fatah kabul (Islami Tareekhi novel) part 30
ईमान की पुख़्तगी........
दूसरे रोज़ हुक्मरां और अब्दुल्लाह के साथ पचास सवारों के रवाना हुए अब्दुल्लाह ने एक क़ासिद अपनी और हुक्मरां की आमद की खबर करने के लिए आगे रवाना कर दिया। क़ासिद को समझा दिया कि वह यह भी खबर देदे की हुक्मरां मुस्लमान हो गए है।
क़ासिद ने अब्दुर्रहमान की खिदमत में पहुंच कर तमाम हालात बयान कर दिए। अब्दुर्रहमान को बड़ी ख़ुशी हुई। उन्होंने से सलेही से सुन लिया कि इलियास की गुफ्तुगू से मुतास्सिर होकर अब्दुल्लाह मुस्लमान हुए है। उन्होंने सलेही और इलियास के हमराह पांच सौ मुस्लमान को उनके इस्तेकबाल के लिए भेज दिया। यह लोग चार पांच मील तक बढ़े चले गए। वहा उन्हें अब्दुल्लाह और हुक्मरान वगैरा आते हुए मिले उन लोगो ने अल्लाहु अकबर का पुर शोर नारा लगा कर उनका इस्तेकबाल किया।
एक दफा तो हुक्मरा इतने मुसलमानो को देख कर रुक और नारा सुन कर डर गया लेकिन अब्दुल्लाह ने उसका इत्मीनान कराया और बताया की यह लोग यक़ीनन हमारा इस्तेकबाल करने के लिए लिए आये है। हुक्मरा को इत्मीनान हो गया।
जब यह लोग क़रीब आये तो फिर मुसलमानो ने नारा तकबीर बुलंद किया और रास्ता पर दूर वह खड़े हो गए। सलेही और इलियास ने आगे बढ़ गए और उनका इस्तेकबाल किया और उन्हें सलाम किया उन अल्फ़ाज़ से अस्सलामु अलैकुम पूरा सलाम किया। अल्लाह की रहमत हो और बरकत हो। अब्दुल्लाह ने जवाब दिया अलैकुम सलाम व रहमतुल्लाह व बर्कातहु मतलब और तुम पर भी सलामती हो और अल्लाह की रहमत हो और बरकत हो।
सलेही ने खुश आमदीद। हमारे अमीर को और तमाम मुसलमानो को आपके आने से बड़ी ख़ुशी हुई है। "
अब्दुल्लाह ने कहा "हम तमाम मुसलमानो के और अमीर के शुक्र गुज़ार है। "
सलेही : मैं वाली अज़रंज के मुसलमान होने पर मुबारक बाद अर्ज़ करता हु। "
हुक्मरान :मुबारकबाद उन्हें दो। जिनका नाम तुमने अब्दुल्लाह रखा है उन्होंने मेरी रहबरी की है। मुझे तारीकी से रौशनी में निकाला है। बा खुदा मझे अफ़सोस हो रहा है की अब तक में क्यू अँधा रहा। अब तक क्यू उस बुत को पूजता रहा जो न फायदा पंहुचा सकता है न नुकसान। मैंने अपनी इतनी उम्र कुफ्र व शिर्क में गुज़ारी।
सलेही : चुकी तुमने तोबा कर ली है मुसलमान हो गए हो इसलिए अल्लाह ताला तुम्हारे गुनाह माफ़ कर देगा। मुस्लमान होने के बाद इंसान के तमाम पिछले गुनाह माफ़ हो जाते है। वह बिलकुल ऐसा हो जाता है जैसे बच्चा माँ के पेट से मासूम पैदा होता है।
हुक्मरा : यह अल्लाह का अहसान है।
अब यह सब लश्कर इस्लाम की तरफ आहिस्ता आहिस्ता बाते करते हुए जब वह लश्कर के क़रीब पहुंचे तो एक हज़ार मुजाहिदीन ने उनका शानदार इस्तेकबाल किया। उन इस्तक़बाल करने वालो में कई बड़े बड़े अफसर भी थे।
हाकिम बहुत खुश थे की हर मुस्लमान उनके सामने झुका जा रहा है और हर मुस्लमान उनके मुस्लमान होने से बहुत खुश है। जब वह कैंप के किनारे पर पहुंचे तो अब्दुर्रहमान ने तमाम लशकर के उनका गर्मजोशी से खैर मुक़द्द्म किया।
सलेही ने हाकिम को इशारे से अब्दुर्रहमान को बताया की यह हमारे सिपह सालार है। हाकिम ने उन्हें देखा और ताज्जुब करते हुए कहा 'आप सिपाह सालार है। आप तो नौजवान है।
अब्दुर्ररहमान : मेरी उम्र तो कुछ है भी लेकिन हमारे वाली जिन्हे है, अमीर कहते है और जो कई सूबो के गवर्नर है वह तो मुझसे भी कम उम्र है। वजह यह है की हम मुस्लमान कमसिनी में ही फुनून जंग सीख लेते है और नौ उमरी में लड़ाईयों में शरीक हो कर तजरबात हासिल कर लेते है जंग का फन और तजर्बा कार होने पर दफीर मुक़र्रर कराये जाते है। लेकिन जंगजू और तजर्बा कारी के साथ साथ परहेज़गारी और इबादत गुज़ारी भी ज़रूरी है। जो शख्स जितना परहेज़गार और इबादत गुज़ार होगा। मुसलमानो में उतनी ही उसकी इज़्ज़त व अज़मत होगी और वह बड़े से बड़े उम्दा का हक़दार हो जायेगा हमारे नबी हज़रत मुहम्मद (स,अ ,स) ने एक गुलाम उसामा बिन ज़ैद को सततरह साल की उम्र में सिपाह सालार बना दिया था।
हाकिम : तुम सब एक लिबास में रहते हो। किसी अफसर के पास न कोई इम्तियाज़ी निशान है न इम्तियाज़ी लिबास।
अब्दुल्लाह : हम सब अपना क़ौमी लिबास पहनते है। शान और नमूद के लिए अच्छा लिबास पहन सकते जो लिबास एक आम मुजाहिद का होगा वही अफसरों का होगा। सिपाह सालार का होगा यहाँ तक की हमारे बादशाह का भी वही लिबास है हमारी शान अच्छे लिबास से नहीं बल्कि नूर इमान से है। तक़वा और परहेज़ से है। खुदा परस्ती और खुदा तरसी से है। इस्लाम झूटी नुमाईश नहीं देता। नमूद व नुमाईश चाहने वालो को शैतान आसानी से बहका लेता है।
हाकिम: तुम सच कहते हो। मुझे उसका तजर्बा है मैं शान व नमूद चाहता रहा अपनी रियाया को अपने से कमतर और खुद को उनसे बरतर समझता रहा कई मर्तबा शैतान ने मुझे वरगलाया की मैं हाकिम नहीं अपनी रियाया का खुदा हूँ। लोग बुध की मेरी पूजा करे।
अब्दुर्रहमान : यह इंसानी तबीयतो का खासा है की जिस शख्स की लोग जिस क़द्र इज़्ज़त व अज़मत करते है इतना ही वह मगरूर होकर चाहता है की और ज़्यादा इज़्ज़त अहतराम करे हमारी क़ौम में यह बात नहीं है। हमारी क़ौम में सब बराबर है। गरीब ,अमीर बादशाह व फ़क़ीर सब एक है। .किसी को किसी पर फ़ौक़ियत नहीं। एक गरीब अमीर को ही नहीं बल्कि बादशाह को भी उसकी गलत रोई पर टोक सकता है। हमारे बादशाह की यह मजाल ही नहीं की वह ख़ुदसरी से कोई काम कर सके। वह अपने अफआल व अमाल का तमाम मुसलमानो के सामने जवाब दे सके। अगर वह गलती करे तो हम उसे माज़ूल कर सकते है। मैं सिपाह सालार हु लेकिन अगर मैं गलती करू तो सिपाही मुझे मेरे ओहदा से अलग कर सकते है। हम में एक को दूसरे पर कोई फ़ौक़ियत नहीं इस वजह से हम में कोई शख्स फख्र गुरूर नहीं कर सकता।
अब यह लोग कैंप में दाखिल हुए। हाकिम ने नज़रे उठा कर देखा। मुसलमानो के तमाम खेमो में एक ही क़िस्म के कम्बलो का फर्श बिछा हुआ था। यहाँ तक की अब्दुर्रहमान के खेमा में भी वैसा ही फर्श था।
कैंप में पहुंच कर तमाम मुजाहिदीन अपने अपने खेमो पर पहुंच गए। सिर्फ चंद अफसर ,सलेही और इलियास रह गए अब्दुर्रहमान ने सदर में हाकिम को बिठाया और उनके सामने सब बैठ गए। हाकिम ने कहा " आज मुझ पर मुसलमानो की मसावात का बड़ा असर हुआ है। मैं तो यह समझता हु की मुसलमानो की तरक़्क़ी का राज़ ही मसावात में है।
अब्दुर्रहमान : मुसलमानो का तरक़्क़ी का राज़ खुदा परस्ती ,इबादत ,तक़वा और परहेज़गारी है। बात यह है की मुस्लमान खुदा से डरता ,उसकी इबादत करता और उसके अहकाम पर अमल करता है। आपने यह देख लिया की मुसलमानो से वह अज़ीम व शान सल्तनते टकराये एक ईसाईयों की रूमी सल्तनत और दूसरी ईरान की मजूस हुकूमत .दोनों ने मुसलमानो को कुचल डालना और दुनिया से नेस्त व नाबूद कर देना चाहा लेकिन खुदा ने मुसलमानो की मदद की और मुठी भर मुसलमानो ने सल्तनतों को पारा पारा कर दिया।
हाकिम : दुनिया मुसलमानो के उन कारनामो को देख कर हैरान रह गयी है। और उनकी बहादुरी शुजाअत और इस्तेक़लाल का लोहा मान गयी है।
अब्दुर्रहमान : हमारी बहादुरी का राज़ शहादत में मुज़मर है। खुदा और खुदा के रसूल ने यह फ़रमाया है की जिहाद में शहीद होने वाला जन्नत में दाखिल होंगे। अल्लाह ने यह भी फ़रमाया की शहीदों को मुर्दा मत समझो वह ज़िंदा है और अल्लाह उन्हें रिज़्क़ देता है। क़यामत तक वह आराम व राहत से रहेंगे और क़यामत के बाद बगैर हिसाब किताब के जन्नत में दाखिल किये जायेंगे। अल्लाह ने जज़ा व सज़ा के लिए दो चीज़े बनाई है। एक जन्नत दूसरी दोज़ख। अच्छे अमल करने वाले जन्नत में जायँगे और बुरे अमल करने वाले दोज़ख में शामिल होंगे। दोज़ख आतिश ज़ार है जिसका ईंधन गुनहगार इंसान जिन्न और पत्थर है। वह आग के शोलो में हमेशा रहेंगे उन्हें दर्दनाक अज़ाब होता रहेगा। जन्नत में आराम ही आराम है ,न वहा फ़िक्र होगा न परेशानी ,जरंगगार मसनदों पर सोने चांदी के तख्तो पर तकिये लगाए आराम करते होंगे। जन्नत में कई दर्जे है। जिसके जितने अमाल होंगे वह इतने ही अच्छे दर्जे में होंगे। सबसे बुलंद दर्जा शहीदों को मिलेगा। उनकी खिदमत के लिए ऐसी हसींन हूरे होंगी जिनके चेहरों से हुस्न व जमाल की रौशनी फूटती होंगी। अगर उनमे से कोई हूर दुनिया में आजाये तो साड़ी दुनिया उसे देख कर दीवानी हो जाये।
हाकिम : उन बातो को सुन कर मेरा ईमान और पुगता हो गया।
अब्दुल्लाह : उनका इस्लामी नाम तज़वीज़ कर दीजिये।
अब्दुर्रहमान : उनका नाम अब्दुलर्रब रखा गया।
अब्दुलरब : मैं आप लोगो को अपने साथ ले चलने के लिए इसलिए आया हु की क़िला आपके हवाले कर दूँ।
अब्दुर्रहमान : आप मुस्लमान हो गए है। आपका क़िला और आपकी हुकूमत आपको मुबारक रहे। अब कोई मुस्लमान आपके क़िला की तरफ आँख उठा कर देखने की भी जुरअत नहीं कर सकता।
अब्दुलरब : तब आप मेरे मेहमान बन कर चलिए।
अब्दुर्रहमान : बड़े शौक़ से।
उन्होंने कोच का अएलान करा दिया ,मुस्लमान तैयारी करने लगे।
अगला पार्ट ( दीनउल्लाह में दाखिला )
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