fatah kabul ( islami tareekhi novel) part 55
तकमील आरज़ू ........
जिस वक़्त इल्यास ने झंडा लहराया ठीक उसी वक़्त कई ख़ुशी मुसलमानो ने मिल कर सुबह की अज़ान दी। एक तो सुबह का वक़्त था दूसरा तूफान के बाद का सा सुकून छाया हुआ था अज़ान की दिलकश आवाज़ तमाम क़िला में गूँज उठी अज़ान सुनते ही मुस्लमान जहा कही भी थे खामोश खड़े हो गए। अज़ान खत्म होते ही हर मुस्लमान ने दुआ पढ़ी और अमीर के झंडा की तरफ चला। थोड़े ही देर में तमाम मुस्लमान वहा आकर जमा हो गए जोकि क़िला के अंदर वाले तमाम मैदान में लाशे पड़ी हुई थी इसलिए दरबार आम के क़रीब जाकर उन्होंने जमात से नमाज़ पढ़ी। नमाज़ पढ़ कर अब्दुर्रहमन ने कहा।
"मुसलमानो ! खुदा का हज़ार हज़ार शुक्र व अहसान है जिसने हम मुठी भर मुसलमानो की मदद की और हमें दुश्मनो से फतह अता फ़रमाई। दुश्मन हमें कमज़ोर समझ कर हम पर चढ़ाई करने की तैयारी कर रहा था हमने उसे उसके घर पर आ दबाया। काबुल वालो की ताग़ूती ताक़त का खात्मा हो गया काबुल जो बुतपरस्ती का मरकज़ था वहा खुदा वाहिद का नाम पुकार दिया गया। अब इंशाल्लाह यहाँ से कुफ्र की तारीकी दूर हो जाएगी और सिर्फ इस्लाम जलवाह गिर हो जायेगा।
उसके बाद उन्होंने एक दस्ता माल गनीमत जमा करने पर दूसरा दस्ता मर्द व औरत और बच्चो को क़ैद करने पर ग्रुप शहीदों को जमा करके तकफीन करने पर मुक़र्रर किया। हर ग्रुप अपने अपने काम पर मामूर हो गया।
सबसे पहले शहीदों को जमा करके उनके जनाज़ा की नमाज़ पढ़ी गयी और क़िला के अंदुरुनी मैदान ही में गढ़े खोद कर दफन कर दिया गया। माल गनीमत के एक जगह ढेर लगा दिए गए काबुल के तमाम मुशरिक मर्द ,मुशरिक औरते और बच्चे गिरफ्तार करके महाराजा के महल के सामने खड़े कर दिए गए राजा और रानी भी वही आगये .पेशवा भी उनके पास आ खड़े हुए बच्चे सख्त ख़ौफ़ज़दा औरते सहमी हुई और मर्द घबराये हुए थे। मुसलमानो के परे उनके सामने खड़े थे।
थोड़ी देर में लीडर अब्दुर्रहमान आये। उनके साथ इल्यास और कई अफसर थे उन्होंने राजा के पास पहुंच कर कहा "तुमने देखा तुम्हारे वह बुत जिनकी तुम पूजा करते थे तुम्हारी मदद न कर सके न तुम्हारी वह ताक़त जिस पर तुम्हे घमंड था काम आयी तुम्हारा शान लश्कर तुम्हारी दौलत और तुम्हारे मज़बूत क़िले तुम्हे न बचा सके कुफ्र झुक गया इस्लाम सर बुलंद हो गया खुदा ने अपने नेक बन्दों की मदद की और मुठी भर मुसलमानो ने तुम्हारे क़िलों को फतह कर लिया।
अये अहले शिर्क !बुत खुदा नहीं होते। वह ऐसे मुजस्समे है जिन्हे तुमने खुद बना लिया है। वह न देख सकते है न सुन सकते है ,जब देख और सुन ही नहीं सकते तो मदद क्या कर सकते है। खुदा ने तम्हे अक़्ल दी है तुम अक़्ल से काम क्यू नहीं लेते खुदा वह है जो अकेला है जिसकी बादशाही आसमान से ज़मीन तक है जो बड़ी क़ुदरत वाला है हर वक़्त और हर जगह मौजूद रहता है अपने बन्दों की पुकार सुनता है मुसीबत के वक़्त उनकी मदद करता है वही इबादत का सज़ावार है इस्लाम उसी खुदा की इताअत की हिदायत करता है तुममें से जो शख्स मुस्लमान हो जायेगा वह आज़ाद कर दिया जायेगा हमारा भाई बन जायेगा और तुममे से मुस्लमान न हो वह जज़्या अदा करे जज़्या हिफाज़त का टेक्स है जब तक हम जज़्या अदा करे वालो की हिफाज़त कर सकेंगे उनसे सालाना जज़्या लेंगे जब उनकी हिफाज़त न कर सकेंगे जज़्या न लेंगे और जो लोग न मुस्लमान होंगे न जज़्या देंगे उन्हें क़तल कर दिया जायेगा। हमारे ज़िम्मा पैगाम पहुँचाना है पंहुचा दिया। मानना न मानना तुम्हारा काम है। "
अगरचे पेशवा मतलब राफे मुस्लमान थे मगर उन्होंने दुसरो पर असर डालने के लिए कहा " मैं इस्लाम को अच्छा मज़हब समझता हु और खुदा की इताअत का इक़रार करता हु। "
उन्होंने कलमा शाहदत पढ़ लिया उनके बाद सैंकड़ो मर्द और औरते मुस्लमान हो गए हज़ारो मर्दो और औरतो ने जज़िया देने देने का इक़रार किया राजा खामोश खड़ा सब कुछ देख रहा था राफे ने उससे कहा "आप क्या सोच रहे है आप कौन सी बात क़ुबूल करते है ?"
राजा : तुम्हे मालूम है की मुझे राजकुमारी सुगमित्रा से किस क़द्र मुहब्बत थी अफ़सोस है वह गुम हो गयी। उसकी जुदाई ने मुझे और रानी दोनों को बेचैन कर रखा है। हमें अपनी ज़िंदगिया अच्छी मालूम नहीं होती हम मौत क़ुबूल करते है।
अब्दुर्रहमान : जानते हो सुगमित्रा कौन थी ?
राजा ने हैरत से अब्दुर्रहमान को देखा और कहा "होती कौन मेरी बेटी थी "
अब्दुर्रहमान : इस राज़ का पर्दा हट चूका है सुगमित्रा उनकी (पेशवा मतलब राफे ) की बेटी थी। उसका नाम राबिआ था। इसे बिमला एक औरत ने अगवा करके लायी थी तुमने उसे खरीद लिया अपनी बेटी बना लिया। वह तुम्हारी बेटी कहा से आयी ?"
राजा और भी हैरान हो कर राफे को देखने लगा। राफे ने कहा " आज मैं सच बताऊंगा जिसका नाम तुमने सुगमित्रा रखा था। वह मेरी बेटी राबिआ है मैं अरब हु। बिमला मेरी बेटी को अगवा कर लायी मैं उसे तलाश करने यहाँ आया मालूम हुआ की राबिआ का नाम सुगमित्रा रख लिया गया है मैं उसे अपने साथ ले जाने के लिए पेशवा बन गया राबिआ गुम नहीं हुई बल्कि मुसलमानो के पास पहुंच गयी और मुस्लमान हो गयी। "
राजा : तब मैं ज़िंदा रहूँगा और जो मज़हब मेरी बेटी ने क़ुबूल कर लिया है। मैं भी क़ुबूल करता हु।
राजा और रानी दोनों मुस्लमान हो गए। मुसलमानो को इससे बड़ी ख़ुशी हुई। राजा और रानी के मुस्लमान होने से और भी बहुत से मर्द व ज़न मुस्लमान हो गए।
उसके बाद माल गनीमत का जायज़ा लिया गया राजा और रानी का और जो लोग मुस्लमान हो गए थे उनका तमाम माल व असबाब उनकी शनाख्त करने पर उन्हें वापस दे दिया गया और बाक़ी माल व असबाब का पांचवा हिस्सा निकाल कर चार हिस्से तमाम मुजाहिदों में तक़सीम कर दिए गए।
कुछ ऐसे गरीब लोग रह गए जो न मुस्लमान हुए। न अपनी ग़ुरबत की वजह से जज़्या अदा कर सके उन्हें अब्दुर्रहमान ने आज़ाद कर दिया। वह दुआए देते चले गए।
चूँकि महाराजा काबुल मुस्लमान हो गए थे लिहाज़ा काबुल की सल्तनत उन्हें ही दे दी गयी। राबिआ से मिलने के लिए राजा और रानी दोनों इस्लामी लश्कर में पहुंचे। राबिआ उनसे मिली। दोनों उसे देख कर बहुत खुश हुए।
फतह काबुल के तीसरे रोज़ अम्मी ने राफे से कहा से कहा ' भई मेरी दो आरज़ू थी राबिआ और तुम्हारे मिल जाने की दूसरी राबिआ से इल्यास का निकाह हो जाने की। पहली आरज़ू खुदा ने सुन ली। दूसरी के लिए तुमसे दरख्वास्त करती हु।
राफे : मैं भी तुम्हारा और राबिआ भी तुम्हारी। मुझसे पूछती हो। मुझे हुक्म दो।
अम्मी बहुत खुश हुई। उन्होंने अमीर अब्दुर्रहमान से मशवरा करके तारिख तय कर दी और तैयारी करने लगे। तैयारी ही क्या थी। मुसलमानो की शादिया निहायत सादा तरीके से होती थी। कोई धूम धाम नहीं जिसे जो हासिल है जहेज़ दे दिया कुछ नहीं है तो न दिया राजा ने चाहा कि वह राबिआ की शादी धूम धाम से करे लेकिन अब्दुर्रहमान ने मना क्र दिया।
अब राबिआ साड़ी के बजाए शलवार और क़ुबा पहनने लगी थी। यह लिबास खूब जचता था। निकाह के रोज़ राबिआ को ग़ुस्ल दिया गया और उम्दा लिबास पहना कर दुल्हन बनाया गया। असर और मगरिब के दरमियाँ निकाह हुआ .उसी वक़्त रुखसती हो गयी। राबिआ को खेमा में जो फर्श से आरास्ता कर दिया गया था ला बिठाया। कुछ देर तो बिमला (फातिमा ) कमला और चंद मुस्लिम लड़किया उसे घेरे रही। फिर एक एक करके वह दूसरे खेमो में चली गयी।
इल्यास राबिआ को दुल्हन बना देखने के बड़े मुश्ताक़ थे। लड़कियों और औरतो के हटते ही खेमा में जा दाखिल हुए .राबिआ मुँह खोले बैठी हुई थी। उस वक़्त वह रश्क़ हूर मालूम हो रही थी। उसके दिलकश चेहरे से नूर था ,आँखों से तेज़ रौशनी ख़ारिज हो रही थी। वह इल्यास को देख कर मुस्कुराई। इल्यास के दिल पर बिजली सी गिरी। वह संभल गए। उन्होंने मुस्कुरा कर कहा " पड़ गयी न आखिर मेरे गले "
राबिआ ने तेज़ नज़रो से उन्हें देखा। इल्यास ने सादगी से कहा " अच्छा जाने दो हम कुछ नहीं कहते "राबिआ मुस्कुरा दी। चंद दिनों के बाद बिमला का राफे से और कमला का एक और मुस्लमान से निकाह हो गया एक महीना बाद यह सब लोग बसरा की तरफ लौट गए।
( ख़तम )