fatah kabul (islami tareekhi novel ) part 36
सुलह का पैग़ाम .....
दादर वालो को यह मालूम हो गया था की इस मुल्क पर मुसलमानो ने लश्कर कशी कर दी है। और अर्जनज तक का इलाक़ा फतह कर लिया है। उन्होंने यह भी सुन लिया की अर्जनज (जगह का नाम ) का हुक्मरान महारानी और राजकुमारी के साथ मुस्लमान हो गया है। उन्हें उसके मुस्लमान होने का बड़ा ताज्जुब हुआ था उस नवाह में यह मशहूर था की अर्जनज का हुक्मरान अपने मज़हब में बड़ा पक्का और बहुत मज़बूत है।
साथ ही उन्होंने यह भी सुना की इस्लामी लश्कर बढ़ा चला आ रहा है उन्होंने जंगी तैयारियां पहले से कर रखी थी। वह खुद मुसलमानो पर चढ़ाई का इरादा कर रहे थे की मुस्लमान ही वहा आ पहुंचे। उनकी लश्कर कशी से उनपर उनकी खौफ तारी हो गयी।
दादर का राजा बड़ा बहादुर और जंगजू था। उसने क़िला पर फौजे चढ़ा दी। जगह जगह पत्थरो और तीरो के ढेर लगा दिए। फलखन और कमाने रखवा दी। गरज़ फायदे का पूरा पूरा इंतेज़ाम कर लिया। और अपने जासूस भेज कर मुसलमानो का हाल मालूम करने लगा जो की दादर में बड़ा धार था और उस धार में बुध ज़ोर का बुत था उस बुत की उस इलाक़ा के तमाम लोग बड़ी इज़्ज़त और अज़मत करते थे। इसलिए जब मुसलमानो की हमला आवरी की खबर मशहूर हुई तो दादर की हिफाज़त के लिए गिरोह नवाह से बहादुरों के गिरोह आने लगे। पहले तो दादर में ही लश्कर काफी था और उनके आने से गिरोह बढ़ गया। उधर दादर के वाली ने महाराजा काबुल से मदद तलब की और जो खत उन्हें लिखा उसमे तहरीर किया की :
"आप मुसलमानो पर हमला की तैयारी कर रहे थे। खुद मुसलमानो ने ही हमला कर दिया। और अरजनज तक का इलाक़ा फतह कर चुके है। दादर उनक सामने है जिस जोश व खरोश से वह आरहे है उससे खौफ है कही दादर भी उनके क़ब्ज़ा में न चला जाये जल्द मदद भेजे। "
यह लेटर भेज कर वह मदद का इंतज़ार करने लगा , अभी मदद आयी थी न कोई क़ासिद आया था की एक रोज़ कई जासूसों भागे हुए आये। सख्त परेशान और बदहवास थे। उन्होंने आ कर बयान किया की इस्लामी लश्कर क़रीब आगया है अगरचे लश्कर की तादाद तो कुछ ज़्यादा नहीं है लेकिन उस लश्कर का हर सिपाही बड़ा जांबाज़ और बहादुर है हमने उनके सामने से शेरो बदहवास हो कर भागते देखा है या तो वह जादूगर है और उनके जादू के ज़ोर से जंगल का बादशाह उनके सामने नहीं ठहरता भाग जाता है या उनका रोअब उसके ऊपर ऐसा पड़ता है .की वह उनके सामने नहीं ठहरता।
इन जासूसों ने कुछ ऐसा मुबालगा आमेज़ स्टोरी बयां किये जिससे अहले दादर के दिलो पर भी रोअब व खौफ तारी हो गया आखरी मर्तबा जासूस खबर लाये की इस्लामी लश्कर बहुत क़रीब आगया है। सिर्फ एक मंज़िल का फासला रह गया है कल वह ज़रूर क़िला के सामने आ जायेगा।
दूसरे रोज़ दादर का वाली सुबह ही से दरवाज़ा के क़रीब वाले ब्रिज में चढ़ गया और मुसलमानो के आने का इंतज़ार करने लगा जब दुपहर ढल गया तब उसने दूर फासला पर इस्लामी अलम ( झंडा) लहराता हुआ देखा। वह और उसके फौजी अफसर गौर से देखने लगे उनके देखते ही देखते इस्लामी मुजाहिदीन घोड़ो पर सवार बड़ी शान से आते दिखे।
उन्होंने क़िला के पास आकर अल्लाहु अकबर का नारा लगाया उस नारा की आवाज़ को सुन कर वाली उछल पड़ा। और लोग भी घबरा गए। उन्होंने देखा की मुसलमान मैदान में फैलने लगे है जो ग्रुप आता था वह नारा तकबीर लगाता और फैल जाता। उन्होंने आते ही बड़ी फुर्ती से खेमे नस्ब करना शुरू किये दम के दम में खेमो का शहर क़िला के सामने आबाद हो गया।
इस्लामी लश्कर थोड़ा थोड़ा आ रहा था शाम तक आता रहा। दिन छिपते ही इस्लामी कैंप में आग के अलाव रोशन हो गए। तमाम क़िला में शमे जलने लगी। लेकिन इस्लामी कैंप में इस क़िस्म की रौशनी का कोई इंतेज़ाम नहीं था। बल्कि जगह जगह जो अलाव रोशन थे उनसे रौशनी फैल गयी थी। यह रौशनी बहुत काफी थी। उस रौशनी में कैंप के अंदर मुजाहिदीन चलते फिरते नज़र आरहे थे। जो बड़ी बे खौफी और बड़े इत्मीनान से चल फिर रहे रहे थे।
दादर के वाली को खौफ हुआ की कही मुस्लमान रात ही को क़िला पर धावा न बोल दे। इसलिए उसने चारो तरफ पहरा बिठा दिया। और मुहाफिजों को हिदायत कर दी की ज़रा सा खटका होने पर सारे लश्कर को बेदार व होशियार कर दे।
रात अहले दादर ने बड़े बेचैनी और परेशानी की हालत में गुज़री। सुबह मुसलमानो ने जमात के साथ नमाज़ पढ़ी और अलग हो गए। फ़सील के ऊपर खड़े मुहाफ़िज़ उनकी नक़ल व हरकत देख रहे थे जब कुछ दिन चढ़ा तो तीन मुस्लमान क़िला के क़रीब आये उनमे इल्यास भी थे उसने पुकार कर कहा " ए अहले दादर ! हम क़ासिद है तुम्हारे वाली के पास आये है। "
थोड़ी देर के बाद वाली ब्रिज में नमूदार हुआ उसने कहा " कहो क्या कहना चाहते हो ?"
उस इस्लामी सिफारत के मीर वफ्द हम्माद अंसारी थे। उन्होंने कहा " इतने फासले से क्या बात चीत हो सकती है या तो तुम निचे उतर कर हमारे पास आओ या हमें ऊपर अपने पास बुलाओ। "
वह चला गया और उसने अपना दरबार बड़ी शान से आरास्ता किया। तमाम दरबारियों को बुला लिया। जब सब आकर अपनी अपनी जगह बैठ गए तब उसने क़ासिदो को तलब किया। मुस्लमान पहले क़िला में दाखिल हुए। उन्होंने देखा की रास्तो पर वह दादर की फ़ौज मुसलह खड़ी है। दरअसल दादर की वाली ने मुसलमानो को मरग़ूब करने के लिए अपनी तमाम फ़ौज रास्तो पर खड़ी कर दी थी। और रास्तो के इधर उधर जो थोड़े बहुत मैदान थे उनमे भी सवार खड़े कर दिए थे ताकि मुस्लमान उस ज़्यादा लश्कर को देख ख़ौफ़ज़दा हो जाये।
क़ासिद उन्हें देखते हुए बढ़ते रहे। यहाँ तक की वह दरबार में दाखिल हुए और सीधे चल कर वाली या राजा के तख़्त के सामने जा खड़े हुए। वहा के वज़ीर ने कहा " तुम लोग बड़े ही वहशी हो। नहीं जानते की राजा के सामने हाथ जोड़ कर और सर झुका कर आना चाहिए।
हम्माद ने कहा " वहशी हम है या तुम। राजा या वाली की हिफाज़त के लिए होता है और मुहाफ़िज़ अवाम का खादिम कहलाता है। एक खादिम के लिए यह कब रवा है की वह तख़्त पर खुदा बन कर बैठे और जिन लोगो का वह खादिम है वह उसके सामने हाथ जोड़ कर आये। "
राजा : इन बातो को रहने दो। बताओ तुम क्या पैग़ाम लाये हो ?
हम्माद : हम अम्न व सुलह का पैग़ाम लाये है तुम हम पर लशकर कशी की तैयारी कर रहे थे। शायद इस वजह से की तुमने हमें कमज़ोर समझा है यह ख्याल किया था की ईरानी और रूमी दो ज़बरदस्त सल्तनतों से मुक़ाबला करके हमारी ताक़त जाती रही है और तुम आसानी से हम पर फतह हासिल करोगे। हम यह बताने आये है की हम कमज़ोर नहीं है। तुम्हे तुम्हारे घरो ही में रोक सकते है। और यह कहने आये है की लड़ाई से कोई फायदा नहीं है सुलह लड़ाई से बेहतर है। "
राजा : हम भी लड़ाई नहीं समझते।
हम्माद : बस तो मामला बहुत जल्द तय हो सकता है। हमारी तीन शर्ते है उनमे से चाहे जिस शर्त को क़ुबूल करे।
राजा : अपनी शर्ते बयान करो।
हम्माद : पहली शर्त यह है की तुम मुस्लमान हो जाओ। हमारे भाई बन जाओगे हम तुम्हारे दुःख दर्द में शरीक होंगे। तुम हमारे दुःख दर्द में शरीक होना हमारा पैग़ाम इसलिए है की तुम खुदा के बन्दे हो। खुदा से बगावत कर रहे हो। बुतो की पूजा करते हो। उन्हें छोड़ दो। खुदा की इबादत करो।
राजा : यह बात मंज़ूर नहीं की जा सकती।
हम्माद : तब तुम हमारी इताअत क़ुबूल कर लो और हमें जज़्या दो।
राजा : यह भी न मुमकिन है।
बस तो तीसरी बात जंग की रह जाती है और तलवार हमारे तुम्हारे दरमियान फैसला कर देगी।
राजा को गुस्सा आगया। उसने कहा " तुम्हे अपनी बहादुरी पर बड़ा नाज़ है। लेकिन जिस क़ौम से तुम्हारा मुक़ाबला है जब उसकी बहादुरी देखोगे तो तुम्हारे नाज़ व गुरूर खाक में मिल जायेगा मैं तुम पर यह मेहरबानी कर सकता हु की अगर तुम वापस जाना चाहो तो तुमसे कोई गरज़ न करू। अगर तुम लड़ोगे तो याद रखो तुममे से एक को भी ज़िंदा न जाने दूंगा।
हम्माद : हमारा नाज़ अपनी बहादुरी पर नहीं। खुदा की मदद पर है हम तुम्हारी मेहरबानी नहीं चाहते। अगर तुम लड़ाई पर आमादा हो तो तुम हम भी तैयार है।
राजा : बस या तुम्हे और कुछ कहना है।
हम्माद : हमने पैग़ाम पंहुचा दिया। और कुछ कहना नहीं है।
राजा : जब तो लड़ाई पर ही फैसला ठहरा है।
हम्माद : हम इस बात को पहले जानते थे। लेकिन याद रखो यह क़िला तुम्हे पनाह न दे सकेगा।
राजा : या तुम्हे कही पनाह न मिल सकेगा।
हम्माद और उनके साथी वहा से चले आये।
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