fatah kabul (islami tareekhi novel) part 42
बाक़िया हैरतनाक हाल .....
असर की नमाज़ के बाद इल्यास और राफे दोनों फिर एक जगह जमा हुए अम्मी भी आगयी। राफे ने बाक़िया हाल इस तरह बयान करना शुरू किया।
"आतिश परस्त बूढ़े ने कबिलियो की ज़बान और उनकी मज़हबी किताबे पढ़ने का जो मश्वरा दिया था। वह निहायत ही अच्छा रहा। इससे बड़ा फायदा पंहुचा। अगर हम उनकी ज़बान और उनकी किताबो से वाक़िफ़ न होते तो वहशी काबुली हमें ज़रूर क़त्ल कर डालते। यह भी अच्छा हुआ की हमने काबुल वालो जैसा लिबास पहन लिया। दरअसल जासूस के लिए यह ज़रूरी है की जिस क़ौम और मुल्क में जाये उसकी माशरत ,ज़बान और मज़हब से पूरी पूरी वाक़फ़ियत हो ताकि ज़रूरत के वक़्त उनके से बन सके।
ज़रंज से जब हम आगे बढे तो बुध मज़हब वालो का इलाक़ा शुरू हो गया हम दोनों के पास उम्दा अरबी घोड़े थे। अगर हम चाहते तो एक एक दिन में काफी सफर कर सकते थे मगर हमें हर बस्ती हर गाँव हर क़स्बा और हर शहर में एक एक दो दो रोज़ ठहर कर बिमला और राबिआ का पता लगाना पड़ता था इसलिए हम तेज़ी से सफर नहीं कर सकते थे।
हमने अजरंज में क़याम किया। कई रोज़ ठहरने और जुस्तुजू करने के बाद हमें मालूम हुआ की बिमला यहाँ आती थी। उसके साथ राबिआ भी थी। राबिआ की तबियत कुछ खराब हो गयी थी। उसने कई दिन वहा रह कर उसका इलाज किया। यह भी मालूम हुआ की अजरंज के राजा ने बिमला से राबिआ को लेना चाहा लेकिन वह तैयार न हुई। और वहा से जल्दी ही रवाना हो गयी उसके वहा से जल्द चले जाने की यह वजह भी हुई की राजा अज़रंज बिमला पर फ़िदा हो गया था। वह उसे अपने महल में डालना चाहता था। बिमला खूब जानती थी की राजा कली कली का रस चूसने वाले भंवर की तरह नफ़्स के बन्दे और हवस का गुलाम होते है। आज जिस पर फ़िदा हुए उसे महल में डाला रानी बनाया और जब कल दूसरी पर फ़िदा हुए तो पहली को लोंडी बनाया और दूसरी को रानी बनाया। उससे उनकी हवस बढ़ती और नफ़्स ज़ोर करता रहता है वह वहा से रात को खिसक गयी।
हम दोनों अज़रंज से दादर की तरफ रवाना हुए। सर्दी का ज़माना शुरू हो गया हमें सर्दी ज़्यादा तकलीफ देने लगी। जो नकदी ज़रंज के बूढ़े ने दी थी वह काम आयी। हम दोनों ने दो पोस्तीन ख़रीदे उन्हें पहन कर सर्दी से अमांन पायी।
दादर के क़रीब वाले इलाक़ा को हमने अच्छी तरह से देखा। हमें मालूम हुआ की बिमला हर गाँव में ठहरती गयी थी। इसका पता इसलिए जल्द चल जाता था की वह कम्बख्त और पहाड़ी लड़कियों और औरतो से ज़्यादा हसीन और माहिर थी। जहा वह जाती लोग उस पर फ़िदा हो जाते।
जब हम दादर में आये तो पता लगा की बिमला यहाँ भी दो हफ्ते ठहरी थी। वहा से बसत चली गयी थी। हम बस्त में पहुंचे .वहा कुछ पता नहीं चला। हमें ख्याल हुआ की शायद वह यहाँ तक नहीं आयी और किसी गैर मारूफ बस्ती में जाकर रहने लगी है। हम वहा से लौटने का इरादा किया की एक रोज़ हमें शहर के बाहर दो आदमी लड़ते हुए मिले .वह हाथा पायी पर तैयार हो गए। हम दोनों ने उनमे बीच बचाओ कराया। उनसे लड़ने की वजह पूछी। उनमे से एक ने कहा एक औरत बिमला थी। मैं उस पर उस वक़्त से फ़िदा हु जब वह जवान हुई थी। वह कही गायब हो गयी थी .अचानक से यहाँ मुलाक़ात हो गयी। उसके एक लड़की हुई थी वह उसके साथ थी मालूम नहीं उसका शौहर मर गया था या उसे छोड़ गया था। वह मेरे पास रहने को रज़ा मंद हो गयी थी लेकिन यह बदमाश उसे अगवा करके ले गया।
दूसरे ने कहा " उस औरत ने मुझे धोका दिया। यहाँ से जाबुल ले गयी और वहा जाकर गायब हो गयी ".
मैंने उन लोगों को बताया की वह औरत न मालूम कितने आदमियों को धोका दे चुकी है। मैं भी उसी का सताया हुआ हु और और उसकी तलाश में हु।
गरज़ मुझे यह मालूम हो गया की वह जाबुल चली गयी है। हम दोनों भी वही रवाना हो गए और जाबुल जा पहुंचे .वहा हमने उसे हर चंद तलाश करते रहे। जाबुल में कुछ लोग ऐसे थे जो मुसाफिरों के लिए सवारी का इंतेज़ाम कर दिया करते थे। हमने उनसे याराना गाँठा और बातो बातो में उनसे पता लगाया। एक अधेड़ उम्र के आदमी ने हमें बताया की वह उस औरत और उसके साथ जो लड़की थी उन दोनों को काबुल में पंहुचा आया है लेकिन उस औरत में मना कर दिया था की कि किसी को उसके यहाँ आने और यहाँ से चले जाने का हाल न बताये।
हम दोनों काबुल रवाना हो गए। जब काबुल के क़िला के सामने पहुंचे तो रात हो चुकी थी क़िला का फाटक बंद हो गया था। हमें बाहर ठहरना पड़ा। फ़सील के निचे एक दरख्त के साया में पत्थरो के पास हम पड़ गए घोड़े दरख्त की जड़ से बाँध दिए।
शायद एक तिहाई रात गयी थी की दो सवार आये। उन्होंने हमसे फासला पर घोड़े बांधे और फ़सील के निचे गए। चांदनी रात थी। चाँद आसमान में तैर रहा था। हम दोनों देख रहे थे। किसी फ़सील के ऊपर से कमन्द डाली। यह दोनों चिढ गए। हम समझ गए की कोई अहम मामला है। हमने उनके घोड़े वहा से दूर ले जाकर बाँध दिए।
थोड़ी देर में दोनों फ़सील से उतरे। एक गठरी सी उनके पास थी। उनमे से एक घोड़ो को लेने गया। जब वहा न मिले जहा वह छोड़ गए थे तो उसने जाकर कहा " घोड़े भाग गए "
दूसरे ने कहा "भाग नहीं सकते। तुम तलाश करो। "
पहला फिर घोड़ो को तलाश करने चल दिया। हमने एक आवाज़ सुनी "ज़ालिमों ! क्यू मुझे तकलीफ दे रहे हो। "
मैंने अबदुल्लाह से कहा " यह कोई औरत है। "
अब्दुल्लाह : है चलो उसकी मदद करे।
हम दोनों दबे क़दमों चल कर उस आदमी के पास पहुंचे हमें देखते ही वह भाग निकला। हमने गठरी खोली उसमे एक सेम तन अठारा साला लड़की थी। संगीन निगाहो से हमें देखा। मैंने उसे तसल्ली दी और बताया की हम मुसाफिर है तुम्हे यहाँ लाने वाले भाग गए। "
उस लड़की ने बताया की वह वज़ीर आज़म काबुल की बेटी है। यह दोनों डाकू थे उसे चुरा लाये। वह हमारी बहुत ममनून हुई।
सुबह को हम उसे लेकर क़िला में दाखिल हुए। वह हमसे रास्ता ही में से अलग हो कर अपने मकान पर चली गयी। काबुल में मुसाफिरों से बड़ी बाज़ पर्स होती थी। हमसे भी हुई लेकिन किसी ने हमें वहा से निकाला नहीं।
एक रोज़ हम बाजार में जा रहे थे की शोर हुआ राजा की सवारी आरही है हम दोनों एक तरफ खड़े हो गए। पहले सवार गुज़रे फिर एक सवारी पर राजा आया उसके साथ राबिआ थी। मैं उसे देख कर बेचैन हो गया और पुकारा " राबिआ राबिआ " खैरियत हुई की मेरी आवाज़ बुलंद नहीं हुई। अब्दुल्लाह ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया। .राजा की सवारी चली गयी। भीड़ हट गयी। मालूम होता है की राबिआ को राजा ने ले लिया है अगर राजा को मालूम हो जाता की तुम उसके बाप हो तो सच में वह तुम्हे जासूस समझ कर मरवा डालता। "
मेरी समझ में भी यह बात आगयी ,मैं वक़्त का इंतज़ार करने लगा। कई महीने गुज़र गए लेकिन फिर राबिआ को देखना नसीब न हुआ। लोगो से दरयाफ्त करने पर मालूम हुआ की वह लड़की मतलब राबिआ राजा की बेटी है। मैं समझा की मैंने धोका खाया है।
लेकिन यह मसला एक दिन हल हो गया। हम दोनों काबुल के बाहर उस गार को देखने गए जो बड़ा मुक़द्दस समझा जाता है वहा वज़ीर ज़ादी मिल गयी। उसने हमें पहचान लिया वह इशारे से हमें एक तरफ ले गयी। और हमें कुछ जवाहरात दे कर कहा " अपनी ज़ुबान बंद रखना। "
मैंने कहा 'एक शर्त से। तुम यह बताओ की सुगमित्रा क्या वाक़्या राजा की बेटी है। " उसने बताया राजा बे औलाद है। एक औरत बिमला उसकी लड़की थी। राजा ने उसे खरीद कर उसे बेटी बना लिया है। मैंने उसे अपना क़िस्सा सुनाया। उसने कहा अब तुम अपनी बेटी को सब्र करो। राजा उसे नहीं देगा और अगर अपनी ज़िन्दगी चाहते हो यहाँ से चले जाओ। "
जब मैंने इसरार करके उससे कहा की मैं उस लड़की के बगैर ज़िंदा नहीं रह सकता तब उसने कहा की दादर के धार में जो पेशवा है उसके पास चले जाओ। राजा उसका कहना मानते है। उसे रज़ामंद करलो। वह राजा से तुम्हारी बेटी दिला सकता है।
हम अगले ही दिन वहा से चले आये। दादर में पहुंचे और पेशवा से मिले हम पर उसका ऐसा रुअब पड़ा की उससे कुछ कह न सके। हम उसके शागिर्दो में दाखिल हो गए और तृतपक पढ़ने लगे। अब्दुल्लाह का दिल अचानक घबराने लगा। वह वहा से चले आये मैं वही रहा। मेरी क़द्र मन्ज़िलत बढ़ती रही। यहाँ तक की पेशवा के शागिर्दो में सबसे सबक़त ले गया।
कुछ अरसा के बाद पेशवा मर गया। लोगो ने मुझे पेशवा बना दिया। अगरचे मैं पेशवा हो गया था लेकिन मैंने कभी बुत के सामने सर झुका नहीं। यह मेरी दास्तान।
इल्यास : बड़ी अजीब दास्तान है।
राफे : मैंने मुख़्तसर के साथ क़िस्सा बयां किये है। अगर तफ्सील से ब्यान करता तो कई रोज़ में खत्म होते।
अब दिन छिप गया था। यह लोग मगरिब की नमाज़ तैयारी करने लगे
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