fatah kabul (islami tarikhi novel) part 15

 तिजारत। ...... 

                                          


                   थोड़ी देर के बाद अब्दुल्लाह आये। उन्होंने इल्यास से मुखतिब हो कर कहा "मैंने पहचान लिया  .औरत वही है जो राबिया को लायी थी। 

                   इल्यास खुश हो गए। उन्होंने कहा "खुदा का शुक्र है। यक़ीनी है के अब राबिया का पता चल जायेगा। 

  • अब्दुलाह :मुझे खौफ है के शायद अभी हमें कामयाबी न होगी। 
  • इल्यास : क्यू ?
  • अब्दुल्लाह : इसलिए के औरत ग़ुम मगम  है। या तो उस पर किसी मर्ज़ का ऐसा हमला हुआ है। जिसने उसके हवास खो दिए है और उसकी ज़बान काबू में नहीं रही है। या उसे ऐसी दवाई खिलाई गयी है जिनसे उसकी ताक़त स्लैब हो गयी है। 
  • इल्यास : यह तो बुरा हुआ। 
  • अब्दुल्लाह : इसवक्त उसपर ग़शी के दौरे पड़ रहे है। मैंने और लोगो को बुलाया है। उसे अपने महल में ले जाऊंगा। और वहा उसका इलाज कराऊंगा अगर वह अच्छी हो गयी  यक़ीनन है के सब कुछ बता देगी। 
  • सलेही : शायद उसके अच्छा होने में कुछ अरसा लगे। 
  • अब्दुल्लाह : हां दस पन्द्रह रोज़ ज़रूर लगेंगे। 
  • सलेही : इतने दिन हम क्या करे। 
  • अब्दुल्लाह : मैं  तुम्हे शहर में रहने की इजाज़त दिला दूंगा शहर में रहना। 
  • सलेही : लेकिन हम दादर में जाकर दुआ की तक़रीब भी देखना चाहते है। 
  • अब्दुल्लाह ; और उस तक़रीब का ज़माना  बहुत क़रीब आगया है एक दो रोज़ में यहाँ की लड़किया रवाना होने वाली है। 
  • सलेही : तब हमें भी  रवाना होना चाहिए। 
  • अब्दुल्लाह : मेरे ख्याल में दो रोज़ और ठहरे मुमकिन है के इस अरसा में उस औरत को होश अजय और वह बाते करने के क़ाबिल हो जाये। 
  • सलेही ; बेहतर है। 
  • अब्दुल्लाह :मैं शहर जाकर उस औरत का आराम का।  तीमारदारों का इंतेज़ाम करता हु। और तुम्हारे लिए शहर में रहने  की इजाज़त हासिल करके तुम्हारे पास परवाना भिजवा दूंगा। 
  • सलेही : हमारे लिए  तकलीफ न करो। हमें यहाँ भी आराम है। 
  • अब्दुल्लाह : यह तो ठीक है लेकिन मैं मुस्लमान हो गया हु जी चाहता है के मुसलमानो की कुछ खिदमत करू। 
  •  सलेही : जैसी तुम्हारी मर्ज़ी। 
  •               अब्दुल्लाह वहा से चले गए। दुपहर के वक़्त उन्होंने कई कहारों को एक अजीब सी सवारी कंधो पर ले जाते देखि। उन्होंने खाना खाया और बैठ कर बाते करने लगे। उन्हें इस बॉट्स ेबड़ी ख़ुशी थी के कुफ्रिस्तान में उनका एक ऐसा हमदर्द पैदा हो गया है जो मुस्लमान हो चूका है। इल्यास को यह ख़ुशी और ज़्यदा थी के उस औरत का पता चल गया है जो राबिया को अगवा करके  लायी थी। 
  •               थोड़ी देर इ बाद उनके पास वह सवार आये। उनके पास वह परवाना था जिसमे अरब सौदागरों को शहर में दाखिल होने की इजाज़त दे दी गयी। 
  • या सब घोड़ो पर असबाब बार के खुद भी घोड़ो पर सवार  हुए। और शहर की तरफ चले। जब वह शहर में दाखिल हुए तो उन्होंने देखा के शहर काफी वसीय है लेकिन इमारते  दक्यानुसी क़िस्म की मामूली दर्जा की है। 
  •                   उनके लिए एक माकन मख़सूस कर दिया गया था। वह उस  मकान में जाकर उतरे असर के वक़्त अब्दुल्लाह उनके पास आये। उन्होंने बताया के होश आने लगा है। जब बिलकुल उसके हवस दुरुस्त हो जायेंगे तब वह उन्हें लेजाकर उनसे मुलाक़ात  करांगे। 
  •             अभी अब्दुल्लाह बैठे बाते ही कर रहे थे के एक बूढ़ा सिपाही मुसलमानो के पास आया और उसने बताया  के शहर के हुक्मरान इनसे मुलाक़ात करना  और उनका माल देखना चाहता है। 
  • अब्दुल्लाह उनके पास हो लिए और चारो अरब  बेश क़ीमत माल लेकर  रवाना हुए। हाकिम अपने महल में मौजूद था। उसने वही  उनलोगो को तालाब किया  जब महल में दाखिल हुए तो उन्होंने देखा के महल काफी काफी बड़ा  है। उसमे एक छोटा सा बगीचा भी है। कमरे निचे और तंग है। कमसिन लड़किया तंग शालुके और लहंगे  पहने आ जा रही है। .वह एक कमरा में  लेजाकर बिठाये गए। उस वक़्त दिन चिप गया। सलेही वगेरा  वही जमात के साथ नमाज़ पढ़ी। जब वह नमाज़ से फारिग हुए तो एक लड़की आकर उन्हें अपने साथ ले गयी  और एक बड़े कमरे पहुंचे। उस कमरा में पीतल के शमादान थे और उनमे मुश्ते रोशन थी। तेल की जलने की बदबू  आरही थी लेकिन रौशनी  ऐसी तेज़ के आँखे झपकी जाती थी। 
  •        उन लोगो ने देखा के एक अधेड़   उम्र का शख्स मज़बूत  जिस्म का  घुटनो तक धोती बंधे और एक खुशनुमा  वास्केट सी पहनी मुकट  सर पर रखे एक तख़्त पर बैठा था। तख़्त पर फर्श था। उसके एक तरफ कई औरते बैठी थी। यह सब औरते शकील थी  दूसरी तरफ नो ख़ेज़ व  हसीन लड़किया भी थी। 
  •                       अरबो ने हुक्मरान को स्लैम किया। और चुके नामहरम औरते और लड़किया वहा मौजूद थी इसलिए सर  झुका कर खड़े हो गए। हुक्मरान और सब औरतो और लड़कियों ने उन्हें देखा  सबकी निगाहे इल्यास पर  जम गयी। ख़ुसूसन लड़किया उन्हें टिकटिकी लगा कर देखने लगी। 
  •             हुक्मरान ने उन्हें बैठने का इशारा किया। और वह  बैठ गए। उसने पूछा। 
  • "तुम कहा से आये हो ?"
  • सलेही ने जवाब दिया "बसरा से "
  • हुक्मरान : किस लिए आये हो ?
  • सलेही :तिजारत करने। 
  • हुक्मरान : तिजारत का क्या माल है तुम्हरे पास। 
  • सलेही : मला हिज़ा फरमाइए। 
  •                उन्होंने  चंद चीज़े इल्यास को दी और इल्यास ने हुक्मरान के सामने पेश किये। पहले उसने देखे फिर औरतो  और लड़कियों ने देखे। उनमे से  बाज़ चीज़े औरतो ने बाज़ लड़कियों ने बाज़ हुक्मरान ने पसंद किये और खरीद  ली। 
  •                अरबो का तर्ज़ गुफ्तुगू अंदाज़ नशिस्त और अदब व लिहाज़ का तरीक़ा हुक्मरान को बहुत पसंद आया। उसने कहा "मैं तुम लोगो से मिल कर बहुत खुश हुआ तुम जब तक चाहो यहाँ ठहर सकते हो। 
  •            सलेही ने अर्ज़ किया :"हम आपका शुक्रिया अदा करते है। हम ताजिर भी है और सय्यियाह भोई। तिजारत भी करते है और सय्यिहत भी  .आप ने इजाज़त देदी है तो चाँद रोज़ क़याम करके आगे बढ़ जायँगे "
  •           कुछ और देर के बाद वह वहा से रवाना हुए। अपने मस्कन पर आकर उन्होंने ने नमाज़ पढ़ी और खाना खा कर  सो गए। 
  •               सुबह को सूरज निकलने के बाद अब्दुल्लाह आये और सलेही और इल्यास के साथ अब्दुल्लाह के मकान पर पहुंचे। यह मकान मामूली दर्जे का था। इसी में वह औरत थी जो राबिया के लेकर आयी थी। अब्दुल्लाह ने उन्हें एक कमरा में बिठाया  और कहा।  मुआलिज का ख्याल है के उस औरत को सदमा पंहुचा है  .बीमारी नहीं। 
  • सलेही :  क्या वह औरत अपने  हवास में आगयी है। 
  • अब्दुल्लाह : उसकी अजीब हालत है कभी बिलकुल हवास में आजाती है और कभी बेहोश हो जाती है आओ  मैं दिखाऊ। 
  •                 वह उन्हें साथ लेकर एक और कमरा में पहुंचे। उस कमरे में एक औरत नरम नरम बिस्तर पर पड़ी  थी।  उस वक़्त उसकी आँखे खुली हुई थी। और वह बे माद्दा छत की तरफ देख  रही थी और यह तीनो उसकी बिस्तर पर खड़े हो गए और उसे देखने  लगे। 
  •            अगरचे उस औरत की उम्र चालीस साल के क़रीब थी लेकिन अब भी इस क़दर हसीन थी के उसकी सूरत  देखते रहने को जी चाहता था। इल्यास ने दरयाफ्त किया "यह कुछ बोली भी " 
  •            अब्दुल्लाह ने " बिलकुल नहीं बोली "
  •                       मुएलिज भी  आगया। उसने पहले उस औरत की नब्ज़ देखि। उस के जिस्म का मुआयना किया और फिर कहा " मेरा ख्याल  सही है उसे कोई बीमारी नहीं। है कुछ  सदमा है एक हफ्ता में जाकर यह बोलने के क़ाबिल हो। जाएगी 
  •            इल्यास उस औरत के ऊपर झुक गए। उन्होंने बुलंद आवाज़ में कहा "मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता  हु "
  • औरत  ने उनकी तरफ देखा न ताउज्जा की। बराबर छत को देखती रही। मुअलिज ने कहा " अभी यह कुछ सुनती  है न समझती है। 
  •                यह लोग वहा से चले आये। उन्हें मालूम हुआ के कुछ लड़किया और औरते उस शहर से दादर रवाना हो गयी है। 
  •              इनलोगो ने अब्दुल्लाह और उनके ज़रिये से हुक्मरान  इजाज़त ली।  जो चीज़े उनसे खरीदी थी उनकी क़ीमत  अदा की और उन्हें जाने की इजाज़त देदी। 
  •                  यह लोग दूसरे दिन दादर की तरफ रवाना हो गए। 

                                        अगला भाग ( हमदर्द नाज़नीन )


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