FATAH KABUL (ISLAMI TAREEKHI NOVEL) PART 43
राफे की रवानगी.....
मगरिब की नमाज़ पढ़ कर राफे ,इल्यास और अम्मी तीनो ने खाना खाया। जब खाने से फारिग हो चुके तो राफे ने कहा " महाराजा काबुल मेरा बड़ा पास व लिहाज़ करते है। बुद्धमत वालो का बड़ा लामा तो तिब्बत में होता है मगर मेरी क़द्र व मन्ज़िलत भी उसी के बराबर की जाती है। मैं कई बार काबुल जाकर राबिआ को देख चूका हु लेकिन उससे तन्हाई में मिलने का मौक़ा एक बार भी नहीं मिला। मैंने बहुत कोशिश की है और मुलाक़ात भी हुई तो उस वक़्त जब वह जवान हो कर यह भूल चुकी थी कि कौन थी और कैसे काबुल में आयी है। महाराजा और महारानी की शफ़्क़तों ने उसे पिछली बाते सब भुला दी।
अम्मी : वह तो जब अगवा की गयी बच्ची थी। न समझ और कम अक़्ल बच्ची। उसने इस्लाम की आगोश में बचपन गुज़ारा और कुफ्र की आगोश में होश संम्भाला। वह अगर सब कुछ भूल गयी है तो हैरत की बात नहीं। लेकिन हैरत तो इस पर कि बिमला तुम्हे न पहचान सकी।
राफे : बिमला ने मुझे कहा देखा ?
अम्मी : धार में एक बार नहीं कई बार। उसने मुझे बताया की वहा के पेशवा बड़े बुज़ुर्ग है। मैं कई बार उन्हें देख चुकी हु। लेकिन उनके सामने जाने की हिम्मत नहीं हुई। शायद इस वजह से की मेरी रूह गुनहगार थी। अगरउनके सामने जाती तो वह मेरे दिल का हाल मालूम कर लेते।
राफे को बड़ी हैरत हुई। उन्होंने कहा "क्या बिमला तुमसे मिली थी ?
" हां" अम्मी ने कहा और बिमला के तमाम हालात उनसे ब्यान किये। राफे ने कहा "बद बख्त औरत ! उसने हमें बर्बाद किया ही लेकिन खुद भी बर्बाद रही। अब वह कहा है ?"
अम्मी : उसने कमला को इसलिए काबुल भेजा था की वह सुगमित्रा को किसी तरह काबुल से बाहर ले आये। उसके पीछे खुद भी चली गयी। कहती थी की अगर कमला सुगमित्रा को बाहत तक ले आयी तो वह उसे अपने साथ हमारे पास ले आएगी।
राफे : यह कमला कौन है।
अम्मी : दादर के क़रीब बस्ती की रहने वाली है। उसने इल्यास को भाई बना लिया है। वही उन्हें दादर के धार में लेकर पहुंची थी। जब तुमने इल्यास को क़ैद कर दिया दिया था तो उसने भी उनकी रिहाई में कोशिश की थी। लेकिन इल्यास को सुगमित्रा ने रिहा करवाया। कमला उनके साथ ही क़िला से बाहर निकल आयी और इल्यास को सालेही के पास पंहुचा दिया। यह वाक़्या इल्यास से सुनो। यह अच्छी तरह ब्यान करंगे।
राफे : सुनाओ बेटा इल्यास।
इल्यास ने कमला के तमाम वाक़्यात ज़रा तफ्सील से ब्यान किये। राफे ने कहा " मैं कमला क समझ गया। दादर ,बस्त ,जाबुल, और काबुल की कोई औरत और लड़की ऐसी नहीं है जिसे मैं नहीं जानता। इन शहरो के अलावा उनके इलाक़ो की तमाम लड़किया और औरतो से खूब वाक़िफ़ हु। मुझे याद आगया। दुआ के रोज़ वह लड़की तुम्हारे पास खडी थी बड़ी बड़ी आँखों वाली जिसकी लम्बी पलके थी।
इल्यास : आपने पहचान लिया वही लड़की है।
राफे : वह लड़की भोली भी है और नेक भी ,वह ज़रूर काबुल जाकर कोशिश करेगी मगर उसकी रसाई सुगमित्रा तक न हो सकेगी।
इल्यास : क्या राजा उसे अपनी नज़र में रखता है ( निगरानी) .
राफे : नहीं ,बल्कि राजा और रानी को उससे बहुत ज़्यादा मुहब्बत है। वह दोनों उसे एक लम्हा के लिए भी अपनी नज़रो से दूर नहीं होने देते। जिस अरसा तक मैं धार में रहा कोशिश करता रहा की उसे दादर में बुला लू। राजा से कहा उसने वादे भी किये लेकिन रानी ने न भेजा था। मगर बड़ी मुश्किल से और तमाम पेशवाओ के कहने से धार में दुआ में शरीक होने को भेजा था। मगर उसकी हिफाज़त का इस क़द्र इंतेज़ाम और अहतमाम किया था की न कोई उसके पास जा सकता था। न वह किसी के पास आ सकती थी।
इल्यास : कही राजा और रानी कुछ शक तो नहीं।
राफे : शक किस पर करते। सुगमित्रा को वह समझते है की वह सब बाते भूली हुई है। अगर उन्हें कुछ खौफ या ख्याल हो सकता है तो बिमला का।
इल्यास : मुमकिन है उसकी वजह से उसकी हिफाज़त और निगरानी ज़्यादा तर की जाती हो।
राफे : मैं तो यह समझता हु की उन्हें राबिआ से बहुत ज़्यादा मुहब्बत है इसलिए उसकी हिफाज़त व निगरानी में ज़्यादा अहतमाम करते है।
इल्यास : बिमला भी कमला के पीछे गयी है।
राफे : यह बुरा हुआ। वह कम्बख्त राबिआ से इस क़द्र मुहब्बत करती है की अगर वह उसके हाथ लग गयी तो वह खौफ है कही वह उसे और और कही न ले जाये।
इल्यास : मैंने आपको शयद यह नहीं बताया की बिमला मुसलमान हो गयी है।
राफे : कैसे हु ,किसने किया ? उसे तो मैंने बहुत समझाया था लेकिन वह टस से मस न हुई।
इल्यास : बस खुदा ने उसके दिल में कुछ बात डाल दी।
राफे : कही वह कोई और फरेब देने के लिए तो मुसलमान नहीं हुई।
इल्यास : उसके दिल की बात कौन जान सकता है।
अम्मी : मेरा ख्याल है वह किसी लालच से या कोई फरेब देने के लिए मुसलमान नहीं हुई। सच्चे दिल से मुसलमान हुई है। उसने कमला को हिदायत कर दी थी की वह किसी से उसके मुसलमान होने का ज़िक्र न करे।
राफे : खुदा करे वह सच्चे दिल से मुसलमान हुई हो।
इल्यास : और खुदा करे वह राबिआ को यहाँ लाने में कामयाब हो जाये।
राफे : अमीन ,अच्छा राजा गिरफ्तार हो गया।
इल्यास : राजा भी और रानी और राजकुमारी भी। धार बुत के जिसका नाम बुध ज़ोर है अमीर ने हाथ काट डाले और आँखे निकल ली।
राफे : उसमे था ही क्या की सोने का बुत था। मुझे हैरत होती है की बुद्धमत वाले किस क़द्र सदा लोह है की उस बुत की पूजा करते है जो नफ़अ पंहुचा सकता है न नुकसान।
राफे : अब अमीर का क्या इरादा है ?
इल्यास : जब तक मैं आया हु उन्होंने कुछ तय नहीं किया था। उस वक़्त तय करेंगे आप भी ईशा की नमाज़ पढ़ने चले .अमीर से मुलाक़ात हो जाएगी।
राफे : मैं यहाँ महज़ तुमसे मिलने और तुम पर अपने आपको ज़ाहिर करने आया था। खुश क़िस्मती से अम्मी जान से भी मुलाक़ात हो गयी है। अभी आम तौर पर ज़ाहिर होता होना नहीं चाहता। क्युकि उससे मेरा मक़सद मर जाएगी। मैं चाहता हु की काबुल पहुंच जाऊ और सुगमित्रा से मिलने और उसे अपने साथ लाने की कोशिश करू।
अम्मी : उसे सुगमित्रा मत कहो। उसका नाम राबिआ ही बड़ा प्यारा है।
राफे : तुमने सच कहा। अब मैं उसे राबिआ ही कहा करूँगा।
उस वक़्त ईशा की अज़ान हुई। इल्यास उठ कर नमाज़ पढ़ने चले गए। राफे ने वही वज़ू करना शुरू कर दिया .जब इल्यास मैदान में पहुंचे तो उन्होंने अमीर अब्दुर्रहमान को वहा देखा। उस रोज़ सर्दी और दिनों से ज़्यादा थी। आम तौर पर मुसलमान कम्बल ओढ़ ओढ़ कर आये थे कुछ अदना आबए पहुंचे थे।
चांदनी रात थी लेकिन क़िब्ला की तरफ कई जगह आग के अलाव रोशन थे। उनकी रौशनी मैदान में फैली हुई थी। जमात के साथ नमाज़ पढ़ी गयी। जब सब मुस्लमान नमाज़ से फारिग हो गए तो अमीर अब्दुर्रहमान ने कहा " मुजाहिदीन इस्लाम ! इस मुल्क में सर्दी ज़्यादा है। सर्दी का मौसम क़रीब आता जा रहा है। जबकि अब उस दर्जा सर्दी है तो सर्दी के ज़माना में क्या आलम होगा। इसलिए मैं चाहता हु की हम जल्द से जल्द काबुल पहुंच जाये .और अगर खुदा की मदद शामिल हाल हो तो उसे फतह कर ले। वर्ना सर्दी ज़्यादा परेशान करेगी। हम गर्म मुल्क वाले इतनी सख्त सर्दी को बर्दाश्त न कर सकेंगे। मैंने क़िला दादर की हिफाज़त का इंतेज़ाम कर दिया है कल हम बस्त की तरफ रवाना हो जायेंगे। सब लोग रात ही में तैयारी कर मैं और चाशत के वक़्त तक नाश्ता से फारिग हो जाये। अज़ीज़ इल्यास ! राजा तो गिरफ्तार हो गया। लेकिन पेशवा का पता न चला।
इल्यास को खौफ हुआ की की कही हम्माद बोल न उठे लेकिन वह वहा न थे क़िला की हिफाज़त उनके सुपुर्द की गयी थी .इल्यास खामोश रहे। अब्दुर्रहमान ने कहा " ऐसा मालूम होता है वह पहले भाग गया। "
इल्यास : या अमीर ! शब् खून की खबर पेशवा ने ही दी थी।
अब्दुर्रहमान : मुझे मालूम है वह हमारा मोहसिन है मैं सब लोगो से कहता हु पेशवा से कोई कुछ अर्ज़ न करे।
उसके बाद सब लोग उठ उठ कर चले गए। इल्यास भी अपने खेमे पर चले आये उन्होंने राफे की रवानगी पर तैयार देख कर कहा " कहा जा रहे हो चाचा जान ?"
राफे : बेटा जा रहा हु। इंशाअल्लाह काबुल में मुलाक़ात होगी।
इल्यास : अमीर आप को पूछते थे। जब मैंने उन्हें बताया की शब् खून की खबर उन्होंने ही दी थी तो उन्होंने अयलान कर दिया की कोई शख्स पेशवा से तरुज न करे।
राफे : इंशाअल्लाह उनसे काबुल में मिलूंगा।
अगला पार्ट ( बस्त पर तसल्लुत )