fatah kabul (islami tarikhi novel ) part 18
गिरफ़्तारी ......
- इल्यास को ताज्जुब हुआ के पेशवा ने उन्हें क्यू रोका। वह एक तरफ खड़े हो कर गौर करने लगे। उनकी समझ में कुछ न आया। वह उन हसीन लड़कियों को रुखसत होता देखने लगे जो दुआ में शरीक हुई थी। वह सुगमित्रा को भी देखना चाहते थे। लेकिन डरते थे उसकी सूरत देखते ही उनके दिल पर तीर सा लगता था। जब आँखे टकरा जाती थी तो बिजली सी गिर पड़ती थी।
- सुगमित्रा के चेहरा से बड़ा ही भोला पन टपकता था। हूरो जैसी मासूमियत ज़ाहिर होती थी। ऐसा मालूम होता था जैसे वह अपने हुस्न और हुस्न की हशर खेजो से बिलकुल ही वाक़फ़ियत नहीं। मस्त शबाब होने पर भी अपने आप को बच्चा समझती है।
- जब लड़कियों की ज़्यदा तादाद वहा से चली गयी तो सुगमित्रा ने पेशवा के पास आकर कहा :"क्या मुझे भी जाने की इजाज़त है ?"
- इल्यास ने उसकी शीरे और सुरीली आवाज़ सुनी। उन्होंने उसके चेहरे की तरफ देखा वह हूरो जैसी शान से कड़ी थी। उसकी निगाहे इल्यास पर जमी हुई थी। उनके देखते ही उसने शर्मा कर नज़रे झुका ली और इल्यास कुछ मुज़्तरिब हो गए।
- पेशवा : तुम जा सकती हो बेटी।
- मालूम होता था के सुगमित्रा भी वहा से जाना नहीं चाहती थी। उसने कहा ;'पेशवा आप मुझ से कुछ कहना चाहते थे।
- सुगमित्रा फिर इल्यास को देखा। फिर निगाहे दो चार हुई। उसने शर्मा कर आंखे नीची कर ली। इल्यास लड़खड़ा गए।
- सुगमित्रा ने पेशवा को सलाम किया आहिस्ता आहिस्ता रवाना हुई। इल्यास की निगाहे उसका तआक़ुब करने लगे। वह ऐसे देखते ही कुछ ऐसे महू हुए के उन्होंने यह नहीं देखा के पेशवा उन्हें देख रहे है। पेशवा ने उन्हें मुगतिब किया और कहा। "क्या देख रहे हो नौजवान। "
- इल्यास ने चौक कर उन्हें देखा कुछ शर्माए और कहा। "मैं उस लड़की को देख रहा था।
- पेशवा : जानते हो यह कौन है ?
- इल्यास : सुना है यह महारजा काबुल की लड़की है।
- पेशवा : और इस धार में पहली मर्तबा आयी है। आओ मैं तुम से कुछ पूछना चाहता हु।
- पेशवा आगे चले। इल्यास उनके पीछे रवाना हुए। दोनों दूसरे कमरे में पहुंचे। पेशवा मसनद पर बैठ गए। उन्होंने इल्यास को बैठने का इशारा किया। वह भी उनके सामने बैठ गए ,पेशवा ने कहा "नौजवान !मैं तुमसे जो कुछ दरयाफ्त करू तुम उसका सही सही जवाब देना। "
- इल्यास : मैं सही ही जवाब दूंगा।
- पेशवा: क्या तुम अरब हो ?
- इल्यास : हां मैं अरब हु।
- पेशवा : और मुस्लमान हो ?
- इल्यास तज़बज़ब में पद गए। उसका क्या जवाब दे। अगर सही बताते है तो गिरफ्तार का अंदेशा .गलत बताते है तो झूट बोलना पड़ता है। वह खामोश हो गए। पेशवा ने कहा "तुम ने सही जवाब देने का वादा किया ह।
- इल्यास : बेशक यह मेरी कमज़ोरी थी के मैं खामोश हो गया। मैं वाक़ई मुस्लमान हु।
- पेशवा : तुम भेस बदल कर धार में ?
- इल्यास : यह देखने के यहाँ क्या होने वाला।
- पेशवा : जानते हो इस जुर्म की क्या सजा है ?
- इल्यास : मै जनता तो नहीं मगर समझता हु के इस जुर्म की सजा मौत होगी।
- पेशवा : तुमने ठीक कहा। यह भी जानते हो तुमने धार को नापाक कर दिया है।
- इल्यास : माफ़ कीजिये मैं धार में जाकर खुद ही नापाक हो गया हु।
- पेशवा : तुम जासूस हो ?
- इल्यास : आप जो चाहे समझ ले। लेकिन मैं यहाँ आया इसलिए के देखु होता क्या है ?
- पेशवा : फिर तुमने क्या देखा।
- इल्यास : मैंने देखा के मुसलमानो पर फतह एबी की दुआ मांगी गयी है।
- पेशवा : क्या मुस्लमान काबुल पर हमला करने का मक़सद कर रहे है।
- इल्यास : नहीं।
- पेशवा : फिर जासूसी करने क्यू आये ?
- इल्यास : हमें यह मालूम हुआ था के महारजा काबुल मुसलमानो पर हमला करने की तैयारी कर रहे है।
- पेशवा : मैं तुमसे साफ़ तौर पर कहता चुके यह सही है। क्या तुम एक बात और बताओगे ?
- इल्यास : जो बात मालूम होगी बता दूंगा।
- पेशवा : जासूसी के लिए क्यू आये क्या तुम्हे काबुल की सियहत का शौक़ खींच लाया है या सुगमित्रा के हुस्न की शोहरत लायी ?
- इल्यास : इन दोनों बातो में से कोई बात मुझे यहाँ लेन की मुहर्रिक नहीं हुई। मैं यहाँ अपने चाचा को तलाश करने आया हु।
- पेशवा : तुम्हारे चाचा यहाँ कब आये ?
- इल्यास : बहुत अरसा हुआ जब मैं न समझ बच्चा ही था के वह यहाँ आये थे।
- पेशवा : आखिर किस क़द्र अरसा हुआ ?
- इल्यास : पंद्रह बरस के क़रीब हुए।
- पेशवा : क्या नाम था तुम्हारे चाचा का ?
- इल्यास : उनका नाम राफे था।
- पेशवा चौक पड़े। उन्होंने कहा "क्या तुम्हारा नाम इल्यास है ?
- इल्यास अपना नाम सुन कर सख्त मुताज्जुब हुए। उन्होंने कहा हां मेरा नाम इल्यास ही है .लेकिन आप को कैसे पता।
- पेशवा : मैं इस धार पेशवा हु हम पेशाओं को ऐसी बाते मालूम हो जाती है।
- इल्यास को यक़ीन नहीं आया। उन्होंने कहा। "आप बुज़ुर्ग है आपकी बात यक़ीन ही कर लेना चाहिए लेकिन बात दिल को नहीं लगती।
- पेशवा : मैं भी बहस करना नहीं चाहता। तुम्हारी माँ ने तुम्हे आने की कैसे इजाज़त देदी ?
- इल्यास : मेरी माँ मेरे चाचा से बेटे से ज़्यदा मुहब्बत करती थी वह उन्हें अबतक नहीं भूली।
- पेशवा : वह बड़ी अच्छी खातून है। क्या तुम अपने चाचा ही को तलाश करने आये थे ?
- इल्यास : चाचा को भी मंगेतर को भी।
- पेशवा : तुम्हारी मंगेतर यहाँ कहा आगयी ?
- इल्यास : मेरा क़िस्सा अजीब है मुख़्तसर अर्ज़ करता हु। मेरे चाचा राफे की एक लड़की राबिया थी। इस मुल्क की एक औरत वहा गयी थी। वह उसे अपने साथ ले आयी चाचा उसे तलाश करने आये मैं उन दोनों को ढूंढ रहा हु।
- पेशवा : बड़ी दिलेरी की तुमने। तुम्हे उन दोनों में से किसिस का पता चला।
- इल्यास ; अभी तक नहीं चला।
- पेशवा : तुम अपनी मंगेतर को पहचानते हो ?
- इल्यास : वह छोटी उम्र में अगवा हो गयी न मैं उसे पहचानता हु न वह मुझे पहचान सकती है।
- पेशवा : तब तुम फ़ुज़ूल तकलीफे उठा कर यहाँ तक आये हो।
- इल्यास : खुदा के भरोसे पर चला आया हु। वही मदद करेगा।
- पेशवा : खुदा ने तुम्हारी मदद नहीं की। तुम्हारा राज़ खुल गया और अब तुम्हे उसकी सजा मिलेगी।
- इल्यास : यह भी खुदा की मर्ज़ी।
- पेशवा : सिर्फ एक सूरत ऐसी है के तुम सजा से बच जाओ।
- इल्यास : क्या ?
- पेशवा : पहले यह बताओ तुमने सुगमित्रा को देखा है ?
- इल्यास : अच्छी तरह देखा है।
- पेशवा : तुम उसे पसंद करते हो।
- इल्यास : कौन उसे पसंद करेगा।
- पेशवा : मैं तुम्हे सजा से बचा सकता हु और इस बात की कोशिश करने का भी वादा करता हु के सुगमित्रा तुम से बियाह दी जाएगी अगर तुम बुद्धमत इख़्तियार करलो।
- इल्यास : यह न मुकिन है।
- पेशवा : अच्छा बुद्धमत इख़्तियार न करो। बुध को सजदा करो।
- जब दिन छिप गया तब उन्होंने मगरिब की नमाज़ पढ़ी। इस वक़्त काफी अँधेरा फैल गया। जब से वह उस कोठरी थे कोई उनके पास आया था। उन्हें ख्याल वह उन्हें भूका और प्यासा रखना चाहते है। उन्हें पियास तो नहीं थी अलबत्ता भूक मालूम होने लगी। थोड़ी देर में उन्होंने ईशा की नमाज़ पढ़ी। नमाज़ से फारिग ही हुए थे की कोठरी का दरवाज़ा खुला और एक शख्स शमा वापस जाने लगा। उससे कहा। "यह रौशनी क्यू कर दी मुझे अँधेरा बुरा मालूम नहीं होता।
- उस आदमी ने जवाब दिया। "तुमसे बाटे करने के लिए राजकुमारी आने वाली है। "
- इल्यास : राजकुमारी कौन ?
- वही शख्स : तुम राजकुमारी को नहीं जानते। महाराजा काबुल की सुपुत्री।
- इल्यास : क्या सुगमित्रा ?
- शख्स : जी हां।
- वह आदमी चला गया। इल्यास सोचने लगे के शायद पेशवा ने सुगमित्रा को भेजा है। वह रहज़न सबर व् क़रार ईमान पर डाका डालने आरही है। वह उनसे ज़रूर तबदीली मज़हब की दरख्वास्त करेगी। उन्होंने अपने दिल को टटोला .उस हुर विष की मुहब्बत के नक़ूश उसमे देखे। उन्होंने दुआ मांगी "इलाही मुझे इस अज़ाब में गिरफ्तार न करो। मुहब्बत अज़ाब ही। मेरी मदद कर और मुझे तौफ़ीक़ अता फरमा के मैं टेरी ही इबादत करता रहूं। सिवाए तेरे किसी दूसरे को सजदा न करू।
- यह दुआ कर बैठ ही थे के हलके क़दमों की चाप हुई। सुगमित्रा के आने के ख्याल से ही उनका दिल धड़कने लगा। उन्होंने दरवाज़ा की तरफ देखना शुरू किया। उनके देखते ही देखते परी चेहरा सुगमित्रा कोठरी में दाखिल हुई। उसके बढे हुए हुस्न की वजह से शमा झिलमिलाने लगी। उसकी हयात बख्श लबो पर दिलफरेब तबस्सुम था।
- इल्यास ने उसके रुख ज़ेबा पर नज़र डाली। उसने भी उनकी निगाहो में निगाहे डाल दी। इल्यास कुछ खो से गए। वह बड़ी बे तकल्लुफी के साथ उनके सामने जाकर बैठ गयी। और निहायत ही शीरे लहजा में बोली। "तुमने धोका क्यू दिया ?"
- इल्यास : मैंने धोका नहीं दिया। देने की मेरी आदत है।
- सुगमित्रा : तुम मुस्लमान हो भेस बदल कर धार में क्यू गए ?
- इल्यास : सच यह है के मैंने यह भेस तुम्हे देखने के लिए बदला था।
- सुगमित्रा : अगर यह सही है तो अब मज़हब भी बदल लीजिये।
- इल्यास : मज़हब के मुताल्लिक़ -----
- ज़रा ठहरिये "सुगमित्रा ने कता कलम करते हुए कहा "क़ब्ल उसके के तुम अपना ख्याल। मैं यह बता दू के अगर तुम मज़हब दब्दील करलोगे तो जो पेशवा ने तुमसे कहा है वह होगा। तुम्हारे लिए दुनिया की तमाम मुस्सरते मुहैया की जायँगी और अगर तुमने इंकार किया तो नतीजा अच्छा च्छा न होगा।
- इल्यास : यह सुन चूका हु। अब तुम्हारी ज़बान से भी सुन लिया। दुनिया की राहते और दुनिया की मुस्सरते चंद रोज़ा है। जब मौत आजायेगी सब कुछ यही रह जायेगा। आख़िरत की ज़िन्दगी हमेशा की ज़िन्दगी है। इस दुनिया में जिसने नेक काम किये खुदा को पहचानना। उसके अहकाम की तामील की आख़िरत में उसे उसके नेक आमाल का सिला मिलेगा। जन्नत में दाखिल होगा। उस जन्नत में जिसका ज़िक्र क़ुरान शरीफ में है। जिसमे राहत ही राहत है उसमे दिलकश खुशनुमा बख़ीचे है। निहायत उम्दा और बड़े आराम वह मकानात है। लज़ीज़ व खुश ज़ायक़ा मेवे है। नज़र फरेब सब्ज़ा ज़ार है। उन सब्ज़ा ज़ारो में मीठे और सफीना पानी के चश्मे रवा है। वहा न ज़्यदा गर्मी है न अज़ीयत रसा सर्दी है। मौसम खुशगवार रहता है। ....
- सुगमित्रा ने कता कलाम करके कहा "तुम शायद अपने मज़हब के मुबल्लिग हो "
- इल्यास : नहीं। मगर हर मुस्लमान अपने मज़हब का आलिम है और मुबालिग़ भी। हम खुदा का कलाम पढ़ते और उसकी तब्लीग करते है।
- सुगमित्रा : जानते हो मैं तुम्हारे पास किसलिए आयी हु ?
- इल्यास : मैं गायब दा नहीं हु। लेकिन जो बात तुमने कही है इससे मालूम होता है के तुम मुझे मज़हब दब्दील करने की तरग़ीब देने आयी हो।
- सुगमित्रा : मैं यह कहने आयी हु के तुमने धार को नापाक कर दिया है इसकी सजा मौत है।
- इल्यास : मगर मैंने सुना है के बुध जी हर जानदार पर रहम करने का हुक्म दिया है।
- सुगमित्रा : लेकिन मुजरिम को सजा देने का हुक्म दिया है। अगर मुजरिमो को सजा न दी जाये तो दुसरो को इबरत न हो। और जुर्मो की तादाद बढ़ जाये।
- इल्यास : अगर मुझे मुजरिम क़रार दिया जाता है तो मैं सजा भुगतने के लिए भी तैयार हु।
- सुगमित्रा : क्या तुम जानते हो के दुनिया में सबसे अज़ीज़ चीज़ ज़िन्दगी है ?
- इल्यास : मैं सबसे अज़ीज़ चीज़ मज़हब को समझता हु।
- सुगमित्रा : सुना करती थी के मुस्लमान बड़े ज़िद्दी होते है। आज खुद देख रही हु। तुम यहाँ क्यू आये हो ?
- इल्यास : अपने चाचा और चाचा की बेटी तलाश करने।
- सुगमित्रा : क्या तुम्हारे चाचा और चाचा की बेटी तुमसे नाराज़ हो कर चले आये थे।
- इल्यास : नहीं मेरे चाचा की बेटी को तुम्हारे मज़हब की एक औरत बहका कर ले आयी थी और चाचा उसे तलाश करने आये थे।
- सुगमित्रा : कितना अरसा हुआ इस बात को ?
- इल्यास : पंद्रह बरस हो गए।
- सुगमित्रा : ओह् इतने आरसे के बाद तुम उन्हें तलाश करने आये हो। बड़ी गलती की तुमने वह ज़िंदा कहा होंगे।
- इल्यास : मेरा दिल कहता है वह ज़िंदा है।
- सुगमित्रा : मैं यक़ीन दिलाती हु के काबुल में कोई मुस्लमान नहीं है।
- इल्यास : मुझे उस औरत का पता चल गया है जो मेरी मंगेतर को अगवा करके लायी थी।
- सुगमित्रा : तुम अपनी मंगेतर को तलाश करते फिर रहे हो। शायद की बहुत खूबसूरत होगी।
- इल्यास : जी हां।
- सुगमित्रा : तुमने उस औरत से नहीं पूछा ?
- इल्यास : जब मैं उससे मिला था तो वह हवास म न थी।
- सुगमित्रा : क्या पागल हो गयी है ?
- इल्यास : नहीं या तो वह बीमार हो गयी है या उसे कोई हादसा पेश आगया था।
- सिगमित्रा : मुझे तुमसे हमदर्दी पैदा हो गयी है।
- इल्यास : तुम्हारा शुक्रिया !
- सुगमित्रा : मैं चाहती हु की तुम ज़िंदा रहो।
- इल्यास : मेरे और तुम्हारे चाहने से कुछ नहीं होता हां खुदा चाहेगा तो ज़िंदा रहूँगा।
- सुगमित्रा : अगर तुम बुध मज़हब क़बूल करलो तो तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ सकता।
- इल्यास : तुम शायद इस बात को नहीं समझती हो की मौत और ज़िन्दगी खुदा के इख़्तियार में है। मेरी मौत अपने वक़्त पर आएगी कोई उसे न रोक सकेगा।
- सुगमित्रा : इस मुल्क में मेरे पिता महाराजा का हुक्म चलता है और और पिता मेरा कहना मानते है। मैं तुम्हे बचा सकती हु।
- इल्यास : बचा सकती हो लेकिन बचा नहीं सकती क्यू की मैं अपना मज़हब न बदलूंगा।
- सुगमित्रा : बड़े ज़िद्दी हो काश मैं तुम्हे न देखती। मै पेशवा से इजाज़त लेकर तुम से मिलने आयी थी। मेरा ख्याल था की तुम मेरा कहना मान लोगे। मुझे तुम्हारे मारे जाने का बड़ा सदमा होगा।
- इल्यास : ज़माना इस सदमा को दूर कर देगा।
- सुगमित्रा : ज़िन्दगी भर यह सदमा बाक़ी रहेगा। मान जाओ मेरी दुनिया को तरीक न करो।
- इल्यास : सुगमित्रा !सुनो। मैं सफाई के साथ इक़रार करता हु की मुझे तुमसे मुहब्बत हो गयी है। बेपनाह मुहब्बत लेकिन अफ़सोस में मज़हब नहीं बदल सकता।
- सुगमित्रा मगमूम हो गयी। उसी वक़्त एक लड़की दाखिल हुई। उसने कहा "वक़्त ख़त्म हो गया। "पेशवा का की अगर उन्होंने आपकी बात मान ली है तो उन्हें साथ ले कहलिये नहीं मानी तो छोड़ दीजिये।
- सुगमित्रा : अफ़सोस इन्होने मेरी बात नहीं मानी। वह उठ कड़ी हुई उसने इल्यास पर एक निगाह डाली और वहा से चली गयी। ..
अगला भाग ( इक़रार ).
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
Tags:
Hindi