FATHA KABUL ( ISLAMI TAREEKHI NOVEL) PART 34

 ग़मज़दा नाज़नीन। 

 




इल्यास की माँ को जब यह मालूम हुआ की अरब औरते वही रहेंगी तो उन्हें बड़ी फ़िक्र हुई। वह काबुल तक जाना चाहती थी। बिमला उनकी हम ख्याल थी। दोनों ने इल्यास से कहा "अगर हम दोनों यही रहे तो बड़ी तकलीफ होगी। तुम लीडर से कहा कर हमें साथ ले चलने की इजाज़त लेलो। 

इल्यास ने कहा "यह बहुत मुश्किल है। वह मुझे यहाँ रखना चाहते थे। कहने सुनने से मुझे साथ चलने की इजाज़त  दी है। 

बिमला : तुम कहो तो। शायद इजाज़त देदे। और अगर तुम न कह सको तो मुझे साथ ले चलो। मैं इजाज़त ले दूंगी। 

इल्यास ने मुस्कुरा कर कहा " हमारे लीडर औरतो की बात नहीं मानते। 

बिमला : तो तुम हिम्मत करो। 

इल्यास : है मैं जाऊंगा। 

बिमला : अभी चले जाओ सुबह लश्कर कोच कर जायेगा। वह इंतेज़ाम में मसरूफ होंगे शायद न मिल सके या मिले तो बात करने का मौक़ा न मिले। 

इल्यास : अच्छा अभी जाता हु। 

वह वहा से चले और लीडर के पास पहुंचे। लीडर अब्दुर्रहमान ने कहा " अब  किस लिए आये हो तुम ?

इल्यास : एक दरख्वास्त लेकर हाज़िर हुआ हु। 

अब्दुर्रहमान : कहो। 

इल्यास : आपको मालूम है की मेरी माँ ने इतने  लम्बे सफर की ज़हमत बुज़ुर्गी की हालत में राबिआ को तलाश करने के लिए  उठायी है। वह औरत जो राबिआ को अगवा करके लायी थी मिल गयी है। इससे यह बात सच हो गयी है  की सुगमित्रा ही राबिआ है। उस औरत ने यह भी बताया है की उसकी शादी पेशावर की राजकुमार से होने वाली है  .उससे माँ की परेशानी और फ़िक्र बढ़ गयी है। उनकी और  उस औरत की जिस का नाम  बिमला है यह दरख्वास्त  है की उन्हें भी लश्कर के साथ चलने की इजाज़त दी जाये। 

अब्दुर्रहमान : इससे क्या फायदा होगा। 

इल्यास : बिमला और उसके नवाह वहा के मर्दो और औरतो से खूब वाक़िफ़ है। वह इस बात का पता लगायेंगी की सुगमित्रा को किसी ज़रिये से अपने पास बुलाये और हमें खबर कर दे। शायद खुदा कर दे और हम उस तक पहुंच जाये। 

अब्दुर्रहमान : बात ठीक है लेकिन लश्कर के साथ उन दो औरतो के इंतेज़ाम में बड़ी वक़्त होगी। 

इल्यास : यह मैं जानता हु लेकिन अगर उन्हें यहाँ रहने पर मजबूर किया गया तो उनके दिल टूट जायेंगे और उन्हें बड़ा सदमा होगा। 

कुछ देर गौर करने के बाद लीडर ने कहा " अच्छा कितनी भी वक़्त हो हम उनके लिए इंतेज़ाम करेंगे। उनसे कह दो। 

इल्यास : बहुत बहुत शुक्रिया। 

 इल्यास सलाम करके उठे और खुश खुश अपनी माँ के पास आये। उनकी माँ ने कहा "बेटा !  तुम खुश होते आरहे हो  .अल्लाह तुम्हे हमेशा खुश रखे क्या लीडर ने हमारे चलने की इजाज़त दे दी है ?"

इल्यास :हां अम्मी जान ! लीडर ने इजाज़त दे दी है। तैयारी कर लीजिए। 

उनकी माँ और बिमला दोनों खुश  हो गयी। उनकी माँ ने कहा "अल्लाह का शुक्र है बेटा ! मुझे तैयारी ही क्या करनी है। मुसाफिरत में हु हर वक़्त तैयार रहती हु। 

दूसरे रोज़ लश्कर दादर की तरफ रवाना हुआ।  जो एक पहाड़ी इलाक़ा था रस्ते निहायत दुश्वार गुज़ार थे इसलिए बड़ी वक़्त से सफर तय हो रहा था। जब यह बस्ती के क़रीब पहुंचे जहा कमला रहती थी। लीडर ने बस्ती से दो मील इस तरफ क़याम कर दिया। फौजि सिपाहियों ने खेमे खड़े करने शुरू कर दिए सबसे पहले बिमला और इल्यास की अम्मी का खेमा खड़ा हुआ। यह एक दोनों एक खेमा में रहती थी। इल्यास अम्मी के ठहरने का इंतेज़ाम करके कमला से मिलने चले। 

उन्होंने असर की नमाज़ पढ़ ली थी। आफ़ताब मगरिब की तरफ झुक गया था। ऊँची ऊँची चट्टानों की वजह से धुप गायब होने लगी थी  . इल्यास ने इस बात का भी ख्याल नहीं किया की दिन छिपने वाला है। वह तेज़ी से चले। जब उस  चट्टान के क़रीब पहुंचे जिस पर बैठ कर कमला ने उन्हें रुखसत  किया था और एक दर्दनाक गीत गया था तो उन्हें  कमला  के गाने की आवाज़ आयी। गाते गाते वह रोने लगी। उसकी हिचकी बंध गयी। इल्यास क़रीब पहुंच चुके थे  .उनका दिल उसका गीत सुन कर और  उसे रोता देख कर गुदाज़ हो गया था। आंखे पुर नम हो गयी थी। वह आहिस्ता  से घोड़े से उतरे। घोड़े को वही छोड़ा और चुपके चुपके उसके पास पहुंच कर पुकारा " बहन "

कमला  ने सर झुका रखा था उसने जल्दी से मोरनी जैसी गर्दन उठायी उसकी  आँखों से  आंसू के सैलाब बह रहे थे। हसींन चेहरे पर ग़म  के बादल छाए हुए थे। उसने आंसू से भरे आँखों से इल्यास को देखा। उसका ग़म एकदम ख़ुशी में  बदल गया। ग़म के आंसू ख़ुशी के आंसू बन गए। उसने फीके मुस्कराहट से कहा " कौन भाई !"

इल्यास ने उसके सर पर हाथ रख कर कहा " हां तुम्हारा भाई अपना वादा पूरा करने  आया है। "

कमला : मुझे  यक़ीन नहीं आता। 

इल्यास : क्या मुझे भूल गयी ?

कमला : भाई ! भूल जाती तो तुम्हे याद करके रोया क्यू करती। 

वह जल्दी से उठी और इल्यास के शाने से लग कर रोने लगी। इल्यास ने कहा "यह क्या ? अब किस लिए रोती हो। 

कमला ने अलग हो कर कहा "हमारे देस में यह दस्तूर है की जब बहन भाई से जुदा होती है तब रोती है और जब मिलती है तब रोती है। अच्छे तो रहे भाई ?

इल्यास : खुदा से फज़ल से अच्छा रहा। बहन तुम तो अच्छी रहीं। 

कमला : ज़िंदा हु। मैंने होने पिता को अपना और तुम्हारा सब हाल बता दिया था जब मैं तुम्हे याद करके रोती थी तो वह  तसल्ली दिया करते थे। आओ उनके पास चले। वह तुमसे मिल कर बहुत खुश होंगे। 

इल्यास : मैं इस्लामी लश्कर के साथ आया हु। लश्कर यहाँ से चंद मील के फासला पर मुक़ीम है। मैं तुमसे मिलने चला  आया था। दिन छिपने वाला है। मेरी अम्मी भी लश्कर के साथ है। वह मेरा इंतज़ार करेंगी। अब इजाज़त दो कल इंशाल्लाह  आऊंगा। 

कमला : वाह।  अच्छे आये इजाज़त मांगने वाले। पहले पिता जी के पास चलो। उनसे मिल कर जाना। चांदनी रात है। चले जाना। आओ मेरे साथ चलो। 

इल्यास : चलो। मैं घोड़ा ले लू। 

कमला : घोड़ा कहा है। 

इल्यास : देखो वह सामने खड़ा है। अभी लाया। 

इल्यास घोड़ा ले आये और कमला के साथ चले। अभी वह रास्ता ही में थे की दिन छिप गया। उन्होंने मगरिब की नमाज़  पढ़ी। फिर वहा से चले जब वह उसकी झोपड़ी पर पहुंचे तो कमला के पिता मिले। वह उन्हें देख  कर हैरान  रह गए। उन्होंने कहा " मुसाफिर ! तुम आगये ?

इल्यास ने सलाम करके कहा " मैंने अपनी बहन कमला से आने का वादा किया था। 

बूढ़े ने कहा " मुझे तुम्हारे आने यक़ीन न था लेकिन कमला को यक़ीन था। अब तो न जाओगे तुम। 

इल्यास : अब मैं अपनी बहन को साथ ले जाऊंगा। 

बूढ़ा : और यह बूढी हड्डिया ?

इल्यास : तुम्हे भी साथ ले जाऊंगा। 

बूढ़ा : अरे भई कमला ! अपने मेहमान की खातिर तो करो। 

कमला जल्दी से कुछ दूध और जो कुछ उसने पका रखा था।  इल्यास ने खाया और बूढ़े से कहा  " अब मैं इजाज़त चाहता हु। 

बूढ़ा हैरान रह गया। कमला ने कहा " यह लश्कर के साथ आये है। यहाँ से कुछ फासले पर मुक़ीम है। 

बूढ़ा : चलो बेटा मैं पंहुचा आऊं। 

इल्यास : मैं चला जाऊंगा। तुम तकलीफ न करो। 

कमला : मैं चली जाऊ पिता जी। सुबह आजाऊंगी। 

बूढ़ा : चली जा। 

इल्यास : नहीं कमला तुम तकलीफ न करो। मैं चला जाऊंगा। 

कमला : मैं अपने भाई को अकेला  न जाने दूंगी। 

बूढ़ा : है तो चली जा कमला। 

गरज़ कमला इल्यास के साथ चली उन्होंने उसे घोड़े पर सवार किया और खुद चले। 



                           अगला पार्ट ( बिमला आगोश इस्लाम में )