fatah kabul (islami tarikhi novel)part 24

                             



 लश्कर  इस्लाम का कोच 



अब्दुल्ला  बिन आमिर ने सलेही को अमीर उल मूमिनीन की खिदमत में  रवाना  किया। इलियास और उनकी अम्मी दोनों दुआएं मांगते थे की खलीफा मुस्लिमीन  लश्कर कशी की इजाज़त दे दे। सबसे  ज़्यदा बेचैनी के साथ  वही दोनों उनकी वापसी का इंतज़ार कर रहे थे। 

  • आखिर सलेही वापस आगये। अमीर उल मूमिनीन हज़रत उस्मान गनी खलीफा सोएम ने अब्दुल्लाह बिन आमिर को लिखा :
  •           "तुम काबुल से नज़दीक हो और मै दूर हु। तुमने जासूसों के ज़रिये  के हालात मालूम कराये है। तुम मुझसे ज़्यदा सूरत हासिल से वाक़िफ़ रखते हो। मैंने सलेही से उस मुल्क के जो हालात मालूम किये है उनसे मालूम हुआ है की तमाम मुल्क पहाड़ी है। रस्ते दुश्वार  गुज़ार है किसी बड़े लश्कर का जाना वहा मुश्किल है। लेकिन चुकी महाराजा काबुल इस्लामी कलमृद पर खुद हमला की तैयारी कर रहा है इसलिए उसे  हमला अवरी का मौक़ा नहीं देना चाहिए। अब तक यही होता रहा है की जिस मुल्क ने मुसलमानो पर हमला क़सद किया है मुसलमानो ने उस पर हमला कर दिया है मुनासिब यही मालूम होता है की काबुल पर लश्कर कशी की जाये। सलेही ने राबिआ की दास्ताँ  भी सुनाई है। हम एक दुख्तर इस्लाम और एक मुजाहिद को खो चुके है। इन दोनों की तलाश भी ज़रूरी है। हम तुम्हे इस मुहीम के पुरे इख्तिआरात देते है। लेकिन यह हिदायत करते है। की ज़्यदा लश्कर न भेजा जाये। मुजाहिदीन को हिदायत कर दी जाये की वह खुदा से डरते रहे। नमाज़ किसी वक़्त की क़ज़ा न होने दे। हमला में इस बात का ख्याल रखे की कोई बे गुनाह न मारा जाये। औरतो ,बच्चो ,बूढ़ो ,बीमारों,और मज़हबी पेशाओं पर तलवार न उठाये। मकानों और खेती को न जलाये। दूसरे के मज़हब और माबादो की तौहीन न करे। तुम पर और सब मुसलमानो पर सलमति हो. "
  •   खत मुफ़स्सल था। इस मुहीम की इख़्तियारात अमीर उल मूमिनीन ने अब्दुल्लाह बिन आमिर को दे दिए थे। अब्दुल्लाह ने तैयारी शुरू कर दी। 
  • इलियास को भी मालूम हो गया। उन्हें और उनकी  वाल्दा को इस से बड़ी ख़ुशी हुई। इलियास एक  रोज़ अमीर अब्दुल्लाह के खिदमत में हाज़िर हुए  . अमीर उनसे बहुत मुहब्बत करते थे उन्होंने कहा "कहो फ़रज़न्द  कैसे आये ?"
  •           इलियास ने अर्ज़ किया "मै यह दरख्वास्त लेकर हाज़िर हुआ हु की मुझे भी उस लश्कर के साथ जाने की इजाज़त  दी जाये। "
  • अमीर : तुम कमसिन  हो  तुम्हे जिहाद पर जाने की  कैसे इजाज़त दी जा सकती  . 
  • इलियास : अगर आपने इजाज़त न दी तो मुझे बड़ा ही रंज होगा। क्युकी इस जिहाद के  लिए फि सबिलिल्लाह  जाना चाहिए। 
  • इलियास : मेरे दिल में  पहली  उमंग जिहाद फि सबिलिल्लाह ही की है। खुदा इस बात को खूब  जानता है  अलबत्ता उसके बाद अपने चाचा और राबिआ की तलाश भी मक़सूद है शायद अल्लाह का फज़ल हो जाये और मै अपनी वाल्दा की आरज़ू पूरी करने में कामयाब हो जाऊ। 
  • अमीर : बेटा अभी तुमने किसी मुहीम में शिरकत नहीं  की है तुम्हे लड़ाई का तज़र्बा नहीं है। 
  • इलियास : यह सच है की अभी तक मै किसी मुहीम में शामिल नहीं हुआ हु मैंने जिहाद नहीं किया। लेकिन मेरे दिल में  जिहाद का शौक़ और जंग की तमन्ना है। जब तक किसी लड़ाई में शरीक न होऊंगा। जंग का तजर्बा कैसे होगा  .रसूल अल्लाह के ज़माने में मझसे भी कमसिन बच्चो ने जंग की इजाज़त ली थी और हुज़ूर ने उन्हें  इजाज़त दे दी थी। मै तो काफी बड़ा हु। समझदार हु फन हर्ब से वाक़िफ़ हु इस मुल्क में  आया हु मुझे भी इजाज़त दीजिये  . 
  • अमीर : अच्छा तुम एक वादा करो। 
  • इलियास : फरमाईये क्या ?
  • अमीर : तुम जोश और गुस्सा में आकर अपनी जान को हिलाकत में न डालोगे। 
  • इलियास : मै वादा  करता हु जब मै  जासूसी के लिए उस मुल्क में गया था मैंने जब भी अपनी जान को हिलाकत में नहीं डाला था। 
  • अमीर : अच्छा तुम  तय्यारी शुरू करदो। 
  • इलियास : अब और एक और दरख्वास्त है। 
  • अमीर : वह क्या ?
    इलियास : मेरी  माँ भी लश्कर के साथ जाना चाहती है। उन्हें भी इजाज़त दे जाये। 
  • अमीर : वह किस लिए जा रही है?
  • इलियास : दरअसल उनकी तमन्ना राबिआ को तलाश करके  अपने साथ  लाने की है लेकिन वह ज़ख़्मियो की मरहम  पट्टी और देख भाल भी करेंगी और चुकी वह अब्बा जान मरहूम के साथ कई लड़ाईयों में शरीक हो चुकी है इसलिए उन  कामो में खूब माहिर है    . 
  • अमीर : अगर औरते भी लश्कर  के साथ  गयी तो उन्हें भी इजाज़त देदी जायँगी। 
  • इलियास : आपका शुक्रिया !
  •                     वह वहा से सीधे अपनी माँ के पास आए और उनसे खुशखबरी बयां की के अमीर ने दोनों को लश्कर के साथ जाने की  इजाज़त देदी  है। लेकिन खुद उनकी इजाज़त इस शर्त के साथ है की औरते भी लश्कर के  साथ जाये। 
  •                    उनकी माँ भी बहुत खुश हुई। दोनों ने बड़े  खसुहि से तैयारी शुरू करदी। 
  •            अमीर अब्दुल्लाह ने बड़ी जल्दी तैय्यरी   कर ली उन्होंने इस मुहीम के लिए आठ हज़ार लश्कर नामज़द किया  ज़ाद भाई अब्दुर रहमान  बिन समरा को सिपा सालार मुक़र्रर किया। अरबो  क़ायदा था की वह अक्सर लडाईओ में औरतो और बच्चो को भी साथ ले जाते थे। चुनांचा इस लश्कर के साथ भी औरते चलने को तैयार हो गयी। 
  •                अमीर अब्दुल्लाह ने लश्कर की रवानगी की दिन और वक़्त मुक़र्रर करके ऐलान कर दिया मुजाहिदीन की इससे बड़ी ख़ुशी हुई  .अज़ीज़ उनसे और वह अज़ीज़ो से रुखसत होने लगे। बसरा में खासी चहल  पहल थी। जो मुजाहिदीन इस मुहीम पर जा रहे थे उनके जो अज़ीज़ थे वह उन्हें रुखसत करने और उनसे मिलने के लिए आगये थे।  हर शख्स  उनके लिए तोहफा लाया था।    
  •                       आखिर वह दिन आगया जिस रोज़ लश्कर को कोच करना था। बसरा की छावनी में लोगो का हुजूम लग गया। जिस तरफ नज़र जाती थी  अमामे ही अमामे नज़र आते थे। 
  •                   आफताब बहुत कच ऊँचा हो गया था। धुप तमाम  मैदान में फैल गयी थी अरब सरे मैदान में बिखरे पड़े थे। लश्कर कोच पर तैयार था। मुजाहिदीन सफ दर  सफ घोड़ो पर सवार थे  अब्दुर रहमान बिन समरा सबसे  आगे  अलम हाथ में लिए खड़े थे। 
  •              अब्दुर रहमान भी जवान थे बहादुर थे कई लडाईओ  में शरीक हुए थे उनके चेहरा से रोअब व जलाल  ज़ाहिर था  अमीर का आने का इंतज़ार कर रहे  थे। थोड़ी देर में अमीर आये। वो भी घोड़े पर सवार थे  .वह मुजाहिदीन के सामने आकर खड़े हो गए। उन्होंने कहा। 
  •                   शेर दिल मुजाहिदों !खुदा का शुक्र है की ईमारत का चार्ज लेने के बाद यह पहली मुहीम तस्खीर  काबुल के लिए मेरे झंडे की निचे रवाना हो रही है अमर उल मूमिनीन  ने इस मुहीम का मुख़्तार कुल  मुझे क़रार दिया है। मैंने अपने चाचा  ज़ाद भाई अब्दुर रहमान को अपना नाईब मुक़र्रर किया है। 
  •       दिलेरान इस्लाम ! तुम उस मुल्क में जा रहे हो जिसे तुमने अभी तक नहीं देखा है। जहा तक मुझे मालूम है  वह मुल्क पहाड़ी है उसके चप्पा चप्पा पर चट्टानें है। रस्ते दुश्वार  गुज़ार है। मुल्क सर्द है। मुल्क शाम से भी ज़्यदा सर्द  .तुम गर्म मुल्क के रहने वाले हो  .जनता हु तुम्हे सर्दी से तकलीफ होगी  .मै हरगिज़ तुम्हे वहा न भेजता लेकिन काबुल का बादशाह खुद हम पर हमला आवरी का क़स्द रखता है इसलिए दुश्मन  को उसी के मुल्क  में रोकने के लिए तुम्हे भेज रहा हु। 
  •                फ़रज़न्द तौहीद ! इस बात का ख्याल रखना की नमाज़ किसी वक़्त का क़ज़ा न  होने पाए। सिवाए खुदा के किसी से न डरना  .कोई ऐसी हरकत न करना जिससे खुदा नाराज़ हो जाये। सिर्फ खुदा पर भरोसा रखना  ,खुदा पर भरोसा रखना,खुदा पर भरोसा  रखने वाले कभी नुकसान नहीं उठाते। 
  •                अगर दुश्मन मसलेहत की गुफ्तुगू करे तो सुलह कर लेना। सुलह लड़ाई से बेहतर है अज़ीज़ो पर ईमान मांगने वालो पर ,औरतो पर,बच्चो पर , बूढों पर।,अपाहिजो पर ,बीमारों पर,हथियार न उठाना ,खेतो को ,मकानों को और फलदार दरख्तों को न जलाना न काटना न  गिराना। किसी के मज़हब की तौहीन  न करना  न किसी मअबद को मुन्हदिम करना। 
  •              मै  तुमसे दूर रहूँगा। लेकिन मेरी दुआए तुम्हारे साथ  होंगी। मुझे जो समझाना था समझा दिया। अब अपने अफआल व आमाल के तुम जवाबदेह होंगे। खुदा का नाम लेकर  कोच कर दो खुदा तुम्हारी मदद करे  ."
  •             अब्दुर रहमान ने बुलंद आवाज़ में कहा "बिस्मिल्लाह मजरीहा "तमाम मुसलमानो ने मिल कर अल्लाह हु अकबर  कहा अलम ने फर्राटे भरा और लश्कर ने आहिस्ता आहिस्ता कोच किया। जब मुजाहिदीन  कुछ दूर चले गए तो अमीर अब्दुल्लाह और तमाम मुसलमानो ने फतह याबी की दुआ हाथ उठा कर  मांगी। 




                                   अगला भाग (सुलह से इंकार )

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