QARA QARAM KA TAJ MAHAL( PART 1)
नवा-ए-वक्त, मंगलवार, 16 अगस्त 2005
"राकापोशी पर ग्लेशियर फटने से पर्वतारोही लड़की गिरकर हلاک"
हुनजा (AFP) – राकापोशी फतह करने वाली टीम की एक लड़की ग्लेशियर फटने से कई फीट गहरे दरार में गिरकर हلاک हो गई। विदेशी समाचार एजेंसी के अनुसार, बीती सुबह तीन से चार बजे के बीच पाक-तुर्क-ब्रिटिश अभियान की एक पर्वतारोही, चढ़ाई के दौरान बर्फ फटने से बनी दरार में गिर गई। अभियान दल ने लड़की की तत्काल मौत की पुष्टि कर दी। अधिक जानकारी नहीं मिल सकी।
बुधवार, 20 जुलाई 2005 – एक माह पहले
सफेद गेट पार कर उसने कुछ पल रुककर चारों ओर नजर दौड़ाई। गेट के आगे सफेद पत्थरों से बनी एक सुंदर और लंबी ड्राइववे थी, और दाईं ओर एक खुला-सा लॉन था। लॉन के किनारे बने आधुनिक शैली के बरामदे में चार कुर्सियाँ रखी थीं, जिनमें से एक पर निशा बैठी थी। उसके हाथ में सुबह का अखबार था, जिसे वह आदतन शाम को ही पढ़ा करती थी।
निशा को सामने देखकर वह तेज कदमों से ड्राइववे पार कर बरामदे तक आई। इससे पहले कि निशा उसके स्वागत के लिए उठती, उसने एक हाथ कमर पर रखा, भौंहें चढ़ाईं और नाक सिकोड़ते हुए पूछा,
"यह लड़का कौन था?"
"कौन-सा लड़का?" निशा ने अखबार मोड़कर मेज़ पर रख दिया, उसके लहजे में हैरानी थी।
"वही जो बाहर खड़ा था।"
"बाहर खड़ा था?" निशा हैरान-सी खड़ी हो गई। उसने एक नजर प्रिशे के बिगड़े हुए हाव-भाव और उसके थानेदार जैसे अंदाज को देखा।
"किसकी बात कर रही हो?"
"वही, जो हसीब के साथ बाहर खड़ा था।"
"ओह! वो? वह हसीब का दोस्त है, मिलने आया था और अब तो वापस जा रहा था। क्यों, खैरियत?"
"खैरियत? मुझे देखकर उस बदतमीज़ लड़के ने सीटी बजाई! आजकल के लड़कों को शर्म तो आती नहीं। आने दो हसीब को, अभी पूछती हूँ कि किस तरह के वाहियात लोगों से दोस्ती रखता है!"
"कम ऑन, प्री!" निशा ने हंसते हुए अपनी मुस्कान दबाई और उसे देखा।
सादे गुलाबी सलवार-कुर्ते में, अपने सीधे और बेहद काले बालों को ऊँची पोनीटेल में बाँधे, पैरों में सफेद और हल्के गुलाबी जूते पहने वह गुस्से से निशा को घूर रही थी।
"भई, सीटी बजा दी तो क्या हुआ, बच्चा है।"
"हाँ, छह फीट का बच्चा?"
"हसीब का क्लास फेलो है, यानी होगा सत्रह-अठारह साल का, मतलब उम्र में हमसे कम से कम आठ साल छोटा। तो बच्चा ही हुआ न?"
"और यह तेरे हाथ में क्या है?"
"लो, मरी क्यों जा रही हो? तुम्हारे लिए ही है। बीफ चिली बनाया था, सोचा कुछ तुम्हें भी दे आऊँ।" उसने डोंगा निशा को दिया, उसका मूड अभी भी खराब था।
"वाह! मम्मी को बीफ चिली बहुत पसंद है।"
"हाँ तो मामी के लिए ही लाई हूँ, कौन-सा तुम्हारे लिए बनाया है!"
"निशा आपी! दरअसल, प्री आपा हमें बीमार करके अपनी डॉक्टरी चमकाना चाहती हैं!"
अपने दोस्त को विदा करके हसीब भी वहाँ आ पहुँचा था।
"तुम्हारे लिए नहीं है, मुँह धो रखो।"
"शेरों के मुँह धुले होते हैं, आपा!"
"हाँ, याद आया। तुम्हें तो मामू और मामी चिड़ियाघर से लाए थे!"
"कम ऑन!" हसीब हँसने लगा। "वैसे किस लफंगे की बात हो रही थी?"
"वही, जिसके साथ बाहर गेट पर खड़े तुम ठहाके लगा रहे थे। वह बदतमीज़ लड़का मुझे देखकर सीटी बजा रहा था। कैसे लड़कों से दोस्ती है तुम्हारी?"
"अरे, वो मेरा दोस्त है। बड़े बाप का बेटा है और वह आपको देखकर सीटी नहीं बजा रहा था, वह तो बस उसकी आदत है। कभी ध्यान मत दो, थोड़ा स्पॉइल्ड चाइल्ड है!"
अपने दोस्त का बचाव करते हुए हसीब मेज़ पर रखे डोंगे से बीफ के मसालेदार टुकड़े उठाकर खाने लगा। "और संभलकर आपा, उसका बाप पाकिस्तान के राष्ट्रपति का दोस्त है।"
प्री ने कोई जवाब नहीं दिया, बस बड़बड़ाकर रह गई। फिर जाने के लिए खड़ी हो गई।
"कहाँ जा रही हो? मम्मी को सलाम तो कर लो!"
"पचास गज की दूरी पर मेरा घर है। फिर आ जाऊँगी, अभी मुझे जाना है।"
"भई, ब्रेकिंग न्यूज़ तो सुनती जाओ! हसीब और उसके चार दोस्त राकापोशी बेस कैंप का ट्रैक कर रहे हैं!"
"तो करते रहें!"
निशा ने जैसे कोई बड़ी खबर सुनाई थी, मगर प्री ने लापरवाही से कंधे उचकाए।
"प्री आपा! ये जताने की कोशिश कर रही हैं कि इन्हें जलन नहीं हो रही!" हसीब ने शरारत से मुस्कुराकर कहा।
"मुझे जलन हो भी नहीं रही!"
जब वह लिविंग रूम में पहुँची तो फुफ्फू और नदा आपा एक ही सोफे पर बैठी फुसफुसा रही थीं। उसे देखते ही सीधी हो गईं।
"तुम कहाँ गई थीं?"
"वो निशा की तरफ गई थी, उसके कुछ बर्तन रखे थे।"
"सुनो प्री! ज्यादा मेलजोल मत रखा करो उन लोगों से। बुरा मत मानना, मगर तुम्हारे मामू की लड़की बहुत चालाक है। माँ भी वैसी ही है। देखने में मासूम लगती हैं, मगर अंदर से बिल्कुल अलग।"
"और वह निशा तो जब भी बात करो, सीधे मुँह जवाब ही नहीं देती!"
प्री चुपचाप सुन रही थी। वह जानती थी कि फुफ्फू निशा और मामी के खिलाफ क्यों बोलती थीं। उन्हें डर था कि कहीं निशा प्री को उनके खिलाफ न भड़काए। उन्हें चिंता थी कि कहीं मामू और मामी प्री की मंगनी तुड़वाने के लिए जहानज़ेब साहब पर दबाव न डाल दें।
वह ट्रॉली देखते हुए सोच में डूबी थी।
"बाजी! यह ले जाएँ।"
वहीद (नौकर) की हल्की आवाज़ ने उसे विचारों से बाहर निकाला। उसने चौंककर उसे देखा और ट्रॉली थाम ली।
"अरे हे परी बेटा, ये क्या लड़कों की तरह जूते पहनकर घूम रही हो? कोई सैंडल या हील वाली जूती पहना करो।" चाय के साथ अन्य सामान रखते हुए फूफो ने हमेशा की तरह उसके जूतों पर आपत्ति जताई।
"और क्या, वो पर्पल वाली सैंडल ही पहन लेती जो तुम्हें सैफ भाई ने लाकर दी थी।" नदा आपा अपने बच्चों को केक खिलाते हुए बोलीं। अब वह उन्हें क्या बताती कि सैफ की पसंद उससे बिल्कुल अलग थी। वह चमकीले रंग और बाहरी दिखावे को देखता था, जबकि वह हल्के रंगों और गुणवत्ता को प्राथमिकता देती थी।
"जी बेहतर।" वह सिर झुकाते हुए उनके सामने बैठ गई। उसे मालूम था कि जब तक वे दोनों वहाँ बैठी हैं, उनकी आपत्तियाँ खत्म नहीं होंगी।
रात आठ बजे तक जहांज़ेब साहब भी आ गए। वे हमेशा की तरह इन लोगों को देखकर बहुत खुश हुए। रोशन और सनी को खूब प्यार किया, क्योंकि उनकी ज़िंदगी की सारी रौनक इन्हीं लोगों से थी। उनके सामने उनकी आवाज़ की टोन बदल जाती थी।
"परी, वहीद से कहकर अच्छा सा खाना बनवाना—कड़ाही, बिरयानी, और कुछ और भी जोड़ लेना।" उन्होंने धीमे से परीशे को हिदायत दी।
उसका दिल चाहा कह दे, "पापा, ये लोग रोज़ तो यहाँ खाना खाते हैं, फिर हर रोज़ इतना इंतज़ाम क्यों?"
मगर वह जानती थी कि पापा इन लोगों को कितना चाहते हैं, इसलिए वह उन्हें बातें करता छोड़कर खुद किचन में आ गई।
फूफो की फैमिली हर दूसरी शाम यही होती थी, और उसे कभी इतनी परेशानी नहीं होती थी जितनी आज हो रही थी। शायद इसलिए कि आज निशा ने उसे बरसों पुरानी एक भूली-बिसरी बात याद दिला दी थी।
पुरानी यादें, टूटे सपने, बिखरे अरमान हर इंसान को थका देते हैं। उसके ऊपर भी अजीब-सी थकान और बेचैनी सवार हो रही थी।
"मामा, मैं ये खा लूँ?" नौ साल के रोशन ने फ्रिज खोलकर उसमें से पीनट बटर का जार निकालते हुए दूर से माँ को आवाज़ दी।
"हाँ, बेटा, खा लो, तुम्हारे नाना का घर है।" नदा आपा ने लापरवाही से कहा। और वह, जिसने मलेशियन चिकन बनाने के लिए इतना बड़ा जार मंगवाया था, बेबसी से अपनी मुट्ठियाँ भींचकर रह गई।
सनी पूरे घर में दौड़ रहा था। उसे खीझ हो रही थी, मगर वह चुप रही।
फिर कुछ ही मिनटों बाद, जब वह चावल को दम दे रही थी, उसे बिल्ली की दर्दनाक चीखने की आवाज़ आई।
"या अल्लाह!" उसने घबराकर चम्मच मेज़ पर रखा और दौड़ती हुई किचन से बाहर निकली। बाहर ज़मीन पर उसकी पालतू बिल्ली को रोशन ने पकड़ा हुआ था और सनी उसकी पूंछ में माचिस की तीली से आग लगा रहा था।
बिल्ली दर्द से छटपटा रही थी और चीख रही थी।
"हटो तुम दोनों!" उसने जोर से सनी के माचिस वाले हाथ पर थप्पड़ मारा, बिल्ली को रोशन से खींचा और माचिस की डिब्बी अपने कब्जे में कर ली।
"ये क्या कर रहे थे तुम लोग?"
"आपको क्या दिक्कत है? जो भी कर रहे थे, हमारी मर्ज़ी! हमारे नाना का घर है! आप कौन होती हैं पूछने वाली?"
सनी को थप्पड़ पड़ा था, जिसका जवाब उसने बेहद बदतमीज़ी से दिया।
पूरे दिन की खीझ, बेचैनी, निशा की कही बात, फूफो और नदा आपा की तानेबाज़ी, इन दोनों की बदतमीज़ियाँ—सब कुछ उसने सह लिया था, मगर सनी की इस बदतमीज़ी पर उसकी सहनशक्ति जवाब दे गई। उसने एक ज़ोरदार थप्पड़ सनी को और दो थप्पड़ रोशन को लगाए।
"दफ़ा हो जाओ यहाँ से तुम दोनों!"
दर्द से चीखती बिल्ली को अपनी गोद में संभालते हुए उसने गुस्से से कहा और वापस किचन में चली गई।
दोनों ज़ोर-ज़ोर से रोते हुए नदा आपा के पास चले गए। ठीक उसी समय सैफ भी आ गया। वह ऑफिस से सीधा यहीं आया था, उसका कोट उसके हाथ में था। घर इसलिए नहीं गया था क्योंकि उसे पता था कि वहाँ खाना नहीं बना होगा।
"क्या हुआ है? किसने मारा?"
नदा आपा ने दोनों को रोते देखकर हंगामा खड़ा कर दिया।
वह किचन में थी और उनका सारा ड्रामा साफ़-साफ़ सुन सकती थी। उसकी कोफ्त और बढ़ रही थी।
"परी आपा ने मारा है! बाल भी खींचे और गाल पर थप्पड़ भी मारा!"
रोशन चिल्लाते हुए बता रहा था।
वह तेज़ी से किचन से बाहर निकली। बिल्ली उसकी गोद से छलांग लगाकर कूद गई और डर के मारे भाग गई। अब वह इंसानों से डर गई थी।
"हाय अल्लाह! परी, तुमने मेरे मासूम बच्चों को क्यों पीट दिया?"
"मामू, मैंने तो इन्हें कभी ज़ोर से डाँटा भी नहीं!"
नदा आपा उसे देखते ही ऊँची आवाज़ में रोने लगीं।
"हाय, मेरे मासूम बच्चे!"
"ये दोनों उस बिल्ली को आग लगा रहे थे! मैंने रोका तो सनी ने मुझसे बदतमीज़ी की, इसलिए मैंने सिर्फ थप्पड़ मारा था। बाल नहीं खींचे थे!"
वह किसी अपराधी की तरह खड़ी सफाई दे रही थी।
"लो! इतने छोटे बच्चे बिल्ली को आग लगा सकते हैं? इन्हें तो माचिस जलाना भी नहीं आती!"
फूफो चौंककर बोलीं।
"मैं झूठ नहीं बोल रही, फूफो! ये दोनों उस बिल्ली को तकलीफ दे रहे थे!"
"तुम्हें अपने भांजों से ज़्यादा किसी जानवर से प्यार है?"
"ये बच्चे हैं, कुछ कर भी दिया तो प्यार से भी समझाया जा सकता था, परी!"
अबकी बार सैफ बोला था।
सैफ उसकी तरफदारी तो क्या करता, उसने ये भी यकीन नहीं किया कि उसने रोशन और सनी के बाल नहीं खींचे थे।
"अच्छा परी, अब माफ़ी माँग लो इन दोनों से।"
ये पापा थे।
उसने बेहताशा हैरान निगाहों से उन्हें देखा। उसकी बात पर किसी को यकीन नहीं था।
"पापा, मैं बड़ी हूँ, मैंने कुछ कह भी दिया तो? आप ऐसे क्यों रिएक्ट कर रहे हैं?"
"परी! तुम नदा आपा और बच्चों से माफ़ी माँगो। देखो, आपा अभी तक रो रही हैं।"
सैफ ने सख्त लहज़े में कहा।
उसका दिल चाहा कि ज़मीन पर बैठकर रोने लगे, मगर उसे खुद को मजबूत रखना था। खुद को कमजोर साबित नहीं करना था।
"मेरी कोई गलती नहीं थी, फिर भी… नदा आपा, माफ़ी!"
नदा आपा ने मुँह फेर लिया। ये इस बात का इशारा था कि वे अब भी नाराज़ थीं।
"मैं खाना लगवा देती हूँ।"
वह इतना कहकर वहाँ से चली गई। वहीद को खाने की तैयारी करने का कहा और खुद किचन में बैठ गई। जब तक वे लोग वहाँ से चले नहीं गए, वह बाहर नहीं निकली।
उसे अपनी बेइज़्ज़ती का शिकवा उन लोगों से नहीं, बल्कि पापा से था। पता नहीं फूफो ने पापा को क्या घोलकर पिला दिया था कि वे कभी भी उनके खिलाफ सोच भी नहीं सकते थे।
"क्या मैं अपनी पूरी ज़िंदगी इन लोगों के बीच बिता सकती हूँ?"
"उफ़! ये कितना कठिन होगा!"
ये तकलीफ़देह ख्याल उसके दिमाग़ में घूम रहा था।
"कहाँ गुम हो?"
निशा ने किचन के दरवाजे से झाँका, तो वह चौंकी।
फिर जबरदस्ती मुस्कुराई।
"मैं तो यहीं हूँ। तुम बताओ, मेरे कपड़े ले आई?"
यहाँ, तुम्हारे कमरे में रख दिए हैं। मेहमान चले गए तुम्हारे? उसने इधर-उधर देखा।
परीशे खड़ी हो गई।
"हाँ, चले गए। आओ, बाहर बैठते हैं।" निशा को देखकर उसका डिप्रेशन थोड़ा कम हुआ था।
वो दोनों उन कपड़ों के बारे में बातें करती हुई लॉन्ज में आईं तो जहांज़ैब साहब को वहीं बैठे पाया।
"अंकल! मम्मी कह रही थीं कि सैफ भाई की मम्मी शादी की तारीख फिक्स करने आने वाली हैं। कब तक आएंगी?"
निशा की उनसे बहुत बेतकल्लुफ़ी थी और वो बहुत बोल्ड भी थी। हर बात बिना झिझक पूछ लिया करती थी। उसे मालूम था कि आज फूफी इसी लिए आई थीं, फिर भी उसने पूछ लिया।
परीशे के होंठों पर मुस्कान बिखर गई।
"बेटा! तारीख तो लगभग फिक्स हो गई है। ईद नवंबर के पहले हफ्ते में आ रही है, तो हम यह सोच रहे थे कि ईद के तीसरे दिन मेहंदी रख लेंगे।" वे खुशी से बता रहे थे।
उसे अपनी गर्दन के चारों ओर फंदा कसता हुआ महसूस हुआ, एकदम कमरे में इतनी घुटन बढ़ गई कि उसका सांस लेना मुश्किल हो गया।
"निशा!" अचानक उसे कुछ याद आया। "हसीब और उसके दोस्त हुंजा जा रहे हैं ना? तुमने आज कुछ बताया था?"
"हाँ, वो राका पोशी बेस कैंप का ट्रैक कर रहे हैं।"
"कौन कहाँ जा रहा है?" उनकी सरगोशियाँ वे ठीक से सुन नहीं सके थे।
"पापा! वो... निशा के एक कज़िन की अपनी टूर कंपनी है मरी में। निशा ने उनसे नॉर्दर्न एरिया के टूर के बारे में पूछा था। वे कह रहे थे कि जल्द ही उनका कोई टूर नॉर्दर्न एरियाज़ जाएगा। तो पापा! मैं निशा के साथ चली जाऊँ? बस तीन-चार दिनों के लिए?"
"मगर निदा तो हफ़्ते भर के लिए मायके तुम्हारी वजह से आई है। उसकी ननद का कोई मसला था, तो उसकी सास और पति कुछ दिनों के लिए सियालकोट गए हैं। वो अगला पूरा हफ्ता यहीं रहकर तुम्हारे साथ शादी की शॉपिंग करना चाहती है।"
वो सोच रही थी कि कुछ दिनों के लिए किसी दूर, सुकून भरी जगह चली जाए, मगर जैसे ही पापा ने निदा आपा की एक हफ्ते की छुट्टी का बताया, उसने पक्का इरादा कर लिया कि वो जल्द ही इस्लामाबाद से पूरे हफ्ते के लिए ग़ायब हो जाएगी। वो किसी के भी साथ शॉपिंग कर सकती थी, मगर निदा आपा के साथ नहीं।
"अच्छा... मगर किस जगह जाना चाहती हो तुम?" वे आधे-अधूरे मन से तैयार हो गए थे।
वो जवाब में कहना चाहती थी कि हुंजा, गिलगित, स्कर्दू... मगर उसे मालूम था कि इन इलाकों का नाम सुनकर पापा सख्ती से मना कर देंगे।
"पेशावर, स्वात, कालाम... उसी तरफ़ जाएंगे।" उसने स्वात का जिक्र इसलिए किया क्योंकि वहाँ ढाई हज़ार फ़ीट ऊँचे पहाड़ नहीं थे, और यही सबसे बड़ी वजह थी कि पापा ने अगले ही पल उसे इजाज़त दे दी।
उसने बग़ैर सोचे एक चोरी-छुपी नज़र अपने बाएँ कंधे पर डाली। सिर्फ़ इसी कंधे की वजह से वो स्कर्दू साइड पर हिमालय और काराकोरम के पहाड़ों पर नहीं जा सकती थी।
जहाँज़ैब साहब उठकर अंदर चले गए तो निशा तेज़ी से उसकी तरफ़ मुड़ी, "मैंने कब ज़वार भाई की टूर कंपनी से पता किया था?"
"नहीं किया तो अब कर लेना।" उसने लापरवाही से कंधे उचका दिए। निदा आपा की फैमिली के आने की वजह से कुछ देर पहले उसके सिर में जो दर्द हो रहा था, वो अब ग़ायब हो चुका था।
"तुम इस्लामाबाद की किसी टूर कंपनी का नाम नहीं ले सकती थीं?"
"अब बेवजह झूठ को सच साबित करने मरी जाना पड़ेगा और अगर तुम्हें इतनी ही घूमने की चाहत हो रही है, तो हसीब और उसके दोस्तों के साथ राका पोशी चले जाते हैं।"
"जिसकी इजाज़त पापा मुझे कभी नहीं देंगे! और हसीब के दोस्त?"
उसकी नज़रों के सामने शाम वाला वो लड़का आ गया जिसने उसे देखकर सीटी बजाई थी। उसने नफ़रत से सिर झटका।
"मैं हसीब के दोस्तों का सिर तो फोड़ सकती हूँ, मगर उनके साथ चार दिन पैदल राका पोशी का ट्रैक नहीं कर सकती!"
निशा के जाने के बाद वो अपने कमरे में चली गई। उसके कमरे की सजावट ऐसी थी कि दरवाज़ा खुलते ही सामने पलंग नज़र आता था, जिसके सिरहाने दीवार पर "थॉमस ह्यूमर" का बड़ा सा पोस्टर चिपका था।
बाकी की तीन दीवारों में से दो पर "मीम्स" और कुछ जापानी पर्वतारोहियों की तस्वीरें लगी थीं। इन तस्वीरों को देखते ही उसके होंठों पर एक उदास मुस्कान बिखर गई।
परीशे जहाँज़ैब
जिसके नाम का आखिरी हिस्सा हटा कर सब उसे "परी" कहा करते थे। बचपन से ही एक आदर्शवादी थी। वो उन लोगों में से थी, जिनके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं होता। जिन्हें चुनौतियों का सामना करने में मज़ा आता था।
सैफ से सगाई से पहले तक वो सच में बहुत जोशीली थी, मगर इन चार सालों में बहुत कुछ बदल चुका था।
उसे बचपन से पहाड़ों पर चढ़ने का बहुत शौक़ था। वो अपने पापा और मम्मा की इकलौती औलाद थी, इस वजह से बहुत लाडली थी। मगर उनके लाड़-प्यार ने उसे बिगाड़ा नहीं, बल्कि और मज़बूत, निडर और आत्मनिर्भर बना दिया था।
उसकी मम्मा को उसका पर्वतारोहण का शौक़ बहुत पसंद था और यही सबसे बड़ी वजह थी कि 1995 में वो उसे अपने साथ इंग्लैंड ले गई थीं।
पापा ने भी अपना कारोबार वहीं शिफ़्ट कर दिया था, मगर वो लंदन में रहते थे और मम्मा व परीशे लेक डिस्ट्रिक्ट में।
चार सालों तक वो लेक डिस्ट्रिक्ट में रही, जहाँ उसने बहुत कुछ सीखा।
इस दौरान वो सिर्फ़ एक बार पाकिस्तान आई थी, वो भी सर्दियों की छुट्टियों में।
गर्मियों की छुट्टियाँ वो कहाँ बिताती थी, यह एक राज़ था! एक ऐसा राज़, जो अगर पापा को पता चलता, तो वो बहुत नाराज़ होते! (हालांकि मम्मा जानती थीं।)
छह साल पहले उसकी ज़िंदगी अचानक बदल गई, जब उसकी मम्मा की मौत हो गई। फूफी के ज़ोर देने पर पापा उसे इस्लामाबाद ले आए।
तब पहली बार उसे एहसास हुआ कि मम्मा उसकी कितनी बड़ी ढाल थीं, जिनके न होने से पापा पर और लोगों का असर बढ़ गया था।
वो बिज़नेस पढ़ना चाहती थी, मगर फूफी ने पापा को मजबूर कर दिया कि वे परीशे को डॉक्टर बनाएँ।
यूँ उसका एक साल ज़ाया हो गया, मगर वो मेडिकल कॉलेज तक पहुँच ही गई।
फिर 2001 के जुलाई में कुछ ऐसा हुआ कि उसका पर्वतारोहण का करियर खत्म हो गया।
स्पांटिक के उस दर्दनाक हादसे के बाद पापा ने उसकी पर्वतारोहण पर सख्त पाबंदी लगा दी, और उसने चुपचाप उनका फैसला मान लिया।
अगले साल पापा ने उसे बताया कि उन्होंने उसका रिश्ता सैफ से तय कर दिया है।
"तुम्हें कोई एतराज तो नहीं?"
उसने तब भी चुपचाप सिर झुका लिया।