fataha kabul (islami tarikhi novel) part 10

जासूसों का काफला। .........

                       


                            इल्यास की माँ ने कहा  " राफे चले गए। मैं उनकी वापसी का  इंतज़ार करने लगी  .दिनों से हफ्ते  से हफ्तों गुज़र गए महीनो से साल गुज़र गए लेकिन वह नहीं आये  .शुरू शुरू में तुम कभी राबिया को  और राफे को याद कर लेते थे। पूछने लगते थे  राबिया कहा गयी  राफे कहा गए  .मै ठंडा साँस  भर कर चुप हो जाती। और जब तुम ज़्यदा इसरार करने लगते के मैं कह देती दोनों मुल्क हिन्द गए है। तुम पूछते कब  आएंगे। मैं क्या जवाब देती। लेकिन बच्चे अपने हर सवाल का तसल्ली बख्श जवाब चाहा करते है। आखिर मैं कह देती  जब खुदा को मंज़ूर है आ जायँगे। इससे तुम्हारी तसल्ली तो न होती लेकिन तुम मान जाते। 

  • रफ्ता रफ्ता तुम उन दोनों को भूलने  लगे। मैंने तुम्हारी तालीम का बंदोबस्त किया। तुम उस शगल में लग गए। मै तुम्हारी तालीम व तरबियत में मसरूफ हो  कर उन दोनों को भूलने की कोशिश करने लगी। तुम बच्चे थे इसलिए तुम तो सब कुछ भूल गए। मगर मैं न भूल सकी। दोनों की याद कांटे की तरह खटकती रही। दीन तो खैर जो तो गुज़र जाता  लेकिन  रात मुश्किल से गुज़रती।  बिस्तर पर पड़ते ही राबिया राफे याद आजाते  घंटो पड़ी सोचा करती के न मालूम राबिया कहा होगी  किस हाल में होगी। राफे ज़िंदा है या मर गए। एक यह अजीब बात है के दिल इस बात को नहीं  मानता के इन दोनों  कोई मर गया। बल्कि यक़ीन है के दोनों ज़िंदा है 
  • बेटा !अगरचे इस वाक़ेया को पन्द्रा साल गुज़र गए है लेकिन अब तक नहीं भूली। मजूझे ऐसा मालूम होता है के जैसे छह महीने या साल भर गुज़रे है। तुम अलबत्ता भूल गए हो। यह है वह राज़ जो अब तक  मैं  तुमसे छुपाये   हुई थी। तुम्हारी मंगेतर और तुम्हारे चाचा काबुल गए है। मुझे यक़ीन है के दोनों वही है या तो राफे को राबिया का अभी तक पता चला या  नहीं मगर वह उसे हासिल करने पर क़ादिर नहीं  हुए है। इस फ़िक्र में हु के उसे काबू में करके ले आये। 
  • मैं तुम्हे इसीलिए काबुल भेजना चाहती हु के तुम वहा जाकर अपने चाचा और मंगेतर की भी सुराख़ रसानी करो। अगर तुम्हारी कोशिशों से वह दोनों या उनमे से कोई भी मिल जाये तो मुझे इत्मीनान व सुकून हासिल हो जाये  .या  मैं कह सकती हु बेटा के राबिया इस वक़्त रश्क हूर होगी। ऐसी हसीं जिसका दुनिया में जवाब न मिलेगा  .अगर वह औरत भी हाथ  आजाये जो उसे ले गयी है तो बहुत अच्छा हो। 
  • इल्यास: अगर वह हाथ आजाये और मैं उसे यहाँ ले  आऊं तो तुम उसके साथ क्या करोगी ?
  • अम्मी : मैं उससे इन्तेक़ाम लुंगी। उसने मेरे दिल को दुखाया है जिसने पन्द्रह साल मुझे बेचैन कर रख्हा है। मैं उसे बेचैन और तड़पते देखना चाहती हु। 
  • इल्यास : लेकिन अम्मी जान उसने जो कुछ किया दिल से मजबूर हो कर किया वह राबिया को प्यार करती थी। उसे ख्याल हुआ के वह राबिया से जुड़ा होकर रूहानी तकलीफ उठाएगी इसलिए वह उसे अपने साथ ले गयी। किसी बुरी निय्यत से तो उसने ऐसा नहीं किया?
  • अम्मी : मैं भी उससे ऐसा इन्तेक़ाम नहीं लेना चाहती हु जिससे उसे जिस्मानी अज़ीयत पहुंचे  बल्कि जिससे दर्द में मैं मुब्तिला हु  उसी में उसे देखना चाहती हु।
  • इल्यास : क्या खबर है के वह औरत ज़िंदा है या मर गयी। 
  • अम्मी : `मेरा ख्याल है के वह भी ज़रूर ज़िंदा होगी  उस वक़्त उसकी उम्र कुछ ज़्यदा नहीं थी। २५ साल की होगी अब उसकी उम्र ४० साल के क़रीब हुई होगी। 
  • इल्यास : जहा मैं  राबिया और राफे का सुराख़ लगाउंगा  वहा उसे भी तलाश करूंगा। लेकिन उसके चेहरे में कोई खास अलामत शनाख्त की हो। 
  • अम्मी : कोई खास बात मैंने उसके  चेहरे में नहीं  देखी थी। अलबत्ता उसकी सूरत बड़ी दिलकश थी। आंखे  बड़ी बड़ी थी। पेशानी के बिच में बिंदी  लगाती थी। 
  • इल्यास : अगर राबिया और राफे मिल गए तो शायद उसका भी पता चल जाये। 
  • अम्मी : और राफे के दोस्त  इबादुल्लाह का भी पता लगाओ। 
  • इल्यास : क्या इबादुल्लाह भी वापस नहीं आये ?
  • अम्मी : वह एक या डेढ़ साल बाद आये थे। उन्होंने बताया था के वह और राफे काबुल तक पहुंच गए थे। उस औरत का वहा तक सुराख़  लगाया था। राबिया भी उसके साथ थी लेकिन उसने राबिया को वहा नहीं देखा। 
  • इल्यास : क्यू उन्होंने घरो में घुस कर तलाश किया था। 
  • अम्मी : वहा घरो में घुसने की ज़रूरत नहीं बेटा। मालूम यह हुआ है के उस क़ौम में पर्दा नहीं है औरते बेनक़ाब और बेहिजाब और बाजार में आती जाती है। उन्होंने वहा की हर औरत और हर लड़की को देखा लेकिन न वह औरत मिली न राबिया। 
  • इल्यास :अम्मी ! क्या उस मुल्क में पर्दा का रिवाज नहीं है ?
  • अम्मी : बिलकुल नहीं। औरते और मर्द हर तक़रीब और हर मेला में और हर तेहवार में एक जगह जमा होते है कोई किसी से पर्दा नहीं करता। 
  • इल्यास :अजीब मुल्क है और अजीब लोग है। 
  • अम्मी : अब तो अम्मी जान मेरा यह दिल चाहता है के मैं उड़ कर काबुल  पहुंच जाऊं। 
  • अम्मी : एक बात ख्याल रखना बेटा  किसी औरत के दाम फरेब में न आना। सुना है वहा की हसीं लड़किया और खूबसूरत औरते मर्दो को  अपने जाल में  फाँस कर अपने मज़हब में दाखिल कर लेती है। 
  • इल्यास ; क्या कोई मुस्लमान बुतपरस्त  बन सकता है ?
  • अम्मी : जानती हु नहीं बन सकता। नौजवानी का जज़्बा दीवाना बना देता है। 
  • इल्यास : जवानी उन लोगो को दीवाना बना सकती है जो अपने मज़हब से वाक़फ़ियत न रखते हो। लेकिन जिन्हे मज़हब से वाक़फ़ियत  है। जो खुदा से डरते है  जो दीनवी ज़िन्दगी  को  चाँद रोज़ा जानते है वह हरगिज़ नहीं बिक सकते। 
  • अम्मी : तुम सच  कह रहे हो बेटा।  यह बात हमेशा याद रखना के शैतान इंसान की घात में लगा रहता है। वह उसे बहकाने  फुसलाने और गुनहगार बनाने में एड़ी छोटी का ज़ोर लगा देता है। दौलत की तमा सल्तनत की हवस इज़्ज़त की छह और  हुसन  की तलब  यह सब शैतानी तरकीबे है। जो उन में से किसी तरग़ीब में आज्ञा उसने दुनिया के लिए  दीन  को खो दिया। और जिसने दीन को मज़बूती से पकड़  रखा उसने सब कुछ पा लिया। 
  • इल्यास : मैं  इन सब नसीहतों पर अमल करूंगा अम्मी जान। 
  •               उसी रोज़ शाम के वक़्त अमीर अब्दुल्लाह बिन आमिर ने उन्हें  तलब किया। वह खुश खुश उनके पास पहुंचे। उस वक़्त अमीर के पास तीन आदमी बैठे थे। तीनो  अधेड़ उम्र के थे। इल्यास ने उनके पास जाकर सलाम किया। अमीर अब्दुल्लाह ने सलाम का जवाब  दे कर कहा :"आओ अज़ीज़ इल्यास बैठो। 
  •                इल्यास एक तरफ बैठ गया। अमीर ने कहा :"हमने चार आदमी काबुल जाने के लिए मुन्तख़ब किये है। तीन इस वक़्त यह हमारे पास बैठे है। एक तुम हो लेकिन तुम बहुत कमसिन हो हमारा  दिल नहीं चाहता के तुम्हे वहा भेजे। 
  • इल्यास : मैं  कमसिन ज़रूर हु लेकिन दिल का कमज़ोर नहीं हु। मैंने जिस वक़्त काबुल जाने की दरख्वास्त की अमीर की खिदमत  में पेश की थी उस वक़्त मुझे मालूम नहीं था के अम्मी मुझे वहा क्यू भेज रही है। मगर अब मुझे मालूम हो चूका है अरसा पंद्रह साल का हुआ जब  मेरी चाचा ज़ाद बहन को एक हिंदी औरत अगवा करके ले गयी थी। मेरे चाचा उसकी तलाश में गए। दोनों अब तक वापस नहीं आये। वहा जाकर मैं उन का  सुराख़ लगाऊंगा।
  •               अमीर को यह सुन कर बड़ा ताज्जुब हुआ। इल्यास ने उन्हें मुफ़स्सल दास्ताँ  सुनाई  .अमीर ने कहा :"तब तो ज़रूर जाओगे। यह तुम्हारी मदद  करंगे। यह लोग सौदागारो के भेस में जायँगे तुम भी उनके साथ रहोगे। सौदागरी करना और सुराख़ लगाना। तुम तैयार हो गए हो। 
  • इल्यास : जी हां मैं बिलकुल तैयार हु। 
  • अमीर : अच्छा तो कल तुम रवाना हो  जाओगे। गालिबन तुम तीनो को जानते होंगे। 
  • इल्यास : अच्छी तरह  जानता हु। उससे भी वाक़िफ़  यह सौदागर करते है। 
  • अमीर : इसलिए उन्हें भेजा जा रहा है। इतना अरसा इसी तलाश व जुस्तुजू में गुज़रा के किन चीज़ो की काबुल और वहा के शहरो में ज़रूरत होती है  उन ईरानी सौदागरों  से जो काबुल जाते रहते है  मालूमात हासिल करके गौरनमेंट इस्लामिया की तरफ से चीज़े खरीद दी गयी है। हमारी ख्वाहिश है के तुम लोग बड़े शहरो में एक जगह रहना। दिहात में दो दो चले जाना। लेकिन शाम को चारो एक जगह इकट्ठे हो जाया करना। अगर खुदा न  ख्वास्ता तुम में से कोई किसी आफत में मुब्तेला हो जाये तो बाक़ी लोग फ़ौरन वापस चले आये। 
  •             उन लोगो को अमीर ने रुखसत किया। दूसरे रोज़ यह मुख़्तसर काफला काबुल की तरफ रवाना हो गया। 

                                                  अगला भाग (मर्ज़बान की अदावत )




 ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,