fatah kabul (islami tarikhi novel ) part 19




  इक़रार ,,,,,,,,,,,, 


जब  सुगमित्रा चली गयी तो इल्यास तज़बज़ब में  पड़ गए। वह सर झुकाये हुए थे फिर क़दमों   की चाप  हुई। उनहोंने नज़र उठा  कर देखा। वही लड़की जो सुगमित्रा के पास वक़्त ख़त्म होने का पैगाम लायी थी। वो खाने की  थाल लिए हुए थी। उसने थाल इल्यास के  सामने रख दिया और कहा "सुगमित्रा ने तुम्हारे लिए खाना  भेजा है। 

  • इल्यास :उनका बहुत बहुत शुक्रिया। मुझे अब भूक नहीं रही है। 
  • लड़की : उन्होंने कहा है के अगर आपने मेरी और कोई बात नहीं  मानी तो यह ज़रूर मान लीजिये खाना खा लीजिये। 
  • इल्यास : यह बात ज़रूर मान लूंगा 
  •                उन्होंने खाना खाया। जब खाने से फारिग हो चुके तो लड़की ने कहा "आप ने राजकुमारी की बात क्यू नहीं मानी ?
  •              इल्यास ने लड़की की तरफ देखा। वो भी नो ख़ेज़ व  हसीन थी। उन्होंने कहा "राजकुमारी ने वह बात चाही जिसे मैं मरते दम तक क़ुबूल नहीं कर सकता। 
  • लड़की :जानते है वह कैसे आपके पास आयी थी ?
  • इल्यास : शायद पेशवा ने भेजा था। 
  • लड़की : नहीं राजकुमारी ने खुद पेशवा की खुशामद करके इजाज़त हासिल की थी। बात यह है के उन्हें आपसे प्रेम हो  गया है। 
  • इल्यास : यह उनका हुस्न जन है वरना मैं एक मुफ़लिस अरब कहा वह राजकुमारी। फिर इस क़दर हसीन व नाज़नीन की चश्म फलक ने भी आज तक न देखि होगी। 
  • लड़की : तुम्हे भी उनसे प्रेम है। 
  • इल्यास : अब यह ज़िक्र फ़ुज़ूल है। 
  • लड़की : सुना करती थी की मुस्लमान बड़े कठोर होते है अब खुद देख रही हु। 
  • इल्यास : मुस्लमान सख्त दिल नहीं होते। निहायत नरम दिल होते है। लेकिन मुस्लमान मज़हब दब्दील नहीं कर  सकता। 
  • लड़की : मुहब्बत में सब कुछ हो जाता है। 
  • इल्यास : मुस्लमान पहले खुदा से मुहब्बत करता है और फिर और किसी से। 
  • लड़की : अगर तुम ने राजकुमारी की बात न मानी तो शायद उन्हें अपनी ज़िन्दगी का बलिदान देना पड़ेगा ! 
  • इल्यास : उनसे कह देना की मैं  की चिराग सेहरी हु। मेरे जुर्म की सजा मौत है। मैं का इंतज़ार कर रहा हु। वह मेरे लिए अपनी जान की क़ुरबानी   न दे। मेरी दरख्वास्त है की  रहे। 
  • लड़की : मैं तुम्हारा पैगाम पंहुचा  दूंगी। 
  •                  लड़की चली गयी। दरवाज़ा बंद हो गया। इल्यास ने चाहा की शमा गुल कर दे मगर फिर  कुछ सोच कर रुक गया। कोठरी में मामूली फर्श पड़ा हुआ था। वह उसी पर पद। गए उनके दिल में सुगमित्रा ख्याल  था। उसकी भूली सूरत उनके दिल में नक़्श थी। वह देर तक  करवटे लेते रहे। नामालूम कब और किस तरह उन्हें नींद  आगयी। यह नहीं कहा जा सकता की कितनी देर सोये की किसी ने उनका बाज़ू झिंझोड़ा और वह उठ कर बैठ गए। देखा तो वही लड़की सामने है जो  खाना लेकर आयी थी। इल्यास ने कहा "क्या बात है ?"
                  इल्यास ने राजकुमारी को अबतक नहीं देखा था। नज़र उठा कर देखा। वह लड़की के पीछे  खड़ी थी। 
  •              इल्यास ने कहा " ज़हे  क़िस्मत आप तशरीफ़ लाये आईये आईये। 
  •              राजकुमारी शर्माती बढ़ी और इल्यास के सामने बैठ  गयी। उसने बैठते ही कहा "क्या बेफिक्री की नींद सो रहे थे "
  • इल्यास : नींद तो सूली पर भी आजाती है। यह तो जेल खाना ही था। 
  • सुगमित्रा : लेकिन मुझे नींद नहीं आयी। 
  • इल्यास :  तुम  दुनियाए मुसररत में झूला झूल रही हो। तुम्हे न जागने की परवाह न नींद का ख्याल। 
  • सुगमित्रा : ठीक है। यह सच है की तुम्हारे धार में आने से पहले मैं मुसर्रत की दुनिया में  राहत की झूला झूल रही थी। लेकिन अब गम की  दुनिया में दर दर करब के पहाड़ के निचे दबी जा रही हु।  मुझे यह शिकवा नहीं की तुमने मेरी बात नहीं मानी। अगर तुम मेरी बात मान लेते तो राहत व मुसर्रत वह चंद हो जाते। मैं यह समझा  करती थी  की दुनिया में कोई ऐसा शख्स नहीं हो सकता जो मेरी बात न माने है जिसे जो इशारा कर दूंगी  वह हुक्म की तामील करेगा। भगवान् ने मेरा मगरूर सर निचा कर दिया मुझे पहले ही वह ठोकर लगी की सारा  गुरूर खाक में मिल गया। तुम मेरी बात नहीं मानते न मनो मुझे हुक्म दो मैं तामील करुँगी। 
  • इल्यास :  राजकुमारी एक मुफ़लिस अरब से ऐसी बाटे करके उसे शर्मा रही हो मैंने जब तुम्हारे हुस्न की तारीफ सुनी थी और दिल में तुम्हारी  दीद का इश्तियाक़ पैदा हो हुआ था। इसी वक़्त मुश्ताक़ दिल को यह बता  दिया था की वह राजकुमारी है और दुनियाए हुस्न की मलका है उसके हुज़ूर में तुझे लेकर चल तो रहा हु लेकिन अपनी बिसात से आगे पाओ  न  बढ़ाना और जब तुम्हे देखा तो तुम मुझ पर  छा गयी। तुम्हारी मुहब्बत रग रग में पेवस्त हो गयी। तब अपनी इस हिमाक़त पर बहुत ज़्यदा अफ़सोस हुआ की क्यू हुस्न  सरकार में आया। क्यू न पहले ही यह गौर कर लिया की तू कौन है और वह काया है। राजकुमारी !मुझे शर्मिदा न करो  .मुझे इस बात का  एहसास है की तुम आफताब हो और मैं ज़र्रा बेमिक़्दार। तुम हुस्न व जमाल  की मलका हो और मैं मामूली अरब में हुक्म दुनिया तो दरकिनार तुमसे दरख्वास्त भी नहीं कर सकता। किस मुँह  से दरख्वास्त करू मेरी बिसात ही क्या। 
  • सुगमित्रा : और कुछ कह लो। शायद अरब बाते बनाना ज़्यदा जानते है। 
  • इल्यास : बखुदा अरबो को बाते बनानी आती। वह जो कुछ कहते है सच कहते है। 
  • सुगमित्रा : तुमने क्या पैगाम भेजा था। "
  • इल्यास : यही की मैं एक मजबूर व बेकस   इंसान हु मौत का इंतज़ार कर रहा हु। खुदा के लिए तुम मेरे लिए कोई क़ुरबानी न करना। 
  • सुगमित्रा :  तुम दिल में ज़रूर कहोगे की कैसी बेहया और जज़्बाती लड़की है की एक ही  मुलाक़ात में बे निकली  . मुझे खुद अपनी हालत पर ताज्जुब है। वाक़ई में ऐसी न थी जिसकी तरफ मैं आँख उठा कर देख लेती थी  . वह फख्र करता था  और जिससे गुफ्तुगू कर लेती थी वह समझ लेता था था की दुनिया की  दौलत उसे मिल गयी किसी की  तरफ देखे और किसी से बाटे करने को मेरा दिल न चाहता था मगर तुम्हे देख कर मजबूर  हो गयी। मुझे ऐसा मालूम होता है  जैसे मैं अरसा से तुमसे वाक़िफ़ हु। मैं प्रेम को बिलकुल न जानती थी। तुम्हे देख    कर प्रेम का सबक़ !  पढ़ लिया। अभी वक़्त है ज़िद न करो मेरी क़ुरबानी नहीं चाहते तो मेरी बात मान  लो। 
  • इल्यास : सुगमित्रा  मै तुम्हारी हर हुक्म की तामील कर सकता हु। लेकिन इस बात के मैंने से मजबूर हु। 
  • सुगमित्रा ; अच्छा तो मुझे अपने साथ ले चलो। 
  • इल्यास : मेरा एक राज़ है जो मै तुम पर ज़ाहिर किये देता हु। पेशवा को सिर्फ इतना मालूम हुआ है की मै मुस्लमान  हु लेकिन मुस्लमान होने के  अलावा कुछ और भी हु वो भी तुम पर ज़ाहिर किये देता हु और इस बात का  इक़रार तुमसे नहीं लेता  उसे ज़ाहिर   न करना अलबत्ता यह  लड़की। ..... 
  •                   सुगमित्रा उनके चेहरे की तरफ टिकटिकी लगाए देख रही थी। उसने कहा। "उसे मेरी सहेली समझो या  बहन मुझे उसपर पूरा भरोसा है। यह मेरी राज़दार  है। 
  • इल्यास : अच्छा तो सुनो मैं इस्लामी सल्तनत का जासूस हु। 
  •                 सुगमित्रा सख्त मुताज्जुब हुई। उसने कहा "तुम जासूस हो ?"
  • इल्यास : है मैं जासूस हु अमीररूल मूमिनीन को जो मुसलमानो के शहंशाह है यह इत्तिला ली थी की  महाराजा काबुल मुसलमानो पर  चढ़ाई की तैयारी कर रहे है। मै यह बात मालूम करने के लिए यहाँ आया हु। 
  • सुगमित्रा : तुमने क्या मालूम किया। 
  • इल्यास : यही की  महाराजा काबुल मुसलमानो पर हमला करने वाले है। 
  • सिगमित्रा : यह सच है।  इस धार में मुसलमानो पर फतहयाबी पर दुआ मांगी गयी है। 
  • इल्यास : अगर मैं यहाँ से रिहा हो गया तो वतन जाकर इस्लामी फ़ौज के साथ यहाँ आऊंगा  शान के साथ ले जाऊंगा। 
  • सुगमित्रा ; वादा करते हो फिर आओगे। 
  • इल्यास : वादा करता हु। इंशाल्लाह ज़रूर आऊंगा। 
  • सुगमित्रा : मुझे इत्मीनान हो गया तब मौक़ा है की मैं तुम्हे इस वक़्त यहाँ से निकल दू। 
  • इल्यास : लेकिन शहर से  बाहर किस तरह निकलूंगा। 
  • सुगमित्रा : नेरी दुनिया तुम्हे शहर से  बाहर कर आएगी उसके साथ जो लड़की थी उसका नाम  दीना  था। 
  •               दीना ने कहा "मैं इस खिदमत को अंजाम दे लुंगी। "
  • सुगमित्रा : अच्छा अब इजाज़त चाहती हु। थोड़ी देर में दीना तुम्हारे पास आएगी। 
  •                 सुगमित्रा   उठी   और चली गयी।   .वक़्त गुज़रता रहा। कई घंटे गुज़र गए। उन्हें मायूसी होने लगी। उन्होंने फिर पड़ जाने का इरादा किया। उस वक़्त दीना आयी। उसने खामोश रहने का इशारा किया। शमा गुल किया।  और इल्यास का हाथ पकड़ कर आहिस्ता आहिस्ता चली। 



  •                                    अगला भाग ( रिहाई )
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