fatah kabul (islami tareekhi novel)part 53

शरारत.......  

                                                                 


इस दूसरे लोगो से भी काबुल वालो ही को हार हुई। उनके सिपाहियों की भारी तादाद मैदान जंग में खेत रही हज़ारो ज़ख़्मी हो गए हज़ारो मुसलमानो का दबाओ पड़ने से इधर उधर भाग गए और राजा के कैंप में जिस क़द्र सामान और दौलत थी सब मुसलमानो के हाथ लगा मुसलमानो को इस फतह से बड़ी ख़ुशी हुई। 

  क़िला कुछ ऐसे मुक़ाम पर और ऐसा वाक़्या हुआ था की उसका मुहासरा दुश्वार था फिर भी  अब्दुर्रहमान  ने तीन तरफ से उसका मुहासरा कर लिया उस ज़माना में यह क़िला लंगड़ा क़िला कहलाता था काबुल वाले महसूर हो गए और कुछ ऐसे ख़ौफ़ज़दा हुए की मुसलमानो की सूरत देख कर सहम जाते वह फ़सील पर बिखरे रहते है और वही से मुसलमानो को तरह तरह की कीड़ी नज़रो से देखते है। 

मुहासरा  लगभग एक महीना हो गया मुसलमानो ने यह देख लिया था की क़िला मज़बूत है फ़सीले पत्थर  के है। उन्हें तोड़ डालना आसान नहीं है उन्होंने मुहासरा ऐसा सख्त कर दिया की न कोई शख्स क़िला के अंदर जा सके न बाहर आ सके उनका ख्याल था की काबुल वाले मुहासरा से तंग आकर सुलह की तरफ झुक जायँगे। 

अब सर्दी का मौसम शुरू हो गया था बर्फ पड़ने लगी थी ठंडी हवा चलने लगी थी इस क़द्र सर्दी बढ़ गयी थी की सर्दी की वजह से  सूरज  भी कांपता हुआ निकलता था धूप में हरारत ही न होती थी। 

मुस्लमान गर्म मुल्क के रहने वाले थे उन्हें सर्दी से सख्त तकलीफ पहुंच रही थी रात  और दिन आग के सामने बैठे तपते  रहते थे क्यू कि बर्फ बारी की वजह से सूरज थोड़ी देर के लिए निकलता था और जब निकलता था तो धूप  में गर्मी  न होती थी। 

लेकिन इस तकल्लुफ में भी मुस्लमान मुहासरा छोड़ने पर न तैयार न थे तकलीफे उठा रहे थे और डटे हुए थे। 

इल्यास को  इस अरसा में बिलकुल आराम हो गया था कमज़ोरी भी होती रही थी  उन्होंने अपने अहदे का चार्ज भी ले  लिया था और अक्सर अब्दुर्रहमान  के साथ क़िला के गिर्द चक्क्र भी लगा आये थे लेकिन किसी तरफ भी उन्होंने कोई  ऐसा मौक़ा न देखा था जिस तरफ हमला कर के क़िला में रसाई हो सके उनके पास वह वास्केट थी जो उन्हें पेशवा   ने दी थी बड़ी गर्म थी वह उसे ऊपर से पहन लेते थे। उससे सर्दी से महफूज़ रहते थे और मुसलमानो को भी  माल गनीमत में पश्मीना की वास्की और जिसे हाथ लगे थे कम्बल और पिट्टू भी मिल गए थे वह उन्हें पहन लेते  बिमला ने क़रीब की बस्तियों में जाकर अम्मी और राबिआ के लिए निहायत उम्दा गर्म कपडे ला दिए थे कई अदना  अच्छी चादरे  भी मिल गयी थी वह दोनों उन्हें पहने ओढ़े रहती थी। 

रफ्ता रफ्ता अम्मी ने को इस्लाम की तालीम से आगाह किया क़ुरान शरीफ पढ़ाने और उसके मायने बताने लगी थी उसके साथ  ही कमला ने भी कलमा पढ़ लिया था उन दोनों के मुस्लमान होने से सब खुश थे लेकिन सबसे ज़्यादा ख़ुशी  अम्मी और इल्यास को हुई थी। 

राबिआ इस क़द्र हसीं और परी रुखसार थी कि नज़र भर कर उसके चाँद से ज़्यादा रोशन चेहरा की तरफ देखा न जाता  था वह इल्यास से बहुत ज़्यादा खिल गयी थी सुनके लिहाज़ से शोख व शरीर भी थी कभी कभी इल्यास से छेड़ छाड़  कर लेती थी।

इल्यास सीधे मुस्लमान थे शुरू शुरू में वह इस शोख माह जबीन से झेंप जाते थे लेकिन रफ्ता रफ्ता उनके मिज़ाज में भी  शरारत आगयी या राबिआ ने उन्हें अपने रंग में रंग लिया  और अब वह भी ऐसा लतीफ़ मज़ाक़ करने लगे थे  जिससे  अक्सर राबिआ को  शर्माना पड़ जाता था। 

एक रोज़ आफ़ताब अच्छी तरह निकल आया था। धुप मैदान में फैल गयी थी अब तक हाथ पाव जो अकड़े रहते थे  वह   खिल गए थे और खून की तेज़ी से रवानी की वजह से चेहरों पर सुर्खी दौड़ आयी थी दुपहर का वक़्त हो गया था। मुस्लमान खाने से फारिग हो  चुके थे उस वक़्त राबिआ और इल्यास एक चट्टान पर पास बैठे थे इल्यास के दिल में शरारत आयी उन्होंने कहा " तुमने कुछ सुना राबिआ "

राबिआ ने उनके चेहरे की तरफ देख कर कहा "क्या ?"

इल्यास : ताज्जुब है तुमने नहीं सुना !

राबिआ : आखिर क्या नहीं सुना ?

इल्यास :  ये बात ज़ोर से कहने की नहीं। 

                  राबिआ उनके पास इतनी खिसकी की बिलकुल उनसे जा लगी और आहिस्ता से बोली। "अब कहो 

इल्यास : तुम तो ऊपर चढ़ आयी ज़रा अलग हट कर बैठो। 

राबिआ बिगड़ गयी उसने कहा " तुम इतराने ज़्यादा लगे हो "

इल्यास : बस बिगड़ गयी। अरे तुम ये क्यू नहीं समझती की तुम्हारे जिस्म में बिजली है तुम्हारा जिस्म मेरे जिस्म  से लगा और बिजली दौड़ी। 

राबिआ : बिजली है तुम्हारे जिस्म में। इसीलिए तुम्हे सर्दी मालूम नहीं होती। 

इल्यास : जब मैं शोअला हुस्न के सामने होता हु तो सर्दी जाती रहती है। कभी तुमने शोअला के आस पास सर्दी   देखा  है। 

राबिआ : होगा ,हां वह क्या बात थी। 

इल्यास : अम्मी जान कह रही थी की राबिआ ज़िद कर रही है लेकिन मैंने उसे समझा दिया है। 

राबिआ ने उनके चेहरे  की तरफ देखा वह संजीदा बने बैठे थे उसने कहा " मैं क्या इसरार कर रही थी ?"
इल्यास : यही शादी बियाह के बारे में। 

राबिआ : बड़े शरीर हो गए हो तुम। 

इल्यास : खूब ! इसरार तुम करो और शरीर मैं। यक़ीन न आओ तो चलो अम्मी जान से जाकर पूछ लो। 

राबिआ  ने हया बार आखो से उनकी तरफ देखा और कहा "मैं ही चल कर पूछ लू। 

इल्यास : ठीक है जब तुमने इसरार ही किया है तो पूछने से क्या फायदा। 

राबिआ : बहुत खुश होते हो तुम अपने  दिल में। 

इल्यास ; कोई खास खुश होने की बात नहीं है तुम  उस वक़्त मेरे सर रहती थी  जब हमारी मगनी ही हुई थी याद है वह बाते। 

राबिआ : तुम्हारा सर। याद रखना बहुत पछताओगे। 

इल्यास : नहीं पछताने  की कोई बात नहीं। अब गलती  न करूँगा असल में उस वक़्त भी तुम्हे गलत फहमी हो गयी थी  मैंने निकाह से इंकार नहीं किया था। तुम फ़ुज़ूल खफा हो कर चली आयी। 

राबिआ : देखना तुमसे नाक न रगड़वायी तो राबिआ नाम नहीं। 

इल्यास ; हर परी जमाल को यही गुरूर  होता है और तुम तो इस गलत फहमी में मुब्तला हो कर दुनिया भर में एकता  हो। 

राबिआ : होश ठिकाने है की नहीं। 

इल्यास : जब एक हसींन सहेरा सामने हो तो होश व हवास के बारे में कुछ पूछना कोई फायदा नहीं। 

राबिआ : फातिमा सच  कह रही थी। 

इल्यास : क्या कह रही थी ?

राबिआ : वह बड़ी होशियार है। 

इल्यास : होंगी !

राबिआ : कहने लगी इल्यास के दिमाग में कुछ हो गया है मैंने उनकी अम्मी से कह दिया है की दीवानो की शादी नहीं  करते। 

इल्यास : ओहो। तुमने फातिमा की ही खुशामद की होगी मगर मामला तो मेरा था मुझसे कहती खैर फ़तिमा से कह दूंगा  कि राबिआ ने मेरी बड़ी खुशामद की आखिर मैंने उन्हें क़ुबूल ही कर लिया। 

राबिआ : मिया मिट्ठू ! ख्याली पुलाओ पका कर खुश हो लो। ज़रा मुंह लगा लिया तो होश ही में न रहे। 

                 राबिआ उठ कर चलने लगी। इल्यास ने जल्दी से उसके दोनों हाथ पकड़ लिए और कहा " बस ज़रा ही से मज़ाक़  में बुरा मान गयी "

                राबिआ ने उनकी आँखों में आंखे डाली और मुस्कुराने लगी। 



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