QARA QARAM KA TAJ MAHAL (PART 8)




सातवीं चोटी पार्ट 1

सोमवार, 8 अगस्त 2005

"किधर फंसा दिया है अपने परेशे आपा? मैं तो पता नहीं कितना रोमांटिक सफर सोच कर आया था कि हंज़ा पहुंच कर चार-पाँच पोर्टर्स लेंगे, सामान गधों पर और फिर आएंगे जगलत के दरिया के किनारे सफर करने के बाद तगाफरी का बेस कैंप, खूबसूरत दरिया, जंगल, घास ही घास, वो जैसे अम्मार ने बताया था। अल्लाह भला करे आपका, आप हमें रोमांटिक किस्म के राकापोशी के वेस्ट फेस के बजाय, किधर बर्फ़ ज़ारों में ले आई हैं, इतनी बर्फ और इतने क्रेवस हैं इधर। यहाँ तो गधे भी नहीं आते, हम तो फिर इंसान हैं।"

"ख़ैर, तुम्हारे इंसान होने पर मुझे शक है, हसीब!" शाहरा-ए-कराकोरम से राकापोशी के उत्तर-पश्चिमी रुख का फासला दो दिन की पैदल यात्रा पर था और पिछले दो दिनों में हसीब यह बात कोई छह सौ बार कह चुका था। सो, बेहद तंग आकर निशा ने जवाब दिया।
"यह इतना खतरनाक इलाका है, इस एक्सपीडिशन टीम की मौत मारी गई है जो राकापोशी नॉर्थ-वेस्ट पर से चढ़ाई करना चाहती है? इस रास्ते से कोई भी चोटी तक नहीं पहुँच सका।"

"वो सब एक ग्लेशियल घाटी में आगे-पीछे एक कतार में थे। परेशे, निशा और हसीब से पीछे उसका दोस्त और उनसे पीछे अठाईस पोर्टर्स थे, जो उन्होंने हंज़ा से ही लिए थे।"

"हसीब! तुम्हें तकलीफ क्या है? तुम्हारा 'बोझ' तो पोर्टर्स ने उठाया हुआ है।" हसीब की लगातार चलती ज़ुबान पर परेशे गुस्से से बोली। दो दिन पोर्टर्स के साथ रह कर वह भी सामान और कंधे पर उठाए रैकसैक को "बोझ" बोलने लगी थी।

पोर्टर्स पाकिस्तान में वही काम करते हैं, जो नेपाल में शेरपा करते हैं। सीजन में जब सैलानियों की आमद-ओ-रफ्त़ उरूज पर होती है, ये पोर्टर्स उनका सामान उठाते हैं और उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचा देते हैं। निशा ने इतने सारे पोर्टर्स लेने पर दो दिन पहले परेशे को हैरान होकर कहा था।
"इन पर इतने पैसे खर्च करने के बजाय हम इनके बिना चले जाते हैं... क्या फर्क पड़ेगा?"
"फर्क तो कोई नहीं पड़ेगा, बस हम दो दिन तो क्या दो महीनों में भी राकापोशी नहीं पहुँच सकेंगे।"

पिछले दो दिन से वे पैदल इन बर्फ़ीली घाटियों में सफर कर रहे थे। ये वो इलाका था, जहाँ आप दूरी को किलोमीटर, मीटर, या मील से नहीं, दिनों, हफ्तों और महीनों से नापते हैं।
परेशे ने दो दिन पहले जब पैदल सफर शुरू किया था तो उसे इस्लामाबाद, कराची,लेक डिस्ट्रिक्ट, सब भूल गया था। यूं लगता था जैसे वह सैकड़ों साल पहले वक्त में पीछे चले गए हों, जब इंसान पैदल पत्थरों और बर्फ पर सफर किया करते थे।

"वैसे मुझे लगता है, हम सा पागल कोई नहीं होगा, जो घरों का सुकून छोड़ कर पहाड़ों में ट्रैकिंग पर निकल जाते हैं और आपा जैसा पागल भी कोई नहीं होगा, जो पहाड़ों को सर करना चाहती है।"

"अब कितना फासला रह गया है?" उसने हसीब के मजाक को नज़रअंदाज़ कर के पीछे उस तंग रास्ते पर चलते पोर्टर्स के सरदार से पूछा।

"बस मैम, आधा घंटा और!" पोर्टर्स के सरदार ने पोर्टर्स के दस्तूर के मुताबिक कहा।
"पिछले 12 घंटों से यह ब्लडी चीप 'आधा घंटा और' कहे जा रहा है" पीछे कोई अंग्रेजी में बड़बड़ाया।

परेशे ने गर्दन फेर कर देखा। हसीब का वही दोस्त एक बर्फानी नाले के किनारे खड़ा हुआ बड़बड़ाया था। वह कोई सख्त बात कहना चाहती थी, मगर सामने से आते व्यक्तियों को देख कर उनकी तरफ हो गई।


वहाँ ग्लेशियर पर उनके सामने से एक टीम आ रही थी। परेशे अपनी ट्रैकिंग स्टिक की मदद से चलती, तेज़ क़ज़मी से उनके पास पहुँच गई। यूं लगता था जैसे सालों बाद इन सुनसान, वीरान घाटियों में किसी इंसान को देखा हो।
"अस्सलाम अलैकुम। पाकिस्तानी?" उनके चेहरों से जाहिर था, फिर भी करीब पहुँचने पर उसने पूछा, वे पाँच थे, उनके पास कोई सामान नहीं था, उनके पोर्टर्स उनके पीछे कई गज़ दूर आ रहे थे।

"जी मैम। पाकिस्तानी अल्हम्दुलिल्लाह!" वह खासी थका हुआ लग रहा था, फिर भी बहुत रौब मगर धैर्य से बोला। वह उसकी कटींग से ही पहचान गई थी कि वह फौजी था। बाकी भी आर्मी के थे, वह चश्मे और मफलर की वजह से उसका चेहरा ठीक से नहीं देख पाई थी।
"बेस कैंप से आ रहे हैं आप? वहाँ मौसम कैसा था?"
"मौसम?" ताज़ा दम पाँचवे साथी ने हंस कर सिर झटकते हुए आगे बढ़ गया।

लीडर, जिसका नाम मेजर आतहर था, कहने लगा,
"मौसम की मत पूछिए, मिस! हम पाकिस्तानी आर्मी की मिलिटरी एक्सपीडिशन कर रहे थे, राकापोशी के ऊपर पाँच हजार मीटर की ऊँचाई पर तम्बुओं में क़ैद हो कर मौसम के ठीक होने का इंतज़ार कर रहे थे। आठवें दिन हार मान कर नीचे उतर आए। जिस दिन बेस कैंप पहुँचे, मौसम बिल्कुल ठीक हो गया।" उसकी बात पर परेशे हंस पड़ी।

"अब कौन-कौन है बेस कैंप में?" उसने मेजर आतहर से पूछा।
"अल्बेर तो की टीम है मगर वह भी हिम्मत हार कर जाने लगे हैं, इसके अलावा दो पागल मौजूद हैं।"
"अफक अरसलान की टीम?" उसका दिल जोर से धड़क गया। उसने एक नज़र मेजर आतहर की पीठ पर देखा, स्याह कराकोरम के पहाड़ों की ओट से झांकते 'बिग व्हाइट माउंटेन' राकापोशी पर डाली। वह करीब ही था।
"जी वही, यह मेजर आसिम, जो अभी आगे गया है, अफक अरसलान का दोस्त भी है और लिज़ान अफसर भी। अरसलान को कुछ चाहिए था, इसके लिए ही हंज़ा जा रहा है।" परेशे ने पलट कर देखा, मेजर आसिम खासी दूर जा चुका था।


वह पाक आर्मी की मिलिटरी एक्सपीडिशन टीम को अलविदा कह कर अपनी टीम के साथ चलने लगी। नगर और हंज़ा के दरियाओं को वे काफी पीछे छोड़ आए थे। हंज़ा के दरिया के पानी से उसने सोने के ज़रात ढूंढने की कोशिश की, मगर उसे बेकामी हुई। उसने सुना था कि सिकंदर अज़म की फौज की नस्ल जिस घाटी में आबाद है, (हंज़ा की घाटी) वहाँ के दरिया हंज़ा से सोना निकलता है।

"अफ कितना लंबा रास्ता है ना! सरकार को चाहिए, राकापोशी तक सड़क बना दे, बंदा आराम से पहुँच तो जाए।" हसीब का दोस्त, जिसका नाम वह फिर भूल चुकी थी, कह रहा था।
"हाँ ताकि मरी की तरह हर बंदा मुँह उठाए चला आए? नहीं बेटा, राकापोशी का हुस्न खराज मांगता है, उसे एक नज़र देखने के लिए पैदल मीलों की मुसाफतें तय करनी पड़ती हैं।"

"सबित हुआ कि बंदा 'पर्वतों की देवी' राकापोशी को देख कर समझदार हो जाता है, जैसे हसीब जिसने ज़िंदगी भर कभी समझदारी की बात नहीं की, मगर बेस कैंप पहुँचते ही..."

वह आगे सुन नहीं पाई, क्योंकि बेस कैंप के करीब पहुँच कर उसने अपना रैकसैक बर्फ़ पर फेंका और अपनी टीम से आगे भाग पड़ी। उसके सामने पर्वतों की देवी अपने तमाम हुस्न के साथ खड़ी थी, मगर उसे उसकी तलाश थी, जिसके लिए वह यहाँ आई थी।
बर्फ़ से ढकी राकापोशी के कदमों में पत्थरों के मोरेन पर बालकनी की तरह एक बेस कैंप था। हर तरफ नीले, पीले और लाल तम्बू लगे थे। बेस कैंप से 100 मीटर नीचे एक दैवीक आकार का बेतरतीब ग्लेशियर था। यह तमाम "ब्रो" का ग्लेशियर था और ब्रो के ग्लेशियर पर अफक अरसलान और अल्बेर तो की टीम बेस कैंप ठीक इस जगह लग रही थी, जहाँ 1979 में एक पोलिश (पोलिश) पाकिस्तानी टीम ने स्थापित किया था। उस पर अगले ही दिन राकापोशी से बर्फ़ की एक दीवार गिर गई थी। बर्फ़शार (एवलांच) से पैदा होने वाली हवाओं से ही तमाम तम्बुओं की मेखें उखड़ गई थीं। परेशे ब्रो के खतरनाक ग्लेशियर पर अपने हलके, वाटरप्रूफ, ट्रैकिंग बूट्स की मदद से दौड़ती तम्बुओं की तरफ आई। वहाँ दर्जनों तम्बू लगे थे।

"अफक अरसलान कहाँ है?" धड़कते दिल से उसने सामने से आते इतालवी से पूछा।

"इन द मेश टेंट। द लास्ट वन!" वह टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में बताकर जल्दी में आगे बढ़ गया। वह दौड़ती हुई आखिरी नीले तम्बू के करीब आई; बाहर रुक कर उसने अपनी सांसें ठीक कीं, सिर से ऊनी टोपी उतार कर पोनी ठीक से बांधी, फिर टोपी पहनी, सनग्लासेज़ उतार कर अपनी जैकेट की जेब में रखी और खुद को सामान्य करते हुए तम्बू की ज़िप से अंदर झांका।

वह मेश टेंट के अंदर कुर्सी पर बैठा था, उसकी पीठ परेशे की तरफ थी। दमानी से आती ठंडी हवा के थपेड़ों के कारण तम्बू का कपड़ा फड़फड़ा रहा था। वह अंदर आ गई।
"कैसे हो अफक?" उसने अपने हाथ बांधे हुए अफक से पूछा। उसने चौंक कर गर्दन घुमाई और उसे देख कर उठ खड़ा हुआ।
"आई ऐम फाइन।" उसकी उम्मीद के उलट वह हैरान नहीं हुआ था, उसके चेहरे के असर ऐसे थे, जैसे वह किसी गहरी सोच से चौंका था और फिर उसमें खो गया था। वह उससे पूछना चाहती थी कि वह कैसा है, उसने इतने दिन कैसे बिताए, उसका इंतजार किया या नहीं और उसका सरप्राइज कैसा लगा! मगर कुछ भी पूछने से पहले उसकी नज़र अफक के हाथ में पकड़ी एक छोटी सी पासपोर्ट साइज की तस्वीर पर पड़ी।
"यह क्या है?" पिछले दो दिनों से उसने अपनी और अफक की जो बातचीत सोची थी, वह बिल्कुल भी नहीं हुई थी। वह जो बहुत सी बातें बताना और पूछना चाहती थी, अब अचंभे से उस तस्वीर को देख रही थी।
"यह?" अफक ने गर्दन झुका कर तस्वीर को देखा, ज़ख्मी अंदाज में मुस्कराया और तस्वीर उसकी तरफ बढ़ा दी।
"यह हनादे है।"
"कौन हनादे?" उसने तस्वीर के लिए हाथ बढ़ाया, जिसमें एक सुनहरे बालों और खूबसूरत आँखों वाली लड़की मुस्करा रही थी।
"हनादे... मेरी बीवी।"


तस्वीर थामने को बढ़ा परिशे  का हाथ नीचे गिर गया। वह बेक़ुनी से उसे देखती हुई दो कदम पीछे हटी थी।
"बीवी?"
क़राकोरम के सारे पहाड़ उसके सिर पर गिर पड़े थे।
वह बेक़ुनी से उसे देख रही थी। उसने अपनी हैरानी, सदमा कुछ भी छिपाने की कोशिश नहीं की थी। जैसे किसी ने उसके पैरों तले ज़मीन खींच ली हो। और वह फटी फटी निगाहों से उसे देख रही थी।

हाँ, यह उसकी तस्वीर उसने यूं ही निकाल ली थी। खैर, तुम कब आए? "तस्वीर वापस वॉल्ट में रख कर जेब में डालते हुए अफ़क का अंदाज़ बहुत नॉर्मल था।
"अभी" उसका लहज़ा एकदम रूखा सा हो गया था। उसने गर्दन दूसरी तरफ़ फेर ली।
"मुझे पता था, तुम ज़रूर आओगी। मैंने तुम्हारा इंतजार किया और देखो, बेकार इंतजार नहीं किया"। वह मुस्कराया।
कोई धोखा खा जाए तो धोखा देने वाला ऐसे ही मुस्कराता है। پریशے का नारी सम्मान बुरी तरह से आहत हुआ था।
"ठहरो, मैं अपनी बाकी टीम को देख आऊं" अफ़क ने उसका सूखा और रुखा अंदाज़ नोट नहीं किया। वह उसे छोड़कर थोड़ा उदास होकर बाहर चली आई। वह भी उसके पीछे आ गया।
"यह तुम्हारी सपोर्ट टीम है, ट्रैकर्स हैं या ये भी क्लाइंब करेंगे?"
"ट्रैकर्स हैं" वह उससे दूर हटकर पत्थरों पर चलते हुए नीचे की दिशा से आने वाली अपनी टीम के लोगों तक गई। वे सभी जोश में अपने रकसैक उतारकर नीचे बर्फ पर फेंक रहे थे और रकापोशी की खूबसूरत चोटी को घूमा कर देख रहे थे। सिर्फ़ वह थी जिसकी दिलचस्पी वहाँ मौजूद हर चीज़ से खत्म हो गई थी।
दूर एक पत्थर पर अरसा बैठी हुई थी। उसने घुटनों पर कागज़ रखे थे और उन पर कुछ लिख रही थी। शोर-गुल और ट्रैकर्स की आवाज़ें सुनकर उसने सिर उठाया। پریशے को सामने देख कर वह सारे कागज़ वहां छोड़कर भागते हुए उसकी तरफ़ आई।
"परिशे आप ! आप इधर? ओ गॉड, मुझे यकीन नहीं हो रहा" वह खुशी के मारे उससे लिपट गई। फिर अलग होकर उसे कंधों से थामकर खुशी से मदहोश लहजे में बोली, "यकीन करें, आज सुबह ही मैं आपके बारे में सोच रही थी। बहुत अच्छा किया जो आप आ गईं। वैसे इतनी जल्दी क्लाइंबिंग परमिट कैसे बन गया आपका?"
"कम ऑन, मैं पाकिस्तानी हूं, मुझे क्लाइंबिंग परमिट की जरूरत नहीं है" अपनी आवाज़ में खुशमिज़ाज बनाने की नाकाम कोशिश करते हुए वह फीकी मुस्कान के साथ बोली। बेस कैंप के हंगामे, ट्रैकर्स की आमद के कारण जाग उठे थे। कुछ पोर्टर्स तंबू लगा रहे थे, लड़के उनकी मदद करने लगे। پریशے ने अपने साथ एक कुक "शफाली" भी लाया था, जो चूल्हा लगाकर चपातियां बना रहा था।

पाउलो अल्बर्टो (पाउलो अल्बर्टो) की इटालियन टीम भी उनके पास आ गई थी। अल्बर्टो अंग्रेज़ी से अनभिज्ञ था, बाकी इटालियनों में से एक को थोड़ी बहुत अंग्रेज़ी आती थी। वह सबको बता रहा था कि कल सुबह उसकी टीम वापस जा रही है और वह रकापोशी को छोड़कर बलतोरो की किसी चोटी को सर करने जा रहे हैं।
پریशے ने पोर्टर्स की मजदूरी की पूरी रकम "सरदार" पोर्टर के हाथ में रख दी और अपने तंबू में चली आई। पोर्टर्स का दस्तूर था कि हमेशा रकम सरदार को मिलती थी, फिर वह आगे उसे सभी पोर्टर्स में बांटता था।
अपने तंबू में आकर उसने मैट बिछा कर स्लीपिंग बैग रखा और उसमें लेट कर आँखें बंद कर ली। उसकी सुनने वाली इन्द्रियाँ बाहर हो रहे शोर-गुल और फुसफुसाहट की आवाज़ों से टकरा रही थीं, लेकिन उसका मन कहीं और था।
हिना दे... अफ़क की बीवी... वह शादीशुदा था। किसी और का पाबंद था, तो फिर उसे क्यों क़राकोरम के ताज महल पर बुलाया था? क्या उसने गलत समझा था उसे? क्या उसने धोखा खाया था? जाने कब उसे नींद ने घेरा। अफ़क उसे रात के खाने पर बुलाने आया था, मगर सोते हुए विचार कर के वापस चला गया।
मंगलवार, 9 अगस्त 2005
हर तरफ़ घना कोहरा छाया था। वह किसी बादल के बीच में फंसी सी गई थी, कोहरे में उसे उसके साथ कोई दिखाई दिया। हरी आँखों और सुनहरे बालों वाली लड़की। वह پریशے को देखकर तंमज़क से मुस्कराई। फिर जोर से चिल्लाने लगी, "अफ़क मेरा है, सिर्फ़ मेरा है" उसे लगा उसकी आवाज़ से उसके कानों के पर्दे फट जाएंगे। बेहद गुस्से में आकर वह आगे बढ़ी और दोनों हाथों से जोर से हिना को धक्का दिया। वह चीखती, जोर जोर से चिल्लाते हुए उस बर्फ़ीली चोटी से नीचे लड़खड़ाई। अगले ही पल किसी चोटी से गुड़िया की तरह उसका शरीर नीचे खाई में गिर रहा था, वह ऊंची आवाज़ में चीख रही थी, इतनी ऊंची गरगराहट जैसी आवाज़ कि उसे लगा वह भर जाएगी। हवा को तेज़ी से चीरती भारी गरगराहट...
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वह एक झटके से उठ बैठी। उसकी साँस तेज़ तेज़ चल रही थी और चेहरा पसीने से भीगा हुआ था। उसने बेइच्छा अपने चेहरे को छुआ और घबराहट में इधर-उधर देखा। वह अपने तंबू में थी। यह सब एक भयावह सपना था, लेकिन वह आवाज़ अभी भी सुनाई दे रही थी। हवा के जोर से उसके तंबू का गॉरटेक्स फड़फड़ रहा था। वह तेजी से ज़िप खोल कर बाहर आई।
हिंज़ा के दरिया के पास स्थित करीमाबाद गांव पर सुबह हो रही थी। नीला, हल्का सुनहरी रोशनी से रकापोशी का दूध जैसा सफेद और आस-पास के काले विशाल पर्वत चमक उठे थे।
پریशے ने चारों ओर देखा। सामने ही खाली ज़मीन पर पाकिस्तान आर्मी का हरा हेलीकॉप्टर लैंड कर रहा था। इसके घूमते पंखों की तेज़ हवा से आस-पास के सभी तंबुओं के गॉरटेक्स फड़फड़ रहे थे।
दूर लगे नीले तंबू के सामने खड़े अफ़क अरसलान ने पहचानने वाले अंदाज़ में हेलीकॉप्टर की ओर हाथ हिलाया। वह काले फ्लेस जैकेट और ट्राउज़र्स में लिपटे, ग्रे ऊनी टोपी से सिर ढके मुस्कराते हुए पायलट को देख रहा था।
हेलीकॉप्टर के पंख़ धीमे हो चुके थे। खुले दरवाजे से छोटी क़द की फीकी चेहरे वाले लोग काले उतर रहे थे। हेलीकॉप्टर के पायलट का चेहरा उसे दूर से ठीक तरह से नहीं दिखा था, न ही उसे देखने का शौक था। वह अपने खुले बालों को अंगुलियों से संवारती, आँखें मलती उनसे दूर हटती गई। उसका मन हिना और अपने सपने के बीच फंसा था। यहां नरम गंदी बर्फ़ के बीच एक बर्फ़ानी नाला बह रहा था। सूरज की चमकने के कारण नाले का आधा पानी पिघल चुका था और उसमें बर्फ़ के बड़े बड़े टुकड़े तैर रहे थे। नाले के इस तरफ़ हसीब का दोस्त बैठा था।
"यह हेलीकॉप्टर पर कौन आया है, پری आपा?"

वह अपनी ख़यालात से चौंकी ,फिर नागवार शिकने माथे पर उभरी  "जस्ट डोंट कॉल मी आपा, पहले आपा और बहन जैसे रिश्तों का सम्मान सीखो और फिर ये शब्द कहो" अपने नए ट्राउजर और जैकेट की परवाह न करते हुए वह वहीं गंदी बर्फ पर बैठ गई।
"तुम मुझसे हर समय खफा क्यों रहती हो?"
"मुझे ज़हर लगते हैं तुम्हारे जैसे लापरवाह किस्म के नौजवान, जो लड़कियों को देख कर सीटी बजाते हों... " वह मुंह फेर कर पहाड़ों पर बनी प्राकृतिक चरागाहों को देखने लगी। अल्बर्टो के टीम सदस्य और उसके पोर्टर्स सामान कंधों पर उठाए, चींटियों की तरह एक ही कतार में चलते हुए बेस कैंप से वापस नीचे जा रहे थे।
"यह उम्र ऐसी होती है। सब इस उम्र में ऐसे ही होते हैं।"
"सब नहीं होते। मोहम्मद बिन कासिम ने इस उम्र में सिंध फतह किया था।"
"वह तो... मैंने भी कर लेना था अगर यह तलवारों का दौर होता!" वह लापरवाही से हंसा।
"शट अप!" उसने उसे झाड़ दिया, "आगे मुझे आपा मत कहना।" वह उठ खड़ी हुई। उसे नाश्ता करना था, बाल बांधने थे और कान भी ढकने थे क्योंकि हल्की हल्की बर्फीली हवा उसके कानों में घुस रही थी। वह जाने के लिए मुड़ी, तब उसे ख्याल आया।
"सुनो, तुम्हारा नाम क्या है?" वह फिर भूल गई थी।
नाले के इस पार बर्फ पर बैठा लड़का मुस्कुराया, "मुसअब उमर।"
"फाइन!" उसने सिर झटका और बेस कैंप की तरफ बढ़ गई।
बेस कैंप जाग रहा था। नाश्ते की खुशबू, फल, पोर्टर्स की वापसी, पस्ते कद काले की आमद। वह किचन टेंट की तरफ जाते जाते रुक कर आकाश को देखने लगी, जो हेलीकॉप्टर के दरवाजे के पास खड़ा हंसते हुए अंदर बैठे पायलट से बात कर रहा था। कुछ सोचकर वह उनके पास चली आई।
"एक्सक्यूज़मी अफसर! ये कौन लोग हैं?" अफ़क को एकतरफ नजरअंदाज करते हुए उसने पायलट से सवाल किया।
"ये कुछ अमीर कबीर जापानी सिया हैं, जो रकापोशी के N W सुपर (उत्तर पश्चिमी रेज) पर फोटोग्राफी करने के लिए दो दिन पैदल चलकर बेस कैंप आने के बजाय पाकिस्तानी आर्मी का हेलीकॉप्टर अफोर्ड कर सकते हैं।" मुस्कुराते हुए अफ़क ने जवाब दिया।
"क्या वाकई तुम मुझसे कह रहे हो कि हम लोग नंगा पर्वत से बाहर निकल लेंगे?" फिर पायलट से बात की। उसने ऐसा जाहिर किया जैसे उसकी बात सुनी ही नहीं।
उन दोनों के लिए तो, मुझसे नंगा पर्वत पर फंसा हुआ था।
"मैम! इसमें कोई शक नहीं है। पाकिस्तान आर्मी के पहाड़ों पर सर्च एंड रेस्क्यू ऑपरेशन्स दुनिया भर में मशहूर हैं। हम इनशाअल्लाह जल्द ही टॉमाजोमर को निकाल लेंगे।" प्रोफेशनल लेकिन धीमे लहजे में अधिकारी ने जवाब दिया। उसका चेहरा काले चश्मों और टोपी के कारण स्पष्ट नहीं था।
"प्रि! यह मेरा दोस्त है, मेजर आसिम और आसिम, यह मेरी साथी क्लाइंबर हैं, डॉ. प्रीशे जहाँज़ेब।"
"नाइस टू मीट यू डॉ. प्रीशे! आप को कल बेस कैंप के रास्ते में देखा था।"
"जी, मगर बेस कैंप टू हंजा से दो दिन दूर है। आप इतनी जल्दी वापस जाकर वहां कैसे पहुंच गए?" और मेजर अत्तार कह रहे थे आप तुर्क टीम के लियाज अधिकारी हैं। हालाँकि लियाज अधिकारी का क़ानून तो पिछले साल नवंबर में खत्म हो चुका था, लेकिन रुके..."
"मैं हेलीकॉप्टर से पहुंच गया था और अर्सलान का लियाज अधिकारी दो साल पहले बलतूरो में था अब इन्हें लाना था, साथ अर्सलान की... कुछ चीजें भी बिना फीस लिए ले आया हूं।" वह हंसा।
"अच्छा!" उसने अफ़क को बिना लिफ्ट कराए वहाँ से हट गई।
नाश्ते के बाद वह उसके पास आया। वह अपने तंबू के बाहर पत्थरों पर बैठी थी।
"तुमने आज और कल ठीक से रेस्ट किया?" वह अपनापन और चिंता से कहता उसके साथ पत्थरों पर बैठ गया, जैसे दोनों के सामने रकापोशी का पहाड़ी क्रम था।
"हूँ," उसने नजर भी उसकी ओर न उठाई।
"आज हम 4800 मीटर तक जाएंगे। मौसम बेहतर हो रहा है। हमें आज ऐक्सलामेटाइजेशन शुरू कर देनी चाहिए।"
"बेहतर।"
"तुम इतनी चिंतित थीं कि तुम्हें अनुमति नहीं मिलेगी और देखो, जरा लगन से तुमने रिक्वेस्ट की और तुम्हारे पापा ने फौरन तुम्हें... "
"मैं बदल लूं।" वह उठ खड़ी हुई। वह बोलते-बोलते रुक गया, फिर सिर हिला कर कहा, "ठीक है, मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं।"
"हूँ... इंतजार तो मैंने किया था।" उसने उसे नजरअंदाज किए अपने नारंगी तंबू में चली आई।
घंटे बाद वह फरीद और अफ़क के साथ हाथ में आइस एक्स लेकर रकापोशी के कदमों पर चढ़ने लगी। उसे ऐक्सलामेटाइजेशन की बहुत जरूरत थी। उसे अपने शरीर और फेफड़ों को कम ऑक्सीजन और समुंदर से अधिक ऊचाई का आदी बनाना था, लेकिन अभी उसका मन नई हकीकतों को स्वीकार नहीं कर पा रहा था।
वह सारा रास्ता चुप रही। अफ़क बोलता और उसे ढालान का रास्ता समझाता रहा।
रकापोशी चढ़ने के तीन रास्ते थे, दक्षिण-पूर्वी फेस, जो, "जो गल्त गोह" के ग्लेशियर से चढ़कर जाता था, लंबा लेकिन आसान था। दूसरा पश्चिमी फेस (पासान ग्लेशियर) और फिर था, उत्तर-पश्चिम रेज (N W रेज), दुनिया का लंबा रेज जो आज तक कोई नहीं चढ़ पाया था। अफ़क की टीम यही करने आई थी।
दो घंटे तक कैंप वन में पहुंचकर अफ़क और फरीद ने सारा सामान तंबुओं में भरना शुरू किया। वह उसे देखता रहा जो पूरी तत्परता से सामान निकाल रहा था। उसके सिर पर गिरी ऊनी टोपी पर सफेद धागे से "रकापोशी 2005" लिखा था। वह मुंह फेरकर आस-पास का जायजा लेने लगी।
विस्तृत बर्फीला मैदान, तीन शोक रंगों के तंबू चारों ओर कहीं-कहीं गंदी बर्फ, जो फिल्मों के विपरीत साफ नहीं थी। बेस कैंप से कैंप वन तक बर्फ कम थी, कैंप वन से ऊपर रकापोशी की ऊचाई बर्फ से ढकी हुई थी।
प्रशे ने ग्लेशियर ग्लासेस आंखों पर चढ़ाए और गर्दन पूरी तरह उठाकर चोटी को देखा। पहाड़ की "गर्दन" से ऊपर बर्फ से ढकी चोटी के चारों ओर बादलों का हाला था, ऐसे जैसे धुंआ और बालों में गुम थी। ऊपर आकाश नीला और साफ था, लेकिन चोटी धुंआ में लिपटी थी और यही उसकी सबसे बड़ी खूबसूरती थी। इसी कारण इसे दुनिया भर के पहाड़ों में सबसे खूबसूरत पहाड़ कहा जाता था। चोटी से नीचे पहाड़ कई हजार मीटर तक एक खास कोण से नीचे आता था। जैसे किसी ने साँचे में ढाल कर बारीकी से बनाया हो। दुनिया का कोई पहाड़ ऐसी अनोखी और विशिष्ट संरचना नहीं रखता। यह विशेषता सिर्फ दमानोई को प्राप्त है।
रकापोशी का मतलब हंजा और कशर भाषा में "चमकती दीवार" है और दमानोई, "धुंआ की मां" को कहते हैं।
वह वास्तव में धुंआ की मां थी।
वापसी का सफर, कमर पर खाली रक सैक के कारण आसान था। वह अफ़क के आगे-आगे उतर रही थी। उसका जूता काट रहा था, जिसके कारण उसे चलने में दिक्कत हो रही थी।
"जिस तरह पेपर कभी नए पेन से हल नहीं होते, उसी तरह कोहपेमाई या कोह नोडरी (ट्रैकिंग) की शुरुआत नए जूतों से कभी नहीं करते।" उसकी मानसिकता से बेखबर वह उसके पीछे-पीछे कह रहा था, "तुमने शायद नए ट्रैकिंग बूट्स लिए हैं और..."
"मुझे पता है।" उसने इतनी कड़ी आवाज में उसकी बात काट दी कि वह चुप हो गया। प्रशे ने अपनी गति तेज कर दी। अफ़क ने उसके व्यवहार को माहौल की बदलाव पर मुमिल किया।
सूरज डूब चुका था। बेस कैंप के रंग-बिरंगे तंबुओं में स्पष्ट कमी आ चुकी थी। इतालवी जाते-जाते अपना कचरा भी समेट कर नहीं गए थे। खाली बोतलें, कंस, बेकार सामान उनके तंबुओं के स्थान पर बिखरा पड़ा था। ग्रे अंधेरा पहाड़ को अपनी गिरफ्त में ले रहा था। तंबुओं के अंदर रौशनी जल उठी थी। वह तेज कदमों से किचन टेंट में आई।
शफाली चपातियां पका रही थी। निशा और अरसा करीब ही प्लास्टिक चेयर्स पर बैठी थीं।
"अरसा बहन! तुम अपनी किताब में यह जरूर लिखना कि ये गोरे लोग दाल चावल और चपाती को मिक्स करके कैसे मजे से खाते हैं। फिर कह रहे होते हैं 'नो कार्ब, नो फैट, चपाती इज़ द बेस्ट!' शफाली अरसा को सलाह देते हुए अल्बर्टो की किसी इतालवी टीम के सदस्य की नकल उतार रही थी। प्रशे एक कुर्सी खींच कर बैठ गई और स्पोर्ट्स ड्रिंक उठा कर मुँह से लगा ली।
"अरसा! तुम इतना रोमांटिक नॉवल इस पहाड़ के बारे में कैसे लिख सकती हो?" इस ऊँचाई पर तुम्हारे किरदारों की क़ल्फ़ी जम चुकी होगी, ना कि वे रोमांस झाड़ रहे होंगे।
निशा हंसते हुए कह रही थी, अचानक प्रशे को चुप देख कर गंभीर हो गई।
"तुम्हें क्या हुआ है?"
"कुछ नहीं।" उसने ड्रिंक का घूंट लेते हुए कहा।
"मैं जा रही हूं यहां से। एक तो लोग भी न, जिधर राइटर देखते हैं, सलाह देना शुरू कर देते हैं।" अरसा काफ़ी देर से तंग आ चुकी थी, आखिरकार उठ कर चली गई। शफाली किसी काम से बाहर गई तो निशा ने कहा,
"तुमने फालतू इतना हंगामा बना रखा था कि अंकल अनुमति नहीं देंगे, बिल्कुल नहीं देंगे, लेकिन उन्होंने इतनी जल्दी अनुमति दे दी, मुझे तो यकीन नहीं आया था।"
"यकीन? यकीन तो मुझे भी नहीं आया था।" उसकी नजरों के सामने हनादे की तस्वीर घूम रही थी।
"प्रि, अगर मम्मी और पापा अंकल से बात करें तो सब ठीक हो जाएगा। मैं मम्मी से जाकर सब... आखिर माओं से क्या पर्दा होता है।"
प्रि चौंकी, "क्या बता दूं?"
"जो तुम्हारे और अफ़क के बीच है।"
"हमारे बीच क्या है?" उसने उल्टा सवाल किया।
निशा ने गौर से देखा, "प्रि, क्या हुआ है?"
"नहीं, तुम बताओ। हमारे बीच क्या है?" उसने खाली बोतल मेज़ पर रख दी।
"तुम दोनों के बीच... तुम दोनों..." निशा उलझी। वह जोर से हंसी।
"हमारे बीच कुछ भी नहीं है। तुम पागल हो निशी!" वह उठी और तंबू से बाहर निकल आई। निशा उसकी बहुत अच्छी दोस्त थी, मगर हर बात बताने की नहीं होती। वह निशा को नहीं बता सकती थी कि वह शादीशुदा थी। अगर बताती तो निशा उसका चेहरा पढ़कर जान जाती कि उसके दिल में क्या है। उसकी नारीत्व और अहंकार को चोट पहुंचती, इसलिए उसने निशा को कुछ नहीं बताया।
वह सिर झुका कर अपने तंबू की तरफ बढ़ने लगी। रास्ते में उसे वह बर्फीला नाला नजर आया, जहां वह सुबह मुसअब के साथ बैठी थी। सुबह उसमें पानी तैर रहा था, लेकिन रात को तापमान गिरने के कारण अब वह पूरी तरह बर्फ बन चुका था। वह हर कुछ घंटों बाद रूप बदलता था।
"बिलकुल अफ़क की तरह।" उसने सिर झटका और अपने कदम तंबू की तरफ तेज कर दिए।
बुध, 10 अगस्त 2005
बेस कैंप में आज पोर्टर्स ने बहुत अच्छा नाश्ता दिया था। दलिया, अंडे, चपाती, जूस और पनीर, जिसके कारण अगले दिन जब वह कैम्प वन तक फरीद और अफ़क के साथ चढ़ रही थी, तो उसकी तबियत थोड़ी भारी थी। अफ़क उससे आगे था और लगातार उससे बात करने की कोशिश कर रहा था। कभी उसके जूतों के बारे में पूछता तो कभी खांसी के बारे में, क्योंकि वह लगातार खांस रही थी।
"तुम अहमद को देख लेती तो अच्छा था," उसने बेस कैंप के मैनेजर और डॉक्टर अहमद दर्यान का नाम लिया।
वह जवाब दिए बिना सिर झुका कर अपने "स्की पोल्स" की मदद से बर्फ पर चलती रही।