fatah kabul (islami tareekhi novel) part 54

 काबुल की फतह .... 

                                         


मौसम सरमा आहिस्ता आहिस्ता ख़त्म होने लगा। सर्दी भी बूढी हो गयी। नरम गर्म दिन होने लगे मुस्लमान सर्दी गुज़रने का ही इंतज़ार कर रहे थे अब उन्होंने हमला की तैयारी शुरू की ३५ हिजरी शुरू हो गया था। मुहासरा को एक अरसा गुज़र गया था इसलिए क़िला वाले भी तंग आगये थे वह चाहते थे की क़िस्मत का फैसला जल्द से जल्द हो जाये राजा भी तंग हो गया था। उसे यह ख्याल नहीं था की मुस्लमान काबुल के सख्त सर्दी बर्दाश्त करते हुए मुहासरा किये पड़े रहेंगे वह समझ रहा था की जब सख्त सर्दी पड़ जाएगी बर्फ बारी होगी बारिशे होंगी और बर्फ में डूबी हुई हवाएं चलेंगी तो मुस्लमान बोरिया बिस्तर बांध कर चल देंगे। 

  लेकिन मुस्लमान ऐसे सख्त रहे की शदीद सर्दी को बर्दाश्त कर गए बर्फ  इस  क़दर पड़ी की खेमो पर जम गयी चट्टानें और सब्ज़ा सफ़ेद हो गए बारिशो का ताँता लग गया ठंडी ठंडी बर्फ में बिछी हुई हवाएं चले क़िला के लोग सर्दी में अकड़ गए मगर मुस्लमान  नहीं अकड़े। अगरचे उन्हें सख्त तकलीफ हुई लेकिन  वह डटे रहे आखिर सर्दी गुज़र गयी। 

पेशवा मतलब राफे क़िला में मौजूद थे। सब लोग उनका बड़ा अहतराम करते थे राजा भी नियाज़ मंदो में शामिल थे सबने उनकी तरफ रुजू किया राजा ने उनसे कहा। " यह मुसलमानो की बला किस तरह दूर हो। 

उन्होंने कहा। "मैंने तो यह सुना है की मुस्लमान जिस मुल्क पर चढ़ कर जाते है जब तक उसे फतह नहीं कर लेते वापस नहीं लौटते यह बड़ी गलती हुई की उनके मुल्क पर चढ़ाई की तैयारी की गयी उन्हें मालूम हो गया। वह खुद ही चढ़ आये सबने  इस बात को देख लिया की मुस्लमान  किस क़द्र सख्त हौसला मंद मुस्तक़िल मिज़ाज और जारी  है। सर्दी ,गर्मी बारिश और ओलो की बिलकुल परवाह नहीं करते हमारे क़िला में कई लोगो  निमोनिया हो गए कई   सर्दी में आगये और मर गए लेकिन मुसलमानो में किसी एक का भी कान गर्म नहीं हुआ हलाकि बुध मत के मानने वालो ने बुध के सामने गिड़गिड़ा कर दुआए मांगे  की भगवान बुध हमारी मदद करे। मुसलमानो पर कोई ऐसी  आफत  आ जाये जिससे वह फ़ना हो जाये या भाग जाये मगर एक दुआ भी क़ुबूल नहीं हुई। मेरे ख्याल में तो उनसे  मसलेहत कर लेनी चाहिए। 

राजा : मेरी ज़िन्दगी में यह न होगा। 

पेशवा : फिर आपने क्या तय किया है। 

राजा : मेरा इरादा शबे खून मारने का है 

पेशवा : मुनासिब है ,लेकिन ऐसा कीजिये की आप लश्कर तैयार रखिये और आधी रात को शब् खून मारिये और मैं शुरू  रात में जाकर मुसलमानो के अमीर को क़तल करने की कोशिश करूँगा। 

राजा : बहुत अच्छी बात है। तुम अपने साथ कुछ आदमी और भी ले जाओ। 

पेशवा : इससे कुछ फायदा न होगा। मैं तनहा जाकर क़िस्मत आज़मायी करना चाहता हु। 

राजा : भगवान् बुध  तुम्हारी मदद करे। 

उसी दिन राजा ने तमाम लश्कर को  बता दिया अफसर और सिपाही सब तैयार हो गए रात को ईशा के वक़्त पेशवा  चले उनके लिए दरवाज़ा खोला गया। उन्होंने मुहाफिजों से  कहा "दरवाज़ा के पट भेड़ दो मगर कुण्डी और सलाखे  न लगाना  न मालूम मैं किस वक़्त वापस आऊं मुमकिन है मेरे पीछे कुछ मुस्लमान भी हो। 

मुहाफिजों ने उनके हुक्म की तामील की। दरवाज़ा भेड़ दिया। पेशवा चले अँधेरी रात थी तेज़ी से चल कर इस्लामी लश्कर में  पहुंचे और सीधे इल्यास के पास गए। इल्यास उन्हें देख कर खुश  हो गए उन्होंने कहा " बेटा ! मेरे साथ अपने अमीर  के पास चलो। निहायत ज़रूरी बात है। "

और साथ ही लिए दोनों अमीर के खेमे पर पहुंचे। इल्यास ने अब्दुर्रहमान से पेशवा का पीछा कराया। अब्दुर्रहमान ने उनका इस्तेकबाल किया उनसे उस वक़्त आने का सबब पूछा उन्होंने कहा "आज रात को काबुल वाले शब् खून की तैयारी कर रहे है।  मैं इसलिए आया हु कि आप कुछ लश्कर पैदल लेकर चलिए। दरवाज़ा खुला मिलेगा गीदड़ो को उनके भट्टो में दबा दीजिये। 

राफे से अब्दुर्रहमान ने यह नहीं बताया क्या की वह कैसे आये। वह  जल्दी से उठे। उन्होंने पांच सौ सिपाहियों को मुसलाह   होने का हुक्म दिया। खुद भी हथियार लगाए और इल्यास से कहा " अज़ीज़ मन ! तुम बाक़िया लश्कर लेकर  आहिस्ता आहिस्ता चले आओ। जब क़िला के अंदर नारा तकबीर सुनो तो दौड़ कर क़िला  में दाखिल हो जाओ।  

बहुत जल्द पांच सौ सिपाही मुसलः हो गए। अब्दुर्रहमान उन्हें साथ लेकर चले। राफे साथ हो लिए। यह इस एहतियात  और ख़ामोशी से चले की पैरो की चाप चंद क़दम से आगे न जाये। अँधेरे में  बढ़ कर वह दरवाज़ा के पास  पहुंच गए पेशवा वहा से भागे और फाटक पर जाते ही दरवाज़ा थपथपा दिया। मुहाफिजों ने जल्दी से फाटक खोल दिए  पेशवा ने घबराई हुई आवाज़ में कहा। " अफ़सोस मुस्लमान मेरा पीछे किये दौड़े चले आरहे है। "

मुहाफ़िज़ घबरा गए। इस अरसा दस मुस्लमान वीराना तलवारे हाथ में लिए घुस आये और आते ही मुहाफिजों पर टूट  पड़े। बहुत जल्द उन्होंने तमाम मुहाफिजों को ठिकाने लगा दिया। पेशवा वहा से भाग  कर क़िला के अंदर पहुंचे  दरवाज़ा के सामने निहायत शानदार मैदान था। इस मैदान में मुसलः फ़ौज खड़ी थी राजा भी आ चुके थे मशाल कसरत  से रोशन थे पेशवा हाँपते कांपते राजा के सामने पहुंचे और कहा। "तदबीर उलटी हो गयी। मुस्लमान  मेरे पीछे दौड़े  चले आये  शायद दरवाज़ा पर जंग हो रही है। 

राजा भी घबरा गया और सिपाही भी ख़ौफ़ज़दा हो गए लेकिन फ़ौरन राजा संम्भला और उसने  आवाज़ में कहा " काबुल   के दिलेर ! फ़िक्र मत करो दौड़ो और मुसलमानो से टकराओ। वक़्त आगया है की उन्हें क़त्ल कर डालो  या भगा  दो। "

अभी राजा का यह अल्फ़ाज़ पूरा भी न हुआ था की मुस्लमान दौड़ आये राजा ने बढ़ कर हमला करने का इशारा किया  लश्कर बढ़ा मुस्लमान आ ही रहे थे दोनों फौजे टकरा गयी तलवारे चलने लगी। मुसलमानो ने अल्लाहु अकबर का  नारा लगा कर निहायत सख्ती से हमला किया काबुल वाले भी झुंझुलाई बिल्ली की तरह टूट पड़े। घमसान  की लड़ाई शुरू हो गयी। तलवारे फुर्ती से चलने लगी सर व तन के फैसले होने लगे ज़ख़्मी कराह कर चिल्लाने  लगे मरने वाले चीखे मार मार मरने लगे काबुल वाले जय कारे और मुस्लमान अल्लाहु अकबर के पुर शोर नारा  लगाने लगे अलग अलग आवाज़ों से तमाम क़िला गूँज उठा। 

काबुली लश्कर बहुत ज़्यादा था। मुसलमान सिर्फ पांच सौ ही थे रौशनी में उनकी तादाद मालूम हो गयी इतनी  थोड़ी  तादाद देख कर काबुली शेर हो गए। बढ़  बढ़ कर हमले करने और जोश में आ आ कर तलवारे मारने लगे वह  मुसलमानो को रौंद डालने के लिए उन पर घोड़े रेल रहे थे। 

 मुस्लमान बड़े  सब्र से लड़ रहे थे वह न  घोड़ो की परवाह कर रहे थे और  तलवारो की बड़ी बहादुरी और निहायत ताक़त  से लड़ रहे थे। ऐसे तो हर मुस्लमान शेर बना हुआ था लेकिन सबसे ज़्यादा दिलेरी  और हिम्मत से अब्दुर्रहमान  लड़ रहे थे वह जिस तरफ मुसलमानो पर नरगा  देखते थे इधर दौड़ कर जाते और सख्त हमले करके   दो चार काफिरो को क़त्ल करने के बाद उन्हें पीछे धकेल देते। 

जब मुसलमानो ने देखा की घोड़े बुरी तरह उन पर बढे चले आरहे है तो उन्होंने ढालो पर सवारों की तलवारे रोकनी शुरू की और खुद घोड़ो के पैर काटने लगे।  जिन घोड़ो के पैर कट जाते थे वह मुंह के बल गिर पड़ते थे उनके सवार  भी ज़मीन पर  आ पड़ते थे मुस्लमान उन्हें फ़ौरन क़तल कर डालते थे अक्सर सवार घोड़ो के निचे दब कर चिल्लाने  लगे। 

अगरचे मुस्लमान बड़ी दिलेरी और जोश से लड़ रहे थे। दुश्मनो को क़त्ल भी कर रहे थे लेकिन दुश्मनो की तादाद ज़्यादा  थी वह बढे आ रहे थे और यह पीछे दब रहे थे। 

जबकि जंग निहायत ज़ोर शोर से हो  रही थी काबुली मुसलमानो को और मुस्लमान क़बूलियो को क़त्ल करने में एड़ी चोटी  का ज़ोर लगा रहे थे उसी वक़्त अल्लाहु अकबर के पुर शोर नारा की आवाज़ आयी और मुस्लमान सवारों  का हुजूम लग गया यह सवार मैदान में फैल गए और उन्होंने बड़ी फुर्ती से काबुल वालो को क़त्ल करना  शुरू  कर दिया काबुली भी उनके मुक़ाबले में आगये और निहायत दिलेरी से हमले करने लगे उन्होंने भी मुसलमानो को  शहीद करना शुरू कर दिया। 

लेकिन मुसलमानो में जो जोश था वह उनमे न था इसलिए मुस्लमान उन्हें तेज़ी  फुर्ती से क़तल कर रहे थे इल्यास भी बड़ी  सर फरोशी से लड़ रहे थे वह जिस काफिर पर हमला करते उसका सर उड़ा देते। लड़ते लड़ते वह पेशवा के क़रीब  पहुंच गए उनके क़रीब ही राजा था। पेशवा ने राजा को शनाख्त कराने के लिए इल्यास से बढ़ कर कहा। ' नौजवान  तुम मुझे क़त्ल कर डालो लेकिन यह हमारे महाराजा है उनसे दर गुज़र करो। 

इल्यास समझ गए। उन्होंने पेशवा पर घोड़ा बढ़ा दिया। वह एक तरफ हट गए। इल्यास ने झपट कर राजा पर वार किया  राजा ने ढाल पर रोका। तलवार से फिसल कर घोड़े की नोक पर पड़ी और उसका कान उड़ा गयी। घोडा एक दम गिरा राजा कूद कर अलग जा कर खड़ा हो गया इल्यास फ़ौरन ही अपने घोड़े से कूद कर राजा पर जा सवार  हुए  और उसे रेशम की डोर से बांध दिया। 

राजा के क़ैद होते ही क़बूलियो के हौसले पस्त पड़ गए। वह इधर उधर झाँकने लगे मुसलमानो को मौक़ा हाथ आ गया  उन्होंने बड़ी फुर्ती से उन्हें क़त्ल करके उनकी लाशो से मैदान भर दिया। 

उस वक़्त पेशवा ने ललकारा " काबुल के बद क़िस्मत लोगो ! तुम्हरा राजा गिरफ्तार हो गया। अब लड़ना बेकार है। 

इस आवाज़ को सुनते ही काबुली भाग निकले। मुसलमानो ने उनका पीछा किया और क़तल कर डाला जब उनकी भारी तादाद मारी गयी तो उन्होंने हथियार डाल दिए और   अपने आपको गिरफ़्तारी के लिए पेश कर दिया। मुसलमानो  ने उन्हें गिरफ्तार करना शुरू कर दिया। 

इस काम में काफी वक़्त लगा। इतना की सपेदा सहर नमूदार  हो गया। इल्यास ने क़िला के ऊपर से काबुली झंडा   उतार कर इस्लामी झंडा लहरा दिया। इस अरसा दराज़ के मुहासरा के बाद काबुल के मशहूर क़िला फतह  हो गया। यह क़िला ३५ हिजरी में उस वक़्त फतह हुआ जब उस्मान गनी खलीफा तीसरी शहीद हो चुके थे। 



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