fatah kabul (islami tarikhi novel) part 16
हमदर्द नाज़नीन। ........
जब यह लोग दादर के क़रीब पहुंचे तो उन्होंने मशवरा किया के जो कपडे अब्दुल्लाह ने कबिलियो जैसे दिए है। वह बदल ले या अपना ही लिबास पहने रहे
।
- सलेही ने कहा : अगर हम लिबास दब्दील कर भी ले तो अपनी सुरते नहीं बदल सकते इसलिए लिबास बदलना फ़ुज़ूल है।
- मसूद ने कहा : मेरे ख्याल में हमें दाढ़ी वालो को तो लिबास नहीं बदलना चाहिए लेकिन इल्यास बदल ले यह उनमे मिल सकेंगे।
- इल्यास : अगर लिबास बदलना गुनाह में दाखिल नहीं है तो मैं बदल लूंगा और अगर गुनाह है तो हरगिज़ बदलूंगा।
- सलेही : भई रसूल अल्लाह गैर क़ौमो की सूरत में लिबास में और तौर तारिक़ में तक़लीद करने की मुनिअत फ़रमाई है। लेकिन यह दब्दीली एज़ाज़ समझ कर या फख्र जान कर या किसी करने के लिए की जाए तो मना है। और अगर मस्लेहतान मुल्क भलाई की जाये तो रवा। है तुम जासूसी करने के लिए ऐसा कर रहे हो इसमें बुराई नहीं है।
- इल्यास : तब मैं लिबास दब्दील करूँगा।
- सलेही : तुम लिबास बदल कर हमसे अलग हो जाओ। इसतरह हमसे कुछ फासला पर रहो के वक़्त पर हम तुम्हारी मदद कर सके और किसी को यह भी न मालूम हो के तुम हमारे साथ हो।
- इल्यास : लेकिन मै उन लोगो की ज़बान भी तो अच्छी तरह नहीं जानता।
- सलेही : यह वक़्त ज़रूर है लेकिन कह देना के मै ज़्यदा तर अरबी मुमालिक में रहा हु।
- इल्यास : खैर मै सब कुछ कर लूंगा।
- इल्यास ने लिबास बदल लिया मगर वह अपने खदो खाल न बदल सका। तर्ज़ व अंदाज़ न बदल सके। रफ़्तार व गुफ़्तार न बदल सके। उन्होंने यह बड़ी जुर्रत की उन्हें मालूम हो गया था जासूसी की सजा क़तल है और उनपर जासूसी का शुबा हो जाना बहुत आसान है फिर भी वह डरे नहीं।
- लिबास बदल कर वह उनसे अलग हो गए और अलग ही सफर करने लगे। एक रोज़ वह एक पहाड़ी बस्ती के क़रीब पहुंचे शाम का वक़्त हो गया था। बाज़ लड़किया अपनी बकरिया हाँकती हुई बस्ती की तरफ जा रही थी। बाज़ लड़किया कोल्हू पर गगरे रखे चश्मे से पानी भरने चली आ रही थी। बाज़ शोख व शंग लड़किया आपस में चहल करती आरही थी। उनमे से कई ने इल्यास को देखा। ज़ेरे लब मुस्कुरायी। कुछ अजब अंदाज़ से शाख गुल की तरह लचके और चली।
- यह पहाड़ी लड़किया काफी हसीन थी। उनके सफ़ेद चहरो पर सुर्खी झलक रही थी। आँखे बड़ी बड़ी और सुरमगि थी। एक लड़की जो उनमे सबसे ज़्यदा हसीन व नाज़नीन थी शर्माती लजाती आरही थी। कुछ फासला पर एक घाटी ख़ंदक़ की तरह थी .ऐसा मालूम होता था के वह ख़ंदक़ बस्ती के चारो तरफ है लकड़ियों के तख्ता का पुल बंधा हुआ था और सब लड़किया तो उस पुल पार गयी। लेकिन जिस वक़्त इल्यास पुल पर पहुंचे ठीक उसी वक़्त वह नाज़नीन भी पुल पर आयी। इल्यास उससे बच कर पुल के किनारे पर हो गए। उस माह पीकर ने उनके क़रीब आकर अपनी लम्बी पलके उठाई उन्हें देखा और आहिस्ता से कहा "तुम शायद मुसाफिर हो "
- इल्यास ने जवाब दिया : हां मैं मुसाफिर हु। दूर से आ रहा हु।
- उसने भी दिलफरेब निगाहो से उन्हें देखा और कहा "कहा से आरहे हो ?"
- इल्यास : अरब की सरहद से।
- नाज़नीन : बड़ा लम्बा सफर किया है तुमने। शायद तुम दुआ में शिरकत के लिए आये हो।
- इल्यास : इरादा तो दुआ में शरीक होने का ही है।
- नाज़नीन : तुम्हारा लहजा किसी और मुल्क वालो का सा है।
- इल्यास : मैं अरबी मुमालिक में घूमता रहा हु।
- नाज़नीन : क्या तुम्हे खूंखार अरबो ने गिरफ्तार नहीं किया।
- इल्यास : नहीं। अरब तो खूंखार नहीं बड़े इंसान और मेहमान नवाज़ है।
- नाज़नीन : लेकिन यहाँ तो कहा जा रहा है के अरब खूंखार दरिंदे है।
- इल्यास : ये गलत है। इस मुल्क वालो को अरबो के खिलाफ भड़काने के लिए ऐसा क्या कहा जा रहा है ?"
- इनदोनो ने अब पुल को उबूर कर लिया था। लड़की ने कहा " क्या यहाँ तुम्हारा कोई शनासा है "?
- इल्यास : नहीं मैं पहली बार यहाँ आया हु।
- नाज़नीन ने फिर लम्बी पलके उठा कर देखा और कहा " तब तो हमारी झोपडी में चलो "
- इल्यास : तुम्हे तकलीफ होगी।
- नाज़नीन : तकलीफ नहीं रहत होगी। मै भी दादर चलूंगी साथ चलना।
- इल्यास ने सोचा मौक़ा अच्छा है। उन्होंने उसके साथ चलने का इक़रार कर लिया। उसे बड़ी ख़ुशी हुई। उसने कहा "हमारी झोपडी बस्ती के उस तरह पच्छिम की जानिब है।
- वह कभी कभी किन आखियो से उन्हें देख लेती थी। इल्यास आंखे झुकाये साथ चल रहे थे लेकिन कभी कभी वह भी गैर इरादी उसकी तरफ देख लेते थे। कई मर्तबा दोनों की नज़रे टकराई।
- यह दोनों चलते चलते बस्ती बिलकुल क़रीब पहुंच गए। बस्ती एक पहाड़ी टीला पर वाक़े थी। एक कुशादा रास्ता चट्टान पर चढ़ता चला गया था। इस रास्ता के दोनों तरफ गढ थे। चट्टान पर चढ़ कर लड़की मगरिब की तरफ घूम गयी और पगडण्डी पर चलने लगे। इल्यास उसके पीछे हो लिए। तो वह साथ साथ चलने लगी। दोनों चले जा रहे थे के किसी ने कहा " अच्छा कमला !अच्छा बड़ी शर्मीली बनती थी। "
- दोनों ने एक साथ नज़रे उठा कर देखा एक सोख शरीर लड़की सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी। कमला शर्म्म गयी .कुछ बोली नहीं लड़की ने पूछा "तुम्हारे मेहमान का नाम क्या है ?"
- इल्यास यह सुन कर धक् से हो गए। उन्हें यह ख्याल ही नहीं था के कोई उनका नाम पूछेगा। वह यह भी नहीं जानते थे इलाक़ा वालो के नाम कैसे होते है। उन्होंने अक्सर था महेन्दर वह था। उन्होंने सोच लिया था के अगर कोई पूछेगा तो वह अपना नाम महेंद्र बता देंगे।
- कमला ने आहिस्ता से पूछा " तुम्हारा नाम क्या है "उन्होंने जवाब दिया। महेंद्र कह लो "
- कमला ने आवाज़ से कहा "इनका नाम महेंद्र है "
- लड़की चली गयी। यह दोनों एक झोपडी पहुंचे कमला ने कहा "हमारी झोपड़ी यही है "
- उसी वक़्त झोपडी के अंदर एक बूढ़ा आदमी निकला। उसके दोनों कान झींदे हुए थे और कानो में किसी चीज़ की मोटी मोटी मारकीया पड़ी थी उसने पहले इल्यास को देखा और फिर कमला को देख कर कहा। बेटी यह कौन है "
- कमला ने कहा। "पिता जी !यह एक मुसाफिर है दादर में दुआ में शरीक होने के लिए जा रहे है। "
- बूढ़ा :मुल्क को ऐसे ही नौजवानो की ज़रूरत है लेकिन बेटी !महात्मा बुध ने फ़रमाया है मुकश (निजात) नर्वाण पर मुंहजिर है। और नर्वाण का पहला उसूल सही नज़र है। ख़यालात की पाकीज़गी ज़रुरु चीज़ है जो कोई अपनी जान को पाकीज़ा बना कर अपने नफ़्स से दुनिया की लज़्ज़तो और ऐश व राहत की ख्वाहिशो मिटा दे। उसे नर्वाण हासिल हो जाये। कमला :मैं जनिति हु पिता जी।
- बूढ़ा : एक बात और याद रख बेटी !मुसाफिर की खातिर करना अच्छी बात है लेकिन इससे प्रेम करना बुरा है तूने सुना होगा मुसाफिर किसके मीत।
- कमला : पिता जी मैं यह भी जानती हु।
- बूढ़ा अब इल्यास से मुखातिब हुआ उसने कहा "नौजवान !तुम्हारी आना मुबारक हो क्या नाम है बेटा तुम्हारा "
- क़ब्ल इसके के इल्यास जवाब दे कमला ने कहा "इनका नाम महेंद्र है पिता जी "
- अब दिन चिप गया था। इल्यास को फ़िक्र थी के किसी पढ़ ले। बूढ़े ने कहा। "महन्दर हम भी सुबह दादर जा रहे है तुम्हारे साथ चलना बस्ती में कई नो ख़ेज़ व हसीन लड़किया है वह भी जायेंगे। बड़ी मुद्दत के बाद दुआ की तक़रीब अमल वाली है। हमारे देश के लामा (पेशवा ) भी शरीक होंगे। महाराजा ! पहला क़दम ईरान को अपनी ममलिकत में शामिल करने के लिए उठाने वाले है। चलो झोपडी में चल कर बैठना। मैं भी आरहा हु कमला ! मुसाफिर के लिए तैयार करो। "
- इल्यास झोपड़ी में दाखिल हुए। कमला और बूढ़ा बहार रह गए। उन्हें मौक़ा मिल गया। उन्होंने मगरिब की नमाज़ तीन फ़र्ज़ अदा किये। थोड़ी देर में कमला उनके लिए खाना लायी और उन्होंने खाया। इस झोपडी में घांस बिछी हुई थी। उस पर एक तरफ बिस्तर कर दिया गया। एक तरफ कमला के लिए और दरमियान में बूढ़े का बिस्तर रहा।
- ईशा की नमाज़ इल्यास ने इशारो से अदा कर ली। सुबह उठ कर बस्ती से बाहर हवाइज ज़रुरिया अदा करने गए। वही उन्होंने नमाज़ ली। जब वापस झोपड़ी में आये बूढ़ा दोनों सफर की तैयारी कर रहे थे। उन्हें देखते ही कमला ने उनके सामने पहाड़ी फल रख दिए। कुछ मेवे भी थे। उन्होंने नाश्ता किया। बूढ़े ने कहा " बेटा !तुम्हारा लहजा हमारे नहीं है "
- इल्यास : मैं ज़्यदा तर फारस और अरब में रहा हु।
- बूढ़ा : तुम अरब और फारस में कैसे पहुंच गए। "
- इल्यास : क़िस्मत ले गयी और क्या कहु ?
- बूढ़ा : हमारे एक लामा भी जो दादर के इसी धारे में रहते है जिस में दुआ की तक़रीब अदा हो होगी कुछ अजीब लहजा रखते है। वह भी कहते थे। के वह अरबो में ज़्यदा रहे है। दरअसल एक ज़माना हुआ जब भिक्षु फारस और अरब की तरफ गए थे उनमे बहुत से इस नवाह में रह थे काफला तैयार हो गया। चलो।
- सामने एक चट्टान पर कई मर्द और कई लड़किया बिस्तर और दूसरा सामान हाथो में लिए हुए जमा हो रहे थे। यह तीनो भी असबाब उठा कर उनमे शामिल हो गए। इल्यास ने खुदा का शुक्र अदा किया के वह पहाड़ी लोगो में शामिल हो गए। अभी सूरज कुछ थोड़ा ही ऊँचा हुआ था के यह लोग दादर की तरफ रवाना हुए।
अगला भाग (हूर विष सुगमित्रा )
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