fatah kabul (islami tareekhi novel) part 52

 दूसरा हमला ...... 

                                                           


कई रोज़ में जाकर इल्यास इस क़ाबिल हुए कि उनकी ज़िन्दगी की उम्मीद हो चली। इस अरसा में  अम्मी ,फातिमा (बिमला) कमला और राबिआ  ने उनकी तीमारदारी में दिन रात एक कर दिए। खास कर राबिआ सारा सारा दिन और सारी सारी रात जगती रही। सबसे ज़्यादा तीमारदारी उसने की उसने अम्मी को रात को जागने नहीं दिया सब कुछ करती रही। 

अबू तय्यब ने भी बड़ी कोशिश और जा निशानी से इलाज किया। लीडर अबुर्रहमान भी क़रीब क़रीब रोज़ ही अयादत के लिए आते रहे। 

इल्यास तो सब ही  के मश्कूर थे लेकिन राबिआ के खास कर शुक्र गुज़ार थे। उस पर यह जमाल को देख कर उनका कारवां रवां खुश हो जाता था। ज़ख्म ठीक होने लगा था। हरारत में भी कमी आगयी थी। चेहरा की ज़र्दी भी दूर होने लगी थी। गरज़ वह रु बा रु सेहत थे। 

काबुल वाक़्या के बाहिर ही खेमा के लोग थे उन्होंने भी फिर हमला नहीं किया वह शायद इस इंतज़ार में थे कि मुस्लमान हमला करे लेकिन मुस्लमान उनके हमला का इंतज़ार कर रहे थे। 

इसी इंतज़ार में करीबन एक महीना गुज़र गया  इस अरसा में इल्यास की तबियत और अच्छी हो गयी और अब व उठ कर चहल क़दमी  करने लगे बुखार बिलकुल जाता रहा ताक़त आने  लगी। 

काबुल वाले जब इंतज़ार करके थक गए तो एक रोज़ महाराजा ने मुशिरो ,अमीरो और फौजी अफसरों को बुला कर कहा  "हमारी तदबीर  ने काम  न दिया हम अब तक इसी फ़िक्र में रहे की किसी रोज़ मुसलमानो को ग़ाफ़िल देखे तो तो उनपर  हमला कर दे लेकिन वह रात को भी होशियार रहते है और दिन को भी। जासूसों के ज़रिये  से यह बात  मालूम  हो गयी है की मुसलमानो की तादाद आठ हज़ार से ज़्यादा नहीं है हमारे पास उनसे दो गुना लश्कर  है अब  हम कब तक इंतज़ार करते रहें। "

सिपाह सालार ने कहा " मैंने पहली लड़ाई में ही यह अंदाज़ा कर लिया है की हमारे सिपाही मुसलमानो का मुक़ाबला  नहीं कर सकते उन पर उनका रोअब तारी  हो गया है। 

महाराजा :फिर क्या हुआ ?

सिपाह सालार : अगर मुमकिन हो तो मसलेहत  कर ली जाये। 

महाराजा बिगड़ गए उन्होंने कहा। "मेरी ज़िन्दगी में यह नहीं हो सकता। 

सिपाह सालार : तब इंतज़ार करना फ़ुज़ूल है। फ़ौरन हमला कर देना चाहिए। 

पेशवा : लेकिन जबकि सिपाहियों पर बुज़दिली सवार है उन पर मुसलमानो का रोअब छा गया है हमला  का क्या नतीजा। 

महाराजा : सिपाह सालार की मालूमात सही नहीं है। काबुली और अरबो से डर जाये  न मुमकिन है। 

पेशवा : मेरे ख्याल में मसलेहत ही मुनासिब थी। 

महराजा : पेशवा आज़म ! मसलेहत सच  मुनासिब है  लेकिन हिन्द पर हमारे लोगो ने जो दबदबा बनाया है वो जाता रहेगा  इसलिए क़ीमत आज़मायी ज़रूरी है। 

पेशवा : बेहतर क़िस्मत आज़मायी कर लीजिये। 

महाराजा : आज तमाम लश्कर को हुक्म पंहुचा दिया जाये की कल हमला होगा। हर अफसर और हर अफसर का रिसाला  पर ज़ोर हमला करे जो लोग बुज़दिली करेंगे जुर्रत और हिम्मत से काम न लेंगे उन्हें मौत की सजा दी जाएगी  हमारा यह हुक्म हर अफसर और हर सिपाही के कानो में पंहुचा दिया जाये। 

सिपाह सालार : दोनों अहकाम की तामील की जाये। 

चुनांचा इस रोज़ सारे लश्कर में हमला की अयलान करा दी गयी  अफसर और हर सिपाही को बता दिया गया की जो बुज़दिली  और कम हिम्मती करेंगे उन्हें मौत की सजा दी जाएगी। 

यह हक़ीक़त है की काबुल वालो पर मुसलमानो का रुआब व खौफ छ गया था लेकिन इस अयलान ने की बुज़दिली और  कम हिम्मती की सजा मौत होगी उनमे हरारत पैदा कर दी और वह मरने मारने पर तैयार हो गए। 

दूसरे रोज़ सुबह होते काबुल की फ़ौज में हरकत शुरू हुई पलटने और रिसाले मुसलह हो हो कर मैदान में आने लगे। 

मुसलमानो ने भी देख लिया वह गोया इसी इंतज़ार में थे तमाम मुजाहिदीन एकदम उठ खड़े हुए और जल्दी जल्दी मुसलह होने लगे  जिन लोगो के पास ज़िरहे थी उन्होंने ज़िरहे पहन कर हथियार लगाए जिनके पास ज़िरहे न थी वह  वैसे ही मसलह हो गए और अपने अपने अफसरों के साथ मैदान में निकल कर सफ में आगये। अमीर अब्दुर्रहमान भी  आगये। 

जल्दी जल्दी सफ बंदी की। काबुल के लश्कर में बड़े ज़ोर से जंग का सायरन बजा और सवारों के पुर जोश में आकर  बढे। 

मुसलमानो ने भी अल्लाहु अकबर का नारा लगा कर पेश क़दमी शुरू कर दी जब फासला कम रह गया तो फ़रीक़ैन  के सिपाहियों ने तलवारे सौंत ली ऐसा मालूम होता था की दोनों फ़रीक़ लड़ाई का फैसला जल्द से जल्द करने पर  आमादा हो गए है। 

आखिर दोनों लश्कर टकरा गए तलवारे जल्द जल्द चलने लगी ढाले बंद हुई ज़्यादातर ढाले सियाह थी तलवारो की पहली  बाढ़ ढालो पर खट खट और छन छण  की आवाज़े बुलंद हुई   आवाज़ों ने सर फ़रोशो में लड़ाई की रूह फूँक  दी फ़रीक़ैन ने फुर्ती से से तलवारे चलानी शुरू की। 

कुछ तलवारो ने ढालो को फाड़ डाला कुछ शानो पर पड़े और सरो को उड़ा गयी जिनके सर उड़े उनके धड़ ज़मीन  पर गिरे और बे सवार घोड़े बाहर निकलने की कोशिश करने लगे। 

जैसे की फ़रीक़ैन के आदमी मरे इसलिए दोनों फ़रीक़ की सफो में रखने पड़ गए और सरफ़रोश निहायत तेज़ी और ताक़त  से लड़ने लगे तलवारे ज़ोर व शोर से  चलने लगी सर व तन के फैसले होने लगे सर गेंदों की तरह उछाल उछल कर गिरने  धड़ ज़मीन पर गिर गिर कर तड़पने लगे खून के फवारे उबल पड़े। 

काबुल वालो को जोश था बड़ी दिलेरी से लड़ रहे थे उनकी लम्बी तलवारे दूर से नज़र आरही थी। मुसलमानो के जोश  था गुस्सा था बड़ी बहादुरी से लड़ रहे  थे उनकी छोटी तलवारे गज़ब का काट कर  रही थी। जिसकी ढाल पर पड़ती  थी काट डालती जिसके खुद पर पड़ती आहनी खुद को काट कर सर के दो टुकड़े कर डालती और जिसके शाना पर पड़ती गिरो को साबुन की तरह काट डालती हैरान होता की मुसलमानो में ऐसी कहा से ताक़त पैदा हो गयी  और उनकी तलवारो में कैसी बुरुश आगयी है जो दुश्मन को क़त्ल किये बगैर छोड़ते ही नहीं। 

अगरचे काबुल वाले  भी बड़े जोश से लड़ रहे थे उनकी तलवारे भी काट कर रही थी  वह भी मुसलमानो को शहीद कर रहे थे  लेकिन बहुत कुछ जद्दो जहद करने पर वह किसी मुस्लमान को शहीद करते थे अलबत्ता मुसलमानो की तलवारे  बड़े ज़ोर से चल रही थी और काट भी फुर्ती से कर रही थी उन्होंने जहा तहा दुश्मन की लाशो से मैदान पाट दिए थे खून  के दरिया बहा दिए थे। 

जैसे जैसे आफ़ताब आधे पर पंहुचा जंग की आग भी भड़कती जाती थी जिस तरफ और जहा तक नज़र जाती थी तलवारे  उठती और झुकती  नज़र आती थी शोर दार इस क़द्र बुलंद था की कानो  पड़ी आवाज़ सुनाई न देती थी। 

अब्दुर्रहमान अभी तक खड़े जंग गाह को देख रहे थे वह इस फ़िक्र में थे की महाराजा जंग में शरीक हो तो वह भी शामिल  हो जाये मगर जब उन्होंने देखा की महाराजा वक़्त को टाल रहे है तो उन्होंने अल्लाहु अकबर का नारा लगाया  और घोड़े की बाग़ उठा दी उनके साथ ही उनका रिसाला भी चल पड़ा उन लोगो ने इस शिद्द्त  से हमला किया  की दुश्मनो के मुंह भर गए जो उनकी तलवारो के सामने आगया उसको काट डाला जिस पर हमला किया उसे  क़त्ल किये बगैर न छोड़ा उन्होंने सफो की सफ्हे उलट दी बे शुमार आदमी मार डाले। 

काबुली यह कैफीययत देख कर सहम गए कुछ देर तो वह बुज़दिल और कम हिम्मती  के इलज़ाम के खौफ से डटे रहे मगर  जब उन्होंने देखा की मुस्लमान मार मार कर उनका सफाया किये देते है तो वह भाग निकले और ऐसे बे आसान  हो कर भाग रह थे की एक दूसरे की तरफ न देखता था मुंह उठाये  बे तहाषा भागा चला जाता था। 

मुसलमानो ने उनका पीछा किया और क़त्ल करना शुरू किया महाराजा ने बड़ी कोशिश की कि भगोड़े सिपाहियों का रुख  फेर दे लेकिन ख़ौफ़ज़दा ख़ौफ़ज़दा सिपाही न फिर भागे चले गए। महाराजा भी भाग खड़े उनके भागने   से  तमाम लश्कर में हलचल मच गयी हर सवार और हर सिपाही पता तोड़ भागा। 

मुसलमानो ने उनकी भारी तादाद भागते भागते क़त्ल कर डाली क़िला के दरवाज़ा तक उनका पीछा किया और उनकी लाशो  से मैदान भर दिया जब सब काबुली क़िला  में दाखिल हो गए और फाटक बंद कर दिया गया तब मुस्लमान लौटे  .उन्होंने महाराजा के कैंप पर क़ब्ज़ा करके उसे लूट लिया। 



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