fatah kabul (islami tareekhi novel) part 40
बोद्ध ज़ोर का हश्र ....
जब मुसलमानो का दादर पर क़ब्ज़ा पूरी तरह से हो गया तो सुबह सादिक़ हुई। कई मुसलमानो ने मिल कर अज़ान दी। यह पाहि सदाए तौहीद थी जो दादर के क़िला में बुलंद हुई मुसलमानो ने वज़ू किये और खुले मैदान में नमाज़ की तैयारी करने लगे। उन्हें यह खौफ भी न हुआ की वह काफिरो के क़िला में है। चंद ही घंटे हुए की उन्होंने क़िला फतह कर लिया। कही कुफ्फार नमाज़ की हालत में उन पर हमला न कर दे। उन्होंने जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ी। काफिरो को अपने घरो से निकलने की जुर्रत ही न हुई। नमाज़ फारिग हो कर वह कुछ देर बैठे रहे फिर शहर और क़िला पर तसल्लुत करने के लिए चले।
इस वक़्त आफ़ताब निकल आया था और धुप दरख्तों की चोटियों और ऊँची दीवारों पर फैल गयी थी। दादर के लोग खौफ व दहशत से सहमे हुए थे और घरो में छिपे बैठे हुए थे। लीडर अब्दुर्रहमान ने पांच सौ सवार इल्यास को देकर हुक्म दिया की राजा के महल मुहासरा करके अगर कोई उनकी मुज़हमत करे तो उसे क़त्ल कर डाले और राजा को गिरफ्तार करके उसका तमाम खज़ाना और सारा साज़ व सामान ज़ब्त कर ली। एक जस्ता एक और अफसर को दे कर हुक्म दिया की वह शहर के रईस के घरो पर ताखत करे और खुद एक दस्ता लेकर धार की तरफ चले।
इल्यास जब राजा के महल के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा की महल की फ़सील पर अपने रिसाला के सिपाहियों को लिए खड़ा है। राजा का महल एक छोटी से घढ़ ही थी उस घड़ ही की दीवारे पत्थर की निहायत मज़बूत थी। इल्यास झंडा हाथ में लेकर कर अपने दस्ता को वही ठहरा कर बढे और बुलंद आवाज़ से कहा " मैं राजा से बाते करना चाहता हु। "
राजा आगे आया उसने कहा " कहो क्या कहते हो ?"
इल्यास हम सुलह का पैगाम लेकर आये लेकिन तुमने न माना जिस लश्कर पर तुम्हे नाज़ था वह पारह पारह हो गया जिस क़िला पर तुम्हे ज़अम न था वह फतह हो चूका है। अब तुम किस भरोसा पर हमारा मुक़ाबला करने को तैयार हो।
राजा : हम हिन्द वालो को तुम नहीं जानते हम आखरी दम तक लड़ा करते है।
इल्यास : गलती न करो। अगर तुम हथियार डाल दो तो मैं वादा करता हु की तुम्हारे साथ अच्छा सुलूक किया जायेगा .
राजा : बहादुर हथियार नहीं डाला करते। तुम इस बात पर घमंड न करो की तुमने धोका से क़िला फतह कर लिया है। इस महल को फतह न कर सकोगे। तुम्हारे लिए अब भी मैं यही कहता हु की तुम अगर यहाँ स चले जाओ तो तुमसे कोई अर्ज़ न करूंगा।
इल्यास : जब क़िला तुम्हे पनाह न दे सका तो यह गढ़ही क्या पनाह देगी।
यह कह कर वह लौट आये और उन्होंने दस्ता को आगे बढ़ जाने का हुक्म किया। जैसे ही मुसलमान बढे राजा ने अपने सिपाहियों को तीर बारी का हुक्म दिया। ऊपर से मुसलमानो पर तीर बरसने लगे। मुसलमानो ने ढालो पर रोके फिर भी कुछ तीर मुसलमानो को लगे और वह ज़ख़्मी हो गए।
इल्यास ने मुसलमानो को पैदल हो जाने का हुक्म दिया। वह जल्दी जल्दी घोड़ो से कूदने लगे और ढालो की आड़ लेकर उस तेज़ी से झपटे की राजा और उसके सिपाही उन्हें रोक न सके। वह गढ़ही के दरवाज़े पर पहुंच गए दरवाज़ा तोड़ने लगे।
सिपाहियों ने ऊपर से पत्थर बरसाने लगे। मुसलमानो ने वह भी ढालो पर रोके। आखिर थोड़ी देर में दरवज़ा तोड़ दिया और तलवारे सौंत कर अंदर घुसे। इस महल के दो हिस्से थे। एक मरदाना और दूसरा ज़नाना मरदाना हिस्से में सिपाही ऊपर से उतर कर आ गए और मुक़ाबला करने लगे। मुसलमानो ने अल्लाहु अकबर का नारा लगा कर उन पर इस ज़ोर से हमला किया की उनकी लाशें गिरा कर अगर सहन भर दिया जिस सिपाही पर जो मुस्लमान हमला करता था उसका सर उड़ा देता था। सिपाही भी राजा के तरग़ीब देने से बड़े जोश में आ कर हमला करते थे लेकिन उनकी तलवारे गोया कंद हो गयी थी और मुसलमानो की तलवारे बराबर काट कर रही थी। इल्यास बड़ी बहादुरी से लड़ रहे थे वह जिस सिपाही पर हमला करते थे उसके दो टुकड़े कर डालते थे। अगर कोई अजल रसीदा हमला करता था तो उसे भी हलाक कर डालते थे। यहाँ तक की वह मारते काटते राजा के क़रीब पहुंच गए .
राजा तड़प कर उनके मुक़ाबले में आगया और निहायत शिद्दत से उनपर हमला करने लगा। वह सब्र व इस्तेक़लाल से उसके हमले रोकते रहे जब देर हो गयी तो उन्होंने अल्लाहु अकबर का नारा लगा कर तलवार मारी। राजा ने अपने तलवार रोक ली। राजा की तलवार कट कर दूर जाकर गिरी अगर इल्यास चाहते तो दूसरा हमला करके निचे गिरा देते मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया और कहा " तुम्हे तुम्हारी फ़ौज क़िला गड़ही रिसाला ख़ास और तुम्हारा माबूद कोई भी पनाह न दे सका। 'उन्होंने एक मुस्लमान को इशारा किया। उसने राजा को गिरफ्तार कर लिया।
राजा के गिरफ्तार होते ही उसके सिपाहियों के जी छूट गए वह भागे उन्होंने गलती की भागने का रास्ता बंद था। मुसलमानो ने उनका पीछा करके उन सबको क़त्ल कर दिया।
अब इल्यास कुछ सिपाही लेकर रनवास मतलब ज़नाना महल में घुस गए उन्हें देखते ही बांदियो ने चिल्लाना शुरू कर दिया। रानी और राजा की बेटी चीख पड़ी। इल्यास ने उन्हें तसल्ली दी और कहा " घबराओ नहीं तुम्हारा बाल भी बेका न होगा ."
इल्यास ने महल की तमाम औरतो को हिरासत में ले लिया और महल का सब साज़ व सामान सोने चाँदी के जेवरात और बर्तन सोने और जवाहरात के छोटे छोटे बुत जिनकी पूजा रानी राजकुमारी करती थी और नक़द जो कुछ था सब अपने क़ब्ज़े में कर लिया। उन्होंने फिर खज़ाना पर धावा बोला और खज़ाना का ताला तोड़ कर वहा से सोने और चाँदी के सिक्के जवाहरात ,याक़ूत तख़्त चांदी के और कई ताज सोने के गरज़ सब कुछ ले लिया। अब वह धार की तरफ चले। उन्होंने रास्ता में देखा की मुस्लमान रईसों और मालदारों के घरो में घुस घुस कर नक़द ज़ेवर और क़ीमती साज़ व सामान पर क़ब्ज़ा कर रहे है।
जब इल्यास धार पर पहुंचे तो उन्होंने देखा की धार का दरवाज़ा बंद है और हज़ारो आदमी ऊपर से पत्थर और तीर बरसा रहे है। लीडर अब्दुर्रहमान को जोश आगया। वह अल्लाहु अकबर का नारा लगा कर बढे। तमाम मुसलमानो ने नारा तकबीर बुलंद किया।
उस नारा की आवाज़ से कुफ्फार घबरा गए। कई आदमी ऊपर से उछल कर निचे आ गिरे। वह शायद यह समझे की मुसलमानो ने दरवाज़ा तोड़ डाला और अंदर धार के सहन में उतरने का मुसलमानो को मौक़ा मिल गया उन्होंने झपट कर दरवाज़ा तोड़ डाला और तलवारे सौंत कर सहन में घुस गए। वहा जाते ही उन्होंने क़त्ल आम शुरू किया . दम के दम में हज़ारो आदमियों को मार डाला जो बाक़ी रहे उन्होंने अमांन मांगी। उनसे हथियार ले गए और उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
इल्यास भी राजा और उसके औरतो के लेकर धार में दाखिल हुए उन्होंने उन्हें लीडर अब्दुर्रहमान के सामने पेश करके कहा " यह राजा और उनकी औरते है "
अब्दुर्रहमान : उन्हें बुत के पास ले चलो। और जो लोग गिरफ्तार है उन्हें भी लाओ।
इस कमरा में जिसमे बुत था सैंकड़ो औरते और लड़किया मौजूद थी। सब निहायत ख़ौफ़ज़दा और सहमी हुई थी। कुछ ज़ार ज़ार रो रही थी। राजा रानी और राजकुमारी को हिरासत में आता देख कर क़रीब क़रीब सब ही रोने लगी। अब्दुर्रहमान ने कड़क कर कहा "खामोश हो जाओ। "
सब खामोश हो गयी। लीडर ने एक तरफ औरतो को खड़ा किया और दूसरी तरफ मर्दो को। उनके पीछे मुस्लमान खड़े हो गए। अब्दुर्रहमान इल्यास को साथ लेकर बुत के पास गए। उन्होंने धार वालो से मुखातिब होकर कहा " ए अहले शिर्क ! तुम आज तक इस बुत की पूजा करते रहे हो अगर यह तुम्हारा खुदा कोई ताक़त रखता है तो उससे कहो की यह हम मुसलमानो को मिटा दे। '
सब चुप रहे। किसी को कुछ कहने की हिम्मत न हुई। अब्दुर्रहमान ने कहा " तुम चुप हो अपने खुदा से कुछ कहते। अच्छा मैं तुम्हारे खुदा को देखता हु। "
यह कह कर उन्होंने तलवार के दो हाथ मारे जिससे बुत के दोनों हाथ कट गए यह बुत खालिस सोने का था। अब्दुर्रहमान ने कहा " लो मैंने तुम्हारे खुदा के हाथ काट दिए। इस पर भी वह मुझे सजा नहीं दे सका।
उसके बाद उन्होंने उसकी आँखों में से दोनों याक़ूत निकाल लिए और राजा से मुखातिब हो कर कहा " तुम पर अफ़सोस है। तुम आज तक इस बुत की पूजा करते रहे हो जो कुछ भी नहीं कर सकता। बेकार महज़ है। बुरा भला कोई काम नहीं कर सकता।
अब भी सब लोग चुप थे। इस धार में सोने चांदी का बहुत कुछ सामान और जेवरात थे। नकदी भी बहुत थी . मुसलमानो ने वह सब निकाल लिया। तमाम माले गनीमत एक जगह जमा किया गया। बे शुमार दौलत हाथ आयी। पांचवा हिस्सा दरबार खिलाफत के लिए निकाल कर बाक़ी तमाम लश्कर पर तक़सीम कर दिया गया। एक एक सवार के हिस्सा में चार चार हज़ार दिरहैम आये। अफसरों को उससे दो गुना मिला।
अगल भाग ( राफे की दास्तान )