Fatah kabul (islami tarikhi novel)part 4
मुल्क हिन्द
- अम्मी ने कहना शुरू किया "बेटा अगले रोज़ राफे एक औरत को लेकर अपने साथ लाये बड़ी खूबसूरत थी. उसकी चाँद सी पेशानी पर बिंदी लगी हुई थी। साड़ी बांधे थी। कानो में बुँदे थे। जिसमे क़ीमती मोती लटक रहे थे। पैरो में चप्पल थी। उसकी सूरत से बड़ी शान ज़ाहिर थी। उसका लिबास देख कर मुझे बड़ी हैरत हुई क्यू के उससे पहले मैंने कभी ऐसा लिबास नहीं देखा था। वह फ़ारसी ज़बान बोल लेती थी।
- राफे ने कहा :यह है वो औरत जिसका मैंने ज़िक्र किया था।
- मैंने उस औरत को ताज़ीम की उसे बिठाया उसी वक़्त राबिया आगयी। वो हैरत से उस औरत को देखने लग गयी। औरत ने भी उसे देखा। उसकी आंखे और चेहरा कह रहे थे के उसने राबिआ को पसंद किया। और उसे देख कर वो हैरान हो रही है। आखिर उससे रहा न गया उसने बढ़ कर राबिया का हाथ पकड़ कर कहा :आओ बेटी ऐसा मालूम होता है के मैंने पहले भी कही देखा है।
- राबिआ ने कहा "मगर मैंने तुम्हे कभी नहीं देखा।
- औरत: ठहरो मई सोच लू मैंने तुम्हे कहा देखा है।
- वो माथे पर हाथ रख कर सोचने लगी वह सोच रही थी और हम सब उसे देख रहे थे। राबिआ भी देख रही थी अचानक उसने निगाहे उठा कर कहा :"याद आगया मैंने तुम्हे ख्वाब में देखा था।
- राबिआ बेइख्तियार हंस पड़ी उसने कहा। ख्वाब में देखा था ?
- औरत:हां ख्वाब में देखा था तुम एक पहाड़ी पर खड़ी थी बेटी अक्सर ख्वाब किस क़दर सच्चे होते है।
- राबिआ : मगर मई पहाड़ी पर कहा खड़ी हु।
- औरत :तुम ऊपर ही खड़ी हो।
- वह राबिआ को प्यार करने लगी और फिर उसे गोद में लेकर बैठ गयी। उसी वक़्त तुम आगये। तुम्हें हैरत से उस औरत को देखा। वह तुम्हे देख कर चौंक गयी। तुमने आते ही पूछा यह कौन है ?
- मैंने बताया "यह एक परदेसन है"
- इल्यास ने कहा :"यह तमाम वाक़या मुझे याद आगया। उस औरत की आंखे बड़ी बड़ी थी। सर के बाल भूरे थे।
- अम्मी :"हां काश वह औरत हमारे यहाँ न आयी होती वह बड़ी मनहूस क़दम साबित हुई......हां तो मै उस औरत से बाते करने लगी। राफे चले गए। तुम मेरे पास बैठ गए। मैंने उससे पूछा "तुम कहा की रहने वाली हो।
- उसने जवाब दिया "तुम्हारे पड़ोस में एक मुल्क ईरान है। ईरान से मिला हुआ काबुल। है काबुल की रहने वाली हु।
- काबुल भी कोई मुल्क है ?
- वह :है मुल्क है। मगर कुछ ज़ायदा बड़ा नहीं है। दरअसल काबुल बार्रेअज़ाम हिन्द का एक हिस्सा है।
- मैं : यह बारेआज़म हिन्द कहा पर है।
- वह :काबुल से जुनूब व मशरिक़ की तरफ कोह हिमालय से समुन्दर के किनारे तक फैला हुआ है. लाखो मुरब्बा मील में बस्ता है। करोड़ो आदमी आबाद है। पहाड़ की ऊँची चोटिया बर्फ से ढकी रहती है। उस पहाड़ के मगरबी कोने में काबुल है। उसके जुनूब में समंदर है। उस समंदर को बहिरा हिन्द कहते है. उस समंदर में कुछ दूर एक छोटा सा जज़ीरा है। जिसे जज़ीरा लटका कहते है। मगरिब में बलूचिस्तान और बहिरा अरब वाक़े है। मशरिक़ में बर्मा का मुल्क है। यह बार्रे आज़म निहायत ही फ्रख है। और क़ुदरत ने उसमे साडी दुनिया की बाते एक ही जगह जमा कर दी है।
- ऐसे पहाड़ भी है जिन पर हमेशा १२ महीने बर्फ पड़ती रहती है। और वह बर्फ पोश रहते है।इतने ऊँचे है के कोई आजतक उनकी चोटी पर नहीं पहुंच सका। मालूम नहीं क़ुदरत के क्या क्या अजीब मौजूद है। वह इसकदर सर्दी होती है के यूरोप में भी नहीं होती। उन पहाड़ो का ज़ेरे हिस्सा नियाहत सर सब्ज़ व शादाब है. अजीब अजीब बोतिया होती है।बाज़ ऐसी बूटिया है जो हर मर्ज़ की दवा है। उनमे शिफा ही शिफा है। एक मर्तबा तो मरने वाले इंसान को भी ज़िंदा करके बिठा देती है। बाज़ मुख्तलिफ अमराज़ में काम आते है। बाज़ टूटी हुई हडिया को जोड़ देती है। बाज़ दीहातों का कष्ट बना देती है। बाज़ ऐसी है जो रांग को चांदी और तांबे को सोना बना देती है।
- मै हैरत से उसकी बाते सुन रही थी। मेने कहा :"क्या तुम यह सच बयान कर रही हो ?"
- उसने कहा :बिलकुल सच कह रही हु ईश्वर ने कोह हिमालय को मख़ज़न राज़ बनाया है। कोई उसके राज़ो को नहीं जनता। उसमे जो जड़ी बूटिया है कोई उनके ख्वास से पूरी तरह वाक़िफ़ नहीं है। उस पहाड़ में ऐसे ऐसे बन है। जिनमे दुनिया भर के जानवर नज़र आते है। दरिंदे,परिंदे,चरिन्दे सब मौजूद है। कश्मीर दुनिया की जन्नत है। ऐसा पुर बहार खित्ता दुनिया के गोशा में नहीं है। दमन कोह से आगे हमवार मैदान है जो हज़ार मील में फैले हुए है। उन मैदानों में छोटे छोटे बेशुमार नदिया और बड़े बड़े ला तादाद दरिया बहते है। उन नदियों और दरियाओं की वजह से तमाम मैदान सब्ज़ा से ढके हुए है। खेती खूब होती है। साल में तीन फसले होती है। एक फसल खरीफ दूसरी रबी और तीसरी ज़ायेद कहलाती है। गेहू उम्दा क़िस्म का पैदा होता है। जौ ,चना ,बाजरा ,मक्की ,मूंग ,अरहर,तिल ,गुड़ और खुदा जाने क्या क्या पैदा होता है। मेवे और फल कसरत से होते है। हर मौसम में एक न एक फल पैदा होता रहता है। बाग़ात कसरत से है। रेगिस्तान भी है। ऐसे रेगिस्तान जहा पानी का नाम व निशान नहीं है। अरब की रेगिस्तान की तरह सैंकड़ो मील में फैलते चले गए है। उन रेगिस्तानों में खुश्क पहाड़ बिलकुल झुलसे हुए मालूम होते है। वहा इस गज़ब की गर्मी होती है के इंसान तेज़ धुप और गरम हवा में झुलस जाते है। ऐसे जंगल भी है जिनमे दाखिल हो कर इंसान भटकता रहता है। और अगर वो रास्ता से वाक़िफ़ नहीं होता तो वहा से नहीं आ सकता। वही भटकते भटकते मर जाता है। किसी ने उन जंगलो की छान बीन नहीं की। कोई नहीं जनता उन जंगलो में क़ुदरत के क्या राज़ पोशीदा है।
- छोटी छोटी नदियों और बड़े बड़े दरियो के किनारे पर गाँव क़स्बे और शहर आबाद है। उस बार्रे आज़म हिन्द के कई सूबे है। हर सूबे की ज़बान अलग है।वहा की बाशिंदो की सुरते अलग है। तबई हालत अलग है। माशरत अलग है पोषिष अलग है। गरज़ हर चीज़ अलग है।
- मैं उस औरत की बाते सुन कर बड़ी हैरान हो रही थी। मैंने कहा :"आज तुमने अजीब बाते बयां की है।
- उसने कहा :हक़ीक़त यह है के बार्रे आज़म हिन्द के बारे में कुछ ज़यादा बयां न क्र सकीं। मुझमे क़ुदरत बयां नहीं है। वह एक अलग ही दुनिया है। ऐसी दुनिया जिसे देखने वाला हैरान रह जाता है।
- मैं :क्या वह खित्ता मुल्क शाम से भी ज़ायदा अच्छा है।
- वह :शाम और मिस्र उसके सामने कोई हक़ीक़त नहीं रखते जो इंसान चाहे वो किसी मुल्क का बाशिंदा हो जब उस मुल्क को देख लेता है तो वहा से आने का उसका जी नहीं करता। वहा दूध की नहरे बहती है। उस कसरत से दूध होता है।के मुसाफिर जिस बस्ती में भी जाता है उसकी तावज़ा दूध से की जाती है। घी पानी कीतरह खाने के साथ दिया जाता है। वहा के लोग बड़े फारिग अलबाल और मार्फा हाल है।
- मैं :सुना है वहा चांदी और सोना भी अफरात है।
- वह :सोने और चांदी का कोई हद व शुमार नहीं है। गरीब आदमियों के पास भी मनो चांदी और सेरो सोना होता है। वहा की औरते चांदी में सफ़ेद और सोने में ज़र्द रहती है। ईश्वर ने उसे दौलत की कान बनाया है।खाम पैदावार इस कसरत से होती है के एक साल की पैदावार वहां के बाशिंदो को कई साल के लिए काफी होती है। वहा कहत का अंदेशा नहीं होता लोग कसरत से मवेशी पालते है। मुल्क के हर हिस्से में ज़राअत की जाती है। हर बस्ती में आधी से ज़्यदा ज़मीने चरागाह के तोर पर छोटी रहती है। अगर तुम उस मुल्क को देखो तो मेरा दावा है के कभी वहा से वापस आने की ख्वाहिश न करो ।
- मैं :मगर वहा जाना भी क्या आसान है ?
- वह :कुछ ज़्यदा मुश्किल भी नहीं है। आखिर हम लोग भी यहाँ आये है।
- मैं :हम में से कोई बगैर खलीफा की इजाज़त के किसी गैर मुल्क में नहीं जा सकता।
- मझे दफ्तान ख्याल हुआ के मैंने उसकी कोई मदारत तो की नहीं। मई जल्दी से उठी और अंगूर लेकर उसके सामने पेश किये। उसने बेतकल्लुफ खाने शुरू क्र दिए और मझे कुछ देर बाद अगले रोज़ आने का वादा कर के चली गयी।
अगला पार्ट (अजीब मज़हब )
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