fatah kabul (islami tareekhi novel ) part 33
बाक़िया दास्तान
इलियास वहा से सीधे अपनी माँ के पास पहुंचे उन्होंने उनसे वह तमाम हालात बयान कर दिए जो औरत से सुने थे। उनकी माँ ने कहा "वह कम्बख्त भी मुसीबतें ही झेलती रही है। मैंने उसके लिए बद्दुआ नहीं की खुदा ने खुद उसे सजा दी है। लेकिन खैर यह तो मालूम हो गया की मेरी राबिआ सुगमित्रा बानी हुई है। आराम व राहत से है। शहज़ादी है। मगर यह अफ़सोस है की वह काफिर है। "
इलियास : उसका अफ़सोस मुझे भी है। लेकिन वह ऐसे काफिर बनाई गयी जब उसे कुछ पता नहीं था।
अम्मी : अब न राबिआ को मैं पहचान सकती हु न वह मुझे।
इल्यास ; अम्मी जान ! वह मुझे और तुम्हे क्या खुद को भी नहीं जानती पहचानती।
अम्मी : अगर किसी तरह मैं उससे मिल सकू तो शायद वह पहचान जाये।
इल्यास : फ़िलहाल तो यह मुमकिन नहीं।
अम्मी : मैं जानती हु। जब वह औरत ही उससे मिल नहीं सकती जो उसे वहा लायी तो मैं कैसे मिल सकती हु। तुमने उस औरत से राफे का कुछ हाल नहीं पूछा। शायद उसे मालूम हो।
इल्यास : वह कमज़ोर है क़िस्सा बयान करते करते थक गयी थी। उसने फिर बुलाया है। कहती थीं कुछ और हालात सुनाऊँगी।
अम्मी : फिर कब जाओगे तुम।
इल्यास : कल जाने का इरादा है।
अभी वह बाते ही कर रहे थे की सलेही ने आवाज़ दी। वह उनके पास आगये। सलेही ने कहा "लीडर ने दादर की तरफ लश्कर को कोच करने का हुक्म दे दिया है। वह चाहते है तुम और मैं ढाई सौ सवारो के साथ रह जाये अरब औरते भी हमारे साथ ही रहे। "
सलेही : तब तुम लीडर के पास चले जाओ और उनसे कह सुन लो।
इल्यास : तुम भी चलो।
सलेही : चलो मैं भी चलता हु।
दोनों लीडर के पास पहुंचे उन्हें सलाम किया और बैठ गए लीडर ने कहा " !इल्यास ! हम चाहते है की तुम और सलेही औरतो के साथ यही रहो।
इल्यास : मुझे हुक्म मानने में कोई उज़्र नहीं। लेकिन उस औरत से कल इस बात के तस्दीक़ हुई की राजकुमारी सुगमित्रा ही राबिआ है। दादर के क़रीब एक बस्ती है। उसमे एक लड़की कमला रहती है। मैं उसके ज़रिये से सुगमित्रा के पास पैगाम भेजना चाहता हु।
अब्दुर्रहमान : इजाज़त है। अच्छा सलेही ! तुम यहाँ रहना।
सलेही ; बेहतर।
अब्दुर्रहमान :हमने लश्कर को तैयारी का हुक्म देदिया है। .इल्यास तुम भी तैयार हो जाओ। परसो लश्कर कोच करेगा।
इल्यास : मैं हर वक़्त तैयार हूँ।
इल्यास और सलेही दोनों वहा से उठ आये। इल्यास अगले रोज़ झोपड़ी पर पहुंचे। औरत उनकी आहट सुन कर बाहर निकल कर आगयी। वह दरख्त के साये में फर्श पर बैठ गयी। इल्यास उसके सामने बैठ गए। उन्होंने देखा की उसके चेहरे पर कल से ज़्यादा रौनक है। औरत ने कहा " मैं आज सुबह से तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी "
इल्यास : मैं भी सुबह ही आने वाला था लेकिन लीडर ने बुला लिया था उनके पास से सीधा तुम्हारे पास आ रहा हूँ.
औरत : इल्यास! मुझे तुमसे मुहब्बत हो गयी है।
इल्यास : मैं मश्कूर हु। मैं तुम्हे अपना बुज़ुर्ग समझता हु।
औरत : बिमला ने तुम्हारे साथ बुराई की है। अब वह भलाई करना चाहती है। और यहाँ तक तैयार है की तुम्हारे लिए अपनी जान भी दे सकती है .
इल्यास समझ गए की उस औरत का नाम बिमला है। उन्होंने कहा "तुम्हारी जान क़ीमती है खुदा उसे सलामत रखे।
बिमला ने उन्हें देखा और मुस्कुरा कर कहा "हर शख्स की जान क़ीमती है। लेकिन रात मैंने इरादा कर लिया है की तुम्हारी और सुगमित्रा की भलाई की कोशिश में अगर मेरी जान भी रहे तो परवाह न करुँगी।
इल्यास : सुगमित्रा नहीं राबिआ कहो।
बिमला : जब वह फिरसे मुस्लमान हो जाएगी तब राबिआ कहूँगी।
इल्यास : अच्छा तो यह है की पहले तुम मुस्लमान हो जाओ।
बिमला : शायद उसका भी वक़्त आ जाये। लेकिन तुम इक़रार करो।
इल्यास : क्या ?
बिमला : मुझसे जुदा न होंगे।
इल्यास : मैं वादा करता हु की अगर तुम मेरे पास रहोगी तो मैं अपनी माँ की तरह तुम्हारी इज़्ज़त और खिदमत करूँगा।
बिमला : ज़माना की ठोकरे उठा कर मैंने सबक़ हासिल किया है बद क़िस्मती से मेरे कोई औलाद नहीं है। मैंने तुम्हे अपना बेटा समझ लिया है।
इल्यास : यह मेरे लिए बड़े फख्र की बात है।
बिमला : अब सुनो महाराजा काबुल ने सुगमित्रा की शादी तय करदी है पिशावर के राजा का एक लेपालक है उसके साथ होने वाली है। मगन मतलब शादी कि तारीख का खत जाने वाला है। मुझे यह भी मालूम हुआ है की इसी महीने में यह खत भेजा जायेगा। मैं चाहती यह हु की यह खत न जाये। या अगर चला जाये तो शादी न हो।
यह खबर सुन कर इल्यास के दिल पर झटका सा लगा। लेकिन वह ज़ब्त कर गए। उन्होंने कहा " खत या शादी रोकने की क्या तदबीर हो सकती है ?"
बिमला : महाराजा किसी की मानने वाले नहीं है। सिर्फ एक ही तदबीर है।
इल्यास : क्या ?
बिमला : मुसलमान काबुल पर जल्द से जल्द चढ़ाई कर दे।
इल्यास ; कल लश्कर दादर की तरफ रवाना हो जायेगा। अगर खुदा ने चाहा और दादर जल्द फतह हो गया तो फिर काबुल पर चढ़ाई कर दी जाएगी।
बिमला : दादर पहुंच कर महाराजा काबुल के पास एलची भेजना शायद महाराजा यह समझ कर की लड़ाई काबुल के दरवाज़े पर आगयी है। शादी मुल्तवी कर दे।
इल्यास : मैं लीडर से कह कर क़ासिद रवाना करा दूंगा। एक बात दरयाफ्त करता हु।
बिमला : क्या ?
इल्यास : तुम्हे मेरे चाचा राफे का भी कुछ हाल मालूम है।
बिमला : बहुत अरसा हुआ जब मैंने दादर के पास देखा था। उस वक़्त वह एक भक्षु से त्रितपताक पढ़ा करते थे। मैं कह चुकी हु की मुझे मालूम है की वह मुझसे मुहब्बत किया करते थे। औरत मुहब्बत की नज़रो को बहुत जल्द समझ लेती है मगर जब तक मैं उनकी बेटी को लायी हु उस वक़्त तक मुझे उनकी मुहब्बत तो क्या मेरे दिल में उनका ख्याल भी पैदा नहीं हुआ था। मगर जब मैंने उन्हें देखा तो उनपर बड़ा तरस आया और उनकी मुहब्बत का शोला मेरे दिल में भड़क उठा। जी चाहा उनसे माफ़ी मांग लू उनके क़दमों पर गिर जाऊ खुद भी रोऊँ और उन्हें भी रुलाऊँ। लेकिन हिम्मत न पड़ी। यह खौफ हुआ कही वह अपनी बेटी का इन्तेक़ाम न ले। सबर का पत्थर दिल पर रख कर जुदा हो गयी। उसके बाद अब तक मैंने उन्हें नहीं देखा।
इल्यास ; न कोई खबर सुनी ?
बिमला : नहीं हलाकि जब मैं होश में आयी हु तो सबसे पहले मुझे उनका ही ख्याल आया था। मैं उन्हें तलाश करती फिरि। मायने तय कर लिया था की अगर वह मिल गए तो उनके सामने जाउंगी अगर वह सजा देंगे तो परवाह न करुँगी मारना चाहेंगे तो उफ़ न करूंगी। मिन्नतें करूंगी। उनकी बन जाउंगी या उन्हें अपना लुंगी लेकिन क़िस्मत वह नहीं मिले। न उनकी कोई खबर ली।
इल्यास : तुमसे माँ मिलना चाहती है।
बिमला : क्या वह मुझे माफ़ कर देंगी ?
इल्यास : उम्मीद है वो माफ़ कर देंगी। वह निहायत नेक खातून है।
बिमला : मैं खुद उनसे मिलना और माफ़ी मांगना चाहती हु।
इल्यास : तो चलो !
बिमला : क्या अभी चलु ?
इल्यास : जब चलना ही है तो अब और जब क्या।
बिमला : फिर चलो।
उस वक़्त उसने बसंती रंग की साड़ी बाँध रखी थी। उसके सफ़ेद रंग में बसंती रंग खूब खिल रहा था। वह इल्यास के साथ चल कर उनकी माँ के पास आयी और बढ़ कर उनके सामने सर झुका कर खड़ी हो गयी और कहा " इस गुनहगार का सर झुका हुआ है। क़लम कर डालिये।
इल्यास की अम्मी का दिल भर आया। उन्होंने उसकी खूबसूरत चेहरा हाथ में लेकर सर उठा कर कहा "मैंने माफ़ कर दिया तुम राबिआ को उसकी मुहब्बत से मजबूर हो कर लायीं। यह ख्याल न किया की हमें भी उससे मुहब्बत है। उसकी जुदाई में हमारा क्या हाल होगा। तुमने हमें तड़पाया। खुदा ने तुम्हे तड़पाया और अब शिकायत और गिला कैसा।
बिमला की आँखों में आंसू झलक आये उसने कहा " जो क्या उसकी सजा पायी। तुमने माफ़ कर दिया बड़ी मेहरबानी की जब तक ज़िंदा रहूंगी तुम्हारी खिदमत करुँगी।
अम्मी : अब मैं तुम्हारी ही खिदमत में रहूंगी।
उस रोज़ से बिमला इल्यास की माँ ही के पास रहने लगी।
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