QARA QARAM KA TAJ MAHAL (PART 2)
दूसरी चोटी
शनिवार, 23 जुलाई 2005
"चौदह हजार प्रति व्यक्ति का पैकेज है। आठ दिन का टूर, सभी व्यवस्थाएँ कमेटी के ज़िम्मे... वाह यार, ज़बरदस्त!"
ज़ोआर भाई के ऑफिस से निकलते हुए निशा बहुत खुश थी।
"लगता है बारिश होने वाली है।"
सड़क किनारे बहुत धीरे-धीरे चलते हुए प्रीशे ने सिर उठाकर आसमान को देखा।
दोपहर के तीन बजे का वक्त था, मगर काले बादलों से ढका आसमान जुलाई की इस दोपहर को ठंडी शाम में बदल चुका था। वह एक वर्किंग डे था, शायद इसीलिए सड़क पर भीड़ न के बराबर थी। वरना, मरी जैसे घनी आबादी वाले इलाके में सड़क पर इक्का-दुक्का लोगों का इधर-उधर चलना काफ़ी असामान्य बात थी।
प्रीशे और निशा बातें करते हुए धीरे-धीरे ऊँचाई की ओर जाती सड़क पर चल रही थीं। वे जिस जगह पर थीं, वहाँ से सड़क नीचे थी और उनके सामने ऊपर की ओर उठती जा रही थी, यहाँ तक कि दूसरी दिशा से आने वाले व्यक्ति का पहले सिर और फिर धीरे-धीरे धड़ नज़र आता था। यह दरअसल किसी पहाड़ी की चोटी थी, जिसे काटकर सड़क बनाई गई थी।
सड़क के दाईं ओर गहरी खाई थी, जिससे बचने के लिए पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़ों की एक बाड़ बनी हुई थी। दोनों उस सफेद पत्थर के ब्लॉकों के साथ-साथ चल रही थीं।
"थक गई हो?"
निशा ने उसे सफेद चूने से ढके पत्थर के एक ब्लॉक पर खाई की ओर पीठ करके बैठते देखा, तो पूछ लिया।
"नहीं... बस यूँ ही।"
वह घुटनों पर कोहनियाँ टिकाकर, ठोड़ी को हथेली पर जमाए, ऊपर की ओर जाती सड़क को गर्दन ऊँची करके बहुत उदासी से देखने लगी। बारिश से कुछ पलों पहले का मौसम उसे हमेशा उदास कर दिया करता था।
"कहीं और बैठ जाओ, प्री! यहाँ से ज़रा भी पीछे हुई तो गिर जाओगी।"
निशा ने बहुत फ़िक्रमंदी से उसे इतनी खतरनाक जगह पर बैठे देखकर कहा। उसका हल्का गुलाबी और सफेद रंग का सूती सूट सफेद पत्थर के ब्लॉक का ही हिस्सा लग रहा था।
"नहीं गिरती।"
वह लापरवाही से गर्दन मोड़कर पीछे दिखने वाली हरी-भरी पहाड़ियों को देखने लगी। उस दिन मारगला की पहाड़ियों पर बादल छाए हुए थे। पानी से लदे भारी, स्लेटी बादलों ने फिर अचानक अपना भार बारिश की बूंदों के रूप में नीचे गिराना शुरू कर दिया।
प्रीशे ने अनायास अपनी दोनों बाँहें फैला दीं। बारिश की नन्ही-नन्ही बूंदें उसकी हथेलियों को भिगोने लगीं।
उसी क्षण, उसकी सुनने की शक्ति में कहीं दूर से किसी घोड़े के टापों की आवाज़ गूँजी।
उसने अपनी हथेलियाँ नीचे गिरा दीं और किसी स्वप्न जैसी अवस्था में सिर उठाकर ऊँचाई की ओर जाती सड़क को देखने लगी। उस ऊँचाई से पीछे का दृश्य उसकी नज़रों से ओझल था। टापों की आवाज़ वहीं से आ रही थी।
वह बिना पलक झपकाए उस ऊँचाई की ओर जाती सड़क को देखती रही। पहाड़ी के दूसरी ओर से कोई घोड़ा दौड़ाता हुआ इस ओर आ रहा था। हर गुज़रते पल के साथ घोड़े के टापों की आवाज़ तेज़ होती जा रही थी। उसे लगा कि वह सड़क के उस ऊँचे हिस्से से नज़रे हटा नहीं सकेगी। समय जैसे वहीं ठहर गया था। पल जैसे थम गए थे। बारिश की बूंदें हवा में रुक गई थीं। हर ओर ख़ामोशी थी।
आने वाले का सिर पहले नज़र आया। वह घोड़े की लगाम थामे उसे बहुत कुशलता से सड़क पर दौड़ाते हुए नीचे की ओर आ रहा था। उसका घोड़ा सफेद था—चूने के पत्थर के ब्लॉकों से भी ज़्यादा सफेद और चमकदार।
वह उसी ओर आ रहा था। उसकी नज़रें अपने घोड़े पर थीं।
प्रीशे बिना पलक झपकाए उसे देखे जा रही थी। इतनी दूर से भी वह देख सकती थी कि घुड़सवार की आँखों का रंग हल्का था—हल्का और बहुत चमकीला। उसकी रंगत सुनहरी-सफेदी लिए हुए थी। उसकी नाक खड़ी और यूनानी शैली की थी—घमंडी, बेहद घमंडी नाक।
उसने आधी बाँहों वाली नीली शर्ट के ऊपर बिना आस्तीन की सफेद लेदर जैकेट पहनी थी, जिसमें कई सारी जेबें थीं। गले में खूबसूरत लाल रंग का मफलर बंधा था। जैकेट और मफलर हल्के कपड़े के थे, जिनका मकसद सर्दी से बचाव नहीं बल्कि सिर्फ़ फैशन और स्टाइल था।
बरसती बारिश में उसके भूरे बाल माथे से चिपके हुए थे, मगर वह जैसे हर चीज़ से बेपरवाह अपने सफेद घोड़े पर ही ध्यान लगाए हुए था।
उसने अपना घोड़ा उन दोनों के पास, सफेद पत्थर के ब्लॉकों के करीब रोक दिया और गर्दन तिरछी करके पीछे की ओर मौजूद पहाड़ियों को देखने लगा। वह पीछे के दृश्य से शायद असंतुष्ट था। उसे शायद घोड़ा खड़ा करने की सही जगह नहीं मिल रही थी।
बारिश रुक चुकी थी। हवा फिर से चलने लगी थी।
प्रीशे के गीले बाल उसके चेहरे से टकरा रहे थे, मगर वह तो उस व्यक्ति से अपनी नज़रें हटा ही नहीं पा रही थी।
वह अब एक जगह घोड़ा खड़ा करके संतुष्ट हो चुका था। तभी, गले में लटके कैमरे के कवर से उसने कैमरा बाहर निकाला और चेहरे का रुख उन दोनों की ओर किया।
सुनो बात! उसने सीधे परीशे को संबोधित किया था। उस पल जैसे कोई जादू टूट गया। सभी सपने, खयाल खत्म हो गए। वह जैसे अब होश में आई और चौंककर खड़ी हो गई।
"जी," उसने अपने स्वाभाविक आत्मविश्वास के साथ गंभीरता से जवाब दिया। उसे खुद पर हैरानी हुई कि वह इतनी बेखुद और मंत्रमुग्ध क्यों हो गई थी?
घुड़सवार ने अपना कैमरा उसकी ओर बढ़ाया।
"क्या तुम मेरी एक तस्वीर खींच सकती हो?" वह शुद्ध अंग्रेज़ी में उससे मुखातिब था। उसका सिर खुद-ब-खुद हां में हिल गया। उसने कैमरा थाम लिया।
"सुनो, तस्वीर ऐसे खींचना कि यह घोड़ा और पीछे वाले पहाड़ अच्छे से आएं," वह, जो इतने देर से शायद इसी तस्वीर के लिए घोड़े को सही जगह पर खड़ा कर रहा था, अब बहुत सभ्य अंदाज में हिदायत दे रहा था।
उसने कैमरे को देखा, बिल्कुल वैसा ही ओलंपिक्स का डिजिटल कैमरा वह भी इस्तेमाल करती थी। उसने कैमरा चेहरे के सामने लाकर उसकी एलईडी स्क्रीन देखी और बिना "रेडी" कहे ही तस्वीर खींच ली।
"तुम्हारा शुक्रिया... लेकिन क्या इसमें पहाड़ आए?" बिना बताए तस्वीर लेने पर उस अजनबी घुड़सवार को हल्की बेचैनी हुई थी। उसने एक नजर उसकी शहद-रंगी आंखों में देखा और फिर सिर हिला दिया।
"हां, बहुत खूबसूरत तस्वीर आई है," निशा ने परीशे के हाथ में कैमरे की स्क्रीन पर मौजूद तस्वीर देखकर कहा, तो उसे याद आया कि निशा भी वहां मौजूद थी।
"वैसे, ये तुम्हारा घोड़ा है?" निशा ने अगला सवाल किया।
"नहीं, इसे मैंने एक आदमी से किराए पर लिया है। असल में, उसे घोड़े की लगाम थामे मेरे साथ-साथ चलना चाहिए था, लेकिन मैं इसे भगाकर यहां ले आया," वह शक्ल से बहुत घमंडी लग रहा था, मगर इस वक्त बहुत बेफिक्र होकर अंग्रेज़ी में बात कर रहा था।
अंग्रेज़ी? परीशे ने गौर से उसे देखा। वह अंग्रेज़ी में क्यों बात कर रहा था? उसे ध्यान से देखने पर एहसास हुआ कि घोड़े पर सवार वह भूरे बालों और गोरी रंगत वाला खूबसूरत आदमी पाकिस्तानी नहीं, बल्कि कोई विदेशी था। वह उसकी पहचान का सही अंदाजा नहीं लगा सकी थी।
"तुम दोनों एक मिनट रुको, मैं इस आदमी को उसका घोड़ा वापस कर आऊं," उसने फिर घोड़े को बड़ी कुशलता से मोड़ा और उसे तेजी से ऊपर जाती सड़क की ओर भगा ले गया।
"कितना गुड लुकिंग था यार!" निशा उसके जाते ही बेहद प्रशंसा भरे अंदाज में बोली।
"पता नहीं," परीशे ने सिर झटक कर दाईं ओर खड़े ऊंचे पहाड़ों की ओर देखा। बादल अब छंट रहे थे...
"ओह निशा! वह अपना कैमरा मुझे देकर चला गया!" एकदम से उसे हाथ में पकड़े कैमरे का ख्याल आया, तो वह परेशान हो गई।
"वापस आए तो दे देना," निशा ने लापरवाही से कहा।
हालांकि वह उसके लौटने से पहले ही वहां से निकल जाना चाहती थी, मगर हाथ में पकड़ा कैमरा उसे इंतजार करने पर मजबूर कर रहा था।
कुछ ही मिनटों बाद वह घुमावदार सड़क से नीचे उतरता उनकी ओर आता दिखाई दिया। घोड़े पर सवार होने की वजह से उसकी लंबाई का सही अंदाजा नहीं हुआ था, मगर जैसे ही वह करीब आया, परीशे को एहसास हुआ कि वह उससे काफी लंबा था।
"वह समझ रहा था कि मैं उसका घोड़ा लेकर भाग गया हूं!" उनके पास आकर वह हंसते हुए बता रहा था।
हंसते हुए उसकी शहद-रंगी आंखें छोटी हो जाती थीं। परीशे यह तय नहीं कर पाई कि वह हंसते हुए ज्यादा आकर्षक लगता है या जब उसके होंठ भिंचे होते हैं।
"तुम इतनी खतरनाक राइडिंग क्यों कर रहे थे?" निशा को बड़ों जैसा व्यवहार करने का शौक था, इसलिए उसने उसकी लापरवाही पर उसे डांटना अपना फर्ज समझा।
"मैडम! मैं पांच साल की उम्र से घुड़सवारी कर रहा हूं, और घोड़ों को बहुत अच्छी तरह जानता हूं," उसने मुस्कुराते हुए सिर झटका।
वह और निशा सड़क के किनारे धीरे-धीरे टहलने लगे, जबकि परीशे वहीं खड़ी रही। अचानक उसे कैमरे का ख्याल आया।
"सुनो!" दोनों ने मुड़कर पीछे देखा।
"तुम्हारा कैमरा!" उसने थोड़ा जोर से कहते हुए कैमरा उसकी ओर बढ़ाया। वह मुस्कुरा दिया।
"शुक्रिया!"
"सुनो, तुम्हें अपना इतना कीमती कैमरा देकर नहीं जाना चाहिए था। अगर मैं इसे लेकर भाग जाती तो?"
वह फिर मुस्कुराया। "मुझे पता था, तुम ऐसा नहीं करोगी," उसने सीने पर हाथ बांधते हुए जवाब दिया।
"अगर मेरी जगह कोई और होता तो?"
"अगर तुम्हारी जगह कोई और होता, तो मैं कैमरा कभी देता ही नहीं," उसने हल्की मुस्कान दबाते हुए गंभीरता से कहा।
"हूं!" परीशे ने सिर झटक कर दूसरी ओर नजर घुमा ली। सड़क के उस पार दुकानों की कतारें दिख रही थीं, और वहां भीड़ बढ़ती जा रही थी।
निशा ने इस "बदतमीज़ी" पर उसे घूरा, मगर वह उसे देख ही नहीं रही थी।
घुड़सवार ने गर्दन झुका कर कैमरे की स्क्रीन पर नजर डाली और हल्का-सा मुस्कराया।
"अच्छी तस्वीर खींचने के लिए शुक्रिया," तस्वीर देखकर उसने कहा और कैमरा कवर में रख दिया।
परीशे ने कोई जवाब नहीं दिया, बस दुकानों की ओर देखने लगी, जैसे उसे कोई दिलचस्पी ही न हो।
"तुम इस तस्वीर का क्या करोगे?" निशा ने बातचीत को जारी रखने के लिए पूछा।
"मैं बीस साल बाद एक यात्रा वृतांत (ट्रैवलॉग) लिखूंगा, और इसके कवर पर यह तस्वीर लगाऊंगा," उसने गर्व से कहा।
"और इसका कैप्शन क्या होगा?" निशा ने उत्सुकता से पूछा।
"मैं इसके नीचे लिखूंगा – 'इस पर्वतारोही की तस्वीर, जो राका-पोशी फतह करने जा रहा था।'"
परीशे ने तेजी से उसकी ओर देखा। उसे हल्का झटका लगा।
"तुम... तुम राका-पोशी चढ़ने जा रहे हो?" यह सवाल पूछने के बाद उसे याद आया कि उसे खुद को इस बातचीत से अलग रखना चाहिए था। उसे पछतावा हुआ।
"हां!" परीशे की बेबाकी पर उसने अपनी मुस्कान दबाने की पूरी कोशिश की।
"खैर, राका-पोशी फतह करना कोई बड़ी बात नहीं, एवरेस्ट या के-2 चढ़ना असली उपलब्धि है," कहकर उसने फिर से दुकानों की ओर देखना शुरू कर दिया।
"वैसे, हम कल एक टूर कंपनी के साथ कालाम जा रहे हैं," निशा ने बताया।
घुड़सवार ने आंखें सिकोड़कर "सनशाइन ट्रैवल्स" की ओर देखा और हल्का-सा सोचा, फिर बोला, "मैं भी कल वहीं जा रहा हूं, सनशाइन ट्रैवल्स के साथ। तुम किसके साथ जा रही हो?"
"क्या सच में? तो तुम हमारे साथ ही जा रहे हो!" निशा इस "संयोग" से बहुत खुश हुई, जबकि परीशे को शक हुआ।
"ये तो बहुत अच्छी बात है! वैसे, तुम्हारे दोस्त भी जा रहे हैं?" परीशे ने मुस्कान दबाए, मासूमियत से पूछा।
"हां, लेकिन तुम्हें कैसे पता कि निशा मेरी दोस्त है?"
"बहुत आसान... वह खूबसूरत है।"
निशा हंस पड़ी, जबकि परीशे के माथे पर नापसंदगी की लकीरें उभर आईं।
"मैं निशा हूँ, निशा सईद, और यह मेरी कज़िन कम दोस्त है, डॉक्टर परीशे जहानज़ैब।"
"पारी शै?" उसने अपने यूरोपीय लहजे में उसका नाम दोहराया।
"पारी शै नहीं, परी...शे।"
"तुम मेरे नाम के पीछे क्यों पड़ी हो, निशा?" खुद को यूँ बातचीत का विषय बनता देख, वह तंग आकर उर्दू में बोल उठी।
"यह शिष्टाचार के खिलाफ़ है। तुम्हें मेरी मौजूदगी में अपनी भाषा में बात नहीं करनी चाहिए।"
वह लगातार परीशे को देख रहा था। एक तो कमबख्त बला का हैंडसम था, ऊपर से इतनी खूबसूरत आँखों से उसे टकटकी लगाए देख रहा था कि वह बेवजह घबरा गई।
"तुम्हारी कज़िन के नाम का मतलब क्या है?"
"परी जैसी लड़की। यह ईरान की एक राजकुमारी का नाम था, इसलिए तो मैं इसे 'परी' कहती हूँ।"
"तुम्हारी कज़िन पर यह नाम सूट भी करता है। परी मतलब फ़ेयरी? हमारी भाषा में भी फ़ेयरी को 'परी' ही कहते हैं।"
"तुमने अपना परिचय नहीं दिया?"
"ओह, सॉरी! मैं अफ़क अर्सलान हूँ, तुर्की से आया हूँ। वैसे तो पेशे से इंजीनियर हूँ, लेकिन साथ में एक अनुभवी पर्वतारोही भी हूँ। तुम्हारे पाकिस्तान में दुनिया के सबसे खूबसूरत पहाड़, राकापोशी के लिए आया हूँ।"
उसने झुककर अपना परिचय दिया। "और तुम लोग क्या करती हो?"
"निशा! हमें देर हो रही है। मैं गाड़ी की तरफ जा रही हूँ, चलना है तो चलो!"
थोड़ा गुस्से में कहकर वह तेज़ कदमों से गाड़ी की ओर बढ़ गई। जल्दी में अफ़क अर्सलान को ख़ुदा हाफ़िज़ कहकर निशा भी दौड़ते हुए उसके पीछे पहुँची।
"तुम्हारी दिक्कत क्या है, निशी? ना जान, ना पहचान, बेवजह किसी अजनबी, वो भी गोरे के साथ यूँ सड़क पर खड़े होकर बातें करने का क्या मक़सद?" ड्राइविंग सीट का दरवाज़ा खोलते हुए वह निशा पर बरस पड़ी। कुछ ही दूरी पर वह तुर्की सैलानी सफेद चौकोर ब्लॉक्स के पास अभी भी खड़ा था। अचानक उसने परी को देखकर हाथ हिलाया, जिसे परी ने नज़रअंदाज कर दिया।
"भाई, मेरा मुसलमान भाई है, एक इस्लामिक देश से आया है, हमारा मेहमान है। मेरा धार्मिक फ़र्ज़ बनता है कि मैं उसकी मेहमाननवाज़ी करूँ।"
"अच्छी तरह जानती हूँ मैं तुम्हें, मुसलमान लड़की!" गाड़ी इस्लामाबाद की तरफ मोड़ते हुए उसने दाँत पीसे।
"क्या हम किसी और टूर कंपनी के साथ ना चले जाएँ?"
"इस बात का तो ज़िक्र ही मत करना! अगर हम इसी टूर कंपनी के साथ नहीं जाएँगे, तो फिर कहीं नहीं जाएँगे!" निशा ने ठंडे लहजे में फैसला सुना दिया।
वह चुपचाप ड्राइविंग करती रही। आठ दिन निदा आपा के साथ या आठ दिन उस तुर्क सैलानी के साथ? उसके पास सिर्फ़ एक ही रास्ता बचा था, क्योंकि निदा आपा के साथ आठ दिन बिताने की वह सोच भी नहीं सकती थी।
जब वह निशा को छोड़कर घर पहुँची तो फोन बज रहा था। उसने रिसीवर उठाया—
"हेलो?"
"तुम अपनी कज़िन के साथ कहाँ जा रही हो?" सैफ का कठोर पूछताछ वाला लहजा था।
"कालाम, और भी लोग जा रहे हैं।"
"मामू ने मुझसे पूछे बिना तुम्हें अकेले जाने की इजाज़त कैसे दे दी? क्या अब हमारे परिवार की लड़कियाँ दूर-दराज़ इलाकों में बिना बाप-भाई के घूमती फिरेंगी?"
वह उससे साफ़ तौर पर नाराज़ था।
"पापा ने मुझे इजाज़त दे दी है, सैफ!" उसे डर था कि कहीं एक नया मसला ना खड़ा हो जाए।
"लेकिन मैं कह रहा हूँ कि तुम ऐसे नहीं जाओगी। अपनी कज़िन को मना कर दो!"
हुक्म देने वाला अंदाज़! वह बेबसी से होंठ काटकर रह गई।
"हम स्कूल में भी तो टूर पर जाया करते थे, एक भरोसेमंद ट्रैवल एजेंसी के साथ—"
"यह यूके नहीं है, परीशे!" उसका लहजा सख़्त था।
"बस, तुम अपनी कज़िन को मना कर दो।"
"अच्छा!" परीशे ने फोन रख दिया।
कुछ पलों तक वह मायूस होकर फोन को देखती रही, फिर निशा का नंबर डायल किया।
"मेरी आवाज़ सुने बिना चैन नहीं आ रहा, जो घर पहुँचते ही फोन कर रही हो?"
"निशा! अगर मैं कालाम न जाऊँ तो?"
एक पल के लिए निशा चुप हो गई।
"परी!"
थोड़ी देर बाद वह बोली—
"वो एक अच्छा इंसान है। तुम उसके साथ अनकंफर्टेबल महसूस नहीं करोगी।
"मुझ पर भरोसा करो, परी!"
"नहीं निशा, सैफ ने मना किया है।"
"व्हाट द हेल?" उसका गुस्सा भड़क उठा।
"वो होता कौन है तुम्हें मना करने वाला? मैं तो अब तक तुम्हारी सगाई को ही नहीं मान पाई। तुम दोनों एक-दूसरे के लिए बने ही नहीं हो! लेकिन शायद तुमने शादी से पहले ही उसकी गुलामी क़बूल कर ली है। ठीक है, फाइन! मैं बेवजह तुम्हारे लिए परेशान होती हूँ। जहन्नुम में जाओ तुम, जहन्नुम में जाए सैफ, जहन्नुम में जाए अफ़क अर्सलान!"
एक फीकी मुस्कान परीशे के होंठों पर बिखर गई।
"मैंने उसकी गुलामी नहीं कबूली। और सुनो, मैंने प्रोग्राम भी कैंसल नहीं किया। लेकिन अगर तुमने मेरे नाम के साथ अफ़क का नाम फिर लिया, तो मैं वाकई प्रोग्राम कैंसल कर दूँगी!"
बिना कुछ और कहे उसने फोन रख दिया।
उसे सैफ के गुस्से की परवाह नहीं थी। कालाम से वापस आने के बाद उसकी शादी हो ही जानी थी, दिल तब मर ही जाना था। और शायद सैफ जैसे इंसान के साथ ज़िंदगी शुरू करने के बाद उसे किसी चीज़ की परवाह न रहे—
न दुख की, न खुशी की।
शायद तब वह बिल्कुल बेसुध हो जाए।
लेकिन इस बेसुधी के दौर से पहले, सिर्फ आठ दिन,
वह ज़िंदगी के साथ जीना चाहती थी।