AQAAB PART 4
मोशन नक़वी साहब फोन रखकर कुर्सी पर ढह से गए...
"ख़ैरियत तो है? किसका फोन था?"
नौशाबा ने पूछा।
"नौशाबा, पिंडी चलने की तैयारी करो। अहसन को गंभीर रूप से घायल हालत में सीएमएच (Combined Military Hospital) ले जाया गया है। हमें तुरंत निकलना होगा। मैं पहली फ्लाइट से टिकट बुक करवाता हूँ, तुम फ़ातिमा को तैयार करो।"
वह फोन उठाते हुए बोले।
"डैड, मैं भी चलूँगा..."
उसामा ने कहा।
"तुम्हारी मौजूदगी से फ़ातिमा और ज़्यादा परेशान हो सकती है। वैसे भी तुम्हारे एग्ज़ाम पास हैं, बेहतर होगा कि तुम घर पर रहकर पढ़ाई पर ध्यान दो।"
"मैं आपके साथ चल रहा हूँ, यह फ़ाइनल है! वह मेरे भी चाचू हैं और मुझे उनसे मिलना भी है।"
वह गंभीर लहज़े में बोला।
"उसामा..."
मोशन नक़वी साहब उसे रोकना चाहते थे, लेकिन...
"नहीं डैड, मैं नहीं रुकूँगा। आप मेरी भी सीट बुक कराइए।"
उसने दो टूक कहा और अपने कमरे की ओर चला गया।
फ़ातिमा की बेचैनी...
फ़ातिमा का नाज़ुक दिल अपने बाबा के घायल होने की ख़बर सुनकर डूबा जा रहा था। उसकी आँखों से बेआवाज़ आँसू बह रहे थे। वह चुपचाप नौशाबा को देखती जा रही थी।
"फ़ातिमा बेटी, हिम्मत रखो। तुम्हारे बाबा ठीक हो जाएँगे। ऐसा करो, दो जोड़े कपड़े रख लो। एक-दो दिन में तुम्हारे अंकल अहसन को कराची हॉस्पिटल में शिफ्ट कर देंगे..."
नौशाबा उसे दिलासा दे रही थी।
इतने में मोशन नक़वी साहब कमरे में दाख़िल हुए।
"एक घंटे में हमें एयरपोर्ट के लिए निकलना है, सब तैयार हो जाओ।"
बोलते-बोलते उन्होंने फ़ातिमा के पास जाकर उसके सिर पर हाथ रखा।
"फ़ातिमा बेटी, हिम्मत रखो। अल्लाह सब ठीक करेगा।"
एयरपोर्ट की ओर...
एक घंटे के भीतर फ़ातिमा और नौशाबा घर से बाहर पोर्च में खड़ी कार के पास पहुँचीं। तभी फ़ातिमा की नज़र उसामा पर पड़ी और वह चौंक गई।
"उसामा, तुम आगे बैठो। नौशाबा, फ़ातिमा... जल्दी करो, देर हो रही है।"
मोशन साहब के कहते ही सभी कार में बैठ गए और सफ़र शुरू हो गया।
एयरपोर्ट पर...
एयरपोर्ट पहुँचते ही उसामा ने कार से उतरकर अपना स्पोर्ट्स बैग कंधे पर डाला, सनग्लासेस पहने, और टिकट हाथ में लिए अंदर चला गया।
उसे अंदर जाते देख, फ़ातिमा ने राहत की सांस ली और नौशाबा के साथ बाहर निकलकर अपना दुपट्टा ठीक करने लगी।
"आंटी, आपने मुझे स्कार्फ़ क्यों नहीं लेने दिया? अब देखिए, दुपट्टा टिका नहीं रह रहा..."
वह हवा में उड़ते दुपट्टे को बार-बार संभालने लगी।
"बेटा, तुम्हारे सिर पर लगे टाँके अभी ताज़ा हैं। स्कार्फ़ बाँधने से ज़ख़्म हरा हो सकता है। डॉक्टर ने कहा है कि इसे खुला रखो।"
नौशाबा ने उसे प्यार से समझाया और उसका हाथ थामकर आगे बढ़ गईं।
फ्लाइट के लिए तैयार...
उन्हें पहले इस्लामाबाद पहुँचना था और वहाँ से गाड़ी लेकर पिंडी सीएमएच जाना था।
वे सिक्योरिटी चेक के बाद फ्लाइट में पहुँच चुके थे। दो सीटें एक साथ थीं और दो अलग-अलग।
"फ़ातिमा, तुम यहाँ अपनी आंटी के साथ बैठो।"
मोशन साहब ने उसे इशारा किया।
"नहीं अंकल, प्लीज़! आप और आंटी साथ बैठें।"
फ़ातिमा ने औपचारिक लहज़े में कहा और एयर होस्टेस के साथ आगे जाकर विंडो सीट पर बैठ गई।
उसने सोच लिया था कि अब वापस नहीं आना है। वह इस परिवार पर अब और कोई एहसान नहीं लेना चाहती थी।
वह सीट पर टिककर आँखें बंद करके बैठ गई और अपने बाबा की सलामती के लिए दुआ करने लगी।
उसामा की नज़रें और फ़ातिमा का हमसफ़र...
उसामा हेडफोन लगाकर अपनी सीट पर बैठा था। वह सिर्फ़ और सिर्फ़ ज़िद में उनके साथ आया था। उसे फ़ातिमा से अजीब-सी ज़िद हो गई थी। वह हर हाल में उसे अपनी मिल्कियत बना लेना चाहता था, यह जताने के लिए कि "मैं उसामा हूँ, जो चाहे कर सकता हूँ!"
प्लेन टेक ऑफ़ कर चुका था। दो घंटे में वे इस्लामाबाद पहुँचने वाले थे। वह आराम से अपने दोस्त अली के भेजे हुए क्लास लेक्चर सुन रहा था, तभी उसकी नज़र दाईं तरफ़ गई और उसे ग़ुस्सा आ गया।
एक अजनबी लड़का फ़ातिमा के पास बैठा था और बड़ी दिलचस्पी से उसे देख रहा था।
फ़ातिमा, आँखें बंद किए बैठी थी। गुलाबी दुपट्टे से सिर ढका हुआ था, जिसके नीचे उसकी चमकती काली ज़ुल्फ़ें साफ़ नज़र आ रही थीं।
यह तय करना मुश्किल था कि दुपट्टा ज़्यादा गुलाबी था या फ़ातिमा का चेहरा...
देखते ही देखते उस लड़के ने मोबाइल निकाला और फ़ातिमा की तस्वीर लेने लगा।
उसामा को अपना खून खौलता हुआ महसूस हुआ।
यह उसकी बर्दाश्त की हद थी!
वह बेल्ट खोलकर उठा, बिना कुछ सोचे-समझे तेज़ी से फ़ातिमा की सीट की ओर बढ़ा, और उस लड़के को गिरेबान से पकड़कर एक ज़ोरदार घूँसा मार दिया!
उसके हाथ से मोबाइल छीन लिया।
पूरा प्लेन इस तरफ़ मतलब हो गया। एयर होस्टेस तुरंत आगे बढ़ी।
"सर, प्लीज़! उन्हें छोड़िए..."
उसने उसामा से रिक्वेस्ट की।
"मैंने किया क्या है?! मैं तो इसे जानता तक नहीं हूँ!"
उस शख़्स ने अपने होंठों से बहता खून साफ़ करते हुए कहा
फ़ातिमा आँखों में डर लिए यह सब देख रही थी...
"इस कमीने ने इनकी तस्वीरें ली हैं!"
उसामा ने गुस्से में उस लड़के का मोबाइल फोन अपने पैरों से कुचलते हुए कहा।
"हाँ, ली हैं तस्वीरें! फिर? तुम्हें क्या परेशानी है? यह मेरी गर्लफ्रेंड भी तो हो सकती है! तुझे क्या तकलीफ है?"
वह लड़का मज़ाकिया अंदाज़ में बोला।
"कुत्ते!"
उसामा ने ग़ुस्से में एक जोरदार घूँसा मारा।
"मेरी बीवी पर तूने नज़र डाली?!"
वह बिफर उठा।
"बीवी...?!"
पूरा प्लेन चौंक गया। सब लोगों की नज़रें सोलह साल की मासूम फ़ातिमा और यंग उसामा पर टिक गईं।
फ़ातिमा का चेहरा शर्म और झेंप से लाल हो गया।
"क्या हो रहा है यहाँ?"
मोशन नक़वी साहब की गंभीर आवाज़ गूँजी।
उन्होंने अपना सर्विस कार्ड दिखाकर मामला शांत करवाया।
"उसामा, तुम अपनी मम्मी के पास जाओ, मैं यहाँ फ़ातिमा के साथ हूँ... जाओ अभी!"
वह ग़ुस्सा दबाते हुए बोले।
"सॉरी डैड, ग़लती आपकी है। आपको इस मुसीबत को अकेले छोड़ना ही नहीं चाहिए था। आप अपनी सीट पर जाइए, मैं इसके साथ हूँ। वैसे भी अब यह मुसीबत मेरी ज़िम्मेदारी है!"
उसामा ने दो टूक कहा।
"उसामा! मुझे अब और कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए..."
मोशन साहब ने सख़्त लहज़े में कहा, लेकिन दिल ही दिल में खुश थे।
पहली बार, उसामा जैसा अखड़ मिज़ाज लड़का फ़ातिमा को लेकर इतना पज़ेसिव हो रहा था।
उन्होंने सोच लिया था कि अब जल्द से जल्द इन बच्चों का निकाह करा देना चाहिए।
शायद फ़ातिमा की वजह से उसामा बदल जाए...
डैड के जाते ही उसामा, फ़ातिमा के पास वाली सीट पर आराम से टाँगें पसार कर बैठ गया और हेडफोन लगाकर कॉलेज का फिजिक्स लेक्चर सुनने लगा।
अस्पताल का माहौल...
अस्पताल का गंभीर माहौल था।
वे रिसेप्शन से पता करके आईसीयू तक पहुँचे।
मेजर अहसन की हालत नाज़ुक थी। ऑपरेशन हो चुका था।
गोलियाँ निकाल दी गई थीं, लेकिन खून बहुत अधिक बह चुका था।
अभी किसी को भी मिलने की अनुमति नहीं थी।
मेजर अहसन का दोस्ताना दायरा बहुत बड़ा था।
फौजी वर्दी में कई लोग मिलने आए थे।
वे गंभीरता से फ़ातिमा को तसल्ली दे रहे थे।
उसामा उन आर्मी अफ़सरों को देख रहा था—
उनकी पर्सनैलिटी, उनका रौब, उनकी आंखों में देश के लिए सम्मान...
उसका मन अजीब-सी انسियत महसूस कर रहा था इस वर्दी से...
रात के नौ बजे...
मेजर अहसन की हालत अब भी गंभीर थी।
"उसामा, तुम अपनी मम्मी और फ़ातिमा को लेकर होटल जाओ। मैं यहाँ रुकूँगा। आप सब सुबह आना।"
मोशन साहब डॉक्टर से बात करके आए और बोले।
"नहीं अंकल! मुझे नहीं जाना, मैं यहाँ बाबा के पास रहूँगी।"
फ़ातिमा मज़बूत लहज़े में बोली।
"फ़ातिमा बेटी! अभी किसी को भी अंदर जाने की अनुमति नहीं है। इस तरह कॉरिडोर में रुकना ठीक नहीं है।"
वे उसे समझाने लगे।
"डैड,"
उसामा ने बीच में दखल दिया।
"अंदर इसके फादर हैं। यह ठीक कह रही है। आप और मम्मी सुबह आ जाइए। मैं और फ़ातिमा यहाँ रुकेंगे। और आप चिंता मत करें, मैं इसका ख़याल रखूँगा।"
मोशन साहब ने एक नज़र फ़ातिमा के रोए हुए चेहरे पर डाली और दूसरी नज़र उसामा के संजीदा चेहरे पर।
ज़िंदगी में पहली बार वह ज़िम्मेदारी की बात कर रहा था।
उन्होंने हैरान खड़ी नौशाबा का हाथ थामा और चुपचाप चले गए।
उसामा की झुंझलाहट...
उसामा ने साकत खड़ी फ़ातिमा का हाथ पकड़ा और पास रखी बेंच की तरफ़ ले आया।
"तुम यहाँ बैठो, मैं अभी आया..."
वह कैंटीन की ओर चला गया।
कुछ देर बाद सैंडविच और कॉफ़ी लेकर वापस आया।
तभी उसने देखा—
वार्ड बॉय और आते-जाते लोग बड़ी दिलचस्पी से फ़ातिमा को घूर रहे थे।
उसका खून खौल उठा।
वह तेज़ क़दमों से उसके पास पहुँचा।
"तुम्हारा स्कार्फ़ कहाँ है?"
वह ग़ुस्से से गरजा।
फ़ातिमा ने हैरानी से इस गुस्सैल लड़के को देखा।
"वैसे तो हर वक्त मौलवी बनी फिरती हो और यहाँ बिना परदे बैठी हो?"
उसने तपते हुए लहज़े में कहा।
"ऐसे टकर-टकर क्या देख रही हो? अपना स्कार्फ़ पहनो और दुपट्टा ढंग से लपेटो!"
"वो... मेरे पास स्कार्फ़ नहीं है। सिर पर चोट की वजह से आंटी ने लेने नहीं दिया..."
वह झिझकते हुए बोली, क्योंकि इस बदमिज़ाज लड़के का कोई भरोसा नहीं था!
कहीं ग़ुस्सा होकर चिल्लाने न लगे!
उसामा ने हाथ में पकड़ी कॉफ़ी और सैंडविच बेंच पर रखे और
आगे बढ़कर फ़ातिमा के सिर का ज़ख़्म चेक करने लगा।
टाँके अभी भी कच्चे थे।
"तुम ऐसा करो, दुपट्टा नमाज़ के स्टाइल में लो और माथा और चेहरा कवर करो।"
"मुझे अच्छा नहीं लगता जब कोई तुम्हें घूरता है।"
वह उसके सामने खड़ा होकर बोला।
फ़ातिमा ने हैरानी से उसे देखा...
शायद खुद उसे भी अंदाज़ा नहीं था कि वह क्या कह रहा है!
उसने चुपचाप सिर हिलाया और उसामा की आड़ लेकर दुपट्टा अच्छे से लपेट लिया।
एक नई हलचल...
रात के 12 बज चुके थे।
वे बेंच पर बैठे थे, जब—
"फ़ातिमा!!!"
कॉरिडोर में एक भारी मर्दाना आवाज़ गूँजी।
फ़ातिमा ने चौंककर सिर उठाया।
सामने से एक हैंडसम, आकर्षक, 22-23 साल का नौजवान
एयर फ़ोर्स की वर्दी में तेज़ क़दमों से उनकी तरफ़ आ रहा था।
फ़ातिमा के चेहरे पर सुकून की लहर दौड़ गई।
वह तेज़ी से उठी और भागकर उसके सीने से लगकर रोने लगी।
उसामा ने यह मंज़र गौर से देखा...
और उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं
गहरा अंधेरा था, लाइट तो दूर की बात, मोमबत्ती तक नहीं जल रही थी। पहाड़ की तरफ से गोला बारी और फायरिंग की आवाजें आ रही थीं। वे दोनों रूम शेयर कर रही थीं और अंधेरे में एक-दूसरे का हाथ पकड़कर क़ुरानी आयतों का वज़्र कर रही थीं। ब्लैकआउट था, फौजियों ने शाम होते ही पूरे भिंबर में सारी लाइटें बंद करवा दी थीं। हालात थोड़े बेहतर हो रहे थे लेकिन पूरी तरह से ठीक नहीं हुए थे...
"ثناء हम लोग कब तक इसी तरह डरते रहेंगे? हमें भी चाहिए कि जाकर इन भारतीयों को जूतों से भिगोकर मारें। मेरा बस चले तो मैं बस बार्डर पर चली जाऊं किसी तरह..." मिलीहा ने कहा
"एक तो तुम्हें भी पता नहीं क्या-क्या सूझती रहती है, अच्छा-भला यासीन शरीफ पढ़ रहे थे, मोहतरमा को बार्डर पर जाना है। मिलीहा बीबी, आप आर्मी डॉक्टर बन रही हैं, अपने ही फरायज पूरे कर लीजिए, ये भी एक तरह से जिहाद ही है..." थना ने टोका
"थना, क्या तुम बचपन से ही इतनी बोर पैदा हुई हो या मुझे देखकर तुम्हें बोरियत के दौरे पड़ते हैं? यार, कभी तो हंसी-मजाक भी कर लिया करो, दिल की बात भी कर लिया करो..." मिलीहा ने टॉपिक चेंज किया
"या अल्लाह! मिलीहा, पहले तुम दुआएं मांग रही थी, फिर अचानक तुम्हारे सिर पर बार्डर जाने का जुनून चढ़ा, और अब मेरे पीछे पड़ गई हो। मेरी प्यारी बहन, सुबह हम दोनों की ड्यूटी है, क्यों न सोने की कोशिश की जाए..." थना ने कहा
"थना! अच्छा छोड़ो सारी बात, ये बताओ तुम फौजी कैसे लगते हैं? कितने हैंडसम, आकर्षक और कितने मजबूत इरादों वाले होते हैं न, जो अपनी जान हथेली पर लिए हम सबकी सुरक्षा करते हैं..." मिलीहा जोश से बोली
थना की आंखों में अतीत की एक छवि सी लहराई। वह घूरती हुई आंखें, उनमें भरा जुनून, वह एक झुरझुरी लेकर सीधी हुई
"ये मेरी कंधे पर बंदूक रखकर क्यों चलाई जा रही है? कहीं तुम्हें कोई पसंद नहीं आ गया? मैं कल ही अंकल-आंटी को फोन कर कह देती हूं कि लड़की का रिश्ता तय कर दें, किसी फौजी के साथ..." थना ने उसे छेड़ा
"ओए लड़की!! मुझे फौजियों से बहुत मोहब्बत है, ये सब मेरे भाई हैं। शादी तो मैं किसी वकील से करूंगी जो काला कोट पहने, हाथों में फाइल लिए, जब कोर्ट में उतरे तो अपनी बुद्धिमत्ता से सारी दुनिया को हिला दे..." मिलीहा आंखें बंद किए जोश से बोली
"मिलीहा की बच्ची, ये हादसा कब हुआ और तुमने मुझे बताया भी नहीं..." थना ने तकिया उठाकर उसे मारा
"कौन सा हादसा? क्या कह रही हो तुम!" मिलीहा ने अंधेरे में उसे घूरना चाहा
"यही तुम्हारा और हम्ज़ा भाई का चक्कर..." थना चिढ़ाते हुए बोली
"कौन वह सड़ियल बदमिजाज हम्ज़ा अली? नहीं भी, अब मैं इतनी भी पागल नहीं हूं" मिलीहा चौंकी
"क्यों, इनमें क्या बुराई है? तुम्हारे नॉवेल्स के हीरो की तरह लंबे, गॉडलकिंग हैं और सबसे बढ़कर वकील हैं..." थना ने सवाल किया
"मुझे नहीं पता, लेकिन चलो मुझे तो वकील पसंद हैं। तुम बताओ, तुम्हें कैसा हसबेंड चाहिए? तुम इतनी प्यारी हो, मैं मान ही नहीं सकती कि अब तक किसी ने तुमसे इज़हार मोहब्बत नहीं किया हो या तुम्हें पसंद नहीं किया हो" मिलीहा ने गंभीरता से पूछा
एक पल के लिए चुप्पी छा गई
"मिलीहा, मैं थक रही हूं। ये बताओ, सोने का क्या लोगी?" थना की थकी हुई आवाज गूंज पड़ी
"ओके, वादा करो कल ओपीडी के बाद लंच करने सियरला चलोगी। सुना है वहां की जलेबियां बहुत मजेदार होती हैं..." मिलीहा ने तुरंत डिमांड पेश की
"मिलीहा की बच्ची, हम इधर पिकनिक मनाने नहीं आए हैं, और सियरला जाने की अगर सर ने इजाज़त नहीं दी तो?" थना ने सिर पीट लिया
"सर से इजाज़त लेना मेरा काम है और हमारी ड्यूटी भी सुबह चार से दस है, हम आराम से जा सकती हैं, और अब हालात इतने बुरे नहीं हैं, और देखो ना, हम जिंदगी में दोबारा इधर आते भी हैं या नहीं? कम से कम भिंबर तो घूम लें..." मिलीहा का अपना नजरिया था
"अच्छा मेरी मां!! कल चलेंगे, अभी तो सोने दो" थना ने हार मानकर कहा
"हरे थैंक्यू थना..."
अली दूर से ही उसामा को देख चुका था। वह गाड़ी बड़ी मुश्किल से किनारे पर पार्क करके चाय के खोके की तरफ बढ़ा...
उसामा ने अली को देख लिया था, अली पास आते ही बड़ी गर्मजोशी से उससे लिपट गया...
"चार साल पूरे, चार साल बाद मिल रहे हैं यार..." वह गर्मजोशी से बोला
"तू तो पहले से भी ज्यादा हैंडसम हो गया है..." वह सराहते हुए बोला
"और अली, तुझे चश्मा कब लगा?" उसामा ने शालीनता से अली को देखते हुए पूछा
"बस यार, लग गया, खैर छोड़, इसे बताओ, इधर भिंबर में कब तक है..." अली ने पूछा
"कुछ पता नहीं, हालात बेहतर की तरफ हैं, लेकिन खतरा अभी टला नहीं है। कल रात भी इन दुश्मनों ने समुद्री रास्ते से पाकिस्तान में घुसने की कोशिश की है..."
उसामा अली से बड़ी अच्छी तरह से मिला, वे दोनों कॉलेज की और मौजूदा स्थिति की बातें कर रहे थे जब अली ने उसे रोका
"चल यार, यहाँ पास ही सियरला में एक बहुत बड़ा रेस्टोरेंट है, वहां चलते हैं, बैठ कर बातें करेंगे..."
"ठीक है, मेरे पास भी बस दोपहर तक का टाइम है, शाम में मुझे रिपोर्ट करनी है..."
वह दौड़ते हुए उस अजनबी के गले लगकर रोने लगी थी, उसके संयम के धागे टूट चुके थे।
उस्सामा ने खूनख़्वार नजरों से यह दृश्य देखा, अभी वह दोनों के पास पहुंचा ही था कि उस अजनबी ने फातिमा को खुद से अलग किया।
"आपकी तारीफ..." उसने पास आते हुए उस्सामा से पूछा।
"यह... ये मेरे ताया ज़ाद भाई उस्सामा हैं..." फातिमा जल्दी से बोली।
"मैं उनका ताया ज़ाद कज़न और होने वाला हस्बैंड हूँ, और आप कौन हैं और किस हक से फातिमा को छू रहे हैं?" उस्सामा के लहजे से शोलें लपक रहे थे, उसने एक झटके से फातिमा का हाथ पकड़कर अपनी तरफ खींचा।
"मैं कैप्टन असफंद हूँ..." वह बग़ौर उस्सामा को देखते हुए बोला।
इसी समय एक नर्स तेज़ी से चलती हुई आईसीयू से बाहर निकली, असफंद सब छोड़कर उसकी तरफ बढ़ा।
"मेजर अहसन कैसे हैं अब? कोई अपडेट है, मैं उन्हें देख सकता हूँ क्या?"
"सर, आप डॉक्टर ऑन ड्यूटी से पूछ लें।" वह नर्स असफंद से प्रभावित होकर बोली।
"मैं! मैंने भी अभी तक बाबा को नहीं देखा, ये लोग अंदर जाने ही नहीं देते..." फातिमा ने असफंद से कहा।
"गड़िया, तुम फिक्र मत करो, मैं तुम्हारे अंदर जाने का इंतजाम करता हूँ..." असफंद ने फातिमा के हाथ थपथपाते हुए कहा।
"How dare you touch her..."
उस्सामा ने एक झटके से असफंद का हाथ हटा दिया।
"फातिमा तुम बेंच पर जाकर बैठो..." उस्सामा ने फातिमा को सख्ती से कहा।
"और तुम अपनी वर्दी का रौब किसे दिखा रहे हो? वर्दी पहनकर अकड़ते हो।" वह असफंद से बोला।
"यह वर्दी हर किसी का नसीब नहीं होती, खासकर तुम जैसे बिगड़े हुए अमीरजादे कभी भी इस वर्दी को हासिल नहीं कर सकते..." असफंद उसकी आँखों में झांकते हुए बोला।
"यू..." उस्सामा ने कहना चाहा, लेकिन असफंद ने तेजी से उसकी बात काटी।
"यंग मैन! मेरे पास तुमसे उलझने का वक्त नहीं है, वरना..." असफंद बात कर ही रहा था कि ड्यूटी डॉक्टर उधर ही आ गया।
"कैप्टन असफंद!! कैसे हैं आप?" वह बड़ी गर्मजोशी से असफंद से मिला।
कुछ देर मेजर अहसन की तबियत डिस्कस कर के असफंद ने फातिमा के अंदर उनके पास ठहरने की परमिशन ली और फिर फातिमा को अंदर जाने का इशारा किया।
फातिमा तेजी से उठी और बिना उस्सामा की तरफ देखे अंदर चली गई।
डॉक्टर से फ्री होकर असफंद भी आईसीयू की तरफ बढ़ गया। उस्सामा से यह सब सहन नहीं हो रहा था, वह भी अंदर जाने लगा तो उसे रोक दिया गया।
फातिमा मेजर अहसन के पास खड़ी, बेआवाज़ रो रही थी, जब असफंद उसके पास आया।
"फातिमा, यह बाहर साइको कौन है?"
फातिमा ने डबडबाई आँखों से असफंद को देखा और एक-एक बात बता दी।
"मैं आजकल मेस में ठहरा हुआ हूँ, वरना तुम्हें साथ ले जाता..." असफंद ने गंभीरता से कहा।
"बाबा तो ठीक हो जाएंगे ना? आपकी डॉक्टर से क्या बात हुई है..." वह आँखों में उम्मीद लिए उसे देख रही थी।
"फातिमा, बस दुआ करो, अल्लाह बेहतर जानता है, और इस साइको से डरने की जरूरत नहीं है, मैं एक-दो दिन में तुम्हारी रहائش का इंतजाम करता हूँ..." असफंद ने फातिमा को तसल्ली दी।
"खुद को अकेला मत समझना, और न ही आईसीयू से बाहर निकलना, मैं अभी चलता हूँ, मेरी नाइट फ्लाइंग है, कल सुबह होते ही तुमसे मिलने आऊँगा..." वह उसे हिदायत देता, मेजर अहसन के बेहोश शरीर को सलूट करता बाहर निकल गया।
उस्सामा का गुस्से से बुरा हाल था, उसका बस नहीं चल रहा था कि फातिमा को बाहर घसीट लाए, उससे पूछे कि असफंद कौन है, लेकिन वह अंदर छिप कर बैठ गई थी। असफंद भी लंबे-लंबे कदम उठाता, उस्सामा की आवाज़ को इग्नोर करता, अस्पताल से जा चुका था।
वह बहुत देर तक आईसीयू के बाहर टहला रहा था, फिर कुछ सोचकर अंदर बढ़ा। बाहर दरवाजे पर वार्ड बॉय ने उसे रोकना चाहा, लेकिन उस्सामा का जुनूनी अंदाज देखकर वह चुप सा हो गया।
फातिमा मेजर अहसन के हाथ को थामे, फर्श पर बैठी हुई थी, पिता की मौजूदगी का एहसास ही उसके लिए बहुत था...
न जाने कितना समय गुजर चुका था, जब किसी ने फातिमा के कंधे पर हाथ रखा। वह चौक कर मुड़ी, तो असफंद को देखकर सहम गई।
उस्सामा ने एक झटके से उसे खड़ा किया और घसीटते हुए बाहर ले आया।
"छोड़ो मुझे..." आईसीयू से बाहर आते ही फातिमा चिल्लाई।
उस्सामा ने एक सूखी नजर उस पर डाली और उसे बेरहमी से घसीटते हुए अस्पताल के गार्डन में ले आया।
"कौन था वह आदमी?" उसने फातिमा को गर्दन से पकड़कर पूछा।