना मिली।" वह ऊपर झरने की चौड़ी धार को देखते हुए याद करके बता रहा था।


"ओह... तो फिर... बालकनी से एवरेस्ट की चोटी तक का सफर यकीनन तुमने डिप्रेशन में किया होगा?"
उफ़क ने गर्दन घुमाकर गंभीरता से परीशे को देखा। "मैं भूकंप के बारे में सुनते ही 'बालकनी' से वापस लौट आया था।"
"क्या?" उसने धीरे से आँखें फैलाकर उसे देखा। "डोंट टेल मी, तुम बालकनी से वापस लौट आए थे? उधर से एवरेस्ट की चोटी का फासला ही कितना था भला?"
"मैं चोटी से एक कदम दूर भी होता तो भूकंप की खबर सुनकर वापस चला जाता। मैं एवरेस्ट की चढ़ाई किसके लिए कर रहा था? अपने देश के लिए न? तो मेरे हाथ में मेरे देश का जो लाल झंडा था, वह मुझे कह रहा था कि तुम्हारे एवरेस्ट फतह कर लेने से तुर्की के लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, हाँ अगर तुम वापस लौट जाओ तो शायद बहुत से बेसहारा लोगों की कुछ मदद कर सको। और फिर मैं वापस आ गया। उस बेहद सफल अंतरराष्ट्रीय अभियान को छोड़कर, जिसमें दर्जनों पर्वतारोही शामिल थे। साठ तो सिर्फ स्थानीय 'शेरपा' थे, मगर मैं तुर्की आ गया। वहाँ बहुत बुरा हाल था। हर तरफ मलबा था, लाशें बिखरी थीं। उसके बाद से मुझे भूकंपों से बहुत डर लगने लगा है।"
वह आश्चर्य से उसे देख रही थी। क्या कोई इंसान इतना नर्म दिल भी हो सकता है कि बालकनी से एवरेस्ट की चढ़ाई किए बिना लौट आए? क्या कोई पर्वतारोही बालकनी से भी वापस लौट सकता है, बिना किसी शारीरिक या मौसम संबंधी बाधा के?
"फिर तुम एवरेस्ट नहीं चढ़ पाए?"
"चढ़ लिया था, 2001 में। और प्लीज ज्यादा उत्साहित होने की जरूरत नहीं है। मेरे अलावा करीब 1700 और लोग भी चढ़ चुके हैं, यह कोई बड़ी बात नहीं है।"
"तुम में बहुत विनम्रता है।"
"इन पहाड़ों पर इतनी मार पड़ी है कि सारे घमंड निकल गए हैं। तुम्हें दुनिया का कोई अच्छा पर्वतारोही घमंडी नहीं मिलेगा, क्योंकि हम पर्वतारोहियों से ज्यादा कौन जान सकता है कि हम इंसान 'मदर नेचर' की एक तुच्छ सी मخلूक हैं? मैंने इतनी ऊँचाइयाँ देखी हैं कि अपना वजूद कुछ भी नहीं लगता।"


"सॉरी, मगर आपके रोमांस में बाधा तो नहीं डाली?" अर्सा अचानक ही चारपाई के सामने आ खड़ी हुई थी। परीशे ने घबरा कर उसे देखा।
"हाँ, बिल्कुल बाधा डाली हो।" उफ़क ने बात काटे जाने पर नाराजगी से उसे देखा।
"नहीं, अर्सा! ऐसी कोई बात नहीं है।" वह घबराकर सफाई देने वाले अंदाज में कह रही थी, मगर अर्सा तो जैसे सुन ही नहीं रही थी। वह नीचे से आते एक गुलाबी गालों वाले बच्चे की ओर देख रही थी, जो टोपी बेच रहा था। परीशे ने सिर झुकाकर सूखे होंठों पर जीभ फेरी। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था। क्या उसके आस-पास के लोग सच में सब कुछ जान चुके थे?
"मैं कैसी लग रही हूँ?" अर्सा बच्चे से एक टोपी लेकर सिर पर आज़मा रही थी।
"बिल्कुल 'टाइटैनिक' वाली केट विंसलेट!" उफ़क ने मुस्कुराकर कहा।
"मैं इतनी मोटी लग रही हूँ? बस रहने दो, मुझे नहीं चाहिए टोपी!" उसने तुरंत टोपी उतारकर बच्चे को वापस कर दी। बच्चे के चेहरे पर मायूसी छा गई और वह बुझा-बुझा सा पलटने लगा।
"सुनो, मुझे तो दिखाओ टोपी!" परीशे से रहा नहीं गया, तो उसने बच्चे को बुला लिया। वह तुरंत पलटा और सारी टोपियाँ उसके सामने रख दीं।
"मैं इसे पहनकर कुछ और तो नहीं लग रही?" उसने एक स्किन कलर की सादी टोपी खरीद ली थी।
"नहीं, बहुत अच्छी टोपी है।" उफ़क ने मुस्कुराकर कहा।
उसने यह नहीं कहा था कि "तुम अच्छी लग रही हो।" उसने एक बार गलती से उसकी हँसी की तारीफ कर दी थी, वह भी शायद मज़ाक में। उसने कभी उसकी मुग़लई आँखों, रस भरे होंठों या काले चमकदार बालों की तारीफ नहीं की थी। शायद वह उसे ध्यान से देखता भी नहीं था। वह बाहरी चीजों की पूजा करने वालों से बहुत अलग था।


उफ़क ने हाथ पानी में डालकर टोपी वाले बच्चे की तरफ पानी उछाल दिया। बच्चा अपना टोपी का ठेला एक तरफ रख आया था और झरने के बिल्कुल किनारे अपनी पिंडलियाँ डालकर एक गोरे आदमी के मज़ाक का आनंद ले रहा था। साथ-साथ वह भी उस पर पानी उछाल रहा था।
"मत करो तुम दोनों, मेरे ऊपर पानी आ रहा है!" अपना कढ़ाई वाला नया कुर्ता खराब होते देख वह गुस्से से बोली।
"हम खेल रहे हैं।"
"बेहतर... तुम शायद बीस साल पहले, अपने बचपन में चले गए हो, मगर मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है। मैं जा रही हूँ।" वह किसी भी हाल में पानी उछालने से बाज़ नहीं आ रहा था, यह देखते हुए वह अपने जूते हाथ में उठाए पत्थरों से नीचे उतरने लगी।


"आज हमारे ट्रिप का आखिरी दिन है, कल वापसी है, तो आज रात हम कैंप लगाएंगे।"
"और मेरे पास मोनोपॉली भी है, वह भी खेलेंगे।"
"ओह... मैं तो भूल भी गया था!" उफ़क ने मुस्कुराते हुए कहा।
"तो फिर क्या है आपका 'डेयर'?"
"ऐसा है परीशे जहांज़ेब, आप कल सुबह हमें माहोदंध से मछलियाँ पकड़कर देंगी, जो मैं खुद पकडूंगा।"
"और हम भी खाएँगे?"
"हाँ, बिल्कुल।"

मोनोपॉली खेलते समय उफ़क ने परीशे को चुपके से एक प्रॉपर्टी दे दी। अर्सा को जब शक हुआ, तो उफ़क ने चालाकी से उसका ध्यान हटा दिया।

"सीफ कौन?"
"सीफ मेरा कज़िन है, फूफू का बेटा और मेरा..." वह रुकी।
उफ़क ने गर्दन उठाकर उसे देखा।
"और मेरा मंगेतर भी... तीन महीने बाद मेरी उससे शादी है।" वह आत्मविश्वास से बोली।