fatah kabul ( islami tareekhi novel) part 41
राफे की दास्तान ....
इल्यास ज़ुहर की नमाज़ पढ़ कर कैंप में वापस आये। उनकी अम्मी और राफे भी नमाज़ पढ़ चुके थे। इल्यास ने अपने चाचा से कहा " माफ़ करना ,मैं लड़ाई का शोर सुन कर ज़ब्त न कर सका। चला गया।
राफे : मेरे भोले बहादुर भतीजा यह बे अदबी नहीं जोश इस्लाम और शौक़ शहादत तुम्हे खींच कर ले गया। अगर तुम न जाते या हिचकिचाते तो मैं तुम्हे बुज़दिल समझता। तुम खींचे चले गए मुझे बड़ी ख़ुशी हुई मुसलमान के दिल में जोश जिहाद और शौक़ शहादत नहीं उसका इमांन मुकम्मल नहीं। जिहाद में दुनयावी फायदा भी और दीनी भी। दुनवी फायदा तो शोहरत और माल गनीमत है और दीनी फायदा यह है की इस्लाम का झंडा बुलंद होता है। उनके इलावा आख़िरत सुधर जाती है। मुजाहिद के बड़े से बड़े गुनाह अल्लाह माफ़ कर देता है। मर गए तो शहीद हुए। ज़िंदा रहे तो गाज़ी कहलाये। दोनों सूबो में जन्नत के मुस्तहिक़ हो गए।
अम्मी : मेरा बेटा ज़बरदस्त मुजाहिद है।
राफे : हर मुसलमान बड़ा मुजाहिद है। शायद ही कोई ऐसा मुसलमान हो जो मरने से डरता हो और जिहाद से जी चुराता हो। अरब औरते गहवारा ही में अपने बच्चे को जिहाद का सवाब और उसकी खूबिया ज़हन नशीन करा देती है। जब वो होश सँभालते है तो उन्हें उनके बुज़ुर्गो के कारनामे सुनाती है। जिहाद और ग़ज़्वह के वाक़ेयात ब्यान करती है। उन्हें बहादुर बनने की तरग़ीब देती है। डर और खौफ उनके दिलो से निकाल देती है। और जब वह ज़रा बड़े हो जाते है तो फुनूँन अरब सिखाती है। घोड़े की सवारी की मश्क़ कराती है। और जब लड़कपन छोड़ कर जवानी में क़दम रखते है तो उन्हें जिहाद पर भेजती है।
अम्मी : हर माँ यही करती है बेटा।
राफे : मैं भी यह कह रहा हु। जिसके एक बेटा होता है वह भी अपने बेटे को बचाती नहीं बल्कि इस्लाम की आगोश में जिहाद के मैदान में धकेल देती है। और उसकी सलामती की दुआ नहीं मांगती बल्कि यह दुआ करती है की अल्लाह जो उसके लिए बेहतर हो वह कर। इस सरखरू और इसकी वजह से मुझे सरखरू बना।
इल्यास एक तरफ बैठ गए। अम्मी ने पूछा " तुमने खाना खा लिया बेटा ?"
इल्यास : अभी नहीं खाया।
अम्मी हम दोनों ने भी नहीं खाया। चलो पहले खाना खा लो।
इल्यास : चलिए।
तीनो उठ कर खेमे के दूसरी तरफ गए। वहा दो कम्बलो का पर्दा हो रहा था अम्मी खाना उतार कर लायी और तीनो ने बैठ कर खाना खाया। खाने के दौरान में इल्यास ने कहा " चाचा जान ! मैं आपके हालात सुनने का बड़ा मुश्ताक़ हु। "
राफे : अम्मी जान को तो मैं सुना चूका हु। खाना खा कर तुम्हे भी सुना दूंगा।
जब तीनो खाने से फारिग हुए तो राफे ने कहा " तुम्हारी अम्मी जान को शुरू के हालात सुना दिए है। अब मैं वहा से ब्यान करता हु जहा से राबिआ और बिमला की तलाश करने चला। जब मैं सफर की तैयारी शुरू की तो किसी से कोई ज़िक्र नहीं किया। ख़ुफ़िया ख़ुफ़िया तैयारी करने लगा मेरे नेक दोस्त इबादुल्लाह थे। इत्तेफ़ाक़ से उन्हें मालूम हो गया। वह भी मेरे साथ चलने पर ज़िद कर ली मैं इंकार न कर सका। उन्हें साथ लेकर चलने पर तैयार हो गया। उन्होंने भी तैयारी कर्ली और हम दोनों इस मुल्क की तरफ रवाना हुए जिसके मुताल्लिक़ कुछ भी न जानते थे।
इत्तेफ़ाक़ से बिमला के मुल्क की ज़बान बहुत कुछ सीख लिया था। बोल भी लेता था और लिख पढ़ भी लेता था। बिमला से बा क़ायदा इसकी तालीम हासिल की थी। हम इराक से ईरान आगये और वहा से कदंज के इलाक़ा में पहुंचे खास शहर क़दांज में जाकर मालूम हुआ की बिमला वहा ठहरी थी और राबिआ उसके साथ थी। उन्होंने बताया की उसका इरादा काबुल जाने का था।
ज़रंज में ऐसा इत्तेफ़ाक़ हुआ की एक रोज़ में तनहा वहशत ज़ेर असर जंगल में चला गया। दुपहर तक घूमता रहा जब तबियत को ज़रा सुकून हुआ तो वापस लौटा थोड़ी दूर ही चला था की शेर की गरज सुनी। मुझे ख्याल हुआ की शायद शेर ने मुझे देख लिया है और गुर्रा रहा था मैं होशियार हो गया और मैंने कमान में तीर जोड़ लिया उसी वक़्त चीख की आवाज़ आयी मैं समझ गया की शेर ने किसी आदमी पर हमला कर दिया। मैं झपटा चंद ही क़दम चला था की एक मैदान में जो जंगल के बीच में था शेर को एक आदमी पर झपटते देखा। मैंने फ़ौरन तीर मारा मेरी तरफ शेर की पेट थी तीर उसके पीछे जा लगा। वह ग़ज़बनाक होकर पलटा। मैंने जल्दी से दूसरा तीर कमान में रख कर खींचा और उसकी आंख को निशाना बना कर छोड़ा तीर पर निशाना पर लगा शेर की आंख में घुस गया वह तिलमिला कर भागा। मैंने तीसरा तीर मारा। वह उसके जिगर में पेवस्त हो गया। शेर औंधे मुंह ज़मीन पर जा पड़ा।
अब मैं उस शख्स को देखने दौड़ा जिसे शेर ने गिरा दिया था। उस अरसा में वह उठ कर बैठ गया। मैंने उसके पास जाकर पूछा। कहो कही निशान तो नही आयी ?
वह शख्स किसी क़द्र सन रसीदा था हरा लिबास पहने थे। अच्छे तब्क़ा से मालूम होता था। उसने कहा यज़दा ने तुम्हारी मदद के लिए भेज दिया। मैं बाल बाल बच गया। तुम्हारा शुक्रिया अदा नहीं कर सकता।
वह आतिश परस्त था उठ कर मेरे साथ हो लिया। मैंने दरयाफ्त किया तुम यहाँ कैसे आये थे।
वह बोला " शामत का मारा सैर करने चला आया था। घोड़ा बाँध कर मैदान में आकर बैठा ही था की यह कम्बख्त शेर कही से आ निकला।
वह मुझे साथ लेकर अपने घोड़े के पास पंहुचा और मुझे घोड़े पर सवार करने को बोला जब मैंने इंकार किया तो वह उसकी बाग़ पकड़ कर वह भी मेरे साथ हो लिया।
जब हम शहर में आये और मैं उससे रुखसत होने लगा तो उसने कहा तुम मुसाफिर हो और अरब हो। जब तक यहाँ रहो मेरे मकान पर ठहरना।
मैंने कहा मेरा एक साथी और भी है। उसने कहा उसे भी ले आना पहले तुम मकान देख लो।
मैं उसके साथ मकान पर पंहुचा उसका मकान निहायत आली शान था। मेरा ख्याल सही निकला। वह अमीर था उसकी बीवी और नौजवान बेटी ने मेरा इस्तेकबाल किया। जब उन्हें बूढ़े ने अपनी दास्तान सुनाई और उन्हें मालूम हुआ की मैंने शेर को मार कर उसे बचाया है तो वह दोनों मुझे शुक्र गुज़ार निगाहो से देखने लगी और उन्होंने मेरा बहुत बहुत शुक्रिया अदा किया। उन्होंने मेरी बड़ी खिदमत की। जान बचाने के सिला में बूढ़ा मुझे पांच हज़ार दिरहैम देने लगा मैंने इंकार कर दिया। वह और उसकी बेटी मेरे और भी मश्कूर हुए।
बूढ़े ने मुझसे वहा आने की वजह पूछी। मैंने उससे अपनी तमाम राम कहानी सुनाई। बूढ़ा बोला " अच्छा मैं समझ गया .वह औरत तो मेरे बाग़ में आकर ठहरी थी। बड़ी हसींन थी। ज़रूर तुम उसके दाम फरेब में आगये। वह लड़की भी उसके साथ थी। मैंने उसे उसकी बेटी समझा था। वह भी बड़ी खूबसूरत थी। बुध मत को मैंने वाली थी। वह शायद काबुल गयी है।
मैंने कहा " मैं भी काबुल जाऊंगा।
उसने कहा " अगर तुम इसी लिबास और इसी हालात में जाओगे तो मारे जाओगे। पहले उनकी ज़ुबान हासिल करो और उनकी मज़हबी किताबे पढ़ो और फिर उनका क़ौमी लिबास पहन कर उनके मुल्क में जाओ। वह तुम्हे फरेब देकर आयी है। तुम उसे जल देना।
मेरी समझ में यह बात आगयी। मैंने कहा " आपका मश्वरा मुनासिब है लेकिन यहाँ मुझे कौन बुध मत की किताबे पढ़ायेगा। "
उसने कहा " उसका मैं इंतेज़ाम कर दूंगा।
उसने अपना आदमी मेरे साथ मेरी क़याम गाह पर भेजा और मैं इबददुल्लाह दोनों उसके यहाँ उठ गए। इबादुल्लाह मुझसे कुछ छोटे थे हम दोनों वहा रहने लगे। एक आदमी मुझे तृप्तक पढ़ाने लगा एक महीना तक हम वहा रहे। मैं देख रहा था की उस बूढ़े की जवान बेटी इबादुल्लाह की तरफ माएल हो रही है। इबादुल्लाह उससे बचते थे। एक रोज़ उस लड़की ने इबादुल्लाह से तन्हाई में कह दिया की वह उनसे मुहब्बत करती है उन्होंने साफ़ कह दिया की मज़हब खलेज दरमियान में हाएल है। इबादुल्लाह यह बाते मुझसे ब्यान करके मुझे वहा से चलने को कहा। मैंने बड़ी मुश्किल से बूढ़े से इजाज़त हासिल। की
जब मैं चलने लगा तो बूढ़े ने कहा " मैं तुम्हारा इस दर्जा मश्कूर हु की अगर तुम पसंद करो तो मैं अपनी बेटी से तुम्हारी शादी कर दूँ। मेरे बाद तमाम दौलत तुम्हारी होगी।
मैंने उससे कहा " पहले मुझे अपनी बेटी तलाश करनी चाहिए "उसने मुझसे इक़रार लिया की जब मैं वापस आऊं तो उसके यहाँ ठहरु "मैंने मान लिया। उसने हम दोनों के लिए कई जोड़े कपड़े कबिलियो जैसे बना कर दिए और बहुत कुछ नकदी भी दी। हम वहा से आगे चल पड़े। उस वक़्त असर की अज़ान हुई और यह दोनों नमाज़ के लिए उठ गए।
अगला पार्ट ( बाक़िया हैरतनाक हाल)
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