fatah kabul (islami tarikhi novel)part 29
वादी अरजनज आगोश इस्लाम में.....
शहर अरजनज के फतह होने का कश तक इलाक़ा पर असर पड़ा। वहा के आतिश परस्त भी घबरा गए। कुछ तो उनमे से भाग निकले। कुछ अपनी अपनी बस्तियों में आबाद रहे उन्होंने तय कर लिया की जब मुसलमान उनके पास आवेंगे तो उनकी इतायत करंगे।
चुनांचा जब मुस्लमान कश के इलाक़ा में दाखिल हुए तो वहा के बस्ती वालो ने उनकी एतायत कर ली और उनसे तिजारत शुरू कर दी।
मुस्लमान हर चीज़ की अच्छी क़ीमत देते थे। उनसे तिजारत में बड़ा फायदा होता था। इसलिए हर क़ौम उनसे तिजारत करने की आरज़ू करती थी। .
गैर मुस्लिम लोग इस्लामी लश्कर में दुकाने खोल लेते थे। चुकी मुस्लमान बड़े मुहज़्ज़ब और ईमानदार थे इसलिए किसी दुकानदार से कोई चीज़ ज़बरदस्ती या मुफ्त न लेते थे बल्कि वह जो चीज़ लेते थे उसकी क़ीमत खातिर ख़्वाह देते थे जो दुकानदार जिस चीज़ की क़ीमत जो मांगता वही देते। इससे तजिरो को बड़ा फायदा होता था और वह लश्कर के साथ रहते थे।
मुसलमान उनकी उनके माल की हिफाज़त भी करते और उन्हें सावरिया भी देते मुसलमानो को यह फायदा था की उन्हें लश्कर ही में ज़रुरियात की चीज़े मिल जाती थी।
इस्लामी लश्कर के आने और शहर अरजनज और कश के इलाक़ा को फतह कर लेने की खबर अरजनज तक पहुंच गयी। अब्दुल्लाह अरजनज ही में थे। उन्हें बड़ी ख़ुशी हुई और जब उन्होंने सुना की इस्लामी लश्कर क़रीब आगया। है तो एक रोज़ उसने अपने आक़ा यानी हुक्मरान से कहा " क़रीब आगया है। हमारे शहर और इलाक़ा के लोग परेशान और ख़ौफ़ज़दा हो रहे है। "
हुक्मरां :मुझे मालूम है लेकिन क्या किया जाये। इनकी परेशानी कैसे दूर की जाये।
अब्दुर्रहमान : पहले यह तय कीजिये की मुसलमानो का मुक़ाबला किया जाये या सुलह कर ली जाये।
हुक्मरां :मैं मुसलमानो का मुक़ाबला करना चाहता हु। मैंने उनकी बहादुरी और इस्तेक़लाल की बड़ी तारीफे सुनी है .देखो कहा तक ठीक है।
अब्दुल्लाह : क्या आपने यह नहीं देखा की बहुत थोड़े मुसलमानो ने ईरान जैसी ज़बरदस्त सल्तनत पर चढ़ाई की। शाह ईरान ने उनके मुक़ाबले में ज़बरदस्त जमीयते बड़े बड़े बहादुर और अफसरों की सर करदगी में भेजे। साडी फौजे तबाह हो गयी और सब अफसर तो मारे गए या गिरफ्तार हो गए। यहाँ तक की शाह ईरान पर मुसलमानो ने क़ब्ज़ा कर लिया।
हुक्मरान :मैंने यह सब बाते सुनी है। लेकिन देखना यह चाहता हु की आखिर वह क्या बात है जिस से वह अपने हरीफ़ पर ग़ालिब है।
अब्दुल्लाह :मुझसे सुन लीजिये। वह न आग को पूजते है। न बुतो को। न और किसी चीज़ को सिर्फ खुदा की परस्तिश करते है खुदा उनकी मदद करता है। वह फतहयाब होते है।
हुक्मरान :मै इस बात को नहीं मानता। हम भगवान् बुध को मानते है और उनकी पूजा करते है। वह हमारी मदद क्यू करते।
अब्दुल्लाह : मुस्लमान कहते है की इंसान खुदा नहीं होता। न और कोई चीज़ खुदा है। खुदा वह है जिसने हर चीज़ को पैदा किया है। वह हमेशा से है और हमेशा रहेगा। हर वक़्त और हर जगह मौजूद रहता है। उससे कोई बात पोशीदा नहीं .वह दिलो के भेद तक जनता है। उसे किसी ने नहीं देखा है। न कोई उसे देख सकता है। इंसानी आँख उसके जलवे की मुहताहमिल नहीं हो सकती। वही पैदा करता है ,वही जिलाता है और वही मारता है। वह पुकारने वालो की पुकार सुनता है जो उसकी नाफ़रमानी करता है वह उसे सजा देता है।
हुक्मरान :आज तुमने अजीब बाते ब्यान की है। अगर कोई खुदा है तो सच में ऐसा ही हो सकता है। लेकिन आखिर हम और हमारे बाप दादा जिस मज़हब पर पाबंद है वह क्या है।
अब्दुल्लाह : मुस्लमान कहते है की जो खुदा की सुरते बना के बैठे हुए है। वह बुतपरस्त है। जब खुदा को किसी ने देखा ही नहीं तो उसकी तस्वीर या मुजस्समे कैसे बना लिए या तो वह ख़याली तस्वीरें है या मज़हबी बुज़ुर्गो की है। उनकी पूजा करना गुनाह है खुदा सीए लोगो से नाखुश होता है जो बुतो को पूजते है .वह कहते है उसकी मिसाल बिलकुल ऐसी है जैसे कोई बादशाह हो उसकी रियाया उसके वज़ीरो और अमीरो की तो इतायत करे और बादशाह की इतायत न करे।
हुक्मरान : बात तो ठीक कहते है। कही हम जिहालत और गुमराही में तो पड़े नहीं है।
अब्दुल्लाह : मैंने उन सौदागारो से गुफ्तुगू की थी जो यहाँ आये थे उन्होंने ऐसी बाते बयान की थी की मेरा अक़ीदा ही बदल गया और मुझे यक़ीन हो गया की यह बुत खुदा नहीं खुदा वह है जिसने सबको पैदा किया है और जिसे किसी ने नहीं देखा।
हुक्मरान : मैं अरसा से मुसलमानो के बारे में तो सुन रहा था लेकिन उनके मज़हब के बारे में कुछ नहीं सुना था। वार्ना उनसे गुफ्तुगू करता।
अब्दुल्लाह : मुझे उनके मज़हब की अक्सर बाते मालूम है। मुसलमानो का अक़ीदा है की अल्लाह ने जब देखा की उसके बन्दे उससे मुन्हरिफ़ हो कर बुतो को पूजने लगे तो उसने एक और अवतार मतलब रसूल भेजा। उसके ज़रिये से एक किताब नाज़िल की। उस किताब का नाम क़ुरआन शरीफ है। क़ुरआन शरीफ है। खुदा की तारीफ है। बुतो की मुज़म्मत है अहकाम खुदा वन्दी है गुनाह और सवबकी तशरीह है बुरे अमाल की सजा और अच्छे अमाल का जज़ा का ज़िक्र है। मैंने उस किताब पढ़ा है उसमे एक जगह लिखा है"यानी अल्लाह वह है जिसने आसमानो को बगैर सुतूनों के बुलंद किया। तुमसे देखते हो यानी आसमान को फिर अर्श पर क़रार पकड़ा और मसखर किया सूरज और चाँद को हर एक वादा मुक़र्ररा पर पता चलता है। काम की तदबीर करता है। निशानिया तफ्सील से ब्यान करता है ताकि तुम साथ मुलाक़ात अब अपने रब का यक़ीन करो और वही है जिसने ज़मीन को खींचा और उसमे पहाड़ रखे और नेहरे बहाये और मेवे के जोड़ी पैदा किये दो क़िस्म के। दिन रात को ढँक देता है। तहक़ीक़ उनमे उनके लिए निशानिया है। जो है।
हुक्मरान निहायत ताउज्जो से सुन रहा था। जब अब्दुल्लाह ने दोनों आयेते पढ़ कर उनका तर्जुमा और तफ़्सीर बयान की तो उसने बेसाख्ता कहा "वाह क्या कलाम है। मुझे तो बहुत पसंद आया। मै उसी अल्लाह पर ईमान लाता हु। "
अब्दुल्लाह खुश हो गए उन्होंने कहा "अगर आप अल्लाह पर ईमान ले आये है तो मुसलमान हो जाईये।
हुक्मरान : मुस्लमान आये तो मैं मुस्लमान हो जाऊ।
अब्दुल्लाह : आज मै एक बात आप पैट ज़ाहिर करता हु। जब मुस्लमान सौदागर यहाँ आये थे और उन्होंने मुझे अपने मज़हब की बाते बताई थी तो मैं मुस्लमान हो गया था। इस बात को मैंने आज तक छिपाया। लेकिन अब जबकि अल्लाह ने आपको भी इस मज़हब की तरफ रागिब कर दिया तो मैंने ज़ाहिर कर दिया।
हुक्मरान :तुम अच्छे रहे। अब जब मुस्लमान यहाँ अजायँगे तो मैं भी मुस्लमान हो जाऊंगा।
अब्दुल्लाह : अगर आप मुस्लमान होना चाहे तो मैं कर सकता हु।
हुक्मरान : भई मैं तैयार हु।
अब्दुल्लाह : पढ़िए कलमा शहादत ..... यानी गवाही देता हु मैं की सिवाए अल्लाह के कोई इबादत के लायक नहीं और गवाही देता हु की मुहम्मद अल्लाह के रसूल है।
हुक्मरान न पढ़ा और मुस्लमान हो गए। उसने कहा यह वही मुहम्मद है जो अरब में पैदा हुए थे। "
अब्दुल्लाह : हां. वही मुहम्मद है अल्लाह ने अपने बन्दों को आगाह कर दिया की मुहम्मद उसके रसूल है यौम उन्हें बहक कर खुदा के बराबर न समझ लेना . हुक्मरान : यह अजीब बात है की जब मैं मुहम्मद का नाम सुनता था तो मेरे दिल में उनकी मुहब्बत पैदा हो जाती थी .
अब्दुल्लाह : जो उनसे मुहब्बत करता है मुस्लमान हो जाता है। अब अगर आप हुक्म दे तो मैं मुस्लमान को आपके मुस्लमान होने की इत्तेला देदू।
हुक्मरान : मैं और तुम ऐसा ही क्यू न करे की उनके पास चले।
अब्दुल्लाह : अच्छी बात है . चलिए।
हुक्मरान :अच्छा कल चलेंगे।
अब्दुल्लाह वहा से चले आये।
अगला भाग ( ईमान की पुख्तगी)
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👍
ReplyDeleteI love novel
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