fatah kabul (islami tarikhi novel) part 12
एक हमदर्द ,,,,,,,,,
- मुसलमानो को इस बात का बहुत अफ़सोस हुआ के शहर ज़रनज के मर्ज़बान ने उनकी मदारत करना तो दरकार उन्हें अपने शहर में रात बसर करने की भी इजाज़त न दी। वह इस बात को समझ गए के उसे मुसलमानो से क़ल्बी अदावत है। इस बात का सुराख़ लगाने का मौक़ा न मिल सका के वह मुसलमानो से लड़ाई की तैयारी तो नहीं कर रहा है।
- रात उन्होंने मैदान में जाकर बसर की और सुबह होते ही वहा से कश की तरफ चल पड़े। अब वह उस इलाक़े में सफर कर रहे थे जो बिलाद हिन्द के के नाम से मशहूर है। शहर ज़रनाज और कश का दरमियानी इलाक़ा बिलाड़ हिन्द ही कहलाता था।
- अब तक जिस मुल्क को यह लोग तये कर रहे थे। व खासा गर्म था लेकिन अब जिस इलाक़े में दाखिल हुए उसमे गर्मी काम थी। यह लोग कश को आबूर करके अजरंज में पहुंचे। यह इलाक़ा काफी सर सब्ज़ व शादाब था। यहाँ गर्मी और भी कम थी। इस नवाह के लोगो को इन्होने अच्छा और तंदुरस्त और सुर्ख व सफ़ेद रंग का पाया। लेकिन वहा के मर्दो और औरतो के चेहरों में दिलकशी और जज़्बीयत नहीं थी। नक़्श व निगार भी अच्छे नहीं थे। सब्ज़ा अलबत्ता बहुत भला था। एक रोज़ उन्होंने अजरंज में क़ियाम करना चाहा। जब वह शहर के क़रीब पहुंचे तो उन्हें चंद आदमी मिले। उन्होंने उनसे कहा "तुम शायद वही अरब हो जिन्होंने ईरान पर क़ब्ज़ा कर लिया है।
- सलेही ने जवाब दिया "है हम उस क़ौम से है।
- एक हिंदी ने कहा :"तब हम तुम्हे मशवारा देते है के तुम शहर के अंदर न जाओ।
- सलेही :क्या बात है।
- हिंदी : बात यह है के इस नवाह के तमाम लोग तुम्हारी क़ौम से नाराज़ है। खौफ है कही बाज़ जोशीले तुम्हे नुकसान न पहुचाये।
- सलेही : लेकिन हम सौदागर है।
- हिंदी : हम तो यह जानते है के तुम मुस्लमान हो।
- सलेही : लेकिन हम तुम लोगो से तो नहीं लड़ते।
- हिंदी : मगर ईरानियों ही से क्यू लड़े।
- सलेही : इसलिए ईरान के मगरूर बादशाह ने हमारे मुहतरम रसूल अल्लाह को गिरफ्तार करने के लिए अपने एक वाली याज़ान को लिखा था। हम उसकी यह खुद साडी और दीदादिलेरी बर्दाश्त न कर सके।
- हिंदी : हम समझते है के तुम अपनी हुकूमत को वसीय और मज़बूत कर रहे हो। तुमने एक तरफ ईरान और दूसरी तरफ रूमी हुकूमत पर एक साथ हमला कर दिया।
- सलेही : हमीरण पर हमला करने की वजह बता चुके है अब रूमी सल्तनत पर यलगार करने का सबब भी सुनो। हमारे मुकर्रम व मुअज़्ज़म रसूल अल्लाह ने जो तमाम दुनिया की हिदायत के लिए तशरीफ़ लाये थे। हरक़ल आज़म क़ैसर रूम के पास अपना सफीर दावत इस्लाम के लिए भेजा। हरक़ल आज़म के गवर्नर शरजील ने उन्हें बिला किसी कुस्सोर के शहीद कर डाला हरक़ल आज़म ने उससे कोई बाज़ पर्स नहीं की बल्कि जब उससे क़सास तलब किया गया तो उसने निहयात मगरूराना जवाब दिया और शरजील को लिख दिया के वह अरबो से जंग शुरू करदे।
- अगर रूमी लश्कर अरब पर हमला कर देता। तो सारी दुनिया यह समझ लेती के मुस्लमान कमज़ोर है। उनका क़ासिद मारा गया। वह उसका इन्तेक़ाम न ले सके। और रूमीओ के हमले भी बढ़ जाते इसलिए उन पर लश्कर कशी की गयी और उन्हें उनके ही मुल्क में रोक दिया गया।
- हरक़ल आज़म ने अपनी पूरी क़ुअत से मुसलमानो का मुक़ाबला किया लेकिन खुदा की मदद मुसलमानो के शामिल हाल थी उसके लश्करों को पारा पारा कर दिया गया। उसके मुमालिक छीन लिए गए। यहाँ तक के उनके दारुल सल्तनत पर क़ब्ज़ा कर लिया गया।
- हिंदी : इसतरह तुम हमला करने में हक़ बजानिब थे। लेकिन यहाँ के लोगो को यह हालात मालूम नहीं है। वह तो सिर्फ यह समझते है के तुमने मुल्क गिरी की हवस में उन दोनों ज़बरदस्त सल्तनतों पर हमला करके उन्हें उलट दिया है और इसलिए ख़ाइफ़ है के कही तुम हम पर हमला न कर दो।
- सलेही : मुस्लमान उस वक़्त तक हमला नहीं करता जब तक उस पर हमला न किया जाये। या उसे छेड़ा न जाये। अगर तुम लोग हमारे मुक़ाबला की तैयारी न करोगे तो हम इत्मीनान दिलाते है के तुम पर हरगिज़ लश्कर कशी न करंगे।
- हिंदी :बात यह है के यहाँ के लोगो को तुम्हारा एतबार नहीं रहा है। मै तुमसे कोई बात छिपाना नहीं चाहता। यह हक़ीक़त है के काबुल से ज़रनज तक जंगी तैयारियां हो रही है। और यह कोशिश की जा रही है के यहाँ के सब हुक्मरान मिल कर तुम पर हमला करे। और अगर ज़रूरत हो तो भारत वर्ष के राजाओ से भी मदद तलब की जाये।
- सलेही : यह भारत वर्ष कोण सा मुल्क है ?
- हिंदी : बार्रे आज़म हिन्द का नाम भारत वर्ष है। जिस इलाक़ा में इस वक़्त तुम हो यह भी हिन्द ही में शामिल है।
- सलेही : अरबो ने तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ा है। मुसलमानो ने तुम्हारे किसी एक आदमी को भी तकलीफ नहीं पहचायी है। गवर्नमेंट इस्लामिया का इरादा तुम पर हमला करने का बिलकुल ही नहीं है। फिर तुम क्यू उन पर लश्कर कशी की तैयारी कर रहे हो।
- हिंदी : हमे खौफ है के तुम हम पर भी ज़रूर यलगार करोगे।
- सलेही : पहले मैं यह मालूम करना चाहता हु के तुम कौन हो।
- हिंदी : मैं इस क़िला की फ़ौज का अफसर हु।
- सलेही : यह बहुत अच्छा हुआ के हमें तुम से गुफ्तुगू करने का मौक़ा मिल गया। लड़ाई की तैयारी करने से यह अच्छा है के तुम सुलह कर लो।
- हिंदी : मेरा मशवरा यह था लेकिन काबुल के महाराज ने उस बात को नहीं माना।
- सलेही : वह क्या चाहते है ?
- हिंदी : वह ईरान को अपनी हुकूमत में शामिल करना चाहते है।
- सलेही : तो अब बताईये के मुल्क गिरी की हवस किसे कहते है। और लड़ाई का ख्वाहिशमंद कौन है।
- हिंदी : यह बात नहीं बल्कि यह देखना चाहिए के यह तहरीक किस वजह से पैदा हुई।
- सलेही : क्या काबुल के महाराजा ने जंगी तैयारियां कर ली है।
- हिंदी : कुछ कर ली है। कुछ की जा रही है।
- सलेही : अफ़सोस है के मुसलमानो को कोई क़ौम चैन से नहीं बैठने देती। अभी ईरानियों और रूमियों से जंग करके निम्टे है। अब काबुल के महाराज लड़ने को तैयार है। मैं यह बता दू के इंसान पैगाम अमन लेकर आया है हम खुद भी अमन वा आमान से ज़िन्दगी बसर करना चाहते है। और सारी कालमृद में भी अमन देखना चाहते है। हमने किसी मुल्क पर अज़ख़ुद हमला नहीं किया। न आइंदा करना चाहते है। मालूम होता है आप भी अमन व आमान ही के ख्वाहिश मंद है। आप अपने हुक्मरान के ज़रिये से फिर इसी तहरीक को उठाईये। शायद महाराजा काबुल की समझ में आजाये और आने वाली जंग की बाला टल जाये।
- हिंदी : अब यह बात मुमकिन नहीं मालूम होती। कूके महाराजा काबुल जिस बात का इरादा कर लेते है। उसे अधूरा नहीं छोड़ते। दवार में जो भगवन बुध का बूत है उससे फतह व कामरानी की दुआ मांगी जाने।
- सलेही : ददावर कहा है ?
- हिंदी ; यहाँ से थोड़े ही फैसला पर एक मशहूर शहर दावर है। उसमे एक ज़बरदस्त। इस धार भगवान् बुध का बुत है। जो खालिस सोने का है उसकी दोनों आँखों में दो ऐसे लाल लगे है जो बड़े ही नायब और क़ीमती है।
- सलेही : यह धार क्या चीज़ है ?
- हिंदी : तुम धार को भी जानते। यानि बुध मज़हब वालो का माबाद है।
- सलेही : क्या उस धार में जाकर उस बुत के सामने दुआ मांगने का कोई खास सबब है ?
- हिंदी : हां उस धार में आम तौर पर मुल्क की माया नाज़ हसीं औरते और मेहजबीन लड़किया जमा हो कर दुआ माँगा करती है। महाराजा काबुल की सुपत्री सिघमित्रा भी जो इस ज़माना की बे नज़ीर हसीना है इस धार में आने वाली है। वह इस क़दर खूबसूरत और माह जबीन लड़की है के शायद चश्म फलक ने आज तक भी न देखि होगी।
- सलेही : आपने तो उसकी तारीफ करके उसके देखने का इश्तियाक़ हमारे दिलो में पैदा कर दिया। है
- हिंदी : वह देखने और देखते रहने के क़ाबिल है। मैंने इस बहार हुस्न और मस्त शबाब को दूर से एक नज़र देखा है। मेरा ख्याल है के अगर पास से देख लेता तो ज़रूर अपने होश व हवास खो बैठता।
- सलेही : क्या हम भी उस हूर जबीन को देख सकते है ?
- हिंदी : न मुमकिन है। अलबत्ता अगर तुम लिबास तब्दील कर वह तो शायद नाज़ह जमाल कर सको।
- सलेही : क्या आप हमारे लिए लिबास मुहैया करने की तकलीफ गवारा करंगे।
- हिंदी : अच्छा तुम यही शहर के बहार क़याम करो। मैं चार जोड़े भेज दूंगा।
- हिंदी अपने हमराहियों के साथ चला गया और उस काफला ने शहर के बहार एक अच्छा मुक़ाम देख कर क़ायम कर दिया।
अगला भाग (तब्लीग इस्लाम )
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
Tags:
Hindi