fatah kabul (islami tarikhi novel) part 7

 गौतम बुध। .. 


  • इल्यास की अम्मी ने कहना शुरू किया। "उस औरत ने बयान किया के गौतम बुध ने हिन्दुओ की तमाम किताबे गौर से पढ़ी। ख़ुसूसन दर्शन शास्त्र लेकिन उन किताबो के पढ़ने से उनकी तसल्ली नहीं हुई। वह बचपन ही से हर बात को सोचने और समझने की कोशिश करते थे। जों जों उनकी उम्र और उम्र के साथ साथ इल्म पढता किया उनके गौर व फ़िक्र करने की सलाहियत भी बढ़ती गयी। 
  • जब वह जवान हुए और उन्होंने देखा के बाज़ इंसान खुश हाल है बाज़ मालदार है। बाज़ हुक्मरान है। यह लोग खूब ऐश व इशरत करते बड़े आराम से ज़िन्दगी गुज़ारते है। लेकिन ज़्यदा तर लोग गरीब है। मज़दूर है। रात दिन मेहनत करते है। और फिर भी अपना और अपने अहल व अयाल का पेट नहीं पाल सकते। आये दिन बीमार और रोगी रहते है। बड़ी तकलीफ और मुसीबत से दिन गुज़ारते है तो उनकी तकलीफो और मुसीबतो को देख कर वह प्रगंडा रहने लगे। उनका ख्याल और भी पुख्ता होता चला गया के इंसान ने पिछले जन्म में अच्छे और बुरे जो अमाल किये उनके मुताबिक़ उस जन्म में राहत और तकलीफ प् रहा है। उससे वह और भी गौर व फ़िक्र में मुब्तिला रहने लगे। 
  • इल्यास :लेकिन अम्मी जान उन्होंने यही क्यू सोचा के लोग पिछले जन्म के आमाल के नतीजा में आराम या तकलीफ उठा रहे है। क्या उस वक़्त जब दुनिया पैदा हुई सब ही अमीर और मालदार थे। 
  • अम्मी :उस औरत का अक़ीदा यही था। 
  • इल्यास :मगर वह ज़माना अगर वह ज़मान ऐसा था तो बहुत ही बुरा ज़माना होगा। क्यू के जब सब लोग अमीर थे उनका काम कोण करता होगा और अगर हर काम खुद ही करता होगा तो उन्हें आजकल सा ऐश आराम हासिल न होगा। उस ज़माने में सब ही गरीब होंगे और वह एक दूसरे के काम करते रहते होंगे। 
  • अम्मी :चुके मैं उनकी बातो को लयेनि और फ़ुज़ूल समझी इसलिए मैंने उससे इसके मुताल्लिक़ ज़्यदा गुफ्तुगू नहीं की वरना यह मसला ऐसा है के कट जजती हो ला जवाब हो सकता है। 
  •          गरज़ गौतम बुध के गौर व खोज की हालत दिन ब दिन बढ़ती गयी। वो अक्सर औक़ात सर झुकाये सोचते रहते और अक्सर ठंडा साँस भर कर कहने लगते। क्या किसी तरीक़ा से इंसान दीनवी तकलीफ से आज़ाद हो सकता है। 
  •                 जब उनकी  उम्र ३० साल की हुई तो एक रात को उनपर कुछ ऐसी हालत तारी हुई के राज पाट और अज़ीज़ व अक़ारिब सब को घर छोड़ कर घर को खैर बाद कहा और जंगल में निकल गए वहा वह दुनिया और दुनिया वालो में दूर रह कर रियाज़त करने लगे। वह निजात का रास्ता तलाश कर रहे थे। उन्होंने वेदो का मुताला किया। मगर उनमे उन्हें कोई बात ऐसी नज़र न आयी है जिसे इख़्तियार करके वह निजात हासिल कर सके। चुनांचा उन्होंने वेदो को इल्हामी किताब मैंने से इंकार कर दिया। फिर उन्होंने दर्शन किताबो को खूब पढ़ा। मगर उनसे भी दिली तस्कीन नहीं हुई। उन्होंने सोचा के खाने पीने से नफ़्स बढ़ता है। ख्वाहिशे बढ़ती है। और ख्वाहिशो के बढ़ने से इंसान बुरे काम करने लगता है। अगर इंसान खाना पीना छोड़ दे तो नफ़्स सर कशी न करे तो ख्वाहिश पैदा न हो। और जब ख्वाहिश पैदा न हो न हो तो इंसान बुरे काम न करे। जब बुरे काम ही न करे तो अगले जन्म में तकलीफ और मुसीबते ही न उठाये। 
  •                 चुनांचा उन्होंने खाना तर्क कर दी। फल वगेरा कहते और कुछ पी लेते छह साल उन्होंने इसी तरह बसर किये लेकिन इस नफ़्स कशी और तर्क खाना से भी कुछ न हुआ। बावजूद ज़बरदस्त रियाज़त करने के बाद उनकी मतलब बरारी न हुई। 
  • इल्यास ; अम्मी जान वह रियाज़त किया करते थे ?
  • अम्मी :उन बातो को सुनने से जो ख़यालात तुम्हारे दिल में पैदा हो रहे है वही मेरे दिल में पैदा होते रहे थे और मैं उस औरत से से सवालात करती रहती थी। वह कहती थी के उनका तप यानि रियाज़त यह थी के वह चार जानो बैठ जाते। आंखे बंद कर लेते और हाथ नाफ के ऊपर उस तरह रख लेते जिस से पुतलिया की तरफ रहती और किसी धयान में मुब्तिला हुए जाते घंटो इसी तरह बैठे रहते। 
  •  इल्यास :शायद इसी तरह खुदा की इबादत किया करते थे। 
  • अम्मी :खुदा के तो वह क़ायल ही न थे। मैं तो यह समझती हु के इस तरह बैठ कर वह सोचा करते थे के इंसान की तकलीफे किस तरह दूर हो हो सकती है। 
  •                 जब इस तरह मुद्दत गुज़र गयी और उन्हें कोई बात हासिल न हुईं तो वह गया में चले गए। और वहा एक दरख्त के साया में समाधि लगा कर बैठ गए। अरसा तक बैठे रहे। दफ्तन  उनका दिल रोशन हो गया उन पर हक़ीक़त खुल गयी। क़ुदरत का जो राज़ वह खोलने के दरपे थे वह खुल गया। शायद उन्हें इल्हाम हुआ के जिसको तकलीफ देने और ख़ेज़ा को तर्क करने से कोई फायदा नहीं है। बल्कि अगर इंसान अगर पाकीज़ा ख्याल साफ़ दिल और तमाम जानदारों पर रहम करने वाला हो तो निजात पा सकता है उन्हें यह यक़ीन हो गया के सच्चाई रहम और दिल की सफाई निजात के असली ज़राये है। 
  •                       चुनांचा  उन्होंने समाधि छोड़ दी। गौर व फ़िक्र करना तर्क कर दिया। और एक नए मज़हब की तब्लीग शुरू करदी। उनका मसलक यही था  की सफाई करो। सच बोलो और हर जानदार पर रहम करो। यह जानदार पहले तुम्हारी तरह इंसान थे। अपने बुरे आमालो की सजा में जानवर और दूसरे जानदार बन गए है। उन्हें न मारो। न सताओ वर्ना तुम भी उनके ही जॉन में आओगे और जिस तरह तुम आज उन्हें सताओगे उसी तरह कल तुम सताये जाओगे। उन्होंने नरवान पर बड़ा ज़ोर दिया बल्कि सच पूछो तो उनके मज़हब का दारोमदार ही नरवान पर था। 
  • इल्यास :नरवान किसे कहते है ?
  • अम्मी :नरवान उसे कहते है के इंसान अपनी जान को पाकीज़ा बना कर दुनिया की तमाम लज़्ज़तो और ऐश व राहत की ख्वाहिशो को तर्क कर दे। अगर नरवान हासिल हो जाये तो इंसान बार बार पैदा होने और मरने के जंजाल से छूट जाये। जब तक नरवान हासिल न हो उस वक़्त तक इंसान कभी अवागोन के चक्क्र से नहीं  निकल सकता। 
  •                           बुध का ख्याल था के दुनिया की ज़िन्दगी तकलीफो और मुसीबतो से भरी  और नफ़्स की ख्वाहिशो ही आदमी को अवागोन के जाल में फंसा देती है। इंसान उसी वक़्त नरवान प् सकता है जबकि उसे किसी क़िस्म की ख्वाहिश न रहे बल्कि ख्वाहिश का मिलान भी न रहे। 
  • खुदा की हस्ती के वह इसलिए क़ायल न थे के रूह और मादा को अब्दी और अज़ली समझते थे उनका अक़ीदा था के किसी चीज़ को कोई पैदा नहीं करता बल्कि खुद बखुद पैदा हो जाती है। और हर चीज़ जो पैदा होती है वह एक रोज़ खुद ही मर जाती है। उन्होंने ज़ात पात की तमीज भी उड़ा दी थी। कहते थे हर शख्स ख़्वाह वह किसी ज़ात का क्यू न हो नरवान हासिल करके निजात पा सकता है।  
  •                               उन्होंने अपने मज़हब के दो वसूल क़ायम किये है एक नरवान और दूसरा अहिंसा। मतलब किसी जानदार को सताना। उन्होंने यह भी बताया था के नरवान आठ तरीक़ो पर अमल करने से हासिल होता है। १)सही नज़र यानि किसी चीज़ पर बुरी नज़र न डाली जाये। बुरी नज़र से ही बुरी ख्वाहिश पैदा होती है। २)सही इरादा यानि इरादा में बुख्तगी होनी चाहिए जिन बातो को करने का इरादा करे उन पर अटल रहे। ३)सच बोलना। ४)दुरुस्त किरदार यानि चाल चलन अच्छा रखे आवारगी इख़्तियार न करे। ५)हलाल की। ६)सही वर्ज़िश। ७)ठीक याददाश्त। ८)सच्चा धयान उनका क़ौल था के नरवान हासिल करना हमारे अमाल पर मुंहजिर है। और नरवान हासिल करके हम निजात पा सकते है। 
  •                       गौतम बुध ने सबसे ज़यादा नरवान पर ज़ोर दिया था। नरवान हासिल करने के लिए जान को पाक बनाना ज़रूरी था। और जान को पाक बनाने के लिए तमाम बुरी बातो से परहेज़ करना ज़रूरी था। चोरी और बदकारी से बचना। दुसरो की बुराई न करना। किसी से नफरत न करना। बुरे अलफाज़ न निकलना ,जिहालत से दूर रहना। 
  •               चुके बुध के मज़हबी उसूल हिन्द वालो के मज़हब मिलते जुलते थे इसलिए लोग उनके मज़हब में दाखिल होने लगे। मगर बरह्मणो ने उनकी सख्त मुखालिफत की। उनकी मुखालिफत की वजह यह थी के हिन्द में बरह्मनो ने चार जाते ब्राह्मण,छत्री ,वेश और शूद्र क़ायम की थी। ब्राह्मण मज़हबी रहनुमा थे। छतरी हुकूमत करते थे। वेश तिजारत और लेन देन का काम करते थे और शूद्र सबकी खिदमत करते थे। 
  •                         गौतम बुध ने उनकी ज़ात पात की बंदिशों को दूर कर दिया। ब्रह्मणो को यह बात नागवार गुज़री उन्होंने बुध की मुखालिफत की लेकिन फिर भी बुध का मज़हब फैलता गया। बहुत से सेठ साहूकार राजा महाराजा बुध के मज़हब में दाखिल हो गए। यहाँ तक के खुद उनका बाप भी ुका पेरुकार बन गया। और उनके तमाम खानदान ने उनका मज़हब इख़्तियार कर लिया। 
  •                 बुध ने ताप्ती और गंधातक दरियाओं के संगम पर तरबीनी घाट के नज़दीक कृषि नगर नामी मुक़ाम पर वफ़ात पायी। 
  •                    बुध मज़हब और गौतम बुध के हालात उस औरत ने बड़ी देर में बयां किये थे मेने मुख़्तसर तुम्हे सुनाये है 

                                              अगल भाग   (लाबत चीन )

......................................................................................................................................................................