fatah kabul (islami tareekhi novel) part 31

दीन अल्लाह में दाखिला ... ... 



जिस अरसे में लश्कर कोच के लिए तैयार हुआ। उस अरसा में अब्दुर्रहमान ने अब्दुलरब और उनके साथियो की इस्तेकबाल की। उनके सामने खुजुरे पेश की। और सत्तू घोल कर रखा। 
अब्दुलरब उनका सदा खाना देख कर भी ताज्जुब हुआ। उन्होंने कहा 'तुम्हारी ग़ज़ा यही है। "
अब्दुर्रहमान : ऐसे तो हम खाने को सब कुछ खाते है परिंदो का गोश्त ,ऊँट का गोश्त ,बकरो का गोश्त ,रोटी लेकिन हमें रग़बत खुजूरो से है। सत्तू भी बड़े शौक़ से  खाते है। इन्हे ही मुसलमानो के सामने पेश  करते है। 
अब्दुलरब ने खुजूरो और सत्तू को कुछ ज़्यादा पसंद न किया। हक़ीक़त यह है की हर मुल्क की माशरत अलग है। आब व हवा अलग है। खाना अलग है जिस मुल्क का जो फ़ल होता है उसी मुल्क वालो को ज़्यादा पसंद आता है। दूसरे मुल्क  वाले कम पसंद करते है। 
इतने में अब्दुलरब ने खुजूर खायीं और सत्तू पिया इतने में लश्कर तैयार हो गया। सब के बाद अब्दुर्रहमान का खेमा लादा गया। और यह सब लोग अरजनज की तरफ रवाना हुए। 
अब्दुलरब अपने चंद सवार अब्दुल्लाह के साथ आगे दौड़ाये और उन्हें समझा दिया की मुसलमानो का शानदार इस्तेकबाल करे चुनांचा जब मुस्लमान क़िला के पास पहुंचे तो क़िला की फ़सील के ऊपर से अग्नि बाण आसमान की तरफ उड़ाए गए। और  फ़ौरन ही तमाम  लश्कर दरवाज़े से निकल कर सामने वाले मैदान में बढ़ गया। उन्होंने बड़ी शान से मुसलमानो का इस्तेकबाल किया। 
अब्दुर्रहमान ने मैदान में ही कैंप दाल दिया। अब्दुलरब और अब्दुल्लाह क़िला के अंदर चले गए। उस रोज़ अब्दुलरब ने तमाम लश्कर की दावत की और राशन भेज दिया। दूसरे रोज़ वह अब्दुर्रहमान और तमाम अफसरों को लेकर क़िला  के अंदर गए क़िला खूब सजाया गया था। इस नवाह के लोगो ने मुसलमानो को नहीं देखा था वह उन्हें देखने के लिए उमड़ आये। मर्द औरत और बच्चे आकर रास्तो के किनारो पर बाजार के सरो पर दुकानों पर  और मकानों  की छतो पर खड़े हो गए। जिस तरफ और जहा तक नज़र जाती थी इंसानो का सैलाब नज़र आता  था। 
मुस्लमान घोड़ो पर सवार बड़ी शान से चले जा रहे थे। अरजनज वालो को यह शनाख़्त करना मुश्किल हो गया की मुसलमानो  में अफसर कौन है और सिपाह सालार कौन है। सब एक ही क़िस्म का लिबास पहने हुए थे। अगर कुछ  फ़र्क़ था तो यह था की अब्दुर्रहमान के हाथ में इस्लामी अलम (झंडा) था। 
इलियास भी उनके साथ थे। सबसे कम उम्र वह थे। गंदमी रंग के खुशनुमा आज़ा और दिलफरेब खदो खाल के थे। जो एक दफा  उन्हें देखता था दुबारा देखना ज़रूर चाहता  था। 
औरते और लड़किया  उन्हें घूर घूर कर  देख रही थी। एक औरत ने दूसरी से कहा "तुमने उस लड़के को देखा। यह भी लड़ने  आया है ?"

पहली : सुना है माएँ खुद छोटे छोटे बच्चो को भी जंग में भेज देती है। 
दूसरी : बड़ा दिल गिरोह है उनका या उन्हें अपने बच्चो से मुहब्बत नहीं होती। 
पहली : भला माँ को मुहब्बत क्यू नहीं होती होगी। सुना यह है की बच्चो के लड़ कर मरने का बड़ा सवाब समझा जाता है। माँ को भी सवाब मिलता है। 
इस अरसा में मुस्लमान दूर निकल  गए थे। यहाँ तक की वह अब्दुर्रब के महल पर पहुंचे। वहा उन्हें मसनदों पर बिठाना चाहा। अब्दुर्रहमान ने कहा " अब नमूद व नुमाइश की बातो को छोड़ दो। खुदा का सबसे अच्छा फर्श ज़मीन है। उस मसनद को उठा दो। ज़मीन पर बैठेंगे। 
उसी वक़्त मसनदे उठा दी गयी। और सादा फर्श बिछा दिया गया। सब उस पर बैठ गए। अब्दुलरब ने पहले उनके सामने  मेवे रखे जिनमे किशमिश और बादाम वगैरा थे। उन लोगो ने लिहाजन खाये मगर उन्हें कुछ अच्छे   मालूम हुए। 
 उसके बाद अब्दुलरब ने कहा " मेरी रानी और राजकुमारी मुस्लमान होना चाहती है। 
अब्दुर्रहमान : उन्हें पर्दा करा कर बिठा दीजिये। 
अब्दुलरब : हमारे यहाँ पर्दा नहीं है। 
अब्दुर्रहमान : इस्लाम में पर्दा है। 
अब्दुलरब : घूँघट निकाल लेंगी। 
अब्दुलरब अपनी बीवी और बेटी दोनों को ले आये। रानी ने तो घूँघट निकाल रखा था। लेकिन राजकुमारी बेनक़ाब थी  .वह जवान भी थी और खूबसूरत भी। अच्छे लिबास  और उम्दा जेवरात ने उसे और भी हसींन बना दिया था। मुसलमानो ने  उसे देखते ही अपनी निगाहें झुका ली। अब्दुर्रहमान ने उन दोनों को मुस्लमान कराया। अब्दुलरब उन्हें ले गए  .उनके बाद लगभग दो सौ लोगो मुस्लमान हुए। 
 जब वह सब  चले गए। तब  इलियास ने अब्दुल्लाह से दरयाफ्त किया कहिये वह औरत अपने हवास में आयी ?"
अब्दुलरब : हां अब वह अपने हवास में है। 
इलियास : कुछ और वाक़्यात मालूम हुए। 
अब्दुल्लाह : उसने अब भी वही बयांन किया है जो मदहोशी के आलम में बयान किया था। मतलब यह की राबिआ ही राजकुमारी है। 
अब्दुलरब भी उस वक़्त बैठे थे। उन्होंने दरयाफ्त किया। कौन राबिआ और कैसी राजकुमारी ?"
अब्दुल्लाह ने तमाम हालात उनसे ब्यान किये। राजा ने कहा। "उसका कुछ हाल मुझे भी मालूम है। मैंने सुना था की काबुल के राजा  ने कोई लड़की गोद ली है।  मुझे और सब लोगो को अच्छी तरह मालूम था।  महाराजा ला दल्द है। मैंने   मालूम  किया की उन्होंने किसकी लड़की गोद  ली है।   पहले तो पता चला की हिन्द के किसी राजा की बेटी है  .देखने वालो ने बताया की निहायत खूबसूरत और परी चेहरा लड़की है। कुछ अरसा के बाद किसी ने मुझे बताया की वह लड़की किसी अरब की है। मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ की महाराजा ने एक गैर क़ौम और गैर मुल्क की लड़की  को गोद कैसे और क्यू लिया। उसके शायद दो साल बाद में काबुल गया था। मैंने उस लड़की को देखा था सचमे परकाला आतिश थी  .ऐसी हसीन और ऐसी भोली की मैंने अपनी उम्र में ऐसी लड़की नहीं देखि थी। मुझे क़रीब से  देखने का इश्तियाक़ पैदा हुआ। अचानक से महाराजा ने मुझे रनवास में बुलाया। जब मैं वहा पंहुचा तो महाराजा  किसी काम में मसरूफ थे। मैं बगीचा में गया और टहलने लगा। अचानक से राजकुमारी एक रोष पर अपनी  चंद सहेलियों के साथ मसरूफ थी। मैं उसे क़रीब से देखने का मुश्ताक़ था ही। उसकी निगाह दिल से जिगर  तक उतर गयी। अगरचे वह बहुत ही कमसिन थी लेकिन आँखों में गज़ब की दिलकश थी। सूरत से नूर की बारिश  हो रही थी। ऐसा दिलकश चेहरा  मैंने नहीं देखा था। मैंने उससे कहा "राजकुमारी ! मैं तुम्हे देखने का बड़ा मुश्ताक़  था। 
मुझे देख कर मुस्कुरायी। उसकी मुस्कराहट ने मुझे दीवाना बना दिया। उसके हमवार दांतो की सफ़ेद लड़िया  सच्चे  मोतियों की मात कर रही थी। उसने निहायत शीरी लहजा में कहा "शुक्रिया "
मैंने दरयाफ्त किया "तुम कहा की रहने वाली हो ?"
वह : बहुत दूर की। महारजा से पूछता। 
अभी इस क़द्र गुफ्तुगू हुई थी की महारानी आगयी। मैंने उन्हें सलाम किया और वहा से चला आया। मैंने यह देख लिया की  वह लड़की न काबुल की है न हिन्द की। किसी और ही मुल्क की है। 
अब्दुल्लाह : वह लड़की अरब की है। जो औरत उसे अगवा करके लायी थी खुद उसने बताया था। 
अब्दुलरब : ज़रूर होगी। 
अब्दुल्लाह : वह औरत खुद तुमसे मिलना चाहती थी। 
इलियास : यह और भी अच्छी बात है। 
अब्दुर्रहमान : क्या वह औरत  इलियास को जानती है ?
अब्दुल्लाह : नहीं। जब मैंने उसे बताया की एक अरब लड़का उस लड़की को तलाश करने आया था।  तो वह कुछ सोचने लगी। बड़ी देर के बाद उसने कहा " वह लड़का आया था वह वही होगा। ज़रूर वही होगा। 
मैंने दरयाफ्त किया "क्या तुम उस लड़के को जानती हो ?'
उसने कहा " मुझे याद आगया ,मैं पहचान गयी। अब तो वह जवान हो गया होगा। 
मैं : अभी तो जवान नहीं अलबत्ता नौजवान है। 
वह : बहुत शकील होगा। 
मैं ; है बड़ा शानदार और खूब रु है। वह कौन है ?
वह : वह  मंगेतर है। मैंने बुरा किया की उस बच्चे का दिल दुखाया। मुझ पर उसकी माँ की बद्दुआ की वजह से मुसीबते नाज़िल हुई। 
इलियास : अच्छा तो यह है की वह वालिदा के पास चले। 
अब्दुल्लाह : वह उनके सामने जाने की जुर्रत न करेगी। 
उस वक़्त अज़ान हुई और यह लोग नमाज़ पढ़ने चले गए। 


                         अगला भाग  ( आप बीती ) 

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