QARA QARAM KA TAJ MAHAL ( PART 22 )



 शुक्रवार, 30 जून 2006

सुंदरता से सजा हुआ कमरा मेहमानों से भरा था। यह हॉलनुमा कमरा राष्ट्रपति भवन में इसी प्रकार के आयोजनों के लिए इस्तेमाल होता था। इस समय भी वहाँ 8 अक्टूबर के भूकंप में उत्कृष्ट सेवाएँ देने वालों के लिए पुरस्कार वितरण की एक राष्ट्रपति समारोह आयोजित की गई थी।

सभी कुर्सियाँ अर्धवृत्ताकार रूप में लगाई गई थीं। सामने एक मंचनुमा स्थान था, जहाँ राष्ट्रपति खड़े थे। एक ओर डाइस रखा था, जिसके पीछे खड़ा प्रस्तोता बारी-बारी से माइक पर पुरस्कार प्राप्त करने वालों के नाम पुकार रहा था।

अर्धवृत्त में लगी कुर्सियों के दो स्टैंड थे। दाईं ओर का स्टैंड स्थानीय नागरिक और सैन्य अधिकारियों तथा आम लोगों से भरा था, जबकि बाईं ओर की कुर्सियों पर सभी विदेशी थे। इनमें संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, चीन, यूरोप और इस्लामी देशों से आए वे स्वयंसेवक शामिल थे, जिन्होंने कश्मीर के भूकंप प्रभावितों के लिए दिन-रात काम किया था।

बाईं ओर की कुर्सियों की दूसरी पंक्ति में बैठे सभी लोग, एक को छोड़कर, सुंदर नैन-नक्श वाले तुर्क थे, जो आज विशेष रूप से पाकिस्तान सरकार के निमंत्रण पर इस्लामाबाद आए थे।

इन्हीं में एक थी अरवा यलीम, सात साल की एक बेहद प्यारी बच्ची, जिसके गुलाबी गाल और शहद जैसे रंग के बाल थे। वह अपने माता-पिता और छोटी बहन के बीच उत्साहित और संतुष्ट बैठी थी। उसके और उसकी छोटी बहन के हाथ में एक-एक झंडी थी, जिसके एक ओर पाकिस्तान का हरा और दूसरी ओर तुर्की का लाल झंडा बना था। सिर पर स्कार्फ ओढ़े अरवा की माँ के हाथ में तीन सौ डॉलर का चेक था, जो कुछ देर पहले ही पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने उसे "जीवे पाकिस्तान" गाने के बाद व्यक्तिगत रूप से दिया था।

दूसरी पंक्ति में बैठे व्यक्तियों में ओरहन यकीन और उनकी पत्नी मिसेज़ यकीन थीं। मिसेज़ यकीन की गोद में एक सुंदर केस रखा था, जिसमें पाकिस्तान सरकार द्वारा जेनेक यकीन के लिए दिया गया सितारा-ए-इसार था। वह बार-बार अपनी आँखों में छलक आने वाले आँसू पोंछ रही थीं।

मिसेज़ यकीन के बाईं ओर सलमा दुरान बैठी थीं—सुनहरे रंग की, लंबी कद-काठी वाली, काले बालों को फ्रेंच नॉट में बांधे एक महिला। वह लगातार अपने होंठ चबा रही थीं और सामने राष्ट्रपति को देख रही थीं। उनकी बड़ी-बड़ी काली आँखों में नमी थी, जिसे वह बार-बार अपने भीतर समेट लेती थीं।

सलमा के पास उफुक अरसालान बैठा था—काले डिनर जैकेट, सफेद शर्ट और काली पैंट में, बिना किसी भाव के सामने देखते हुए। उसके बगल में परीशे थी, जो इस पंक्ति में अकेली गैर-तुर्क थी।

अफ्टरशॉक की उस दुर्घटना में उफुक का बायाँ पैर बुरी तरह कुचल गया था, जिसे डॉक्टरों को मजबूरन काटना पड़ा था। वह दो महीने इस्लामाबाद के अस्पताल में भर्ती रहा, फिर परीशे उसे इलाज के लिए अमेरिका ले गई। समस्या केवल कृत्रिम पैर लगाने की नहीं थी, बल्कि असली समस्या उसकी मानसिक स्थिति की थी, जो अहमद और जेनेक को खोने के बाद बुरी तरह बिगड़ गई थी। जब अस्पताल में उसे होश आया और परीशे ने उसे अहमद और जेनेक की मृत्यु की खबर दी, तब पहली बार परीशे ने इस लंबे आदमी को फूट-फूटकर रोते देखा था।

उसकी मानसिक स्थिति को सामान्य करने के लिए परीशे को बहुत मेहनत करनी पड़ी। वह दिन-रात उसके साथ रहकर उसे ज़िंदगी की ओर वापस लाई थी। फिर उन्होंने उसे आधुनिक तकनीक वाला कृत्रिम पैर लगवा दिया। शुरू में उसे चलने में बहुत दिक्कत होती थी, मगर बीते छह महीनों में वह इसका काफी अभ्यस्त हो गया था। उसकी चाल में हल्की सी लंगड़ाहट अब भी थी, लेकिन समय के साथ वह भी कम होती जा रही थी। आज नहीं तो सालभर बाद ही सही, परीशे को यकीन था कि वह पहले की तरह सामान्य रूप से चलने लगेगा। हाँ, उसे यह एहसास था कि वे दोनों अब कभी काराकोरम नहीं जाएँगे।

पाँच महीने पहले, जब वह परीशे से शादी कर उसे अपने साथ तुर्की ले गया था, तब उन्होंने एक वादा किया था—और यह वादा खुद उफुक ने लिया था।

"परी! हम आज एक नई जिंदगी शुरू करने जा रहे हैं। आज के बाद हम कभी काराकोरम वापस नहीं जाएँगे। मुझे अब उन पहाड़ों को कभी नहीं देखना, जिन्होंने मुझसे मेरे सबसे अच्छे दोस्त छीन लिए।"

और फिर, परीशे ने उफुक अरसालान के साथ तुर्की में एक नई ज़िंदगी की नींव रखी थी। अब वह सिर्फ एक भूवैज्ञानिक इंजीनियर था, जो दुनिया के अन्य सामान्य लोगों की तरह नौ से पाँच की नौकरी करता था। पहाड़ों से वे दोनों इतने भयभीत थे कि उन्होंने माउंट अरारात तक देखने की भी हिम्मत नहीं की

यह शायद पहली बार था जब उफुक ने घूमने और पर्वतारोहण को छोड़कर लगातार पाँच महीने कार्यालय में काम किया था, और अपनी ज़िंदगी को केवल अंकारा की गलियों तक सीमित कर दिया था। अब वे पर्वतारोही नहीं, बल्कि एक डॉक्टर और एक इंजीनियर बनकर इस सीमित जीवन में भी खुश थे। उन्हें अब किसी और चीज़ की तमन्ना नहीं थी। उफुक की गहरी मोहब्बत परीशे के लिए काफी थी।

हाँ, बस पिछले पाँच महीनों में, एक बेचैनी, एक अधूरापन उसके वजूद में झलकता था। कहीं कोई प्यास बाकी थी। वह बहुत सोचती थी, लेकिन ऊपर से सब कुछ ठीक था।

सैफ और उसकी फुप्पो ने शुरुआत में बहुत हंगामा किया था, लेकिन परीशे ने सैफ द्वारा खून न देने वाली बात को मुद्दा बनाकर सगाई तोड़ दी थी। लोगों ने बहुत बातें बनाईं, लेकिन उसे कोई परवाह नहीं थी। वह पापा की सारी संपत्ति की देखरेख का जिम्मा मामू को सौंपकर तुर्की चली आई थी

अब तो सब कुछ ठीक ही थानिशा की शादी हो चुकी थी, हसीब और उसका दोस्त उच्च शिक्षा के लिए लंदन जा चुके थे। हाँ, सब कुछ ठीक ही था... फिर भी उसे लगता था कि कहीं कुछ अधूरा है।

अपनी सोचों को झटककर, उसने पास बैठे उफुक के बाएँ जूते पर नज़र डाली। असली सच्चाई से अनजान कोई भी व्यक्ति उसका जूता देखकर सोच भी नहीं सकता था कि अंदर का पैर नकली है

परीशे ने जूते से अपनी नज़र हटाई और उफुक के शांत चेहरे को देखा...


वह अभी भी सामने देख रहा था। वह उसकी शहद रंग आँखों में झिलमिलाती पुरानी यादों को देख सकती थी। वे सुनहरे पुराने दिन, जब वे तीनों अंकारा की गलियों में बारिश में भीगते थे। जब तीनों कक्षा की परीक्षा में नकल करते पकड़े जाते और टीचर अहमद की मासूम सूरत और भोलापन देखकर उसे छोड़ देतीं, लेकिन अफक और जेनिक को सज़ा मिलती। बाद में वे उससे खूब लड़ते... और वह दिन जब अफक और जेनिक ने अपनी पोल खोलने पर अहमद को बर्फीले पानी से भरे तालाब में धकेल दिया था। वह ठंडे पानी में हाथ-पैर मारते हुए चीख रहा था, उन्हें गालियाँ दे रहा था और वे दोनों खड़े होकर हँस रहे थे। और फिर हँसते-हँसते अफक ने जेनिक को भी अंदर धक्का दे दिया था। अब वे दोनों तालाब के अंदर थे और वह बाहर अकेला खड़ा हँस रहा था।

आज फिर वह अकेला था।
अहमद नहीं था।
जेनिक नहीं था।
ज़िंदगी के हर सफर में वे दोनों हमेशा साथ थे। यह पहली बार था जब जेनिक उसे छोड़कर चला गया था।

रोस्ट्रम पर खड़ा कमेंटेटर अहमद दुरान की विधवा को बुला रहा था।
सलमा बहुत धीमे से उठी और छोटे-छोटे कदमों से चलती हुई दो फीट ऊँचे मंच पर खड़े राष्ट्रपति तक पहुँची और अहमद का "सितारा-ए-इसार बाद-ए-शहादत" स्वीकार किया। फिर आँखें रगड़ती हुई, मुश्किल से खुद को संभालती हुई वापस आई।

फिर अफक हुसैन अर्सलान का नाम पुकारा गया।
वह अपनी सीट से उठा और धीरे-धीरे चलते हुए स्टेज तक आया। काले सूट में वह बहुत अच्छा लग रहा था। उसने राष्ट्रपति से हाथ मिलाया। राष्ट्रपति ने उसकी प्रशंसा करते हुए उसके पैर की ओर इशारा किया। अफक ने सिर झुकाकर अपने बाएँ पैर को देखा। हॉल में मौजूद सभी लोगों की निगाहें उसके कदमों पर टिक गईं।

अफक ने अपना बायाँ पैर हल्का-सा ऊपर उठाया, फिर उसे वापस ज़मीन पर रखते हुए कंधे उचकाए, जैसे कह रहा हो, "मैं क्या कर सकता हूँ?" उसके चेहरे पर बेहद उदास मुस्कान थी।

पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। राष्ट्रपति अफक के कोट पर "सितारा-ए-इसार" लगा रहे थे और सभी दर्शक अपनी सीटों से खड़े होकर एक बहादुर तुर्क के लिए तालियाँ बजा रहे थे। तालियाँ बजाने वालों में परीशे जहांज़ैब भी थी, जो आँखों में नमी लिए बहुत गर्व से अफक को देख रही थी।


"हम मुज़फ़्फराबाद जा रहे हैं।"
दोपहर के समय, जब वे मरी की उस घुमावदार सड़क पर आगे-पीछे चलते हुए अपने गेस्ट हाउस की ओर जा रहे थे, जहाँ वे सरकारी मेहमान के रूप में ठहरे थे, अर्वा ने अपनी भाषा में सलमा को बताया और आगे दौड़ गई।

गेस्ट हाउस पहाड़ की चोटी पर था। वहाँ तक जाती सड़क धीरे-धीरे ऊँचाई पर बढ़ती जाती, यहाँ तक कि गेस्ट हाउस की खूबसूरत इमारत तक पहुँच जाती। परीशे को सलमा के साथ इस ऊबड़-खाबड़ सड़क पर चलते हुए अनायास ही मरी की वह सड़क याद आ गई, जो इससे बहुत मिलती-जुलती थी।

"मैं आ रही हूँ।"
सलमा ने दौड़ती हुई अर्वा को ऊँची आवाज़ में कहा। अर्वा अब दौड़ते हुए अफक से भी आगे निकल चुकी थी, जो उनसे काफी ऊपर चढ़ाई पर सिर झुकाए, जेबों में हाथ डाले चढ़ रहा था।

"तुम मुज़फ़्फराबाद जा रही हो?"
दोनों चुपचाप छोटे-छोटे कदमों से ऊपर चढ़ रही थीं, जब परीशे ने उदासी से पूछा। यह बारिश से ठीक पहले का मौसम था, जो उसे हमेशा उदास कर देता था।

सलमा ने गहरी साँस लेते हुए सिर हिलाया।
"मिस्टर और मिसेज़ ओरहन यकीन और अर्वा का परिवार, एक तुर्क अनुवादक और तुर्क राजदूत के साथ मुज़फ़्फराबाद जा रहे हैं। तुम्हारे सरकारी टीवी की टीम भी उनके साथ होगी, वे 'सितारा-ए-इसार' पाने वाले तुर्क नागरिकों पर डॉक्यूमेंट्री बना रहे हैं, जो शायद आज तुम्हारे सरकारी चैनल पर प्रसारित होगी।"

वे दोनों सड़क के किनारे सफेद पत्थरों की बाड़ के साथ चल रही थीं। अफक उनसे काफी आगे, सड़क के सबसे ऊँचे स्थान पर खड़ा हो गया था। जेबों में हाथ डाले, उसने सिर उठाकर ऊपर काले बादलों से ढके आकाश को देखा।

"लगता है बारिश होने वाली है।"
उसके शब्द होंठों पर ही थे कि बादल बरसने लगे।

सलमा ने हाथ में पकड़ी गुलाबी छतरी खोल ली। परीशे भीगने से बचने के लिए छतरी के नीचे आ गई।

"क्या तुम मुज़फ़्फराबाद आओगी?"
दोनों तेज़ होती बौछारों में भी ऊपर चढ़ रही थीं।

"नहीं।"

"क्यों?"
सलमा अचानक बीच सड़क पर रुककर उसे देखने लगी। छतरी उसने पकड़ रखी थी। परीशे बारिश के कारण उसके और करीब खिसक आई।

"मैं पहाड़ों में वापस नहीं जाना चाहती।"

"और... अफक?"
सलमा ने कहते हुए गर्दन घुमाकर सड़क की ऊँचाई पर देखा, जहाँ वह अब भी खड़ा बारिश में भीग रहा था।

"वह भी वापस नहीं जाना चाहता।"

सलमा ने समझने वाले अंदाज़ में सिर हिलाया।
"तुम सही कह रही हो। हम अपनी ज़िंदगियों में बहुत बड़े नुकसान से गुज़र चुके हैं।"
फिर उसने अधीरता से अपने होंठ दबाए।

"जानती हो परी! यह सब मुज़फ़्फराबाद क्यों जा रहे हैं? वे नीलम स्टेडियम में आर्मी कैंप का आखिरी तंबू देखना चाहते हैं, जहाँ अहमद और जेनिक ने अपनी आखिरी रात गुजारी थी। मगर मैं... मैं मुज़फ़्फराबाद की हवाओं और नीलम के पानी से पूछना चाहती हूँ कि हमसे बिछड़ने से पहले वे कैसे दिखते थे? मैं उस बच्ची की कब्र देखना चाहती हूँ, जिसकी लाश निकालते हुए अहमद खुद लाश बन गया। मैं उस तंबू की मिट्टी पर घुटनों के बल बैठकर रोना चाहती हूँ, मुझे उस लाल मिट्टी और नीलम के पानी में अपने आँसू बहाने हैं।"

छतरी अभी भी उनके सिर पर तनी थी, मगर सलमा का चेहरा पूरी तरह भीग चुका था।

"अफक, जेनिक, और अहमद को जानने वाला हर इंसान यह कहता था कि अहमद सिर्फ़ देखने में मासूम था, असल में वह बहुत शरारती था। लेकिन मैं तुम्हें बताऊँ परीशे, मैंने उसके साथ आठ साल गुज़ारे हैं... वह अंदर से भी बच्चों जैसा ही मासूम था।"

वह चेहरा हाथों में छुपाकर फूट-फूटकर रो दी।
छतरी उसके हाथों से फिसलने लगी, परीशे ने झट से छतरी पकड़ ली।

"मैं चलती हूँ।"
कुछ देर बाद उसने अपना भीगा चेहरा साफ किया।
"मुझे एक आखिरी बार हिमालय के आसमान तले रोना है, उन सभी दोस्तों के लिए जो चोटियों से लौटकर नहीं आए। अहमद दुरान के लिए... अरसा बुखारी के लिए... जेनिक यकीन के लिए..."

आज आखिरी बार रो लो, फिर हम इन बेरहम पहाड़ों में कभी नहीं आएँगे...
आज शाम हम अपनी...


"अतीत को यहीं दफन कर जाएंगे—"
सुलमी के होंठों पर एक घायल मुस्कान फैल गई। "मैं कोशिश करूंगी—" फिर उसने गर्दन घुमा कर दूर खड़े अफ़क को देखना शुरू किया, जिसका काला कोट पूरी तरह भीग चुका था।
"अफ़क!" सुलमी ने फिर आवाज दी।
अफ़क ने गर्दन तिरछी करके नीचे उन दोनों को देखा, फिर जेबों में हाथ डालते हुए ढलान से नीचे उतरने लगा।
"तुम बारिश में क्यों भीग रहे थे? चलो, छतरी के नीचे आओ—" वह पूरी तरह भीग चुका था, भूरे बाल माथे पर चिपके थे। सुलमी की बात पर वह धीरे से मुस्कुरा कर छतरी के नीचे आया और प्रिशे के हाथ से ले ली।
"मैं चलती हूं—" सुलमी छतरी के नीचे से निकल कर बरसती बारिश में ऊपर सड़क पर चढ़ने लगी।
वह दोनों छतरी तले खड़े शांतिपूर्वक मुसलधार बारिश में उसे ऊपर जाते देख रहे थे।
जब वह निगाहों से ओझल हो गई, तो अफ़क ने चेहरा उसकी तरफ किया।
"अब तुम बीस साल बाद अपने यात्रा-वृतांत में ये लिख सकते हो कि जब तुम इस्लामी दुनिया के सबसे ताकतवर देश गए तो उसके 'पदशाह' ने तुम्हारी खूब आवभगत की—आदि आदि—"
वह धीरे से मुस्कराया और गर्दन घुमा कर दूर-दूर तक फैली मारगला की पहाड़ियों को देखने लगा। प्रिशे ने उसकी निगाहों का पीछा करते हुए उन पहाड़ी श्रृंखलाओं को देखा। उन सभी पहाड़ों से दूर, बहुत दूर, हिमालय, हिंदू कुश और कराकोरम के पहाड़ शुरू होते थे। वह उन्हें वहां से न देख पाने के बावजूद देख सकती थी, जहाँ व्हाइट पैलेस की सीढ़ियों के साथ लगे पिंजरे में क़ैद वह मोरों का जोड़ा उस तुर्की गीत को याद करता था, जो कभी एक शहद रंग की आँखों वाले सैलानी ने उन्हें सुनाया था। माहोडंड के किनारे उगने वाला घास का मैदान आज भी उस घोड़े को याद करता था, जिससे कभी कराकोरम की एक परी उतरी थी।
वहाँ दूर-दूर तक फैले पहाड़ थे— रहस्यमय काले पहाड़, जो अपनी निर्दयी चेहरों पर सफेद चादर की बकल मार कर अपने अंदर ढेर सारे राज़ दफन किए, बहुत गर्व से कई सदियों से ज़मीन पर सिर उठाए खड़े थे। इन पहाड़ों के बीच एक ऐसा पहाड़ भी था, जिसकी बर्फ आज तक नहीं पिघली थी। वह आज भी बहुत घमंड से, बहुत मजाकिया तरीके से दुनिया वालों को देख रहा था।
लोग इन पहाड़ों को कई नामों से पुकारते हैं—
रागापोशी
The Shining Wall
दुमानी
The Mother of Mist
पहाड़ों की देवी
कराकोरम का ताज महल
इस पहाड़ का NW रीज आज तक अजेय है, इसे 2005 के बाद किसी ने भी चढ़ने की कोशिश नहीं की।
उसने गर्दन घुमा कर अफ़क को देखा, जो किसी गहरी सोच में था।
अफ़क हुसैन, स्टार एथेसर, क्या सोच रहे हो?
उसके व्यक्तव्य पर धीरे से हंसा।
"मुझे काफी समय से अपने आप में अधूरापन महसूस हो रहा था। आज मुझे इस अधूरेपन का राज़ मिल गया, प्रिशे।"
वे दोनों अभी तक तेज बारिश में छतरी के नीचे खड़े थे।
"अभी तुम सुलमी को कह रही थी, अब हम कभी पहाड़ों पर नहीं जाएंगे।" वह कहते-कहते रुक गया, प्रिशे को पता था आगे क्या कहने वाला है।
"याद है मैंने तुम्हें रागापोशी की परियों की कहानी सुनाई थी? शायद तुम्हें यकीन नहीं आया होगा, लेकिन मैं तुम्हें बताऊं, प्री, माता की चोटी पर सोने की परियां उतरती हैं, मैंने उन्हें खुद देखा है और तुम्हें भी दिखाना चाहता हूँ। मैं एक बार फिर एवरेस्ट जाना चाहता हूँ। मुझे नहीं पता इस बार बच के आऊँगा या नहीं, लेकिन जाना चाहता हूँ।"
सर्द हवा का झोंका छतरी उड़ा ले गया, मगर वह इसके पीछे नहीं गई, वह वैसे ही बारिश में भीगते रहे।
वह बहुत गौर से अफ़क को देख रही थी।
"लेकिन हमने वादा किया था कि अब हम कभी कराकोरम नहीं जाएंगे और अच्छे बच्चों की तरह घर में रहेंगे। हमने वादा किया था कि अब हम पर्वतारोही छोड़ देंगे।"
प्रिशे की बात पर मुस्कराया, उसने माथे पर आते भूरे बाल पीछे किए और उसे दोनों कंधों से थाम कर करीब किया। फिर उसी तरह पिछली कई घंटों से सोची जा रही बात कही, जो बारिश के पानी और काले बादलों ने भी सुनी।
"क्या पर्वतारोही भी कोई छोड़ने वाली चीज़ है?"