fatah kabul (islami tareekhi novel )part 39

 

दादर की फतह..... 





हम्माद राफे जैसे वह पेशवा समझ रहे थे और इल्यास के कहने से चले। उन्होंने अपने दस्ता को बुलाया और उन्हें यह  समझा कर की दुश्मन शब् खून मारने वाला है मुसलमानो को होशियार कर दो। उन्हें तमाम सिम्तो पर भेज दिया। और खुद लीडर के खेमा की तरफ चले। 

उन मुहाफ़िज़ दस्तो ने सेंट्रो में जाते ही नींद से बेदार हो कर जिहाद के लिए आओ के नारे लगाए और जब उन्होंने देखा की मुस्लमान कलबलाने लगे है तो होशियार के नारे इतनी ऊँची आवाज़ से लगाए जो कैंप  से बाहर न जा सके। 

मुस्लमान जल्दी जल्दी उठ उठ कर मुस्लाह होने लगे  और बाहर निकलने लगे जब उन्हें बताया जाता की दुश्मन शब् खून मारने वाला है तो वह लड़ाई के लिए तैयार हो जाते।  हम्माद ने लीडर को उठाया और उन्हें सूरत हाल से आगाह किया। वह भी जल्दी से मुसलः हो कर बाहर निकल आये। और  हम्माद से मज़ीद वाक़्यात पूछे। हम्माद ने पेशवा  के आने और खबरदार करने का हाल सुनाया। उन्होंने कहा " देखो  तुम ऐसा करो की आधा लश्कर लेकर  कैंप से बाहर शिमाल  की तरफ ज़रा फासले पर चले जाओ और मैं आधा लश्कर लेकर जुनूब की  तरफ जाता हु जब दुश्मन कैंप की तरफ चले तो तुम उसे पीछे से घेर लो मैं भी आजाऊंगा उसे हलाली सूरत में नरगा में लेना चाहिए। "

हम्माद : कुछ मैं अर्ज़ करू। 

अब्दुर्रहमान : कहो। 

हम्माद : लश्कर के तीन हिस्से कर लीजिये। एक हिस्सा खेमे की पहली क़तार के पीछे छिपा दीजिये। एक हिस्सा मेरे  साथ दीजिये। और एक हिस्सा अपने साथ रखिये। हम दोनों शिमाली जुनूबी  किनारो पर छिप कर बैठ जाएँ। जब दुश्मन  आगे बढ़ आये तो हम उसके बराबर और पीछे से घेरा डाल लें और अचानक हमला करके लड़ाई शुरू  कर दें। इस तरह हम उन्हें चारो तरफ से घेर लेंगे। 

अब्दुर्रहमान : निहायत मुनासिब तदबीर है तुम्हारी। अच्छा जल्दी करो। 

हम्माद ने लश्कर के तीन हिस्से किये। एक हिस्सा अब्दुर्रहमान को दिया और दूसरा  अपने तहत में रखा और तीसरा  ओबैदुल्लाह एक अफसर के सुपुर्द किया। ओबैदुल्लाह ने अपना दस्ता खेमो के पीछे छिपा दिया और हम्माद और अब्दुर्रहमान अपने दस्ते लेकर एक शिमाल की तरफ लेकर और दूसरी जुनूब की तरफ कैंप से फासला  पर जाकर अँधेरे में छिप गए। 

थोड़ी   ही देर में हम्माद ने देखा की क़िला का दरवाज़ा खुला। कई मशाले नमूदार हुईं और उन मशालों की रौशनी में टिड्डी  दिल लश्कर क़िला से बाहर निकल कर इस्लामी कैंप की तरफ बढ़ा। वह सब लोग पैदल थे। शायद इस वजह से घोड़ो  पर सवार हो कर नहीं आये थे की कही टापों  की आवाज़ से मुसलमान ख़बरदार न हो जाये और निहायत तेज़ी  मगर पूरी एहतियात से आ रहे थे। उनके साथ चंद अफसर घोड़ो पर भी सवार थे। 

बढ़ते बढ़ते जब वह इस इस मैदान को तय करने लगे जिसके दोनों किनारो पर मुस्लमान छिपे हुए थे  मुसलमानो ने  सांस तक रोक लिए दुश्मन बढ़ कर जब इस्लामी कैंप के क़रीब  पहुंच गया तो एक तरफ से लीडर अब्दुर्रहमान और दूसरी  तरफ से हम्माद अपने अपने सिपाहियों को लेकर इस तरह उठे की कोई खटका न हुआ। उन्होंने मियान  संम्भाल लिए और कुछ लोग आहिस्ता आहिस्ता क़िला की तरफ बढ़ कर हलाली सूरत में काफिरो के पीछे आगये। 

क़िला दादर  सिपाहि आने वाले खतरा से बे खबर बढे चले आ रहे थे जब वह बिलकुल कैंप के किनारा पर पहुंच गए तो उबैदुल्लाह  और उनके साथियो ने अल्लाहु अकबर का नारा लगा कर अचानक उनपर हमला कर दिया। इस नारा को सुन कर दादर वाले घबरा गए और जब  उनपर हमला हुआ तो और भी ख़ौफ़ज़दा हो गए लेकिन अब उनके  लिए सिवाए लड़ने के कोई चारा नहीं रहा था। उन्होंने ढालो पर मुसलमानो की तलवारे रोकी और खुद भी अपनी तलवारे  मियानो से खींच लें और शोर करके मुसलमानो से भिड़ गए। 

यही वह शोर था जो इल्यास ने सुना था और वह नेज़ा हिलाते हुए बढे थे। वह भी हंगामा की जगह पर पहुंच गए और उन्होंने  नेज़ा से हमला करके कई काफिरो को छेद डाला। उन्हें फ़ौरन ही ख्याल हुआ की नेज़ा से इस मौके पर तलवार  ज़्यादा काम देगी। लिहाज़ा उन्होंने नेज़ा डाल दिया और तलवार निकाल कर निहायत जोश से हमला किया।  हर मुसलमान अपनी ताक़त से ज़्यादा ज़ोर से लड़  रहा था और इस फुर्ती से हमले कर रहा था जैसे वही सारे  दुश्मनो को क़तल करना चाहता है। 

कुफ्फार भी डट गए और बड़ी बहादुरी से लड़ने लगे वह भी मुसलमानो को  क़तल व ज़ख़्मी कर रहे थे। उन्हें यह ख्याल  था की तमाम मुस्लमान सामने है इसलिए दिल जमई से जंग में मसरूफ थे अलबत्ता इस बात से हैरान थे की  मुसलमानो को शब् खून मारने की इत्तेला किस तरह हो गयी। 

जंग की आग भड़क उठी थी और इस शोले इंसानो को अपनी लपेट में ले रहे थे। अँधेरे में तलवारे उठ उठ कर सर व तन के फैसले कर रही थीं मार धाड़ हो रही थी और सर उछल उछल कर गिर रहे थे चुकि अँधेरा हो रहा था इसलिए यह नहीं मालूम होता था की कौन फ़रीक़ ज़्यादा मर रहा है और खून किस क़द्र बह रहा है। 

लड़ाई कैंप के किनारे पर हो रही थी न तो अभी काफिर कैंप में दाखिल हुए थे और न मुसलमान उन्हें पीछे धकेल सके थे एक ही जगह लड़ाई हो रही थी लेकिन लड़ाई का महाज़ लम्बाई में कैंप के एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैला हुआ था। 

दुश्मन शायद इस डर से खामोश था की किसी क़िस्म के नारे वगैरा न लगा रहा था की वह समझता था सारे मुसलमान उसके मुक़ाबले में नहीं आये है लड़ने वाले मुहाफ़िज़ है कही शोर करने से सारे मुसलमान बेदार और होशियार  हो कर मुक़ाबला में न आ जाये। मुसलमान भी खामोश थे और  ख़ामोशी से तलवारे चला रहे थे। 

रात अँधेरी थी आसमान से ज़मीन तक अँधेरा फैला हुआ था सियाह आसमान में सितारे जगमगा रहे थे। क़ुदरत ने आसमान  को इन रोशन से आरास्ता किया था की कही जगह न रही थी। कैंप में कुछ जगह अब भी अलाव रोशन थे  और इस रौशनी के मद्धम अक्स में लड़ने वाले एक दूसरे को देख देख कर  पहचान पहचान कर हमले कर रहे थे  . 

जबकि तलवारे काट कर रही थी और सरफरोश क़त्ल हो हो कर  गिर रहे थे। एक ग्रुप दूसरे को हराने के लिए एड़ी  चोटी का ज़ोर लगा रहा था। उस वक़्त अचानक दुश्मनो के पीछे और दोनों पहलुओं से अल्लाहु अकबर के  नारे  की आवाज़े आयी और साथ ही उन तीनो तरफ से भी उनपर हमला हो गया। 

मुसलमानो ने तलवारे सोनत कर इस तरह दुश्मनो को क़त्ल करना शुरू  कर दिया जिस तरह काश्त कार खेती काटा करते है  .उनकी खून आशाम तलवारो ने बे तकल्लुफी से काट शुरू  कर दी। 

इस हमले से काफिर घबरा गए। अब उन्होंने समझा की जिस हाल में वह मुसलमानो को फसाने के लिए आये थे इसमें  खुद ही फंस कर रहा गए है। मुसलमानो ने  उन्हें चारो तरफ से नरगा में ले लिया है। अब उनके लिए वापसी का कोई  रास्ता नहीं रहा था। वह मौत की लड़ाई लड़ने लगे और इस फ़िक्र में लग गए की आगे वाले मुसलमानो को  काट कर कैंप में दाखिल हो जाये चुनांचा उन्होंने बड़े ज़ोर से हमला किया। मुसलमानो को तलवारो की धारो  पर रख लिया  . 

लेकिन मुस्लमान भी पत्थर की चट्टान की तरह जम गए उन्होंने उनके हमले रोक कर खुद भी जोश और तेज़ी से हमले  शुरू किये  और हर हमला में दुश्मनो की काफी तादाद ज़ब्ह करके  डाल दी। 

उधर मुसलमानो ने दुश्मनो के पीछे और दोनों पहलुओं से हमले करके उन्हें क़त्ल करना शुरू कर दिया। उन्होंने सफो की  सफ्हे बिछा दी और लाशो पर लाशें डाल दी। खून पानी की तरह बहने लगा। ज़मीन पर फिसलन  हो गयी  बेशुमार काफिर मारे गए। 

मुसलमानो के नारा लगाने के बाद फिर ख़ामोशी छा गयी। सिवाए तलवारो की खटा खट और खचा खच के या ज़ख़्मी  और क़त्ल होने वालो की आह व बका के और कोई आवाज़ न आ रही थी। 

थोड़ी ही देर में  ज़्यादा  तादाद में काफिर मारे गए जो बाक़ी बचे उन्होंने हथियार डाल दिए। मुसलमानो ने उन्हें गिरफ्तार  कर  लिया जब सब गिरफ्तार कर लिए गए तो लीडर अब्दुर्रहमान ने कहा " मौक़ा है इसी वक़्त क़िला   पर  भी धावा कर दो। "

मुसलमान बड़ी ख़ुशी से तैयार हो गए चुनांचा  दो हज़ार जांबाज़ अब्दुर्रहमान और इल्यास की सरकर्दगी में तेज़ी से क़िला  की तरफ बढे। मशअल बरदार अभी तक मष्ति लिए दरवाज़ा पर खड़े थे शायद वो समझ रहे थे की उनकी क़ौम  ने मुसलमानो को ज़बह कर दिया है और फतह के बाद वापस आरही है। 

 लेकिन जब मुसलमान दरवाज़े के क़रीब पहुंचे और मशाल बरदारो ने उन्हें देखा तो वह खौफज़दा हो कर मशाले फ़ेंक  फ़ेंक कर " मुस्लमान आगये " के नारे लगाते क़िला के अंदर भाग गए। उनके पीछे मुसलमान भी पहुंचे  और उन्होंने  क़िला के अंदर जाकर अल्लाहु अकबर का नारा लगाया। क़िला वाले इस हेबत नाक नारा की आवाज़ सुन कर  काँप गए। इल्यास ने जीना चढ़ कर ब्रिज पर जाकर कबीलो का झंडा उतार कर इस्लामी झंडा लगा दिया। इस तरह  एक खून रेज़ जंग के बाद मगर फिर भी बहुत आसानी से मुसलमानो का दादर पर क़ब्ज़ा हो गया। .. 



                                    अगला भाग ( बुध ज़ोर का हश्र )