fatah kabul (islami tareekhi novel) part 45

 मुलाक़ात। ..... 

                                                           


मुहब्बत और औरत की मुहब्बत अजीब होती है। वह जिससे मुहब्बत करती है उसके लिए समुन्दर में छलांग लगाने ,आग में कूद पड़ने और पहाड़ से जस्त मारने पर तैयार हो जाती है। जो औरत जज़्बाती नहीं होती उसकी मुहब्बत पाक होती है। कमला भी ऐसी ही औरतो में थी। उसे इल्यास से मुहब्बत हो गयी थी। जब उसने देखा राबिआ जिसे सुगमित्रा समझ रही थी  मंगेतर है और वह उसकी तलाश में आये है तो वह उसे राज महल से निकाल लेने पर तैयार हो गयी। उसने उससे भी पहले जब इल्यास जेल खाने से छूट कर आये थे यह समझ लिया था की राजकुमारी सुगमित्रा उन्हें  चाहने लगी है। वह न राजकुमारी के बराबर हसीं थी न दौलत मंद उसने उन्हें भाई बना लिया था अब वह अपने भाई को खुश करने के लिए कोशिश कर रही थी। 

वह हज़ार तकलीफे उठा कर काबुल पहुंची। उसे वहा जाते ही मालूम हो गया की सुगमित्रा की शादी की तैयारियां बड़े ज़ोर व शोर से हो रही है। राजा के महलो से लेकर गरीबो के झोंपड़ी तक शादियाने बज रहे है। गरीबो के झोपडो में रात को गीत गाये जाते है और अमीरो  के मकानों में वेश्या के नाच और गाने होते है राजा के महलो में भी तवाइफ़ों का झमगट रहता था। 

उसके रिश्तेदार काबुल में थे। खासे अमीर आदमी थे। वह उनके यहाँ जाकर ठहरी और इस कोशिश में मशगूल हुई की क़स्र शाही में जाकर सुगमित्रा से मिले और इल्यास का पैगाम उस तक पहुचाये। उसने खुफ़िआ खुफ़िआ यह भी मालूम किया की राजकुमारी इस शादी से रज़ामंद नहीं है। ज़्यादा औरतो ने  उससे यही कहा की वह रज़ामंद है लेकिन कुछ ने यह भी कहा की शायद उसे यह शादी पसंद नहीं। क्यू की वह उदास और परेशान सी रहने लगी है। 

कमला को यह बात मालूम हो गयी की राजा के महल में बारी बारी से एक एक दो दो अमीरो के घरो की औरते और लड़किया  जाती रहती है। उसने यह भी मालूम किया की राजा बड़े रंगीले है जो हसीन औरते और माहिरा लड़किया  उनके महल पहुंच जाती है  उनसे दिल बस्तगी कर लेते है। वह खुद काफी हसीं थी उसे खौफ हुआ की  कही  ऐसा न हो की वह राजा के सामने पद जाये और राजा उसे भी अपनी नफ़्स परसती का शिकार बनाना चाहिए।  वह अज़मत और अस्मत के सामने अपनी जान की भी परवा नहीं करती थी। फिर भी वह इस फ़िक्र में रही की किसी  तरह राजा के महल में पहुंच जाये। 

अचानक चंद रोज़ के बाद उसके अमीर रिश्तादार की औरतो के बुलाने का नेवता भी आ गया। उसे बड़ी ख़ुशी हुई। वह अमीर आदमी  की बीवी को खाला  थी। वह दूर की रिश्ता की खाला थी भी। उसके एक लड़की थी जो कमला से बड़ी थी  .उसकी शादी हो चुकी थी। वह भी ससुराल से मायका आयी थी। वह आम सूरत की लड़की थी।  कमला की खाला ने उससे कहा "बेटी ! राजा कुछ अच्छा आदमी नहीं है तू महल में न जाती तो अच्छा था। "
कमला ने कहा " तुम मेरी फ़िक्र न करो। राजा मेरी तरफ आँख उठा कर भी नहीं देख सकता "

गरज़ वह इसरार करके उनके साथ महल में गयी। तमाम महल में औरते और लड़किया बिखरी पड़ी थी। हसीन क़हक़हों  और दिलकश आवाज़ों से फ़िज़ा गूँज रही थी। नौ ख़ेज़ व हसीन लड़किया रंगीन तितलियों की तरह बगीचों  और सहनो में उडी फिर रही थी। उनमे से हर एक उम्दा और तरह तरह का लिबास पहने थे। अपनी शान दिखाने के लिए ज़्यादा से ज़्यादा ज़ेवर पहन कर आयी थी। अच्छे लिबास और उम्दा जेवरात ने उन हसीं लड़कियों के हुस्न  में चार चाँद लगा दिया थे। कमला भी खूब बन सज कर आयी थी। कई जगह तवायफे नाच गए रही थी। 

कमला सुगमित्रा से मिलना चाहती थी। लेकिन वह उसे   कही नज़र न आयी। वह उसकी तलाश में मसरूफ हुई। एक  लड़की से उसे मालूम हुआ की राजकुमारी अपने छोटे महल में  रहती है। बहुत कम वहा से निकलती है। उसके पास रानी  की इजाज़त के बगैर कोई नहीं जा सकता। वह  रानी से इजाज़त लेने चली गयी। रस्ते में   राजा का सामना हो गया।  

बूढ़े राजा ने उसे ललचाई नज़रो  से देखा और कहा " क्या नाम है तुम्हारा लड़की। '

"कमला" उसने जवाब दिया। 

राजा : तुम काबुल की रहने वाली नहीं हो। 

कमला :  मैं दादर के इलाक़ा के रहने वाली हु। 

राजा : यही वजह है की मैंने पहले नहीं देखा। तुम तो अप्सरा हो अप्सरा कहा जा रही हो ?

कमला : मैं राजकुमारी को देखना चाहती हु। 

राजा : लो, यह हमारी अंगूठी लो और राजकुमारी को देख आओ। जो तुम्हे टोके यह अंगूठी उसे दिखा देना और जब तुम   उसे देख आओ तो  यह अंगूठी हमें वापस कर देना। 

 राजा ने अंगूठी उतार कर उसके हाथ में रख दी और मुठी  बंद करके उसका हाथ दबाया और चला गया। कमला अंगूठी  पाकर बहुत खुश हुई ,वह महल के अलग अलग हिस्सों से गुज़रने लगी। जो बांदी या कोई औरत उसे टोकती  वह उसे अंगूठी दिखा देती। टोकने वाली सर निचे करके एक तरफ हट जाती। 

गरज़  सुगमित्रा के छोटे  महल  में दाखिल हुई , यह महल निहायत खूबसूरत था। उसके दर व दिवार कमरे और बरामदे  खूब आरास्ता थे सेहन के दो हिस्से थे। एक हिस्सा चबूतरा  तरह तरह के खुशनुमा पत्थरो से बनाया गया था। दूसरा हिस्सा बगीचा था। निहायत दिलकश बगीचा था। उसमे निहायत खुशनुमा फूलो की क्यारिया थी।   कई सब्ज़ा  के लान थे। अंगूरों की टेटिया। थी सेब की दरख्तों की क़तार थी। गरज़ बगीचा निहायत फरहत (खुश) दिलकश  था। इस महल में बांदी और राजकुमारी की सहेलिया  सब नौ ख़ेज़ व कमान आबरू थी। एक लड़की कमला को राज  कुमारी के पास ले गयी। इस वक़्त यह बगीचा में थी। तनहा बैठी थी ,उसके सामने फूलो का ढेर लगा  हुआ था।  वह एक बड़ा हार गूंध रही थी। लड़की दूर से राजकुमारी को दिखा कर चली गयी। कमला दबे क़दमों  राजकुमारी के पास पहुंची। उसने देखा सुगमित्रा कुछ मफ़हूम और उदास है। कमला  ने उस मुखातिब करके सलाम  किया। राजकुमारी ने सलाम लिया और उसे देख कर गौर करने लगी  जैसे कुछ याद कर रही हो। आखिर उसने कहा। "मैंने तुम्हे दादर के धार में देखा था। "
कमला : राजकुमारी ने ठीक पहचाना। 

सुगमित्रा : किस लिए आयी हो ?
कमला : अभी अर्ज़ करूंगी पहले यह बताओ उदास क्यू हो ?

सुगमित्रा : कुछ तबियत खराब रहती है। 

कमला : माफ़ करना आपको कोई बीमारी नहीं है। अगर आप मुझसे अपना हाल छुपायँगी तो बड़ा फायदा होगा। मैं थोड़े  वक़्त में सारी बाते सुन्ना और कहना चाहती हु। क्या तुम पेशावर के राजकुमार को पसंद नहीं करती हो ?

सुगमित्रा ने कमला की तरफ देखा। राजकुमारी  को हैरत थी। की वह पहली मुलाक़ात में ऐसे कैसी बाते कर रही है। कमला ने  फिर कहा। "मैं बड़ी मुश्किल से यहाँ  आयी हु। वक़्त जाया न कीजिये। सही बात बता दीजिये। 

सुगमित्रा : हां मैं उसे न पसंद करती हु। 

कमला : मैं इस क़ैदी की पयम्बर हु जिसे आपने दादर के धार  में से रिहा कर दिया था। 

सुगमित्रा ने हैरत और ख़ुशी भरी  नज़रो से देखा  कहा " तुम सच कहती हो "

कमला : सच कह रही हु। वह तुम्हारे लिए बहुत बेकरार है। 

सुगमित्रा :  कहा है वह ?

कमला : दादर  आ गया है। 

सुगमित्रा का चेहरा कुछ फीक पड़ गया। उसने कहा " लेकिन वह यहाँ नहीं आ सकता। "

कमला : ज़रूर आएगा। शायद तुम्हे मालूम नहीं। वह इस्लामी लश्कर लेकर आया है। और मुसलमानो ने दादर तक इलाक़ा  फतह कर लिया है। 

सुगमित्रा : मगर इतने वह यहाँ आएगा इतने मुझे ज़बरदस्ती उसके पल्ला से बांध दिया जायेगा जिससे मुझे नफरत है। 

कमला : मुझे इसीलिए पहले भेजा है। अगर तुम तैयार हो तो मैं तुम्हे अपने साथ ले जा सकती हु। 

सिगमित्रा : किस तरह ?

कमला : पहले यह बताओ तुम तैयार हो। 

सुगमित्रा : मैं तुम्हे बहन कहूँगी। मेरी बहन मैं इस बेवफा के लिए समुन्दर में छलांग लगाने को तैयार हु। 

कमला : तो तुम किसी तरह क़िला से  बाहर चलो। फिर मैं सब कुछ कर लुंगी। 

सुगमित्रा :यह न मुमकिन है। महाराजा और महारानी मुझे कही आने जाने नहीं देते कुछ सोच कर मगर हां एक बात  मुमकिन है। दो ही तीन रोज़ में मुक़ददस गार के क़रीब मेला होगा। इस गार के मुबारक चश्मे में से पानी लाने के लिए मुझे जाना पड़ेगा। अगर इस वक़्त तुम कुछ कर सकती हो तो कर लेना। 

कमला : इत्मीनान रखो मैं सब कुछ कर लुंगी। 

सुगमित्रा : चुप हो जाओ। मेरी सहेलिया आरही है। 

कमला :  इस बात को याद रखना भूल न जाना। 

सुगमित्रा : याद रखूंगी। 

               इस वक़्त कई नौ ख़ेज़ और मा जबीन लड़किया वहा आगयी सुगमित्रा ने उनसे कहा। "यह मेरी मुंह बोली  बहन है इसका नाम। .. 

वह नाम न जानती थी। कमला ने जल्दी से कहा "कमला है " सुगमित्रा हंस पड़ी। उसके दिलकश चेहरा पर नूर बिखर गया। 

                

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