QARA QARAM KA TAJ MAHAL ( PART 7 )

                                         


 छठी चोटी

शनिवार, 30 जुलाई 2005

घोड़े की तेज़ दौड़ती टापों की आवाज़ पर उसने मुड़कर देखा। वह दूर, तंबुओं के पास से घोड़ा दौड़ाता हुआ उसकी ओर आ रहा था। वह वहीं बैठी थी जहाँ रात को उफुक ने उसे आखिरी बार देखा था। दूर क्षितिज पर एक नई सुबह उग रही थी। झील का पानी हल्का हरा लग रहा था, अभी तक सूरज की किरणों ने उस पर अपनी चमक बिखेरनी शुरू नहीं की थी।

"तुम यहाँ क्या कर रही हो?" घोड़ा उसके पास लाकर उफुक ने उसकी गति धीमी कर दी।

"ज़िंदगी में पहली बार हारने की सज़ा पूरी कर रही हूँ, मगर या तो माहोडंड की मछलियाँ बहुत होशियार हैं, या फिर मेरी क़िस्मत बहुत खराब है।"

उसने हाथ में फिशिंग रॉड पकड़ रखी थी।

"ओह खुदाया! तुम रातभर यही करती रही हो क्या?" शहद जैसे रंग की आँखों में हैरानी झलक आई।

"सोई नहीं क्या?"

"किसी दार्शनिक ने कहा था कि सोना समय की बर्बादी है।" वह क्या कहती कि पूरी रात उसे नींद ही नहीं आई थी।

"बहुत माफ़ करना, मगर मैं तुम्हें बताना भूल गया कि आजकल माहोडंड में मछलियाँ नहीं होतीं।" घोड़े की लगाम थामे, आँखों में शरारत लिए वह मुस्कुरा रहा था। वह अभी तक घोड़े पर ही बैठा था।

"क्या?" वह चौंककर खड़ी हुई, उसकी गोद में रखा हैट नीचे घास पर गिर पड़ा।

"तुमने मुझे ग़लत डेयर क्यों दिया?"

"मुझे भी उसी दार्शनिक ने बताया था कि समय बर्बाद करने के और भी बहुत से तरीके होते हैं।" वह हँसा।

"बहुत बढ़िया! अब तुम नई रॉड ख़रीदोगे।" गुस्सा इतना ज़्यादा था कि उसने उफुक की रॉड उठाकर झील में फेंक दी। रॉड ने एक गोता खाया और फिर पानी में डूब गई।

"मैं यह रॉड नदी से ट्राउट मछली पकड़ने के लिए लाया था, मगर अब तुमने खुद को ट्राउट खाने से महरूम कर लिया है।"

"मैं ट्राउट खाए बिना भी अच्छी ज़िंदगी गुज़ार रही हूँ।" उसने अपना हैट फिर से सिर पर रखा और चल पड़ी।

"सुनो, काराकोरम की परी!"

परीशे के कदम थम गए, उसने मुड़कर घोड़े पर बैठे उफुक को देखा।

"तुम्हारे साथ एक यादगार तस्वीर खिंचवाने का मन कर रहा है?"

"नहीं!" वह दो कदम और आगे बढ़ गई।

"मगर मेरा दिल चाह रहा है!" वह उछलकर घोड़े से उतरा और भागकर उसकी ओर आया। जल्दी से हाथ बढ़ाकर उसने उसका हैट उतार लिया।

"क्या है?" वह एड़ियों के बल घुमी। उफुक ने अपनी कैप उसके सिर पर रख दी।

"यह पहनो।" उसने अपनी जैकेट, घड़ी और मफलर भी परीशे को दे दिए और बदले में उससे उसकी घड़ी ले ली।

"तुम करना क्या चाह रहे हो?"

"मिडिल ईस्ट टेक्निकल यूनिवर्सिटी में हमारे आखिरी दिन, मैंने और जेनिक ने एक-दूसरे की टोपियाँ, जैकेटें, टाई, घड़ियाँ और सनग्लास पहनकर तस्वीर खिंचवाई थी। बहुत यादगार है।"

उसने उफुक की चीजें पहनकर उसे अपना हैट पहने देखा और हँस पड़ी।

"हम बहुत मज़ाकिया लग रहे हैं, उफुक!"

"हम नहीं, सिर्फ तुम!" मुस्कुराते हुए उसे चिढ़ाया, फिर पास खड़े अमीर हसन को आवाज़ दी। उसे इशारों से तस्वीर खींचना समझाकर अपना पोलरॉइड कैमरा उसके हाथ में थमा दिया।

तस्वीर के लिए दोनों घोड़े के साथ खड़े हो गए। उफुक ने एक हाथ से घोड़े की लगाम थाम ली।

"तस्वीर आने के बाद लिख देना कि घोड़ा मेरे दाएँ तरफ़ है!" पुरानी बात का बदला चुकाकर वह खुद ही हँस पड़ी। उसी पल अमीर हसन ने कैमरे का बटन दबा दिया। फ्लैश चमका और कुछ ही पलों में तस्वीर बाहर आ गई।

"एक फ़ोटोग्राफ़र के तौर पर तुम्हारा भविष्य बहुत उज्ज्वल है, मिस्टर!"

उसके 'रेडी' न कहने पर वह तस्वीर झाड़ते हुए जल-भुनकर बोला। अमीर हसन उसकी तरफ़ टकटकी लगाए देखने लगा।

"यह तुम्हें धन्यवाद कह रहा है!" अपनी हँसी रोककर परीशे ने उसे बताया।

"ख़ैर, इसका कसूर नहीं, तुम सारे पाकिस्तानी 'रेडी' कहे बिना तस्वीर खींचते हो।" तस्वीर झाड़ते हुए वह मुस्कुराया।

परीशे को याद आया, मरी में उसने भी 'रेडी' कहे बिना तस्वीर ली थी।

"हम बहुत से काम 'रेडी' कहे बिना करते हैं। खैर, तस्वीर दिखाओ।"

उसने उफुक के हाथ से तस्वीर ले ली। वह हँस रही थी। हँसते हुए वह गर्दन को थोड़ा पीछे झुका देती थी। हँसी रोकने के लिए उसने हाथ से मुँह ढका हुआ था, उसकी कलाई में पहनी काली घड़ी का डायल चमक रहा था। उफुक घोड़े की लगाम थामे, गर्दन घुमाकर उसे देख रहा था। उसके सिर पर परीशे का हैट था, जिसका गुलाब अब मुरझा चुका था, और उसे बिल्कुल एक काउबॉय जैसा दिखा रहा था।

"अच्छी है!" उसने तस्वीर वापस कर दी।

"तुम इसे रखना चाहती हो?"

"नहीं!" वह अपनी सारी यादों को मिटाकर जाना चाहती थी।

"बहुत अच्छा!" उफुक ने तस्वीर अपनी जैकेट की जेब में डाल ली, जो परीशे उसे बाकी चीज़ों के साथ लौटा चुकी थी।

"राइडिंग करोगी?"

"नहीं, मुझे घोड़ों से डर लगता है!" वह तुरंत पीछे हट गई।

"एक बहादुर पर्वतारोही को घोड़े से डर नहीं लगना चाहिए।"

"बिल्कुल वैसे ही जैसे एक बहादुर पर्वतारोही को बुरे सपनों से भी नहीं डरना चाहिए!" वह सोचकर बोली।

"बैठ जाओ, यह बहुत अच्छा घोड़ा है, खूबसूरत औरतों का सम्मान करता है।"

"शुक्रिया, मगर मैं तो सिर्फ़ एक लड़की हूँ।"

"अच्छा, ऊपर बैठो ना। एक पैर यहाँ रकाब में रखो... रखो तो सही!"

उसके ज़िद करने पर वह झिझकते हुए आगे बढ़ी और पैर रकाब में रखा।

"ओके, अब दाएँ हाथ मेरे कंधे पर रखो और बायाँ पीठ पर।"

"किसकी पीठ पर?" वह चढ़ते-चढ़ते रुकी।

"घोड़े की पीठ पर, मैडम!" वह मुस्कान दबाकर बोला।

"अच्छा!" वह शर्मिंदा-सी हँसी, फिर डरते हुए उसके कंधे का सहारा लेकर घोड़े पर बैठ गई।

"डरो मत, मैंने कहा ना, यह खूबसूरत औरतों का सम्मान करता है।"

"मुझे ज़मीन पर पटकना इसके सम्मान के दायरे में आता है या नहीं?" वह घोड़े से बहुत डर रही थी।

"यह तो मैंने इससे नहीं पूछा।"

उसी पल घोड़ा अचानक किसी गोली की तरह तेज़ दौड़ पड़ा।

"उफुक!" वह चिल्लाई।

"ओह गॉड... परी, इसे रोको, नीचे मत उतरो!"

मगर घबराकर उसने लगाम छोड़ दी और नीचे कूद गई। उसका बायाँ पैर रकाब में फँस गया और वह घास पर गिर पड़ी।

उसका हैट उड़कर झील में जा गिरा और अब हरे-नीले पानी की सतह पर तैर रहा था।

परी... तुम ठीक हो?
वह भागता हुआ उसके पास आया और पंजों के बल उसके सामने बैठ गया।
"मैं मज़ाक कर रहा था, आई एम सॉरी। मगर तुम्हें किसने कहा कि तुम लगाम खींच दो?"
"तुमने ही कहा था।" उसने शिकायती लहजे में अपनी बड़ी-बड़ी आंखें उठाईं, जिनमें आंसू बह रहे थे।
"मैं तो बस यूं ही..." वह शर्मिंदा था।
"इधर दिखाओ, हाथ को क्या हुआ है?"

उफुक ने उसका हाथ थाम लिया, जिसमें उंगलियों के नीचे, हथेली पर रगड़ने से एक मामूली सा कट लग गया था, जिससे मुश्किल से खून की दो-तीन बूंदें टपकी थीं, मगर वह परेशान हो गया था।
"क्या बहुत दर्द हो रहा है?"
वह बिना कुछ कहे सिर झुकाए अपने जख्मी हाथ को देखती रही। आंसू उसकी पलकों से गिरने लगे थे।
"अच्छा देखो, रो मत। मैं दवा लेकर आता हूं, ठीक?"


वह उसे कैसे बताती कि वह इस मामूली खरोंच पर नहीं रो रही, बल्कि रात भर से अंदर जमा हुए आंसुओं को किसी न किसी तरह बाहर निकलना ही था।
वह उठ खड़ा हुआ, परिशे ने दाएं हाथ की पीठ से आंसू पोंछे। "बस सनी प्लास्ट ले आओ।"

वह जाते-जाते पलटा, "क्या?"
"प्लास्टिक वाला बैंडेज।"
"अच्छा, तुम सेनिटा बैंड की बात कर रही हो? अभी लाया!"
वह समझ कर अपने तंबू की ओर चला गया। शायद तुर्की में सनी प्लास्ट को सेनिटा बैंड कहा जाता होगा।

वह वहीं घास पर बैठी अपनी तकदीर की लकीरों के बीच लगे कट को देखती रही। उफुक सनी प्लास्ट लेकर वापस आ गया।
"अब खबरदार, रोना नहीं है।" उसके हाथ पर सेनिटा बैंड जैसी पट्टी लगाकर वह परी को डांटते हुए बोला,
"इतनी प्यारी आंखों को रो-रोकर लाल कर डाला है तुमने!"

उसने चौंककर अपनी नम आंखों से अपने साथ घास पर बैठे उफुक को देखा। उसने सीधे-सीधे उसे खूबसूरत कहा था! उसके दिल में जैसे कोई नर्म अहसास जग उठा।
"अब दर्द हो रहा है?" वह नरमी से पूछ रहा था।
वह कहना चाहती थी कि हां, दर्द बहुत हो रहा है—एक तकलीफदेह दर्द, जो उसके दिल में हो रहा है, मगर उसने गर्दन को न में हिला दिया।

"गुड! अब अपनी आंखें साफ करो। अपनी चीखों से तुमने निशा और अरसा को जगा ही दिया होगा। अभी आकर पूछेंगी कि मैंने एक मंगनीशुदा लड़की को ऐसा क्या कह दिया कि वह रो पड़ी?"

वह भीगी आंखों से मुस्कुराते हुए उठ खड़ी हुई।
"तुमने तो कहा था कि यह घोड़ा खूबसूरत औरतों का सम्मान करता है?"
"हां, मगर तुम तो लड़की हो न!" वह भी उसके साथ खड़ा हो गया।

परिशे ने अफसोस से माहोडुंड को देखा, सब्ज़ी माइल नीले पानी पर उसकी टोपी तैर रही थी।
उफुक ने उसकी नज़रों का पीछा किया।
"जाने दो, तुम नई ले सकती हो।"
"नहीं!" उसने उदासी से सिर हिलाया। "नई टोपी पर ऐसा बासी लाल गुलाब लगा होगा, जिसकी पंखुड़ियां किनारों से काली होकर मुरझाई हुई होंगी।"

"सही कह रही हो। कुछ चीजें खो जाएं तो फिर नहीं मिलतीं, उनका कोई विकल्प नहीं होता... कुछ इंसान भी।"

"चलो, तंबू की तरफ चलते हैं।"

वे साथ-साथ घास पर चलने लगे। वह नंगे पांव थी, जबकि उफुक ने मोज़े पहने हुए थे।
"तुम्हारी हिम्मत अभी भी अधूरी है!"
"जानता हूं, और अब मैं तुम्हें कोई मुश्किल डेर (चुनौती) दूंगा।"
"मगर वह राकापोशी पर चढ़ने से संबंधित नहीं होगा!" उसने चेताया।
"ठीक है! अब सुनो... निशा कह रही थी कि उसके भाई के किसी दोस्त के पिता किसी खुफिया एजेंसी के चीफ हैं?"
"हां, हैं, फिर?"
"तुम उसे कहो कि अपने राष्ट्रपति से कहकर मुझे पाकिस्तान सरकार की तरफ से कोई राष्ट्रपति पुरस्कार दिलवा दे।"
वह बच्चों जैसी ज़िद कर रहा था।

उसे हंसी आ गई। "तुम्हें हमारी सरकार से पुरस्कार लेने का शौक क्यों है?"
"मैं बीस साल बाद अपनी यात्रा में लिखना चाहता हूं कि जब मैं इस्लामी दुनिया के सबसे ताकतवर देश में गया, तो वहां के 'बादशाह' ने मेरी खूब खातिरदारी की… वगैरह वगैरह… समझा करो न, शो ऑफ!"

"खैर, हसीब के दोस्त का पिता एक सरकारी मुलाजिम ही है, रिचर्ड आर्मिटेज नहीं, जो उसकी बात मान ली जाएगी!"

उफुक हंस पड़ा।
"क्या खूब बात कही! इराक-अमेरिका युद्ध में अमेरिका हमारी मिन्नतें करता रहा, मगर तुर्की और तैय्यब एर्दोगान ने अपनी सरज़मीन इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी।"

वे दोनों घास पर चलते हुए एर्दोगान, मुशर्रफ और अफगान युद्ध की बातें करते रहे।
तंबुओं के बजाय वे झील की तरफ आ गए थे।
सूरज अभी तक उगा नहीं था, फजर का वक्त था।

"मैंने नमाज नहीं पढ़ी, तुम यहीं रुको, मैं वुज़ू कर लूं।"
वह झील के पानी के करीब चला गया और घास पर बैठकर बहते पानी से हाथ धोने लगा।

वह उसके साथ खड़ी मुस्कुराते हुए उसे वुज़ू करता देख रही थी।
उसने टोपी उतारी और मसह किया, फिर दोनों पैरों के मोज़े उतारकर धोने लगा।

वह मुस्कुराते हुए उसकी उंगलियों की हरकत देख रही थी कि अचानक उसके चेहरे से मुस्कान गायब हो गई।
वह झटके से दो कदम पीछे हटी।

"उफुक… ये…?"
वह अविश्वास से उसके बाएं पैर को देख रही थी।

"यह पर्वतारोहियों की ज़िंदगी है, मैडम जहांज़ेब! कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है।"
वह बहुत इत्मीनान से अपना बायां पैर धो रहा था, जिसकी आखिरी दो उंगलियां नहीं थीं।

"मगर… कैसे…?"
वह शब्द नहीं निकाल पा रही थी।

उफुक ने लापरवाही से कंधे उचकाए।
"फ्रॉस्टबाइट!"
अब वह वापस मोज़े पहन रहा था।

"नमाज कज़ा हो गई है शायद... मुझे ध्यान ही नहीं रहा।"
वह अफसोस करता हुआ घास से टोपी उठाकर खड़ा हो गया।

वह एकटक उसे देख रही थी।

"कितनी देर रुकना पड़ेगा यहां?"
परिशे ने झुंझलाकर पूछा।

"जब तक ये पत्थर रास्ते से नहीं हटेगा, हम आगे नहीं जा सकते।"


"हम अच्छे दोस्त तो हैं, परी!"

(हम अच्छे दोस्त ही तो हैं? हम और क्या हैं?)

वह पूछना चाहती थी... उसके जज़्बात की शिद्दत, इस अनकहे रिश्ते की हकीकत, मगर उसने सिर्फ इतना कहा,
"मेरी शादी है, मुझे उसकी तैयारी करनी है। मैं नहीं आ सकूंगी..."

"तो क्या मुझे अपनी शादी में बुलाओगी?"



वह एक क्षण के लिए चुप हो गई। वह हंस पड़ा।
"मैं मज़ाक कर रहा था, जानता हूँ कि तुम मुझे अपनी खुशियों में कभी शामिल नहीं करोगी।"
"खुशियों में?" उसने उदासी से सोचा। कितना बड़ा मज़ाक किया था ना अफ़क़ ने बिछड़ते समय। मगर उसने कहा था कि वे बिछड़ नहीं रहे हैं, और अगली शाम, 31 जुलाई को पेशावर हवाई अड्डे पर उसे विदा करते हुए भी उसने यही कहा था—
"मैं तुमसे दोबारा मिलने का इंतजार करूँगा।"
"मेरा ख्याल है, मैं तुम्हें जिंदगी में आखिरी बार देख रही हूँ।"
अफ़क़ ने मुस्कराकर न में सिर हिलाया— "मैंने कहा ना, हम बिछड़ नहीं रहे। मैं राका पोशी बेस कैंप में एक बहुत अच्छी पर्वतारोही का इंतजार करूँगा।"
अपने बैग की ट्रॉली धकेलते हुए प्रस्थान लाउंज की ओर बढ़ते समय परीशे ने एक उदास नज़र उस पर डाली।
"मैं नहीं आऊँगी, अफ़क़! पर्वतारोही को अब परी को भुला देना चाहिए।"
"पर्वतारोही और परी की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। मैं काराकोरम के ताज महल पर काराकोरम की परी का इंतजार करूँगा।"
वह मुस्कराया, शहद जैसी रंगत वाली आँखें छोटी हो गईं, फिर उसकी मुस्कराहट धुंधला गई। उसके हर भाव परीशे की आँखों में जमी धुंध में खोते चले गए। वह तेजी से मुड़ी और वहाँ से भाग गई, इससे पहले कि यूनानी मिथक के किसी पात्र का कोई शब्द उसकी जंजीरें बन जाएं।


मंगलवार, 2 अगस्त 2005
"मैं खाना देख लूँ," कहकर वह लाउंज से जाने ही लगी थी कि पापा ने उसे रोककर धीमे से कहा—
"वहीद से कहो, बाजार से चपली कबाब बनवा लाए।"
"जलील के?" वह बेखयाली में बोल पड़ी।
"क्या?" वे समझ नहीं पाए थे।
"नहीं, कुछ नहीं। मैं वहीद से कहती हूँ," वह घबराकर संभल गई।



"कितनी कमजोर हो गई हो, परी बेटा। बेवजह इतनी दूर चली गईं। वहाँ भला क्या रखा था?" फूफी पापा के सामने प्यार जताती नजर आईं, जो परीशे को बहुत बनावटी लगा। (उधर क्या रखा था? उधर ही तो सब कुछ रखा था!)
"बस यूं ही," वह और कुछ नहीं कह सकी और रसोई में आ गई।

फूफी सही कह रही थीं। उसने किचन के कैबिनेट के शीशे में अपना अक्स देखा और सोचा— वह सच में बहुत कमजोर और उलझी-उलझी लग रही थी। यह उसे क्या हो गया था?

"मैं काराकोरम के ताज महल पर काराकोरम की परी का इंतजार करूँगा।"
यह आवाज़ किसी मधुर संगीत से भी ज्यादा खूबसूरत थी, और पिछले तीन दिनों से उसके कानों में गूंज रही थी।

वह उसका इंतजार करेगा और उसे ना पाकर वापस चला जाएगा। यही इस कहानी का सही अंत था। फिर वह उदास क्यों थी? उस व्यक्ति के लिए जिसने कभी यह नहीं कहा कि वह उससे प्यार करता है? जिसने यह तक नहीं बताया कि उसका घर तुर्की के किस शहर में है? फिर वह इतनी भावुक क्यों हो रही थी?

इन दो-तीन दिनों में उसके सारे भ्रम खत्म हो चुके थे। वह निश्चित रूप से उससे प्यार करने लगी थी, मगर उसने यह कैसे मान लिया कि वह भी उससे प्यार करता है?

अब जब वह निष्पक्ष होकर इस मामले को देखती, तो उसे लगता कि यह केवल एकतरफा प्यार था।


बुधवार, 3 अगस्त 2005
"मैं एक घंटे में तुम्हें लेने आ रहा हूँ, साथ में डिनर करेंगे," सैफ का फोन आया।
"कहाँ?"
"किसी रेस्टोरेंट में, यार!"
"पहली बात, मैं कोई 'यार' नहीं हूँ। दूसरी बात, मैं अभी बहुत व्यस्त हूँ," उसका लहजा रूखा था।
"तुम अपनी व्यस्तता छोड़ दो और..."
"सैफ, मेरी दूसरी कॉल आ रही है, मैं बाद में बात करती हूँ," कहकर उसने फोन काट दिया।

उसे याद आया कि अफ़क़ ने एक रात उसे झील के किनारे टहलने के लिए कहा था, और वह उसके साथ चल पड़ी थी। मगर सैफ पर उसे बिल्कुल भी भरोसा नहीं था।

"क्या वह शख्स उसकी किस्मत में नहीं हो सकता था? अगर ऐसा था, तो दोनों बरसती बारिश में मरगल्ला की पहाड़ियों पर एक-दूसरे से क्यों टकराए थे?"



"पापा... अगर आप इजाजत दें तो..." वह झिझकते हुए बोली, "वह अल्बर्टो है ना, मैंने आपको बताया था कि अल्बर्टो की 11 सदस्यीय टीम राका पोशी की चोटी फतह करने जा रही है। एक तुर्की की टीम भी जा रही है, 22 दिनों की पर्वतारोहण यात्रा होगी और..."

"तुम उन लोगों के साथ 8,000 मीटर ऊँचे पहाड़ पर जाना चाहती हो?" उनके लहजे में गंभीरता थी।
"8,000 मीटर कहाँ, राका पोशी तो सिर्फ 7,000 और कुछ मीटर ऊँची है..." (हालांकि उसे यह ध्यान नहीं आया कि 'कुछ मीटर' का मतलब 788 मीटर था।)
"और इसकी चढ़ाई तो काफी आसान है..." (उसे यह भी नहीं बताया कि राका पोशी का उत्तर-पश्चिमी रिज दुनिया का सबसे लंबा रिज है।)

"मैं जा सकती हूँ, पापा?"

"तुम जानती हो, मैं तुम्हें इजाजत नहीं दूँगा।" उनका लहजा स्पष्ट था।
"जी," वह मायूस होकर वहाँ से चली आई।

बाहर बरामदे में जाकर वह एक खंभे से टिककर काले आसमान को देखने लगी। वहाँ दूर एक पतला सा चाँद झाँक रहा था। परीशे ने उदासी से चाँद की ओर देखा— यही चाँद हुंजा की वादियों में भी चमक रहा होगा। शायद इस समय अफ़क़ अर्सलान भी इसे देख रहा होगा, उसके उजाले में किसी और को खोज रहा होगा।

"मैं काराकोरम के ताज महल पर काराकोरम की परी का इंतजार करूँगा।"
यूनानी मिथक का वह पात्र काराकोरम के ताज महल पर उसका इंतजार कर रहा था, मगर वह वहाँ नहीं जा सकती थी। परी के पर काट दिए गए थे।



फिर न जाने उसे क्या सूझा, वह अपने कमरे में आई और दीवार पर लगे पोस्टर्स को उतारने लगी। वह उन्हें रसोई में ले आई और गैस जलाकर एक-एक करके जलाने लगी।

मशहूर पर्वतारोही और दुनिया की सबसे ऊँची चोटियाँ—
एवरेस्ट, K2, ब्रॉड पीक, गशेरब्रुम II, नुप्तसे, अन्नपूर्णा की दीवार— सब उसके चूल्हे में जल रहे थे।

"कभी-कभी जिंदगी में एक समय ऐसा आता है जब इंसान को अपने सारे सपनों को छोड़ना पड़ता है। परीशे की जिंदगी में वह समय आ चुका था।"

"परी?"

वह चौंककर पीछे मुड़ी। पापा दरवाजे पर खड़े हैरानी से उसे देख रहे थे।
"यह क्या कर रही हो?" उन्होंने आगे बढ़कर गैस बंद की और उसके हाथ से एक अंतिम पोस्टर लिया।
"तुम इन्हें क्यों जला रही हो? ये तो तुमने बहुत शौक से खरीदे थे।"

"बस पापा, उन सपनों का क्या फायदा, जो सिर्फ ख्वाबों तक सीमित रहें?"

"तुम जा सकती हो, परी!"
"जी? मैं... मैं जा सकती हूँ?"

"हाँ, मगर सिर्फ 22 दिनों के लिए।"

वह स्तब्ध रह गई। वह सच में जा सकती थी!

"मुझे आज अहसास हुआ कि अगर मैंने अपनी बेटी को उसका सबसे बड़ा सपना पूरा करने नहीं दिया, तो यह उसके साथ बहुत बड़ा अन्याय होगा।" उन्होंने हल्के से उसका सिर थपथपाया। "लेकिन तुम जाओगी कैसे? मैं सैफ से कहूँ कि वह तुम्हारे साथ चला जाए?"

"नहीं, सैफ नहीं, पापा!" अगर ऐसा होता तो बेहतर था कि वह जाती ही न। "निशा और हसीब साथ हैं ना? हसीब के दोस्तों का एक ग्रुप वैसे भी परसों हुंजा जा रहा है, राका पोशी बेस कैंप फतह करने के लिए। मैं उनके साथ चली जाऊँगी।" उसे यकीन नहीं हो रहा था कि पापा इतनी जल्दी इजाजत दे देंगे।

"तुमने तो पूरी प्लानिंग पहले से कर रखी है!" उन्होंने शक भरी नज़रों से उसे देखा तो वह मुस्कुरा दी। दोनों साथ चलते हुए बाहर लॉन्ज में आ गए।

"अच्छा, मुझे बताओ, कितने पैसे चाहिए? तुम्हारी टूर कंपनी ने तो ग्यारह हजार लिए थे।" उन्होंने अपना वॉलेट जेब से निकाला।

"राका पोशी के लिए, पापा... सात-आठ..." उसने सूखे होंठों पर ज़ुबान फेरी।

"बस आठ हजार?" वह हजार-हजार के नोट गिनने लगे।

"आठ लाख, पापा!" उसने गला सूखते हुए कहा। पहले वह हमेशा स्पॉन्सर्ड और फंडेड एक्सपीडिशन के साथ जाती थी, मगर अब दो दिन में फंड्स इकट्ठा करना या स्पॉन्सरशिप हासिल करना मुमकिन नहीं था।

"परी, क्या तुम सीरियस हो?" वह हैरान थे। उनका दिल छोटा नहीं था, न ही हाथ, मगर यह रकम सुनकर उन्हें हैरानी जरूर हुई थी।

"बस पापा, थोड़ा महंगा शौक़ है ना!" वह शरमा कर हँस दी। उसे अंदाज़ा नहीं था कि यह सब इतना आसान होगा। अगर होता, तो वह काफी समय पहले ही पोस्टर जलाने शुरू कर देती। उसे तो माँज़ होमर का वह पोस्टर पहले कभी इतना अच्छा नहीं लगा था, जितना आज लग रहा था।