fatah kabul (islami tarikhi novel) part 17
हूरविष सुगमित्रा। ........
भी दादर पहुंच गया। दादर के तीन अएतराफ़ में पथ्हर चट्टानें फ़सील की तरह उठती चली गयी थी और सामने की दीवार मज़बूत बड़े बड़े पथ्तरों से बनाई गयी। चुकी और तरफ चट्टानें थी इसलिए उधर दरवाज़े नहीं थे। जो दीवार बनाई गयी थी उसमे तीन दरवाज़े थे। एक दरवाज़ा जो दरमियान में था वह इतना बड़ा था के हाथी उसमे गुज़र सकता था। और दरवाज़े जो इसके इधर उधर थे वह भी इतने बड़े थे के घोड़े सवार आसानी से आ जा सकते थे।
- शहर काफी बड़ा था। पहाड़ होने की वजह से उसमे काफी सर्दी थी। सब ऊनी लिबास पहने हुए थे। कमला ने भी एक पश्मीना वास्केट पहन ली थी। इल्यास के पास कोई वास्केट नहीं। थी। उन वहा की सर्दी तकलीफ देने लगी थी कुछ नकदी उन्होंने सलेही से लेली थी। वह इस फ़िक्र में थे के कोई अच्छी वास्केट मिल जाये खरीद ले। एक रोज़ कमला ने देखा सुबह का वक़्त था। सर्दी की वजह से उनका रवा खड़ा हो गया था। उसे बड़ा अफ़सोस हुआ। उसने अपनी वास्केट उतार कर उन्हें देनी चाही और कहा। "लो इसे पहन लो "
- इल्यास ने मुस्कुरा कर कहा तम्हारा शुक्रिया पहला तो यह वास्केट मेरे आने की नहीं। दूसरा मुझसे ज़्यदा तुम्हे ज़रूरत है।
- कमला : आओ तो बाजार चले। वहा से कोई अच्छी और बड़ी वास्केट खरीदेंगे।
- दोनों बाजार की तरफ चल पड़े चुके शहर में बाहर से काफी तादाद और मर्द आगये थे इसलिए हर वक़्त चहल पहल रहती थी। नो ख़ेज़ व हसीन लड़किया ज़्यदा आयी हुई थी। इन मस्त शबाब लड़कियों से बाजार भरा हुआ था। दुकानदार ने दुकाने सजा रखी हुई थी। हर दुकान पर अच्छी खासी भीड़ लगी हुई थी।
- यह दोनों चले जा रहे थे के शोर हुआ बड़े पेशवा की सवारी आरही है। सब रास्ता के दोनों तरफ खड़े हो गए। बड़े पेशवा की इज़्ज़त व अज़मत हर शख्स करता था। कमला और एक दुकान के सामने खड़े हो गए। पेशवा की सवारी आयी। लम्बी कोच सी थी। उसके पिछले सिरे पर एक गोल कमरा बना हुआ था। निहायत खुशनुमा कमरा था। उसपर सोना चाँदी का गंगा जमुनी काम हो रहा था।
- कमरा के सामने एक छोटा सा तख़्त था जिस पर मसनद बिछी थी। मसनद पर बड़े तकिये रखे थे एक तकिया के सहारे से पेशवा बैठे थे। उनकी सूरत से बड़ा जलाल ज़ाहिर था।
- उनकी कोच बीस आदमी कंधो पर उठाये चले आरहे थे। जिन औरतो और मर्दो के सामने से उनकी सवारी गुज़रती थी वह हाथ जोड़ जोड़ कर सर झुकाते चले थे। जब पास उनकी सवारी आयी तो कमला ने हाथ जोड़ कर सर झुका दिया लेकिन इल्यास ने हाथ न जोड़े। न सर झुकाया .हलके कमला ने ठोका मार कर उन्हें आगाह भी किया। फिर भी वह सर उठाये खड़े रहे। पेशवा ने उन्हें गौर से देखा। उनके चेहरे से बरहमिया गुस्सा के आसार ज़ाहिर नहीं थे बल्कि हैरत और ताज्जुब की नज़रो से देख रहे थे।
- इल्यास भी उन्हें टिकटिकी लगाए देख रहे थे। पेशवा को इस तरह देखना सख्त गुस्ताखी थी। दफ्तान घंटिया बजी और सवारी रुक गयी। पेशवा ने इल्यास से मुखातिब हो कर दरयाफ्त किया। "तुम किस मुल्क से आये हो ?
- इल्यास की ज़बान से बेसाख्ता निकला "इराक से"
- पेशवा चौक पड़े। उन्होंने कहा "तुम्हारे खादों खाल अरबो जैसे है "
- इल्यास को खौफ हुआ। कही वह जासूस समझ कर गिरफ्तार न कर लिए जाये उन्हें अपनी इस गलती का अफ़सोस हुआ के उन्होंने यह क्यू कह दिया के वह इराक से आये है। लेकिन यह बात ज़बान से निकल चुकी थी और अब अफ़सोस करना बेकार था। उन्होंने कहा। "मैं इसी नवाह का रहने वाला हु "
- पेशवा : तुम्हे सर्दी मालूम हो रही है नौजवान !लो यह वास्केट पहन लो।
- पेशवा ने एक वास्केट दी की तरफ पश्मीना था। निहायत गर्म थी। इल्यास बढ़ा कर लेली और शुक्रिया अदा किया। सवारी बढ़ गयी। कमला ने आहिस्ता से कहा "पेशवा ने भी तुम्हे पसंद किया है "
- इल्यास : नेक आदमी मालूम होते है।
- कमला : तुम्हारी क़िस्मत खुल गयी। किसकी तक़दीर की पेशवा उसे कोई चीज़ अता करे।
- अब उनके पास मर्दो और लड़कियों का झूमगात आ लगा। सब उन्हें मुबारक बाद देने लगे। एक शोख व शरीर लड़की ने कमला से आहिस्ता से कहा :" यह शायद तुम्हारे मंगेतर है मुबारक हो। "
- कमला के चेहरे पर सुर्खी बिखर गयी। उसने शर्मा कर सर झुका लिया। थोड़ी देर में मजमा छठा और यह दोनों वापस लौट आये। जब अपनी क़याम गाह पर पहुंचे तो कमला ने अपने बाप से पेशवा के इल्यास को वास्केट देने का क़िस्सा बयान किया। बूढ़े ने इस वास्केट को अपने सर पर रखा और इल्यास से कहा " बड़ी तक़दीर वाले हो बेटा तुम "
- इल्यास ने पेशवा के उस अतिये को कोई खास अहमियत न दी। उन्होंने वास्केट पहन ली ठीक आयी कमला ने आहिस्ता से शरमाते हुए कहा :"तुमने उस शरीर लड़की की बात सुनी थी। "
- इल्यास : बेवक़ूफ़ थी वह।
- कमला को उनके इस जवाब से अफ़सोस सा हुआ।
- दिन गज़रते गए ,यहाँ तक के सिर्फ दो दिन दुआ में बाक़ी रह गए। में इस क़द्र नौजवानो और ख़ेज़ लकियो की आमद हुई के शहर भर में तिल रखने की भी जगह बाक़ी न रही। सबको महाराजा काबुल की बेटी सुगमित्रा के आने का इंतज़ार था।
- जब एक रोज़ बाक़ी रहा तो सुगमित्रा भी आगयी। कमला और इल्यास को भी मालूम हो गया। वह महाराजा के बेटी थी बड़े एहतेमाम और शान के साथ आयी थी। उसके ठहरने के लिए दादर के हुक्मरान ने अपना खास महल खली कर दिया था। महल के गिर्द पहर अलग गया था। इल्यास ने कमला से पूछा " क्या तुमने सुगमित्रा को देखा है ?"
- कमला : नहीं लेकिन सुना है बहुत ज़्यदा हसीन व मस्त शबाब है। कही तुम उस पर फरिफ्ता न हो जाना।
- इल्यास : मैं ऐसी हिमाक़त क्यू करूँगा।
- आखिर दुआ का वक़्त आगया। सुबह होते ही सबने अच्छे अच्छे कपडे पहने और धार की तरफ रवाना हुए। धार की चार दीवारी निहायत ऊँची थी। सहन बहुत कुशादा था। तमाम सहन मर्दो और औरतो से भर गया था। लड़किया निहायत खूबसूरत और माह जबीन थी। और गुल रुखसार थी। उनके हुस्न से तमाम धार जगमगाने लगा था।
- इल्यास और कमला दोनों बहुत सवेरे धार में पहुंच गए थे इसलिए वह इस हाल से मिले खड़े थे जिसमे बुध का बुत था। थोड़ी थोड़ी देर में गुल रगो का एक गिरहो आया एक से एक सेम तन और नाज़ुक अंदाम थी। उनके झुरमुट में वह पीकर हुस्न व नाज़ भी थी जिसके देखने के लिए मर्द औरत सब मुश्ताक़ थी। यानी महारजा काबुल की बेटी सुगमित्रा .वह रेशम का लिबास और सोने व जवाहरात के जेवरात पहने थी। इस क़दर हसीं थी .के उसका चेहरा चौदहवी रात के चाँद की तरह जगमगा रहा था।
- जब वह अदा नाज़ से बल खा कर चलती हुई इल्यास के क़रीब पहुंची तो उन्होंने उस हूर विष को देखा। वह इस क़दर हसीन व माह जबीन थी के उसे देख कर उनकी आंखे झपक गयी .इत्तेफ़ाक़ से सुगमित्रा की भी निगाह भी इल्यास पर पड़ गयी उसकी होश रहा निगाहो ने उन्हें कर दिया। उन्हें मालूम हुआ जैसे उनके पहलु से कोई चीज़ निकल गयी।
- सुगमित्रा ने दफा नहीं कई मर्तबा देखा। वह वह ठिठकती हुई चली गयी दाखिल हो गयी। उसके पीछे बहुत सी औरते। लड़किया और मर्द भी हाल में दाखिल हुए उनमे इल्यास और कमला भी थे।
- इल्यास बुत के क़रीब जाकर खड़े हुए। यह बुत क़द आदम से कुछ छोटा था। खालिस सोने का था। उसकी आँखों में दो लाल लगे हुए थे जो चमक रहे थे।
- बुत के सामने दो रो यह क़तर नो ख़ेज़ हसीं लड़कियों की कड़ी हुई थी। लड़कियों के पीछे और लड़किया औरते और मर्द खड़े हो गए। सुगमित्रा सब से आगे हाथ में फूलो का हार थी।
- दफ्तान सुरीला बाजा बजने लगा। उसी वक़्त पेशवा के बराबर के कमरा से निकल कर आये उन्होंने हसीन व खूब रो लड़कियों पर सरसरी नज़र डाली। जब वह इल्यास क़रीब पहुंचे तो उन्होंने फिर उसे गौर से देखा और बढ़ कर बुत के सामने जा कर खड़े हुए।
- सुगमित्रा भी उनके पास जा कड़ी हुई। उसके चेहरा से हुस्न की शुआयें निकल रही थी। उसने फिर मपाश निगाहो से इल्यास को देखा। इल्यास लड़खड़ा गए।
- चंद लड़कियों ने गाना शुरू किया। सुगमित्रा भी गाने में शरीक हो गयी उसकी आवाज़ निहायत शेरीन और सुरीली थी। उसने आगे बढ़ कर बुत के गले दाल दिया। और सीधे और क़दमों वापस आयी।
- सब सजदा में गिर गए। इल्यास और पेशवा खड़े रह गए। सजदा से सर उठा कर उन्होंने फतह व कामरानी की दुआ मांगी। इल्यास टिकटिकी लगाए सुगमित्रा को देखते रहे। वह भी नज़रे चुरा कर उन्हें देख लेती थी। सब पर खुद फरामोशी की हालत तारी थी। दुआ ख़त्म हुई। बहार निकलने लगे। इल्यास भी चले पेशवा ने उनके कंधे पर हाथ रख कर कहा। "तुम ठहरो" ठहर गए।
- अगला भाग ( गिरफ़्तारी )
- .,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
Tags:
Hindi