Fatah kabul (islami tarikhi novel) part 5 ajeeb mazhab
अजीब मज़हब।
- इल्यास बड़े गौर से उन हालात को सुन रहे थे। उन्होंने कहा :अम्मी जान उससे मालूम हुआ हिन्द पुर फ़िज़ा मुल्क है। "
- अम्मी :उस औरत ने जब उस मुल्क के हालात बयान किये तो मुझे भी उसके देखने का बड़ा इश्तियाक़ पैदा हो गया था। लेकिन उस मुल्क में एक बड़ी कमी है। और उस कमी की वजह से मेरा सारा शौक़ ठंडा पड़ गया।
- इल्यास :वह क्या कमी है अम्मी जान ?
- अम्मी :बावजूद वहा तरह तरह के फल है। क़िस्म क़िस्म के मेवे है। बड़े लज़ीज़ और खुश ज़ायक़ा मगर खुजूरे नहीं है।
- इल्यास :खुजुरे नहीं है।
- अम्मी :हां बेटा।
- इल्यास : बस वहा कुछ भी नहीं है। हज़ार क़िस्म के मेवे हो और हज़ार किसम के फल हो लेकिन जब खुजुरे नहीं तो तो कुछ भी नहीं। लेकिन वहा के लोग कहते क्या है।
- अम्मी :वही मेवे और फल जो वहा पैदा होते है।
- इल्यास :क्या लुत्फ़ आता होगा उन्हें शायद वह खुजूरो के ज़ायक़ा से वाक़िफ़ नहीं है।
- अम्मी :जब वहा यह चीज़ होती ही नहीं तो वह उसका ज़ायक़ा क्या जाने।
- इल्यास :अम्मी जान तुमने उस औरत से उसके मज़हब के बारे मरे कुछ पूछा नहीं था?
- अम्मी :उस रोज़ तो मौक़ा न मिल सका। मगर अगले रोज़ जब वह आयी तो मैंने उससे पूछा। मेरा ख्याल है के वो किसी झूठे नबी की पेरू है। मगर दरयाफ्त करने पर पता चला के वह किसी और मज़हब पेरू है। उस मज़हब की जो चीन और शिमाली हिन्द में फैला हुआ है।
- इल्यास :चीन में कोई और मज़हब है।
- अम्मी :बेटा दुनिया में न जाने कितने मज़हब है। मगर उस औरत ने जो अपने मज़हब की बाते बताई तो मैं हैरान रह गयी। के दुनिया में कैसे कैसे लोग मौजूद है। मेरी उस औरत से जो बाटे हुई थी वह सब ज़रा तफ्सील से बयां करूंगी। वह औरत अपने मज़हब की मुबल्लिग थी। जब दूसरे रोज़ हमारे घर आयी तो मैंने उसकी बड़ी खातिर की। राबिया को भी उससे कुछ उन्स हो गया था। उसके आते ही वह भी उसके पास आगयी। औरत भी राबिया को बहुत चाहने लगी थी। उसने उसको अपनी गोद में बिठा लिया और कहा "मुल्क चीन में बहुत खूबसूरत गुड़िया बनाई जाती है। राबिया उन सब गुडियो से भी ज़्यादा खूबसूरत है। यह चीन से ज़्यादा दिलफरेब अगर इसके मुजस्समे बनाये जाये तो लोग देख कर हैरान रह जाये।
- मैंने पूछा :क्या तुम्हारे मुल्क में इंसानी के मुजस्समे बनाये जाते है ?
- उसने कहा:हां एक ज़माने में औरतो और मर्दो के निहायत खूबसूरत मुजस्समे बनाये जाते थे। लेकिन जब से भगवान् बुध ने जन्म लिया है उस वक़्त से अब सिर्फ उनके मुजस्समे बनने लगे है। उनके मैंने वाले उनके बूत बनाते और उनकी पूजा करते है।
- इल्यास :ओह्ह!अब समझा मै वह औरत बुतपरस्त थी।
- अम्मी :हां मगर वह अपने आपको बुतपरस्त नहीं कहती थी। उसका अक़ीदा था के भगवान् बुध के कालिब में दुनिया वालो की हिदायत के लिए ए थे। वह निजात के तरीके बता कर गए। जो शख्स उन तरीक़ो पर चलेगा उसे निजात मिलेगी। जो उन तरीक़ो पर नहीं चलेगा वह जून के चककर में फंसा रहेगा।
- इल्यास : जून का चक्कर कैसा?
- अम्मी:उसके बारे में उसका अक़ीदा अजीब था। वह अवा गोन की कईल थी। मतलब रूह पहल बदल कर मुख्तलिफ कालिबो में सड़ा पाने के लिए आती जाती रहती है।
- इल्यास : मैं समझा नहीं अम्मी जान।
- अम्मी :मैं भी बहुत देर में समझी थी। वह कहती थी के एक लाख और कई हज़ार जून मतलब कालिब है। गुनहगार इंसान उन तमाम कालिबो में आना मतलब पैदा होता और जाता यानि मरता रहता है उसके बाद उसे निजात मिलती है। उसका अक़ीदा था के कीड़े मकोड़े कुत्ते,बिल्ली,शेर,सांप गरज़ के हर जानवर ,परिन्द।हशरातुल अर्ज़ सब जानदार पहले इंसान थे। बुरे काम करने की वजह से उन जूनो कालिबो में आगये है। और सजा भुगत रहे है।
- इल्यास : अजीब अक़ीदा था उसका वह यह नहीं समझती थी के जिस तरह अल्लाह ताला ने इंसानो को पैदा किया है इसी तरह तमाम जानवरो और दूसरे ज़ी रूह को पैदा किया है।
- अम्मी :उस मौज़ू पर मैंने उसको बहुत समझाना चाहा लेकिन वह कुछ भी नहीं समझी। शुरू में इंसान पैदा हुआ था। सजा के तौर पर वह जानवर बनता गया। वह खुदा यानि भगवान् को मानती थी लेकिन उसे ख़ालिक़ मुख़्तार कुल और फ़ना करने वाला नहीं मानती थी। उसका अक़ीदा था के रूह और माद ,खुदा की तरह से अज़ली है। खुदा किसी चीज़ को पैदा नहीं करता बल्कि हर चीज़ खुद पैदा हो जाती है। और खुद ही फ़ना हो जाती है। .
- इल्यास :कैसा वाहियात अक़ीदा था उसका। तुमने उसे क़ुरान शरीफ की आयते नहीं सुनाई ?
- अम्मी :क्यू न सुनाती। मैंने उसे बताया के खुदा वह है जिसने दुनिया और दुनिया की हर चीज़ को पैदा किया है।हर पर क़ादिर है। उसके हुक्म के बगैर ज़र्रा भी हरकत नहीं कर सकता। वह ही सब कुछ पैदा करता है। उसके इल्म में हर चीज़ है। वही रिज़्क़ देता है। इज़्ज़त और ज़िल्लत देता है दौलत और हुकूमत देता है। जलाता और मारता है। मैंने जब उसे आयते पढ़ पढ़ कर सुनायी और उनका तर्जुमा करके समझाया तो कहने लगी यह कलाम पढ़ रही हो यह तो बहुत प्यारा है। लेकिन हमारी किताब त्रिपिटक से मुताबिक़त नहीं करता।
- इल्यास :त्रिपिटक क्या है ?
- अम्मी :उनका धर्म शास्त्र यानि मज़हबी किताब।
- इल्यास :उसने अपनी मज़हबी किताब पढ़ कर नहीं सुनाई थी ?
- अम्मी :क्यू न सुनाती। बात बात में कुछ पढ़ती थी लेकिन वह ज़बान कुछ अजीब थी। गैर मानूस। लेकिन एक तो वह औरत खूबसूरत थी दूसरे उसकी आवाज़ बड़ी प्यारी थी। जब बाते करती थी तो फूल झड़ते थे जी चाहता था के वह कुछ कहे जाये और चुप बैठे सुने जाये।
- इल्यास :ऐसा मालूम होता है के उस मज़हब के लोगो ने अपने मज़हब की तब्लीग के लिए खूबसूरत औरतो को इसलिए मुन्तख़ब किया था के उनके हुस्न से लोग मशहूर हो कर उनके मज़हब में दाखिल हो जाये।
- अम्मी :मेरा भी यही ख्याल हुआ था। लेकिन उसको यहाँ कामयाबी नहीं हुई थी। वह औरत कहती थी के उस मुल्क के लोग अजीब है। न तो बहस मुबाहसा करते है। न अपने मज़हब के खिलाफ कुछ सुन्ना चाहते है न दूसरे मज़हब मज़हब पर तनक़ीद करते है। मैंने उससे कहा के उस में सब लोग मुस्लमान है ला इलाहा इलल्लाल्लाह मतलब अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है और मुहम्मद अल्लाह के रसूल है उसके मैंने वाले है। वह तनसीख़ (अवगुन )के क़ायल नहीं है। उनका अक़ीदा है के अल्लाह ने ही हर चीज़ को पैदा किया है। वही बक़ा और फ़ना पर क़ादिर है। जो कुछ होता है उसी के हुक्म से होता है। वह ज़बरदस्त क़ुदरत वाला है। बेनियाज़ और बड़ा मेहरबान वाला है। उसे माफ़ करने की क़ुदरत है। जो शख्स गुनाह करके पछताता आजज़ी और तोबा करता है वह उसके गुनाह माफ़ कर देता है तुम्हारे भगवान की तरह आजिज़ व लाचार नहीं है। जो न किसी को पैदा करता है न जिलाता है न मरता है न कुछ दे सकता है। न ले सकता है न दे सकता है बल्कि एक कोना में बैठा रूह और मादा का तमाशा देखता रहता है। वह देखता है के इंसान गुनाह करता है जानवर इतयात नहीं करते मगर उन्हें सजा नहीं दे सकता। जो लोग अच्छे आमाल करते है उन्हें उसका सिला नहीं दे सकता। रूहे खुद मुख़्तार है। मादा बागी है रूह जिस्म में चाहती है आज खुद उसमे हालूल कर जाती है। कोई उसे रोक नहीं सकता। तुम्हारा भगवान् क्या कमज़ोर और किस क़दर आजिज़ है। वह औरत इन बाटी बातो को सुन कर भौंचिकि रह गयी। मुझे ख्याल हुआ के शायद उसपर इन बातो का असर हुआ है। मगर वह बड़ी मुतअस्सब थी। जो असर हुआ था वह जल्दी जायल हो गया। और फिर वह तनसीख़ पर गुफ्तुगू करने लगी।
- इल्यास :क्या उसके मज़हब का मदार तनसीख़ पर ही था।
- अम्मी :उसके अक़ीदे कुछ अजीब थे। उन अक़ीदों में से एक अक़ीदा यह भी था के जब एक मर्तबा मैंने उससे कहा के जब रूह और मादी मोद ही खेलते है रूह दूसरे जिस्म में खुद चली जाती है तो तुम्हारा भगवान् क्या करता है। यह सुन कर वह कुछ गड़बड़ा सी गयी।
- इल्यास :मगर खुदा के मुताल्लिक़ उसका क्या अक़ीदा था ?
- अम्मी :जब मैंने खुदा के मुताल्लिक़ बाते की तो वह कुछ टालने लगी। कहने लगी भगवान् को तो हम मानते है लेकिन हम अपने कर्मो के खुद ज़िम्मेदार है इसलिए भगवान् या खुदा हमे सजा नहीं देता बल्कि हम खुद अपने कर्मो के फल भुगते है। ओह्हो ! अज़ान हो रही है बेटा ज़ुहर की नमाज़ पढ़ कर आती हु। जब आओगे तब तुम्हे और हालात बताउंगी। और आखिर में यह भी बताउंगी के तुम्हे काबुल क्यू भेजना चाहती हु।
- इल्यास उठ कर मस्जिद की तरफ चले गए। और उनकी अम्मी उठ वज़ू करने लगी।
अगला भाग (अजीब अक़ाइद )
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Hindi