fatah kabul (islami tareekhi novel ) part 47
बदहवासी.......
काबुल का क़िला से बाहर जो गार था। इस पर मेला लगता था। यह मेला इस ज़माने से शुरू हुआ था जबकि तुर्को ने अपनी सल्तनत की बुनियाद रखी थी। बररह मगीन पहला वह शख्स था जो तिब्बत से आकर इस गार में छुप गया था। और जिसकी बाबत लिखने वालो ने लिखा है की वह इंसानो का गोश्त खाता रहा है। इस शख्स ने काबुल में तुर्को की सल्तनत की बुनियाद रखी थी। जिस तारिख को उसने सल्तनत की बुनियाद रखी उसी तारिख को हर साल वहा मेला भरने लगा। धीरे धीरे इस मेले ने मज़हबी मेला की हैसियत हासिल कर ली।
अगरचे तुर्को की सल्तनत काबुल से खत्म हो कर हिंदी लोगो की हुकूमत वहा शुरू हो गयी थी। लेकिन जो मेला तुर्को के ज़माने से शुरू हुआ था। वह हिंदी राजाओ के ज़माने में भी होता रहा है और हिंदी राजाओ के ज़माने ही में उसने मज़हबी हैसियत हासिल कर ली।
इस मेला में दूर दूर से लोग आते। घूमने वाले भी सौदागर भी तमाशाई भी और खरीद फरोख्त करने वाले भी। लेकिन ज़्यादा दूर से लोग मुसलमानो के खौफ की वजह से नहीं आते थे। फिर भी पिशावर तक के आदमी आगये थे।
मेला शुरू हो गया था। गार के चारो तरफ बाजार लग गए थे। बाज़ारो के आस पास अमीरो और मुहाफिजों के खेमे थे और उन खेमो के गिर्द फौजी चौकिया थी।
मेला में खासी रौनक आगयी थी। खरीद व फरोख्त शुरू हो गयी थी। मेला के दो बाजार हो चुके थे। तीन बाजार और बाक़ी थे .तीसरे रोज़ महाराजा ,महारानी ,सुगमित्रा और राजा के खानदान के तमाम औरत और मर्द भी मेला देखने आये थे। इस रोज़ बाजार खूब सजाये गए थे और दुकानदारों ने अपना तमाम माल निहायत सलीक़ा से सजा दिया था।
महाराजा हुस्न परस्त मालूम होते थे। वह महारानी के साथ नहीं रहते थे हसींन माह रूह औरतो की ताक झांक करते रहते थे। वह रानी को छोड़ कर चले गए। रानी अपनी औरतो और बांदियो के साथ हो ली। सुगमित्रा अपनी सहेलियों और हम उम्र कनीज़ों के साथ सैर करने लगी। अभी वह दो तीन ही बाज़ारो में घूमने पायी थी की कमला मिल गयी। कमला ने उसे सलाम किया। राजकुमारी को खौफ हुआ की कही कमला लड़कियों के सामने कोई इशारा न करे। उसका चेहरा भी फीका पड़ गया। कमला समझ गयी। वह उस वक़्त बगैर कुछ कहे सुने या कोई इशारा किये आगे बढ़ गयी।
सुगमित्रा ने इत्मीनान का साँस लिया जब कमला कुछ दूर चली गई तो उसने एक सहेली से कहा "ज़रा इस लड़की को बुलाना "
इस लड़की ने कहा। "क्या बात याद आगयी। "
सुगमित्रा :याद कुछ नहीं आया। मैंने उसके साथ बे रूखी से बात की और न साथ चलने को कहा। वह अपने दिल में क्या कहेगी।
लड़की : यह क्यू नहीं कहती कि वह ज़रा नक सक दुरुस्त है।
सुगमित्रा ; पगली, यह बात नहीं है जा जल्दी बुला ला। कही वह गायब न हो जाये।
लड़की जल्दी से गयी और कमला को बुला लायी। सुगमित्रा ने उससे कहा "बहन माफ़ करना मैंने तुम्हारे साथ बे रूखी का बर्ताव किया। उस वक़्त मैं किसी और ही ख्याल में थी आओ मेरे साथ चलो।
कमला : माफ़ करना मैं एक हिजोली को देख रही हु।
सुगमित्रा : नाराज़ हो गयी मेरी बहन। गुस्सा थूक दो।
कमला : मेरी यह मजाल मैं खफा हो जाऊ।
सुगमित्रा : खैर मेरे साथ चलो।
कमला : राजकुमारी का हुक्म।
कमला राजकुमारी के साथ चल पड़ी। हसीनो का यह झुरमुट जिस तरफ जाता था मुश्ताक़ दीद (आंखे) उठती चली जाती थी। खास कर सुगमित्रा निगाहो का मरकज़ बनी हुई थी। उसके चाँद से चेहरे पर सबकी नज़रे पड़ी थी लेकिन हुस्न का कुछ ऐसा जलाल था की जो निगाहे एक दफा उठती थी दुबारा उठने की हिम्मत न करती थी। हर सौदागर की ख्वाहिश थी की वह रशक हूर उसकी दूकान तक आ जाये। चाहे कुछ खरीदे या न खरीदे। क़रीब से ज़ियारत तो हो जाये।
वह कई दुकानों पर गयी भी और उसने हर दुकान से कुछ न कुछ खरीदा भी जो चीज़ वह खरीदती थी वह एक दो सहेलियों और दो तीन कनीज़ों को वह चीज़ दे कर रुखसत कर देती थी। यहाँ तक कि उसके साथ चार सहेलिया और छह कनीज़ रह गयी। जो सामान उसने खरीदा उसकी क़ीमत मुँह मांगी अदा की। अगर वह क़ीमत न भी देती और मुफ्त ही ले लेती तब सौदागर उसके मश्कूर होते।
चलते चलते कमला ने आहिस्ता से कहा "गार पर चलो। पूजा में शरीक होंगे " यह कह कर उसने राजकुमारी का हाथ दबाया .वह समझ गयी। उसने कहा "भई तुम जाओ मैं ज़रा देर में आउंगी। "
कमला : तुम्हे पूजा की क्या ज़रूरत है। लोग तुम्हे देवी समझ कर खुद तुम्हारी पूजा करते है।
सुगमित्रा ने मुस्कुरा कर कहा "शरीर "
कमला : क्या मैं गलत कह रही हु। देखो किस तरफ लोगो की अक़ीदत मंद निगाहे उठ रही है। अगर तुम ज़रा भी इशारा कर दो तो यह सब लोग तुम्हारे सामने सजदा में कर गिर जायेंगे।
सुगमित्रा : शरारत किये जाएगी।
कमला : काश कोई ऐसा हो जो तुम्हे भी नचाये।
सुगमित्रा : बताऊं।
कमला : लो मैं जा रही हु। पाक गार पर जाकर दुआ करुँगी की कोई तुम्हे सताने वाला भी मिल जाये।
कमला चली गयी सुगमित्रा आगे बढ़ गयी। उससे ज़रा फासला पर एक औरत खड़ी बड़े गौर से राजकुमारी को देख रही थी। यह बिमला थी। वह कमला के पीछे चल पड़ी। कुछ दूर चल कर उसे जा पकड़ा। कमला ने उसे देख कर कहा। "तुम"
बिमला : खामोश।
वह चुप हो गयी। यह दोनों बाजार में से निकल कर एक तरफ हो ली। यहाँ खेमे तो बहुत थे और आदमी कम थे। दोनों एक जगह खड़ी हो गयी। बिमला ने कहा "सुगमित्रा कहा गयी है। "
कमला : सैर को गयी है। वह गार में आने वाली है।
बिमला : तब चलो अभी हमें बहुत कुछ करना है। मेरा ख्याल है वह मुझे पहचान जाएगी।
कमला : फिर तुम सामने न होना।
बिमला : मेरा उसके सामने होना ठीक नहीं ,अगरचे मुमकिन है की वह मुझे न पहचाने लेकिन यह भी मुमकिन की पहचान ले।
कमला : मुझे हिदायत दे दो। मैं उस पर अम्ल करुँगी।
बिमला : तुम इस गार से जुनूब की तरफ चट्टान तक ले आओ। फिर सब कुछ हो जयेगा।
अभी यह दोनों बाते ही कर रही थी की दादर के पेशवा (राफे ) वहा आगये। दोनों ने उन्हें झुक सलाम किया। पेशवा ने बिमला से कहा। "तुम दादर के पाक धार में दुआ में शरीक नहीं हुई ?
बिमला ; मैं बीमार थी।
पेशवा : दुआ में सब औरते शरीक नहीं हुई। इसलिए बुध ज़ोर खफा हो गए। तुम दोनों यहाँ मश्वरा कर रही हो ?
बिमला : कुछ नहीं। हम दोनों अरसा के बाद मिली है। एक दूसरी का हांल पूछ रही है।
पेशवा वहा से चले गए। कमला ने कहा " क्या तुम चट्टान के क़रीब मिलोगी ?"
बिमला : तुम राजकुमारी के साथ रहना मिल मैं ह जाउंगी।
कमला : आखिर चट्टान के पास कौन मिलेगा ?
बिमला : वह मर्द मिलेंगे। वह सुगमित्रा को लेकर दौड़ पड़ेंगे। तुम भी उनके पीछे दौड़ना। वह तुम्हे भी ले आएंगे।
कमला : कही तुम मुझे धोका न देना।
बिमला : मैं इल्यास की मुंह बोली बहन हु धोका नहीं दे सकती।
कमला उससे रुखसत लेकर आगे बढ़ी। वह बाजार में आगयी और आहिस्ता आहिस्ता चल कर गार पर आयी। गार के चारो तरफ काफी मैदान था। इस मैदान में औरतो और मर्दो के भीड़ लग रही थी। इस क़द्र भीड़ थी की अगर कोई किसी से अलग हो गया तो हज़ार कोशिश करने पर भी न मिल सका।
कमला एक तरफ खड़ी हो गयी। वह सुगमित्रा का इंतज़ार कर रही थी। खुश क़िस्मती से सुगमित्रा जल्द और इसी रस्ते से आगयी जिस से वह आयी थी। वह इस तरह खड़ी हो गयी जैसे उसने सुगमित्रा को देखा नहीं है। सुगमित्रा खुद उसके पास आगयी। कमला ने कहा " क्या तुम भी पूजा में शरीक होने आयी हो। अगर ऐसा है तो मुंह न छिपा लो। वरना लोग तुम्हारी पूजा शुरू कर देंगे। "
यह कह कर कमला ने साड़ी का पल्लू उसके चेहरा पर खींच लिया। और उसका हाथ पकड़ कर जल्दी से भीड़ में घुस गयी। और लोगो को हटाती बढ़ी चली गयी। सुगमित्रा की सहेलिया और कनीज़ लोगो के झुरमुट में उलझ कर रह गयी .
कमला उसे खींचती हुई चट्टान की तरफ चल दी। कुछ दूर चल कर और आगे बढ़ कर एक दो आदमी रह गया।
सुगमित्रा ने कहा "कहा जा रही है ?
कमला : खामोश चली आओ।
वह उसे चट्टान के पीछे ले गयी। अचानक दो आदमियों ने सुगमित्रा को उठाया और भागे। कमला उनके पीछे भागी .कुछ दूर कुछ घोड़े मिले। एक शख्स सुगमित्रा को लेकर एक घोड़े पर सवार हुआ। दूसरा कमला को लेकर दूसरे घोड़े पर और दोनों ने घोड़ो की बागे उठा दी। उसी वक़्त मेला में जाबुल में जाबुल से भागे हुए कुछ लोग आये और उन्होंने शोर मचा दिया। की मुसलमानो ने जाबुल पर क़ब्ज़ा कर लिया और काबुल की तरफ बढे चले आरहे है।
इस शोर को सुन कर लोगो पर बदहवासी तारी हो गयी। हर शख्स काबुल की तरफ भागने लगा। अजब तूफान बे तमीज़ी पैदा हो गयी। सौदागर माल बांधने और मर्द औरतो को ढूंढने। औरतो बच्चो को तलाश करने लगी। शोर व बका से सारा मेला गूँज उठा। भाग दौड़ शुरू हो गयी। किसी की बीवी खो गयी तो किसी का बेटा अलग हो गया तो किसी की माँ।
महाराजा और महारानी भी भाग खड़े हुए .किसी ने यह नहीं पूछा की मुस्लमान कहा है। महाराजा ने राजकुमारी को दरयाफ्त न किया। ज़रा सी देर में मेला इधर उधर हो गया।
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