fatah kabul (islami tarikhi novel) part 14

 सुराग  रसी......... 


             हिंदी का नाम अब्दुल्लाह  रखा गया। अब्दुल्लाह ने कहा। "अगर मैं इस बात को ज़ाहिर न करू के मैं मुस्लमान हो गया हु तो कोई हर्ज तो नहीं। 

सलेही :कोई हर्ज नहीं है। 

अब्दुल्लाह :मैं इसलिए अभी ज़ाहिर नहीं करना चाहता के यहाँ के लोग सब बुध मज़हब के पेरू और  मुसलमानो के खिलाफ है। मैं ऐसे बहुत से लोगो से वाक़िफ़ हु जो किसी अच्छे मज़हब की तलाश  है। मैं कोशिश करूँगा के वह भी मुस्लमान हो जाये। अगर वह मुस्लमान हो गए तो यहाँ का हुक्मरा भी मुस्लमान होजायेगा। 

सलेही :खुदा तुम्हे तुम्हारे इस इरादे में कामयाब करे। 

                  इल्यास को यह जानने का बड़ा इश्तियाक़ हुआ के वह कौन मुस्लमान था जो अरसा हुआ किसी की तलाश म आया था। चुनांचा उन्होंने अब्दुल्लाह दरयाफ्त किया। "जिस मुस्लमान का  आपने तज़करा किया उनका नाम आपको मालूम है। 

अब्दुल्लाह : नाम तो उन्होंने ज़रूर बताया था लेकिन ज़यादा अरसा गुजरने की  वजह से याद नहीं रहा। 

इल्यास : उनका नाम राफे तो नहीं था ?

अब्दुल्लाह : मुझे नाम बिलकुल याद नहीं रहा। 

इल्यास : कुछ शकल सूरत याद है ?

अब्दुल्लाह : शकल सूरत तो तुम मुसलमानो की एक सी होती है। 

इल्यास :कुछ यह मालूम हुआ हो के वह किस चीज़ की तलाश में थे। 

अब्दुल्लाह : उन्होंने यह नहीं बताया था। वह बच्चो से बड़ी मुहब्ब्बत करते थे। ख़ुसूसन छोटी लड़कियों से। अजब बात यह है के लड़किया उनसे जल्द मानूस हो जाती थी।  सैय्याह थे। हमारी ज़बान खूब जानते थे और  मज़हबी किताबे यानी तृप्तक भी पढ़ते रहते थे। 

इल्यास : वह दुबारा यहाँ नहीं आये ?

अब्दुल्लाह : हां वह यहाँ नहीं आये। बल्कि मैं उनसे मिलने दादर भी गया था।  वहा भी नहीं थे। मैंने पता लगाया के कोई मुस्लमान तो वहा नहीं आया था  .सबने ला इल्मी ज़ाहिर की। 

इल्यास : तब वह शायद दादर नहीं गए। 

अब्दुल्लाह : दादर तो गए होंगे लेकिन वहा ठहरे नहीं। मुमकिन है वह काबुल चले गए हो लेकिन तुम क्यू उन्हें दरयाफ्त करते हो ?

इल्यास : तक़रीबन पंद्रह बरस का ज़माना हुआ के मेरे चाचा इस तरफ आये थे वह वतन वापस नहीं गए। 

अब्दुल्लाह : मुझे उस मुस्लमान के यहाँ आने की ठीक मुद्दत भी याद नहीं है क्या वह भी सय्याहैत के लिए आये थे। 

इल्यास : नहीं बुध मज़हब की एक औरत वतन में गयी थी वह उनकी लड़की को अपने साथ ले आयी थी। अपनी लड़की की तलाश में यहाँ आये आये थे। 

                       अब्दुल्लाह को जैसी भूली हुई बात याद  आगयी हो। उन्होंने कहा  " मुझे याद आगया वाक़ई एक खूबसूरत सी औरत एक लड़की को साथ लायी। थी उस लड़की के खदो खाल अफगानी और ईरानी लड़कियों जैसे नहीं थी। वह निहायत  हसीन थी  .उसकी सुरत ऐसी दिलकश थी के जो कोई एक दफा देख लेता था देखता रह जाता था। वह ज़रूर अरब की नाज़नीन। थी 

इल्यास : वह लड़की मेरी मंगेतर और मेरे चाचा की बेटी थी। चाचा  तलाश  में यहाँ आये थे। उस वक़्त मैं  बहुत छोटा   था। 

अब्दुल्लाह : तुम्हारी बाते सुन  कर मेरा दिमाग  रोशन होता जाता। है  भूली हुई बाते याद आती   है। उस औरत से  उस लड़की के   मुताल्लिक़  दरयाफ्त   किया था। उसने मुझे बताया था के उस लड़की की सिर्फ माँ  ज़िंदा थी  वह और लड़की दोनों बुध  भगवान् के मज़हब में दाखिल हुए थे। क़ज़ाए इलाही से उसकी माँ चंद रोज़ बीमार रह कर फौत हो गयी थी। मरते वक़्त उसने उस लड़की का हाथ मेरे हाथ में  पकड़ा दिया था। मैं उसे लेकर यहाँ  चली आयी। 

इल्यास  जोश में आकर कहा  : "उसने झूट कहा था "

अब्दुल्लाह : मैं उसी वक़्त समझ गया था के वह झूट बोल रही है उसकी आँखे उसकी ज़बान से मुताबिक़त नहीं कर रही थी। मैंने उस लड़की को उससे लेना चाहा  क़ीमत इतनी मांगी के मैं  दे न सका। 

इल्यास : क्या यहाँ बरदा फरोशी होती है?

अब्दुल्लाह : आम तौर पर तो नहीं लेकिन क़ानूनन मुमनात  है। मगर उसे  बेटी बनाने के लिए खरीद रहा था वह शायद उस बात को समझ गयी थी   इसलिए उसने उसके बदले में चाँदी देने का   मुतालबा किया था। 

इल्यास :  तब उसने ज़रूर उसे बेच डाला होगा। 

अब्दुल्लाह :यक़ीनन वह बड़ी हरीश और तमा थी। 

इल्यास : मगर वह बुध मज़हब की मुबल्लिग बताई जाती थी। 

अब्दुल्लाह : थी वह मुबल्लिगे ही। 

इल्यास : क्या मुबल्लिगे भी हरीश होती है ?

अब्दुल्लाह : पहले तो शायद मैं  यह बात न कहता  जबकि मैं मुस्लमान हो गया हु। बे खौफ  बुध मज़हब के भिक्षु  मर्द हो या औरत लालची और   बदनीयत होते है। अगरचे  नहीं होते लेकिन ज़्यदा तर ऐसे ही होते है। 

इल्यास : तुमने  औरत और लड़की को नहीं देखा। 

अब्दुल्लाह : नहीं  हालके उस लड़की को देखने की तमन्ना एक महीना में कई कई मर्तबा  में पैदा हुई और मैं दादर और काबुल भी  गया लेकिन मुझे वह औरत न मिली। 

इल्यास : लेकिन अगर वह ज़िंदा है। तो इंशाल्लाह मैं उसका सुराग लगा कर रहूँगा। 

अब्दुल्लाह : अगर वह  ज़िंदा है तो इस वक़्त हुसन और खूबसूरती नाज़ व नज़ाकत दिल रिहाई और रानाई में उसका जवाब नहीं होगा। लेकिन मैं तुम्हे मुतनब्बा  करता हु के तुम किसी और के सामने उस लड़की का ज़िकर  क्यू के लोग फिर तुम्हे ताजिर नहीं जासूस समझेंगे। और उस मुल्क में जासूसों को क़तल की सजा दी जाती है।  तुम यक़ीनन कर डाले जाओगे। 

इल्यास : माफ़ करना मैं वक़्त  जोश में कुछ  अज़ खुद  गया। इंशाल्लाह आईन्दा एहतियात करूँगा। 

अब्दुल्लाह : अगर तुम उसे तलाश कर रहे हो तो अपनी ज़बान में ताला  डाल लो। मेरा ख्याल है के तुम्हारे चाचा जो अपनी बेटी को तलाश करने आये थे  ज़रूर मारे गए है उन्होंने लोगो से बेटी के मुताल्लिक़ मालूमात हासिल करनी चाही होंगी। किसी ने  उनकी मुखबरी करके उन्हें पकड़वा पकड़वा दिया और वह क़तल कर दिए गए। 

                     इल्यास को फिर जोश आगया। उन्होंने जोशीले लहजे में कहा "अगर वह क़तल कर दिए गए होंगे तो मैं खुदा की क़सम उनका भी इन्तेक़ाम लूंगा। 

            अब्दुल्लाह ने उनकी तरफ देख कर कहा "फिर तुम्हे जोश आगया "

इल्यास :क्या करू चाचा की क़तल की खबर सुनने से जोश आगया। मगर अब ज़रूर एहतियात रखूँगा। काश मुझे वह औरत मिल जाए। 

अब्दुल्लाह : फिर तुम ऐसी बाते करने लगे। 

इल्यास : यह तो मैं तुम्हारे सामने कह रहा हु। 

अब्दुल्लाह : मेरे सामने भी न कहो। 

इल्यास : बहुत अच्छा तुम्हारे सामने भी न कहूंगा। 

अब्दुल्लाह : अगर वह औरत अभी ज़िंदा है तो अधेड़ उम्र की होगी।  और चुके वह जवानी में काफी हसीन थी इसलिए अब भी खूबसूरत होगी। अगर  आजाये तो अब भी उसको पहचानना कुछ मुश्किल न होगा। 

इल्यास : खुद  मिल जाए। 

अब्दुल्लाह : अगर वह मिल जाए तो उस लड़की  का पता आसानी से चल जाये। अब मेरी दरख्वास्त है के आईन्दा भी तुम लोग चंद रोज़ यही क़याम करो। 

                   इल्यास ने सलेही की तरफ देखा। सलेही ने कहा "कल अपने फ़रमाया था के शहर दादर के धार में दुआ मांगने की तक़रीब अमल में आने वाली है। और वहा मुल्क की माया नाज़ हसीन व नाज़नीन औरते  जमा होंगी। मुमकिन है इल्यास के मंगेतर उन लड़कियों में आजाये या वह औरत मिल जाए जो उसे लायी थी इसलिए हमें यहाँ न रोकिये। 

                 अब्दुल्लाह  कुछ कहना चाहता था के एक सवार  दादर की तरफ से घोड़ा दौड़ाये आता नज़र आया। क़रीब आकर जब उसने अब्दुल्लाह को देखा तो वह घोड़ा से उतर  के उनके क़रीब आया और बोलै। "मैं आप ही के पास जा रहा था। "

अब्दुल्लाह : किसलिए ?

सवार : मैं डाक लेकर गया था  .जब चौकी पर डाक डी कर लौटा  तो घोड़ा बे काबू हो कर कर जंगल में घुस गया। कुछ  दूर जाकर मुझे एक  झोपड़ी  मिली। उस झोपड़ी में  एक औरत बेहोश पड़ी थी। शायद उसे बुखार था। मैंने घोड़े से  उतर कर उसकी देख भाल की। उसे होश आगया। उसने  मुझसे पूछा मैं  कहा जा रहा हु। मैंने  बताया। उसने  कहा "तुम वहा के सीपा सालार को मेरे पास बुला लाओ "मैं उसी वक़्त चल पड़ा और  यहाँ   पंहुचा। 

अब्दुल्लाह : उस औरत का कुछ हुलिया  बयान करो। 

सवार : वह अधेड़ उम्र की औरत है। अब भी बड़ी खूबसूरत है। 

                   अब्दुल्लाह  इल्यास   की तरफ देखा और कहा "मुमकिन है वही हो मैं जाकर देखता हु। 

         सवार ने हैरत से अब्दुल्लाह को देखा।  अब्दुल्लाह उठ खड़े हुए और घोड़े पर सवार हो कर सवार  के साथ चले। इल्यास ने चाहा के खुद भी उनके साथ चले मगर मस्लेहत मालूम न हुई रुक गए  और दुआ मांगने लगे के अल्लाह वह औरत वही हो जो राबिया को लेकर आयी थी। 


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